अमेरिका ने बनाया गौशाला और गौचारण भूमि - भारत ने बनाया कत्लखाना।

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पाश्चात्यों का अन्धानुकरण भारतीयों का स्वभाव बन गया है । विदेशों से आयात की हुई वस्तुएं, स्वदेश निर्मित वस्तुओँ से गुणवत्ता में थोडी भी न्यून हों, तो भी भारतीय उन्हें बडे प्रेम से अपना लेते हैं। हाल ही में भारत के प्रधानमन्त्री श्री. नरेन्द्र मोदी ने अमेरिकाकी सफल यात्रा की । तबसे, भारतमें अमेरिका के विषयमें चर्चाओँ की बाढ-सी आई है । इसीलिए, हम यहां अमेरिकासे सम्बन्धित एक अच्छे समाचारपर प्रकाश डालने जा रहे हैं । वैसे भी यह समाचार हमारे लिए आश्चर्यसे कम नहीं है; किन्तु इससे अधिक लज्जाजनक है । अमेरिकाके पेन्सिल्वानिया राज्यके बंगोर स्थानपर गोमाता-अभयारण्य बनाया गया है । भूतदया एवं प्रेम इस बोधवाक्यसे युक्त इस अभयारण्यको, लक्ष्मी गाय अभयारण्य नाम दिया गया है । गायोंके प्राण बचाकर यहां उन्हें पूरी सुरक्षा दी जाती है तथा यहांके खुले वातावरणमें उनका पालन-पोषण किया जाता है । वास्तविक, अमेरिका ईसाई राष्ट्र है । वहांके अधिकतर नागरिक गोमांस (बीफ) खाते हैं । ऐसे देशमें गो-पालन हेतु विशेष अभयारण्य बनाया जाना कितना आश्चर्यजनक है ! एक ओर ऐसा दृश्य है, तो दूसरी ओर हिन्दुबहुल भारतमें, जहां गोमाताको हिन्दू पूजते हैं, वहां कैसी स्थिति है ! यहां तो गोवत्स द्वादशी, एकादशी आदि अवसरोंपर गायके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है । इसी प्रकार, यहांकी कृषिप्रधान अर्थव्यवस्थामें गोवंशका स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । इतना होनेपर भी, इस देशके न्यायालयद्वारा ऐसे बहुगुणी गोवंशको काटनेका निर्णय दिया जाना, अत्यन्त खेदजनक है । ईसाई राष्ट्रोंमें गो-अभयारण्य बन सकता है; किन्तु भारतमें गोमाताकी रक्षा हेतु अनेक आन्दोलन, प्रदर्शन करने पडते हैं । यह स्थिति हिन्दुआेंका सन्ताप बढा रही है । ५ अक्टूबरको ईद मनाई गई । इस कालमें गोरक्षा हेतु गोवाके हिन्दुत्वनिष्ठ तीन दिन तक आन्दोलनपर बैठे रहे । जनपद रायगडके मोर्बा गांवमें प्रस्तावित पशुवधगृहका निर्माण रोकनेके लिए जैनमुनि पूज्य विनम्रसागरजी महाराज तथा अन्य गो-प्रेमियोंने इस वर्षके आरम्भमें ही एक बडा आन्दोलन किया था । देशके अन्य स्थानोंपर भी गोरक्षक अपने स्तरपर कार्य करते रहते हैं । इसलिए, हिन्दुआेंके मनमें अनेक शंकाएं उपस्थित हुई हैं । महाराष्ट्रमें १२ सहस्र बैलोंको काटनेपर न्यायालयने रोक तो लगा दी थी । किन्तु, यह इस समस्याका स्थाई समाधान नहीं है । मूलतः, इतनी बडी संख्यामें पशुहत्या होनेपर भी शासन निष्क्रिय क्यों है ? इसका उत्तर मिलना चाहिए । क्या अब हिन्दुआेंको अपने आस्थाकेन्द्रोंका संरक्षण पाश्चात्य देशोंसे सीखना पडेगा ? हम गोप्रेमी आशा करते हैं कि अमेरिकासे विकास सम्बन्धी अनेक समझौतोंपर हस्ताक्षर करनेवाला शासन, गोमाताके संवर्धन हेतु भी वहांके गो-अभयारण्यसे प्रेरणा लेगा ।

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