‘’वन्देमातरम’’ बंकिमचंद्र चटर्जी ने लिखा था ! 1882 आनद मठ उपनास का
हिस्सा बना! आनद मठ उपन्यास बंकिम चंद्र चटर्जी ने लिखा था अँग्रेजी सरकार
के विरोध मे ! फिर उसमे उन्होने बगावत की भूमिका लिखी कि अब बगावत होनी
चाहिए !विरोध होना चाहिए ताकि इस अँग्रेजी सत्ता को हम पलट सके ! और इस तरह
वन्देमातरम को सार्वजनिक गान बनना चाहिए ये उन्होने घोषित किया !तब बंकिम
चंद्र चटर्जी ने कहा एक दिन ये गीत हर नोजवान के होंटो पर होगा और हर
क्रांतिवीर कि प्रेरणा बनेगा ! इस घोषणा के 12 साल बाद बंकिमचंद्र चटरजी का
स्वर्गवास हो गया ! वो पुस्तक पहले बंगला मे बनी बाद मे उसका कन्नड ,मराठी
तेलगु ,हिन्दी आदि बहुत भाषा मे छपी ! उस पुस्तक ने क्रांतिकारियों मे
बहुत जोश भरने का काम किया ! उस पुस्तक मे क्या था कि इस पूरी अँग्रेजी
व्यवस्था का विरोध करे क्यू कि यह विदेशी है ! उसमे ऐसे बहुत सी जानकारिया
थी और वो लोगो मे जोश भरने का काम करती थी ! अँग्रेजी सरकार ने इस पुस्तक
परपाबंदी लगाई कई बार इसको जलाया गया ! लेकिन इस कोई न कोई एक मूल प्रति बच
ही जाती ! और आगे बढ़ती रहती !
1905 मे अंग्रेज़ो की सरकार ने बंगाल का बंटवारा कर दिया एक अंग्रेज़ अधिकारीथा उसका नाम था कर्ज़न ! उसने बंगाल को दो हिस्सो मे बाँट दिया !एक पूर्वीबंगाल एक पश्चमी बंगाल ! पूर्वी बंगाल था मुसलमानो के लिए पश्चमी बगाल थाहिन्दुओ के लिए !! हिन्दू और मूसलमान के आधार पर यह पहला बंटवारा था !
तो भारत के कई लोग जो जानते थे कि आगे क्या हो सकता है उन्होने इस बँटवारे काविरोध किया ! और भंग भंग के विरोध मे एक आंदोलन शुरू हुआ ! और इस आंदोलन केप्रमुख नेता थे (लाला लाजपतराय) जो उत्तर भारत मे थे !(विपिन चंद्र पाल) जोबंगाल और पूर्व भारत का नेतत्व करते थे ! और लोक मान्य बाल गंगाधर तिलक जोपश्चिम भारत के बड़े नेता थे ! इस तीनों नेताओ ने अंग्रेज़ो के बंगाल विभाजनका विरोध शुरू किया ! इस आंदोलन का एक हिस्सा था (अंग्रेज़ो भारत छोड़ो)(अँग्रेजी सरकार का असहयोग) करो ! (अँग्रेजी कपड़े मत पहनो) (अँग्रेजी वस्तुओका बहिष्कार करो) ! और दूसरा हिस्सा था पोजटिव ! कि भारत मे स्वदेशी कानिर्माण करो ! स्वदेशी पथ पर आगे बढ़ो !
लोकमान्य तिलक ने अपने शब्दो मे इसको स्वदेशी आंदोलन कहा ! अँग्रेजी सरकारइसको भंग भंग विरोधे आंदोलन कहती रही !लोकमान्य तिलक कहते थे यह हमारा स्वदेशीआंदोलन है ! और उस आंदोलन के ताकत इतनी बड़ी थी !कि यह तीनों नेता अंग्रेज़ोके खिलाफ जो बोल देते उसे पूरे भारत के लोग अपना लेते ! जैसे उन्होने आरकेइलान किया अँग्रेजी कपड़े पहनना बंद करो !करोड़ो भारत वासियो ने अँग्रेजीकपड़े पहनना बंद कर दिया ! उयर उसी समय भले हिंदुतसनी कपड़ा मिले मोटा मिलेपतला मिले वही पहनना है ! फिर उन्होने कहाँ अँग्रेजी बलेड का ईस्टमाल करनाब्नद करो ! तो भारत के हजारो नाईयो ने अँग्रेजी बलेड से दाड़ी बनाना बंद करदिया ! और इस तरह उस्तरा भारत मे वापिस आया ! फिर लोक मान्य तिलक ने कहाअँग्रेजी चीनी खाना बंद करो ! क्यू कि चीनी उस वक्त इंग्लैंड से बन कर आती थीभारत मे गुड बनाता था ! तो हजारो लाखो हलवाइयों ने गुड दाल कर मिठाई बनानाशुरू कर दिया ! फिर उन्होने अपील लिया अँग्रेजी कपड़े और अँग्रेजी साबुन सेअपने घरो को मुकत करो ! तो हजारो लाखो धोबियो ने अँग्रेजी साबुन से कपड़े धोनामुकत कर दिया !फिर उन्होने ने पंडितो से कहा तुम शादी करवाओ अगर तो उन लोगो किमत करवाओ जो अँग्रेजी वस्त्र पहनते हो ! तो पंडितो ने सूट पैंट पहने टाई पहननेवालों का बहिष्कार कर दिया !
इतने व्यापक स्तर पर ये आंदोलन फैला !कि 5-6 साल मे अँग्रेजी सरकार घबरागीक्यूंकि उनका माल बिकना बंद हो गया ! ईस्ट इंडिया कंपनी का धंधा चोपट हो गया !तो ईस्ट इंडिया कंपनी ने अंग्रेज़ सरकार पर दबाव डाला ! कि हमारा तो धंधा हीचोपट हो गया भारत मे ! हमारे पास कोई उपाय नहीं है आप इन भारतवासियो के मांगको मंजूर करो मांग क्या थी कि यह जो बंटवारा किया है बंगाल का हिन्दू मुस्लिमसे आधार पर इसको वापिस लो हमे बंगाल के विभाजन संप्रदाय के आधार पर नहीं चाहिए! और आप जानते अँग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा ! और 1911 मे divison of bangalact वापिस लिया गया ! इतनी बड़ी होती है बहिष्कार कि ताकत !
तो लोक मान्य तिलक को समझ आ गया ! अगर अंग्रेज़ो को झुकाना है ! तो बहिष्कारही हमारी सबसे बड़ी ताकत है ! यह 6 साल जो आंदोलन चला इस आंदोलन का मूल मंत्रथा वन्देमातरम ! जीतने क्रांतिकारी थे लोक मान्य बाल गंगाधर तिलक,लाला लाजपतराय ,विपिन चंद्र पाल के साथ उनकी संख्या !1 करोड़ 20 लाख से ज्यादा थी ! वोहर कार्यक्रम मे वन्देमातरम गाते थे ! कार्यक्रम कि शुरवात मे वन्देमातरम !कार्यक्रम कि समाप्ति पर वन्देमातरम !!
उसके बाद क्या हुआ अंग्रेज़ अपने आप को बंगाल से असुरक्षित महसूस करने लगे!क्यूंकि बंगाल इस आंदोलन का मुख्य केंद्र था ! सन 1911 तक भारत की राजधानीबंगाल हुआ करता था। सन 1905 में जब बंगाल विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफबंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपनेआपको बचाने के लिए …के कलकत्ता से हटाकर राजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 मेंदिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया। पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरेहुए थे तो …अंग्रेजो ने अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकिलोग शांत हो जाये। इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया।रविंद्रनाथ टैगोर पर दबाव बनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज पंचम के स्वागतमें लिखना ही होगा। उस समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करताथा, उनके परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे,उनके बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ताडिविजन के निदेशक (Director) रहे। उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया कंपनीमें लगा हुआ था। और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थी अंग्रेजों केलिए।
रविंद्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा उसके बोल है “जन गण मनअधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता”। इस गीत के सारे के सारे शब्दों मेंअंग्रेजी राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता लगेगा कि येतो हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था। इस राष्ट्रगान का अर्थकुछ इस तरह से होता है “भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत काभाग्य विधाता समझती है और मानती है। हे अधिनायक (Superhero) तुम्ही भारत केभाग्य विधाता हो। तुम्हारी जय हो ! जय हो ! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभीप्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा मतलब महारास्त्र, द्रविड़ मतलब दक्षिणभारत, उत्कल मतलब उड़ीसा, बंगाल आदि और जितनी भी नदिया जैसे यमुना और गंगा येसभी हर्षित है, खुश है, प्रसन्न है , तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते है औरतुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते है। तुम्हारी ही हम गाथा गाते है। हे भारत केभाग्य विधाता (सुपर हीरो ) तुम्हारी जय हो जय हो जय हो। ” में ये गीत गाया गया।
जब वो इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया।जब अंग्रेजी अनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तोमेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की। वह बहुत खुश हुआ। उसने आदेशदिया कि जिसने भी ये गीत उसके (जोर्ज पंचम के) लिए लिखा है उसे इंग्लैंडबुलाया जाये। रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए। जोर्ज पंचम उस समय नोबलपुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था। उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कारसे सम्मानित करने का फैसला किया। तो रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस नोबल पुरस्कारको लेने से मना कर दिया। क्यों कि गाँधी जी ने बहुत बुरी तरह से रविन्द्रनाथटेगोर को उनके इस गीत के लिए खूब डांटा था। टैगोर ने कहा की आप मुझे नोबलपुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना लिखी है उस परमुझे दे दो लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझेजो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है।जोर्ज पंचम मान गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को सन 1913 में गीतांजलि नामक रचनाके ऊपर नोबल पुरस्कार दिया गया।
रविन्द्र नाथ टैगोर की ये सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलिया वाला कांडहुआ तब जाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नीद खुली। इस काण्ड का टैगोर ने विरोध किया और नोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को लौटा दिया।
सन 1919 से पहले जितना कुछ भी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो अंग्रेजी सरकारके पक्ष में था और 1919 के बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजो के खिलाफ होने लगेथे। रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे औरICS ऑफिसर थे। अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था (ये 1919 के बाद कीघटना है) । इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत ‘जन गण मन’ अंग्रेजो के द्वारामुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है। इसके शब्दों का अर्थ अच्छा नहीं है। इसगीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है।लेकिन अंत में उन्होंने लिख दिया कि इसचिठ्ठी को किसी को नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप तक सीमित रखना चाहताहूँ लेकिन जब कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे।
7 अगस्त 1941 को रबिन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने ये पत्र सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहा क़ि ये जन गन मन गीत न गाया जाये। कांग्रेस दो खेमो में बट गई। जिसमे एक खेमे(गरम दल) गंगाधर तिलक के समर्थक थे और दुसरे खेमे (नरम दल)में मोती लाल नेहरु के समर्थक थे। नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे ।मतभेद था सरकार बनाने को लेकर। एक दल चाहते थे कि स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजो के साथ कोई संयोजक सरकार (Coalition Government) बने। जबकि बाल गंगाधर तिलक (गरम दल) वाले कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है। गर्म दल हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे। लेकिन नरम दल वाले ज्यादातर अंग्रेजो के साथ रहते थे।
नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को ये गीत पसंद नहीं था तोअंग्रेजों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी कि मुसलमानों कोवन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती (मूर्ति पूजा) है। औरआप जानते है कि मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी है। उस समय मुस्लिम लीगभी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे। उन्होंने भी इसका विरोध करनाशुरू कर दिया क्योंकि जिन्ना भी देखने भर को (उस समय तक) भारतीय थे मन,कर्म औरवचन से अंग्रेज ही थे उन्होंने भी अंग्रेजों के इशारे पर ये कहना शुरू किया औरमुसलमानों को वन्दे मातरम गाने से मना कर दिया। जब भारत सन
1947 में स्वतंत्र हो गया तो जवाहर लाल नेहरु ने इसमें राजनीति कर डाली।संविधान सभा की बहस चली। संविधान सभा के 319 में से 318 सांसद ऐसे थेजिन्होंने बंकिम बाबु द्वारा लिखित वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने परसहमति जताई। बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं माना। और उस एक सांसद का नामथा पंडित जवाहर लाल नेहरु। उनका तर्क था कि वन्दे मातरम गीत से मुसलमानों केदिल को चोट पहुचती है इसलिए इसे नहीं गाना चाहिए (दरअसल इस गीत से मुसलमानोंको नहीं अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचती थी)। अब इस झगडे का फैसला कौन करे,तो वे पहुचे गाँधी जी के पास। गाँधी जी ने कहा कि जन गन मन के पक्ष में तो मैंभी नहीं हूँ और तुम (नेहरु ) वन्देमातरम के पक्ष में नहीं हो तो कोई तीसरा गीततैयार किया जाये। तो महात्मा गाँधी ने तीसरा विकल्प झंडा गान के रूप में दिया“विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊँचा रहे हमारा”। लेकिन नेहरु जी उस पर भीतैयार नहीं हुए। नेहरु जी का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकताऔर जन गन मन ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है।
उस समय बात नहीं बनी तो नेहरु जी ने इस मुद्दे को गाँधी जी की मृत्यु तक टालेरखा और उनकी मृत्यु के बाद नेहरु जी ने जन गण मन को राष्ट्र गान घोषित कर दियाऔर जबरदस्ती भारतीयों पर इसे थोप दिया गया जबकि इसके जो बोल है उनका अर्थ कुछऔर ही कहानी प्रस्तुत करते है, और दूसरा पक्ष नाराज न हो इसलिए वन्दे मातरम कोराष्ट्रगीत बना दिया गया लेकिन कभी गया नहीं गया। नेहरु जी कोई ऐसा काम नहींकरना चाहते थे जिससे कि अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचे,
मुसलमानों के वो इतने हिमायती कैसे हो सकते थे जिस आदमी ने पाकिस्तान बनवादिया जब कि इस देश के मुसलमान पाकिस्तान नहीं चाहते थे, जन गण मन को इस लिएतरजीह दी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया गया गीत था औरवन्देमातरम इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था।बीबीसी ने एक सर्वे किया था। उसने पूरे संसार में जितने भी भारत के लोग रहतेथे, उनसे पुछा कि आपको दोनों में से कौन सा गीत ज्यादा पसंद है तो 99 % लोगोंने कहा वन्देमातरम। बीबीसी के इस सर्वे से एक बात और साफ़ हुई कि दुनिया केसबसे लोकप्रिय गीतों में दुसरे नंबर पर वन्देमातरम है। कई देश है जिनके लोगोंको इसके बोल समझ में नहीं आते है लेकिन वो कहते है कि इसमें जो लय है उससे एकजज्बा पैदा होता है। तो ये इतिहास है वन्दे मातरम का और जन गण मन का।
1905 मे अंग्रेज़ो की सरकार ने बंगाल का बंटवारा कर दिया एक अंग्रेज़ अधिकारीथा उसका नाम था कर्ज़न ! उसने बंगाल को दो हिस्सो मे बाँट दिया !एक पूर्वीबंगाल एक पश्चमी बंगाल ! पूर्वी बंगाल था मुसलमानो के लिए पश्चमी बगाल थाहिन्दुओ के लिए !! हिन्दू और मूसलमान के आधार पर यह पहला बंटवारा था !
तो भारत के कई लोग जो जानते थे कि आगे क्या हो सकता है उन्होने इस बँटवारे काविरोध किया ! और भंग भंग के विरोध मे एक आंदोलन शुरू हुआ ! और इस आंदोलन केप्रमुख नेता थे (लाला लाजपतराय) जो उत्तर भारत मे थे !(विपिन चंद्र पाल) जोबंगाल और पूर्व भारत का नेतत्व करते थे ! और लोक मान्य बाल गंगाधर तिलक जोपश्चिम भारत के बड़े नेता थे ! इस तीनों नेताओ ने अंग्रेज़ो के बंगाल विभाजनका विरोध शुरू किया ! इस आंदोलन का एक हिस्सा था (अंग्रेज़ो भारत छोड़ो)(अँग्रेजी सरकार का असहयोग) करो ! (अँग्रेजी कपड़े मत पहनो) (अँग्रेजी वस्तुओका बहिष्कार करो) ! और दूसरा हिस्सा था पोजटिव ! कि भारत मे स्वदेशी कानिर्माण करो ! स्वदेशी पथ पर आगे बढ़ो !
लोकमान्य तिलक ने अपने शब्दो मे इसको स्वदेशी आंदोलन कहा ! अँग्रेजी सरकारइसको भंग भंग विरोधे आंदोलन कहती रही !लोकमान्य तिलक कहते थे यह हमारा स्वदेशीआंदोलन है ! और उस आंदोलन के ताकत इतनी बड़ी थी !कि यह तीनों नेता अंग्रेज़ोके खिलाफ जो बोल देते उसे पूरे भारत के लोग अपना लेते ! जैसे उन्होने आरकेइलान किया अँग्रेजी कपड़े पहनना बंद करो !करोड़ो भारत वासियो ने अँग्रेजीकपड़े पहनना बंद कर दिया ! उयर उसी समय भले हिंदुतसनी कपड़ा मिले मोटा मिलेपतला मिले वही पहनना है ! फिर उन्होने कहाँ अँग्रेजी बलेड का ईस्टमाल करनाब्नद करो ! तो भारत के हजारो नाईयो ने अँग्रेजी बलेड से दाड़ी बनाना बंद करदिया ! और इस तरह उस्तरा भारत मे वापिस आया ! फिर लोक मान्य तिलक ने कहाअँग्रेजी चीनी खाना बंद करो ! क्यू कि चीनी उस वक्त इंग्लैंड से बन कर आती थीभारत मे गुड बनाता था ! तो हजारो लाखो हलवाइयों ने गुड दाल कर मिठाई बनानाशुरू कर दिया ! फिर उन्होने अपील लिया अँग्रेजी कपड़े और अँग्रेजी साबुन सेअपने घरो को मुकत करो ! तो हजारो लाखो धोबियो ने अँग्रेजी साबुन से कपड़े धोनामुकत कर दिया !फिर उन्होने ने पंडितो से कहा तुम शादी करवाओ अगर तो उन लोगो किमत करवाओ जो अँग्रेजी वस्त्र पहनते हो ! तो पंडितो ने सूट पैंट पहने टाई पहननेवालों का बहिष्कार कर दिया !
इतने व्यापक स्तर पर ये आंदोलन फैला !कि 5-6 साल मे अँग्रेजी सरकार घबरागीक्यूंकि उनका माल बिकना बंद हो गया ! ईस्ट इंडिया कंपनी का धंधा चोपट हो गया !तो ईस्ट इंडिया कंपनी ने अंग्रेज़ सरकार पर दबाव डाला ! कि हमारा तो धंधा हीचोपट हो गया भारत मे ! हमारे पास कोई उपाय नहीं है आप इन भारतवासियो के मांगको मंजूर करो मांग क्या थी कि यह जो बंटवारा किया है बंगाल का हिन्दू मुस्लिमसे आधार पर इसको वापिस लो हमे बंगाल के विभाजन संप्रदाय के आधार पर नहीं चाहिए! और आप जानते अँग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा ! और 1911 मे divison of bangalact वापिस लिया गया ! इतनी बड़ी होती है बहिष्कार कि ताकत !
तो लोक मान्य तिलक को समझ आ गया ! अगर अंग्रेज़ो को झुकाना है ! तो बहिष्कारही हमारी सबसे बड़ी ताकत है ! यह 6 साल जो आंदोलन चला इस आंदोलन का मूल मंत्रथा वन्देमातरम ! जीतने क्रांतिकारी थे लोक मान्य बाल गंगाधर तिलक,लाला लाजपतराय ,विपिन चंद्र पाल के साथ उनकी संख्या !1 करोड़ 20 लाख से ज्यादा थी ! वोहर कार्यक्रम मे वन्देमातरम गाते थे ! कार्यक्रम कि शुरवात मे वन्देमातरम !कार्यक्रम कि समाप्ति पर वन्देमातरम !!
उसके बाद क्या हुआ अंग्रेज़ अपने आप को बंगाल से असुरक्षित महसूस करने लगे!क्यूंकि बंगाल इस आंदोलन का मुख्य केंद्र था ! सन 1911 तक भारत की राजधानीबंगाल हुआ करता था। सन 1905 में जब बंगाल विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफबंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपनेआपको बचाने के लिए …के कलकत्ता से हटाकर राजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 मेंदिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया। पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरेहुए थे तो …अंग्रेजो ने अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकिलोग शांत हो जाये। इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया।रविंद्रनाथ टैगोर पर दबाव बनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज पंचम के स्वागतमें लिखना ही होगा। उस समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करताथा, उनके परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे,उनके बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ताडिविजन के निदेशक (Director) रहे। उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया कंपनीमें लगा हुआ था। और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थी अंग्रेजों केलिए।
रविंद्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा उसके बोल है “जन गण मनअधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता”। इस गीत के सारे के सारे शब्दों मेंअंग्रेजी राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता लगेगा कि येतो हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था। इस राष्ट्रगान का अर्थकुछ इस तरह से होता है “भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत काभाग्य विधाता समझती है और मानती है। हे अधिनायक (Superhero) तुम्ही भारत केभाग्य विधाता हो। तुम्हारी जय हो ! जय हो ! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभीप्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा मतलब महारास्त्र, द्रविड़ मतलब दक्षिणभारत, उत्कल मतलब उड़ीसा, बंगाल आदि और जितनी भी नदिया जैसे यमुना और गंगा येसभी हर्षित है, खुश है, प्रसन्न है , तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते है औरतुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते है। तुम्हारी ही हम गाथा गाते है। हे भारत केभाग्य विधाता (सुपर हीरो ) तुम्हारी जय हो जय हो जय हो। ” में ये गीत गाया गया।
जब वो इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया।जब अंग्रेजी अनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तोमेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की। वह बहुत खुश हुआ। उसने आदेशदिया कि जिसने भी ये गीत उसके (जोर्ज पंचम के) लिए लिखा है उसे इंग्लैंडबुलाया जाये। रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए। जोर्ज पंचम उस समय नोबलपुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था। उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कारसे सम्मानित करने का फैसला किया। तो रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस नोबल पुरस्कारको लेने से मना कर दिया। क्यों कि गाँधी जी ने बहुत बुरी तरह से रविन्द्रनाथटेगोर को उनके इस गीत के लिए खूब डांटा था। टैगोर ने कहा की आप मुझे नोबलपुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना लिखी है उस परमुझे दे दो लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझेजो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है।जोर्ज पंचम मान गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को सन 1913 में गीतांजलि नामक रचनाके ऊपर नोबल पुरस्कार दिया गया।
रविन्द्र नाथ टैगोर की ये सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलिया वाला कांडहुआ तब जाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नीद खुली। इस काण्ड का टैगोर ने विरोध किया और नोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को लौटा दिया।
सन 1919 से पहले जितना कुछ भी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो अंग्रेजी सरकारके पक्ष में था और 1919 के बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजो के खिलाफ होने लगेथे। रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे औरICS ऑफिसर थे। अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था (ये 1919 के बाद कीघटना है) । इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत ‘जन गण मन’ अंग्रेजो के द्वारामुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है। इसके शब्दों का अर्थ अच्छा नहीं है। इसगीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है।लेकिन अंत में उन्होंने लिख दिया कि इसचिठ्ठी को किसी को नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप तक सीमित रखना चाहताहूँ लेकिन जब कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे।
7 अगस्त 1941 को रबिन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने ये पत्र सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहा क़ि ये जन गन मन गीत न गाया जाये। कांग्रेस दो खेमो में बट गई। जिसमे एक खेमे(गरम दल) गंगाधर तिलक के समर्थक थे और दुसरे खेमे (नरम दल)में मोती लाल नेहरु के समर्थक थे। नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे ।मतभेद था सरकार बनाने को लेकर। एक दल चाहते थे कि स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजो के साथ कोई संयोजक सरकार (Coalition Government) बने। जबकि बाल गंगाधर तिलक (गरम दल) वाले कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है। गर्म दल हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे। लेकिन नरम दल वाले ज्यादातर अंग्रेजो के साथ रहते थे।
नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को ये गीत पसंद नहीं था तोअंग्रेजों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी कि मुसलमानों कोवन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती (मूर्ति पूजा) है। औरआप जानते है कि मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी है। उस समय मुस्लिम लीगभी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे। उन्होंने भी इसका विरोध करनाशुरू कर दिया क्योंकि जिन्ना भी देखने भर को (उस समय तक) भारतीय थे मन,कर्म औरवचन से अंग्रेज ही थे उन्होंने भी अंग्रेजों के इशारे पर ये कहना शुरू किया औरमुसलमानों को वन्दे मातरम गाने से मना कर दिया। जब भारत सन
1947 में स्वतंत्र हो गया तो जवाहर लाल नेहरु ने इसमें राजनीति कर डाली।संविधान सभा की बहस चली। संविधान सभा के 319 में से 318 सांसद ऐसे थेजिन्होंने बंकिम बाबु द्वारा लिखित वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने परसहमति जताई। बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं माना। और उस एक सांसद का नामथा पंडित जवाहर लाल नेहरु। उनका तर्क था कि वन्दे मातरम गीत से मुसलमानों केदिल को चोट पहुचती है इसलिए इसे नहीं गाना चाहिए (दरअसल इस गीत से मुसलमानोंको नहीं अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचती थी)। अब इस झगडे का फैसला कौन करे,तो वे पहुचे गाँधी जी के पास। गाँधी जी ने कहा कि जन गन मन के पक्ष में तो मैंभी नहीं हूँ और तुम (नेहरु ) वन्देमातरम के पक्ष में नहीं हो तो कोई तीसरा गीततैयार किया जाये। तो महात्मा गाँधी ने तीसरा विकल्प झंडा गान के रूप में दिया“विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊँचा रहे हमारा”। लेकिन नेहरु जी उस पर भीतैयार नहीं हुए। नेहरु जी का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकताऔर जन गन मन ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है।
उस समय बात नहीं बनी तो नेहरु जी ने इस मुद्दे को गाँधी जी की मृत्यु तक टालेरखा और उनकी मृत्यु के बाद नेहरु जी ने जन गण मन को राष्ट्र गान घोषित कर दियाऔर जबरदस्ती भारतीयों पर इसे थोप दिया गया जबकि इसके जो बोल है उनका अर्थ कुछऔर ही कहानी प्रस्तुत करते है, और दूसरा पक्ष नाराज न हो इसलिए वन्दे मातरम कोराष्ट्रगीत बना दिया गया लेकिन कभी गया नहीं गया। नेहरु जी कोई ऐसा काम नहींकरना चाहते थे जिससे कि अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचे,
मुसलमानों के वो इतने हिमायती कैसे हो सकते थे जिस आदमी ने पाकिस्तान बनवादिया जब कि इस देश के मुसलमान पाकिस्तान नहीं चाहते थे, जन गण मन को इस लिएतरजीह दी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया गया गीत था औरवन्देमातरम इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था।बीबीसी ने एक सर्वे किया था। उसने पूरे संसार में जितने भी भारत के लोग रहतेथे, उनसे पुछा कि आपको दोनों में से कौन सा गीत ज्यादा पसंद है तो 99 % लोगोंने कहा वन्देमातरम। बीबीसी के इस सर्वे से एक बात और साफ़ हुई कि दुनिया केसबसे लोकप्रिय गीतों में दुसरे नंबर पर वन्देमातरम है। कई देश है जिनके लोगोंको इसके बोल समझ में नहीं आते है लेकिन वो कहते है कि इसमें जो लय है उससे एकजज्बा पैदा होता है। तो ये इतिहास है वन्दे मातरम का और जन गण मन का।
Peace if possible, truth at all costs.