इंटरनेट, टीवी और फिल्मों के ज़रिए बेलगाम फैलाई जा रही अश्लीलता हमारे
लिए बड़ी चिंता का मसला है, लेकिन AIB विवाद ने हमारी चेतना को झकझोर कर
रख दिया है, इसलिए इसे लेकर मैं तल्खतम टिप्पणी करना चाहता हूं।
"बॉलीवुड से जुड़े कुछ लोग (पुरुष और महिलाएं दोनों) अब तक छिपी हुई वेश्यावृत्ति में लिप्त रहे हैं, अब वे इसे खुलेआम करना चाहते हैं। ये जानवर बन जाने की हद तक यौन-आज़ादी चाहने वाले उच्छृंखल, आवारा, अनुशासनहीन, बिगड़ैल, धंधेबाज़, स्वार्थी, अय्याश और लालची अमानुष-अमानव हैं। मुझे संदेह है कि इनमें कई उस राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पोर्न रैकेट का भी हिस्सा बन चुके हैं, जो भारत को एक वृहत् देह-मंडी में तब्दील कर देना चाहता है।
अक्सर स्त्रियों की आज़ादी की वकालत करते हुए दिखाई देने वाले ये लोग वास्तव में उन्हें सिर्फ़ भोगने वाला शरीर समझते हैं और उनकी आज़ादी की वकालत के पीछे उनकी मंशा मात्र इतनी होती है कि उनके भोग-विलास-अय्याशी में किसी तरह का कोई व्यवधान उत्पन्न न हो। बॉलीवुड की कई स्त्रियां भी स्त्रीजाति की गरिमा की परवाह न करते हुए अपने लालच, ईजी-मनी, स्वार्थ और अय्याशी के लिए उन धंधेबाज़ों और अय्याशों का टूल बन जाती हैं।
मैं करण जौहर, रनवीर सिंह और अर्जुन कपूर समेत उस अश्लील अभद्र कार्यक्रम में उपस्थित उन तमाम लोगों को पोर्न-कारोबारी, अय्य़ाश और धंधेबाज़ मानते हुए उनकी निंदा करती हूं, जो मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वहां मौजूद थे, लेकिन उनसे ज़्यादा निंदा मैं करण जौहर की मां, सोनाक्षी सिन्हा और दीपिका पादुकोण की करती हूं, जो स्त्री होकर भी स्त्री-जाति की आबरू को कलंकित करने के उस कलुषित कार्यक्रम में (मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक) न सिर्फ़ मौजूद थीं, बल्कि ठहाके लगा रही थीं।
करन जौहर की मां के लिए मेरी टिप्पणी बस इतनी होगी कि धन्य होगी वह मां, जिसकी मौजूदगी में बेटा अलग-अलग औरतों को लेकर बेहूदी बातें कर रहा है, भद्दी-भद्दी गालियां और अश्लील फब्तियां कस रहा है, और मां को इसपर कोई एतराज भी नहीं। सोनाक्षी सिन्हा और दीपिका पादुकोण न सिर्फ़ अच्छी अभिनेत्रियां हैं, बल्कि भले परिवारों और संस्कारवान मां-पिता की बेटियां हैं, इसलिए उनसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।
मीडिया-रिपोर्ट्स के मुताबिक आलिया भट्ट भी वहां मौजूद थी, लेकिन उसकी अधिक निंदा मैं इसलिए नहीं कर रही , क्योंकि वह अच्छी अभिनेत्री ज़रूर है, लेकिन उसके साथ परवरिश की दिक्कत है। आलिया भट्ट के ऐसे ग़ैर-ज़िम्मेदाराना व्यवहार के लिए उससे अधिक ज़िम्मेदारी उसके पिता महेश भट्ट की है, जो भारत में पोर्न-प्रोमोटरों के अगुवा धंधेबाज़ हैं।
देश की मौजूदा सरकार से जुड़े लोग संस्कृति के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करते रहे हैं। यह उनके इरादों और सच्चाई के इम्तिहान की घड़ी है। अगर वे सच्चे हैं और इन पोर्न-कारोबारियों और अश्लीलता फैलाने वाले अय्याश आवारा लालची धंधेबाज़ों से मिले हुए नहीं हैं, तो वे तत्काल भारत के अंदर तमाम पोर्न-साइटों और अलग-अलग मीडिया के ज़रिए परोसी जा रही अश्लील सामग्रियों पर पाबंदी लगाएं और अश्लीलता फैलाने वालों के ख़िलाफ़ सख्त से सख्त कानून बनाएं।
अश्लीलता फैलाने वालों के ख़िलाफ़ सख्त कानून बनाना उतना ही ज़रूरी है, जितना कि रेपिस्टों के ख़िलाफ़ सख्त कानून बनाना, क्योंकि ये धंधेबाज़ लोग अपने फ़ायदे के लिए लोगों की यौन-कुंठाएं भड़काते हैं, लोगों की सोच को और समाज को गंदा करते हैं, जो रेप की घटनाओं में इज़ाफ़ा होने का एक प्रमुख कारण है। ऐसे हर व्यक्ति को ढील देकर हम प्रतिदिन स्त्रियों को ख़तरे में डाल रहे हैं।
अभिव्यक्ति की आज़ादी का यह कतई मतलब नहीं है कि चार लोग अपनी अय्याशी और धंधे के लिए पूरे समाज, पूरे मुल्क और समूची स्त्री-जाति की अस्मिता की धज्जियां उड़ाते रहें और हम चुपचाप बैठकर तमाशा करते रहें। अभिव्यक्ति की आज़ादी का नाजायज़ फ़ायदा उठाने वाले ऐसे अय्याशों और धंधेबाज़ों को तत्काल जेल में ठूंस दिया जाना चाहिए और वह सज़ा दी जानी चाहिए, जो रेपिस्टों को दी जाती है।"
"बॉलीवुड से जुड़े कुछ लोग (पुरुष और महिलाएं दोनों) अब तक छिपी हुई वेश्यावृत्ति में लिप्त रहे हैं, अब वे इसे खुलेआम करना चाहते हैं। ये जानवर बन जाने की हद तक यौन-आज़ादी चाहने वाले उच्छृंखल, आवारा, अनुशासनहीन, बिगड़ैल, धंधेबाज़, स्वार्थी, अय्याश और लालची अमानुष-अमानव हैं। मुझे संदेह है कि इनमें कई उस राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पोर्न रैकेट का भी हिस्सा बन चुके हैं, जो भारत को एक वृहत् देह-मंडी में तब्दील कर देना चाहता है।
अक्सर स्त्रियों की आज़ादी की वकालत करते हुए दिखाई देने वाले ये लोग वास्तव में उन्हें सिर्फ़ भोगने वाला शरीर समझते हैं और उनकी आज़ादी की वकालत के पीछे उनकी मंशा मात्र इतनी होती है कि उनके भोग-विलास-अय्याशी में किसी तरह का कोई व्यवधान उत्पन्न न हो। बॉलीवुड की कई स्त्रियां भी स्त्रीजाति की गरिमा की परवाह न करते हुए अपने लालच, ईजी-मनी, स्वार्थ और अय्याशी के लिए उन धंधेबाज़ों और अय्याशों का टूल बन जाती हैं।
मैं करण जौहर, रनवीर सिंह और अर्जुन कपूर समेत उस अश्लील अभद्र कार्यक्रम में उपस्थित उन तमाम लोगों को पोर्न-कारोबारी, अय्य़ाश और धंधेबाज़ मानते हुए उनकी निंदा करती हूं, जो मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक वहां मौजूद थे, लेकिन उनसे ज़्यादा निंदा मैं करण जौहर की मां, सोनाक्षी सिन्हा और दीपिका पादुकोण की करती हूं, जो स्त्री होकर भी स्त्री-जाति की आबरू को कलंकित करने के उस कलुषित कार्यक्रम में (मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक) न सिर्फ़ मौजूद थीं, बल्कि ठहाके लगा रही थीं।
करन जौहर की मां के लिए मेरी टिप्पणी बस इतनी होगी कि धन्य होगी वह मां, जिसकी मौजूदगी में बेटा अलग-अलग औरतों को लेकर बेहूदी बातें कर रहा है, भद्दी-भद्दी गालियां और अश्लील फब्तियां कस रहा है, और मां को इसपर कोई एतराज भी नहीं। सोनाक्षी सिन्हा और दीपिका पादुकोण न सिर्फ़ अच्छी अभिनेत्रियां हैं, बल्कि भले परिवारों और संस्कारवान मां-पिता की बेटियां हैं, इसलिए उनसे ऐसी उम्मीद नहीं थी।
मीडिया-रिपोर्ट्स के मुताबिक आलिया भट्ट भी वहां मौजूद थी, लेकिन उसकी अधिक निंदा मैं इसलिए नहीं कर रही , क्योंकि वह अच्छी अभिनेत्री ज़रूर है, लेकिन उसके साथ परवरिश की दिक्कत है। आलिया भट्ट के ऐसे ग़ैर-ज़िम्मेदाराना व्यवहार के लिए उससे अधिक ज़िम्मेदारी उसके पिता महेश भट्ट की है, जो भारत में पोर्न-प्रोमोटरों के अगुवा धंधेबाज़ हैं।
देश की मौजूदा सरकार से जुड़े लोग संस्कृति के बारे में बड़ी-बड़ी बातें करते रहे हैं। यह उनके इरादों और सच्चाई के इम्तिहान की घड़ी है। अगर वे सच्चे हैं और इन पोर्न-कारोबारियों और अश्लीलता फैलाने वाले अय्याश आवारा लालची धंधेबाज़ों से मिले हुए नहीं हैं, तो वे तत्काल भारत के अंदर तमाम पोर्न-साइटों और अलग-अलग मीडिया के ज़रिए परोसी जा रही अश्लील सामग्रियों पर पाबंदी लगाएं और अश्लीलता फैलाने वालों के ख़िलाफ़ सख्त से सख्त कानून बनाएं।
अश्लीलता फैलाने वालों के ख़िलाफ़ सख्त कानून बनाना उतना ही ज़रूरी है, जितना कि रेपिस्टों के ख़िलाफ़ सख्त कानून बनाना, क्योंकि ये धंधेबाज़ लोग अपने फ़ायदे के लिए लोगों की यौन-कुंठाएं भड़काते हैं, लोगों की सोच को और समाज को गंदा करते हैं, जो रेप की घटनाओं में इज़ाफ़ा होने का एक प्रमुख कारण है। ऐसे हर व्यक्ति को ढील देकर हम प्रतिदिन स्त्रियों को ख़तरे में डाल रहे हैं।
अभिव्यक्ति की आज़ादी का यह कतई मतलब नहीं है कि चार लोग अपनी अय्याशी और धंधे के लिए पूरे समाज, पूरे मुल्क और समूची स्त्री-जाति की अस्मिता की धज्जियां उड़ाते रहें और हम चुपचाप बैठकर तमाशा करते रहें। अभिव्यक्ति की आज़ादी का नाजायज़ फ़ायदा उठाने वाले ऐसे अय्याशों और धंधेबाज़ों को तत्काल जेल में ठूंस दिया जाना चाहिए और वह सज़ा दी जानी चाहिए, जो रेपिस्टों को दी जाती है।"
Peace if possible, truth at all costs.