तिब्बत मसले पर सरदार पटेल का ऐतिहासिक पत्र

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ca. 1940, Probably India --- Vallabhbhai Patel (1875-1950) the Indian politician, at his desk. He was deputy Prime Minister from 1947 until his death. --- Image by © Hulton-Deutsch Collection

नई दिल्ली
७ नवंबर, १९५०

मेरे प्रिय जवाहरलाल,
चीन सरकार ने हमें अपने शांतिपूर्ण उद्देश्यों के आंडबर में उलझाने का प्रयास किया है। मेरा यह मानना है
कि वह हमारे राजदूत के मन में यह झूठ विश्वास कायम करने में सफल रहे कि चीन तिब्बत की समस्या को
शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाना चाहता है। चीन की अंतिम चाल, मेरे विचार से कपट और विश्र्वासघात जैसा ही है।
दुखद बात यह है कि तिब्बतियों ने हम पर विश्र्वास किया है, हम ही उनका मार्गदर्शन भी करते रहे हैं और
अब हम ही उन्हें चीनी कूटनीति या चीनी दुर्भाव के जाल से बचाने में असमर्थ हैं। ताजा प्राप्त सूचनाओं से
ऐसा लग रहा है कि हम दलाई लामा को भी नहीं निकाल पाएंगे । यह असंभव ही है कि कोई भी संवेदनशील
व्यक्ति तिब्बत में एंग्लो-अमेरिकन दुरभिसंधि से चीन के समक्ष उत्पन्न तथाकथित खतरे के
बारे में विश्र्वास करेगा।

पिछले कई महीनों से रूसी गुट से परे हम ही केवल अकेले थे जिन्होंने चीन को संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता दिलवाने
की कोशिश की तथा फारमोसा के प्रश्न पर अमेरिका से कुछ न करने का आश्र्वासन भी लिया।

मुझे इसमें संदेह हैं कि चीन को अपनी सदिच्छाओं, मैत्रीपूर्ण उद्देश्यों और निष्कपट भावनाओं के बारे में बताने के
लिए हम जितना कुछ कर चुके हैं, उसमें आगे भी कुछ किया जा सकता है। हमें भेजा गया उनका अंतिम टेलिग्राम
घोर अशिष्टता का नमूना है। इसमें न केवल तिब्बत में चीनी सेनाओं के घुसने के प्रति हमारे विरोध को खारिज
किया गया है बल्कि परोक्ष रूप से यह गंभीर संकेत भी किया गया है कि हम विदेशी प्रभाव में आकर यह रवैया
अपना रहे हैं। उनके टेलिग्राम की भाषा साफ बताती है कि यह किसी दोस्त की नहीं बल्कि भावी शत्रु की भाषा हैं।
इस सबके पटाक्षेप में हमें इस नई स्थिति को देखना और संभालना होगा जिसमें तिब्बत के गायब हो जाने के बाद
जिसका हमें पता था चीन हमारे दरवाजे तक पहुंच गया है। इतिहास में कभी भी हमें अपनी उत्तर-पूर्वी सीमा की
चिंता नहीं हुई है। हिमालय श्रृंखला उत्तर से आने वाले किसी भी खतरे के प्रति एक अभेद्य अवरोध की भूमिका
निभाती रही है। तिब्बत हमारे एक मित्र के रूप में था इसलिए हमें कभी समस्या नहीं हुई। हमने तिब्बत के साथ
एक स्वतंत्र संधि कर उसकी स्वायत्तता का सम्मान किया है। उत्तर-पूर्वी सीमा के अस्पष्ट सीमा वाले राज्य और
हमारे देश में चीन के प्रति लगाव रखने वाले लोग कभी भी समस्या का कारण बन सकते हैं।

चीन की कुदृष्टि हमारी तरफ वाले हिमालयी इलाकों तक सीमित नहीं है, वह असम के कुछ महत्वपूर्ण हिस्सों
पर भी नजर गड़ाए हुए है। बर्मा पर भी उसकी नजर है। बर्मा के साथ और भी समस्या है क्योकि उसकी सीमा
को निर्धारित करने वाली कोई रेखा नहीं है जिसके आधार पर वह कोई समझौता कर सके। हमारे उत्तर-पूर्वी
क्षेत्रों में नेपाल, भूटान, सिक्किम, दार्जिलिंग और असम के आदिवासी क्षेत्र आते हैं। संचार की दृष्टि से उधर हमारे
साधन बड़े ही कमजोर व अपर्याप्त है; सो यह क्षेत्र 'कमजोर' है। उधर कोई स्थायी मोर्चे भी नहीं हैं


इसलिए घुसपैठ के अनेकों रास्ते हैं। मेरे विचार से अब ऐसी स्थिति आ गई है कि हमारे पास आतुमसंतुष्ट रहने
या आगे-पीछे सोचने का समय नहीं है। हमारे मन में यह स्पष्ट धारणा होनी चाहिए कि हमें क्या प्राप्त करना है
और किन साधनों से प्राप्त करना है।

इन खतरों के अलावा हमे गंभीर आंतरिक संकटों का भी सामना करना पड़ सकता है। मैने (एच०वी०आर०)
आयंगर को पहले ही कह दिया है कि वह इन मामलों की गुप्तचर रिपोर्टों की एक प्रति विदेश मंत्रालय भेज दें।
निश्चित रूप से सभी समस्याओं को बता पाना मेरे लिए थकाऊ और लगभग असंभव होगा। लेकिन नीचे मैं
कुछ समस्याओं का उल्लेख कर रहा हू जिनका मेरे विचार में तत्काल समाधान करना होगा और जिन्हें दृष्टिगत
रखते हुए ही हमें अपनी प्रशासनिक या सैन्य नीतियां बनानी होंगी तथा उन्हें लागू करने का उपाय करना होगा :

१ सीमा व आंतरिक सुरक्षा दोनों मोर्चों पर भारत के समक्ष उत्पन्न चीनी खतरे का सैन्य व गुप्तचर मूल्यांकन।
२ हमारी सैन्य स्थिति का एक परीक्षण।
३ रक्षा क्षेत्र की दीर्घकालिक आवशयकताओं पर विचार.
४ हमारे सैन्य बलों के ताकत का एक मूल्यांकन.
५ संयुक्त राष्ट्र में चीन के प्रवेश का प्रश्न.
६ उत्तरी व उत्तरी-पूर्वी सीमा को मजबूत करने के लिए हमें कौन से राजनीतिक व प्रशसनिक कदम उठाने होंगे?
७ चीन की सीमा के करीब स्थित राज्यों जैसे यू०पी०, बिहार, बंगाल, व असम के सीमावर्ती क्षेत्रों में आंतरिक
सुरक्षा के उपाय.
८ इन क्षेत्रों और सीमावर्ती चौकियों पर संचार, सड़क, रेल, वायु और बेहतर सुविधाओं में सुधार.
९ ल्हासा में हमारे दूतावास और गयांगत्से व यातुंग में हमारी व्यापार चौकियों तथा उन सुरक्षा बलों का भविष्य
जो हमने तिब्बत में व्यापार मार्गो की सुरक्षा के लिए तैनात कर रखी हैं.
१० मैकमोहन रेखा के संदर्भ में हमारी नीति.

आपका

वल्लभभाई पटेल

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