आंबेडकर के झूठ

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वैसे तो आंबेडकर ने बहूत से झूठे आरोप हिंदू धर्म पर लगाए. मगर उन आरोपो मे से हिंदू धर्म मे गौ-हत्या का आरोप भी था. बाबा आंबेडकर ने जानबूझकर( हिंदू धर्म से नफरत के कारण) अपनी लिखी किताबो मे ये साबित करने की कोशिश की की वेदो मे गौ-हत्या करने की आज्ञा है व प्राचीन काल मे यज्ञ मे गौमांस की आहूती दी जाती थी. अब वही काम आंबेडकरवादी (बुद्धिस्ट) कर रहे है . और झूठे पोस्ट बनाकर श्लोक का गलत अर्थ निकालकर ये साबित करते है की वेदो मे गौहत्या है . अब आप खुद ही पढ ले गाय पर क्या लिखा है वेदो मे ????
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ब्रीहिमत्तं यवमत्तमथो माषमथो तिलम्
एष वां भागो निहितो रत्नधेयाय दान्तौ मा हिंसिष्टं पितरं मातरं च (अर्थववेद 6.140.2 )
अर्थ- हे दांतों की दोनों पंक्तियों ! चावल
खाओ, जौ खाओ, उड़द खाओ और तिल
खाओ | यह अनाज तुम्हारे लिए ही बनाये गए हैं| उन्हें मत मारो जो माता – पिता बनने की योग्यता रखते हैं |
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य आमं मांसमदन्ति पौरुषेयं च ये क्रविः
गर्भान्
खादन्ति केशवास्तानितो नाशयामसि
(अथर्ववेद ८। ६।२३)
वह लोग जो नर और मादा, भ्रूण और अंड़ों के नाश से उपलब्ध हुए मांस
को कच्चा या पकाकर खातें हैं, हमें
उन्हें नष्ट कर देना चाहिए |
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अनागोहत्या वै भीमा कृत्ये
मा नो गामश्वं पुरुषं वधीः
अथर्ववेद (अर्थववेद १०।१।२९)
निर्दोषों को मारना निश्चित ही महा पाप है | हमारे गाय, घोड़े और पुरुषों को मत मार | वेदों में गाय और अन्य पशुओं के वध का स्पष्टतया निषेध होते हुए, इसे
वेदों के नाम पर कैसे उचित ठहराया जा सकता है?
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अघ्न्या यजमानस्य पशून्पाहि (यजुर्वेद १।१)
हे मनुष्यों ! पशु अघ्न्य हैं – कभी न
मारने योग्य, पशुओं की रक्षा करो |
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पशूंस्त्रायेथां (यजुर्वेद ६।११)
पशुओं का पालन करो |
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द्विपादव चतुष्पात् पाहि (यजुर्वेद १४।८)
हे मनुष्य ! दो पैर वाले की रक्षा कर
और चार पैर वाले की भी रक्षा कर
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ऊर्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे (यजुर्वेद ११।८३)
सभी दो पाए और चौपाए प्राणियों को बल और पोषण प्राप्त हो | हिन्दुओं द्वारा भोजन ग्रहण
करने से पूर्व बोले जाने वाले इस मंत्र
में प्रत्येक जीव के लिए पोषण उपलब्ध
होने की कामना की गई है |
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इमं मा हिंसीरेकशफं पशुं कनिक्रदं
वाजिनं वाजिनेषु (यजुर्वेद १३।४८)
इस एक खुर वाले, हिनहिनाने वाले
तथा बहुत से पशुओं में अत्यंत वेगवान
प्राणी का वध मत कर |
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घृतं दुहानामदितिं जनायाग्ने मा हिंसी:
(यजुर्वेद १३।४९)
सदा ही रक्षा के पात्र गाय और बैल
को मत मार |
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ऋग्वेद के ६ वें मंडल का सम्पूर्ण २८
वां सूक्त गाय की महिमा बखान रहा है
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आ गावो अग्मन्नुत
भद्रमक्रन्त्सीदन्तु
प्रत्येक जन यह सुनिश्चित करें
कि गौएँ यातनाओं से दूर तथा स्वस्थ
रहें | (ऋग्वेद 6.28.1)
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भूयोभूयो रयिमिदस्य
वर्धयन्नभिन्ने
गाय की देख-भाल करने वाले को ईश्वर
का आशीर्वाद प्राप्त होता है | (ऋग्वेद 6.28.2)
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न ता नशन्ति न
दभाति तस्करो नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति
गाय पर शत्रु भी शस्त्र का प्रयोग न
करें |
(ऋग्वेद 6.28.3)
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न ता अर्वा रेनुककाटो अश्नुते न
संस्कृत्रमुप यन्ति ता अभि
कोइ भी गाय का वध न करे |
(ऋग्वेद 6.28.4)
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गावो भगो गाव इन्द्रो मे अच्छन्
गाय बल और समृद्धि लातीं हैं |
(ऋग्वेद 6.28.5)
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यूयं गावो मेदयथा
गाय यदि स्वस्थ और प्रसन्न
रहेंगी तो पुरुष और स्त्रियाँ भी निरोग
और समृद्ध होंगे | (ऋग्वेद 6.28.6)
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मा वः स्तेन ईशत माघशंस :
गाय हरी घास और शुद्ध जल क सेवन
करें | वे मारी न जाएं और हमारे लिए
समृद्धि लायें |
(ऋग्वेद 6.28.7)
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