कांग्रेस की कहानी ,कांग्रेस की जुबानी

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 मैं कांग्रेस हूँ.मेरा जन्म २८ दिसंबर,१८८५ को तेजपाल संस्कृत विद्यालय,मुम्बई में हुआ.मेरे पिता एक अंग्रेज ए.ओ.ह्युम थे जो एक नौकरशाह थे.तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड डफरिन ने मेरे जन्म में अच्छी-खासी अभिरुचि ली थी.मेरी माता थी अंग्रेजों का भय कि देश में फ़िर से १८५७ जैसी क्रांति न भड़क उठे.उन्होंने मुझे इसलिए जन्म दिया ताकि उन्हें मालूम हो सके कि गुलाम भारत के लोग क्या चाहते हैं.मेरे जन्म के समय मात्र ७२ लोग मेरे परिवार में थे.लेकिन १८८८ आते-आते मेरे परिवार में इतने लोग जुड़ गए कि अंग्रेज डर गए और नौकरशाहों के मेरे अधिवेशन में शामिल होने पर रोक लगा दी गई.शुरू में मेरे परिवार के लोग डरे-सहमे थे और उनकी भाषा याचकों की भाषा थी.तब मैं भी बच्ची थी.२५ साल की तरुनाई आते-आते मेरे अन्दर इतना बल आ चुका था मैं अधिकार के साथ अंग्रेजों के समक्ष अपनी मांगे रख सकूँ.मेरे एक पुत्र तिलक ने तो अंग्रेजों से साफ-साफ कह दिया कि स्वाधीनता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा.मेरे चाचा दादा भाई नौरोजी ने अंग्रेजों की देश को लूटने की नीति को समझा और देशवासियों को भी समझाया.अंग्रेज मेरे बढती ताकत से डरने लगे और उन्होंने सांप्रदायिक कार्ड खेलना शुरू कर दिया.उनके ही इशारों पर १९०६ में ढाका में मुस्लिम लीग की स्थापना की गई.उन्होंने बंगाल को भी सांप्रदायिक आधार पर १९०५ में बाँटना चाहा.मैंने पूरी ताकत से इस विभाजन का विरोध किया और उन्हें झुका भी दिया.लेकिन इसी बीच १९०७ में अंग्रेजों के बहकावे में आकर उदारवादियों ने कांग्रेस से अपने उग्रपंथी भाईयों को बाहर निकाल दिया.१९१५ तक मैं दो भागों में बँटी रही और कुछ खास नहीं कर सकी.१९१५ में मेरा सबसे महान बेटा मेरे परिवार में शामिल हुआ.उसका नाम था मोहन दास करमचंद गांधी.सत्य और अहिंसा उसके अस्त्र-शस्त्र थे.उसने मुझे शक्तिशाली बनाया लेकिन १९१६ में उसने लखनऊ में मुश्लिम लीग से समझौता कर उसे मान्यता भी प्रदान कर दी.१९२० में असहयोग आन्दोलन मेरे ही झंडे तले प्रारंभ किया गया.लेकिन इसके हिंसक हो जाने और मुस्लिम लीग द्वारा मुझे धोखा देने के कारण आन्दोलन वापस लेना पड़ा.१९२३ में मेरे परिवार के कुछ लोगों ने गांधी की सहमति से स्वराज पार्टी की स्थापना की और चुनावों में भाग लिया.उद्देश्य था केंद्रीय विधान सभा और प्रांतीय विधान परिषदों में घुसकर सरकार के कुत्सित इरादों को बेनकाब करना.बाद में इनमें से कई सत्ता सुख के लिए सरकार के सहयोगी बन गए.गांधी को मर्मान्तक पीड़ा हुई और उसने सविनय अवज्ञा आन्दोलन की घोषणा कर दी.हालांकि उसने इससे पहले अंग्रेजों से बातचीत का भी प्रयास किया.अंग्रेज आन्दोलन को मिल रहे व्यापक जनसमर्थन से डर गए और १६ अगस्त,१९३२ को सांप्रदायिक एवार्ड की घोषणा कर दी.उनका इरादा दलितों को बांकी हिन्दुओं से अलग करने का था.इससे पहले वे १९०९ में मुसलमानों को पृथक निर्वाचक मंडल के द्वारा हिन्दुओं से अलग करने का प्रयास कर चुके थे और इसमें उन्हें काफी सफलता भी मिली थी.गांधी उनकी चाल को समझ गया और अनशन पर बैठ गया.२५ सितम्बर,१९३२ को दलित नेता अम्बेदकर मान गए और पूना समझौता के द्वारा अंग्रेजों के इस कुत्सित प्रयास को निरस्त कर दिया गया.लेकिन अब गांधी की मेरे संगठन पर पकड़ कमजोर पड़ गई थी .निराश होकर उसने १९३४ में मेरी सदस्यता का परित्याग कर दिया.मेरे ऊपर अब नेहरु,प्रसाद और पटेल की तिकड़ी का शासन था.गांधी अब सामाजिक कार्यों में सक्रिय हो गया.इसी बीच १९३७ के चुनावों में मुझे अपार सफलता हाथ लगी लेकिन नेहरु ने चुनाव हार चुकी लीग को शासन में भागीदारी नहीं देकर बहुत बड़ी गलती कर दी.जोश में गलती हो ही जाया करती है.लीग के नेता जिन्ना ने मेरे खिलाफ मुसलमानों को यह कहकर भड़काना शुरू कर दिया कि आजाद भारत में भी हिन्दू राज स्थापित हो जाएगा.२४ मार्च,१९४० को लाहौर में लीग ने पहली बार पाकिस्तान नाम के अलग देश की मांग की.उधर यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ चुका था.गांधी ने मेरे सामने भारत छोडो आन्दोलन छेड़ने का प्रस्ताव रखा.जब मेरे युवा पुत्रों ने आनाकानी की तो गांधी ने धमकी देते हुए कहा कि मैं साबरमती तट के बालू से कांग्रेस से भी बड़ा संगठन खड़ा कर दूंगा.गांधी कांग्रेस सरकारों में पनप रहे भ्रष्टाचार से भी क्षुब्ध थे.मेरी सभी सरकारों ने आन्दोलन की घोषणा के साथ ही इस्तीफा दे दिया.कुछ भागों को छोड़कर कुछ दिनों के लिए पूरे देश में अंग्रेजी शासन समाप्त हो गया.लेकिन अंग्रेज सोने का अंडा देनेवाली मुर्गी को आसानी से आज़ाद कैसे कर देते?पूरे देश में आन्दोलन को बन्दूक के बल पर दबा दिया गया.पूरा भारत एक जेलखाने में बदल गया.परिणामस्वरूप आन्दोलन कमजोर पड़ गया.अब लीग मुसलमानों के लिए अलग राष्ट्र से कम पर मानने को तैयार नहीं था.उसने १६ अगस्त,१९४६ को हिन्दुओं पर हमला शुरू कर दिया.पूरे देश में भीषण दंगे भड़क उठे.लाखों लोग मारे गए और गांधी को भी भरे मन से विभाजन के लिए तैयार होना पड़ा.मैं इसके लिए सिर्फ लीग को ही दोषी नहीं मानती १९१६ में गांधी और १९३७ में नेहरु द्वारा की गई गलतियाँ भी कम गंभीर नहीं थीं.१५ अगस्त को देश की आजादी का दिन निर्धारित हो गया.तब तक गांधी मेरे संगठन में उभर रही गलत प्रवृत्तियों से सशंकित हो चुके थे और इसलिए कि कोई जनता में मेरे प्रति बनी हुई सदाशयता बेजा लाभ नहीं उठाया जा सके उसने मेरी समाप्ति का प्रस्ताव रखा.लेकिन नेहरु,प्रसाद और पटेल चुनावों में मेरी स्वर्णिम योगदान से लाभ उठाना चाहते थे सो उन्होंने उनके आग्रह तो निष्ठुरता से ठुकरा दिया. चुनावों के बाद भी मेरी बागडोर नेहरु के हाथों में थी.उसने कश्मीर और तिब्बत में कई गलतियाँ की.उसने व्यापक पैमाने पर निर्माण कार्य कराया.ठेकेदारों के वारे-न्यारे हो गए.पूरे देश में भ्रष्टाचार पनपने लगा लेकिन अभी वह डरा-सहमा था.नेहरु एक स्वप्न-द्रष्टा था और सपने को सच मान लेने के कारण कश्मीर में एक के बाद एक कई गलतियाँ करता गया,१९६२ में उसे चीन के आगे मुंह की खानी पड़ी.१९६४ में उसके देहावसान के बाद नाटे कद का लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बना.गजब का जीवट था उसमें.सीमित साधनों से उसने १९६५ में पाकिस्तान को धूल चटा दी.तब मेरे संगठन में भ्रष्टाचार का घुन लगना शुरू तो हो गया था लेकिन स्थिति नियंत्रण में थी.१९५९ में जब जवाहरलाल नेहरु की बेटी इंदिरा गांधी जो घोर महत्वकांक्षी महिला थी मेरी अध्यक्ष बनी तब मैं इस आशंका से सिहर उठी कि मेरे ऊपर एक ही परिवार का वर्चस्व कायम हो जानेवाला तो नहीं है.लेकिन एक साल बाद ही आलोचनाओं से घबराकर नेहरु ने नीलम संजीव रेड्डी को मेरा अध्यक्ष बनवा दिया.१९६६ में मेरे ईमानदार पुत्र लाल बहादुर शास्त्री का ताशकंद में निधन हो गया.उसकी मृत्यु स्वाभाविक थी या हत्या आज तक रहस्यों के घेरे में है और शायद आगे भी रहेगी.इंदिरा को कांग्रेसी बेबी डौल समझ रहे थे और उन्हें लग रहा था कि इसके द्वारा उनका हित आसानी से सध सकेगा.इसलिए तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष कामराज समेत बहुमत ने इंदिरा का साथ दिया और इंदिरा मोरारजी भाई को पछाड़कर प्रधानमंत्री बन बैठी.अगले कुछ सालों में ही उसने तमाम तिकड़मों का इस्तेमाल कर पार्टी संगठन पर भी पकड़ मजबूत कर ली.उसकी तानाशाही प्रवृत्ति से नाराज होकर मेरे परिवार के कई लोग मुझसे अलग हो गए और मेरा विभाजन हो गया.इसी बीच उसने गरीबी हटाने के वादे के साथ १९७१ का चुनाव लड़ा जीत भी हासिल की.आज तलक कितनी सरकारें बदल गईं लेकिन यह नारा और वादा बना हुआ है. १९७१ में पाकिस्तान पर जीत के बाद वह पूरी तरह से निरंकुश हो गई.इस चुनाव में भारी पैमाने पर धांधली की गई थी और स्वयं इंदिरा गांधी के निर्वाचन पर भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मुकदमा चल रहा था.१२ जून,१९७५ को न्यायालय ने इंदिरा के खिलाफ निर्णय दिया जिससे वह घबरा गई और २६ जून,१९७५ को देश में आतंरिक आपातकाल लगा दिया गया.सारे मौलिक अधिकार निरस्त कर दिए गए और मानवाधिकारों की जमकर धज्जियाँ उडाई गई.ऐसे समय में मेरा ही एक वृद्ध बेटा बीमार रहने के बावजूद सामने आया देश के नवजात लोकतंत्र को बचाने के लिए जान की बाजी लगा दी.पूरे देश में आपातकाल का व्यापक विरोध हुआ.१९७७ में जब चुनाव हुए तो मुझे इंदिरा की गलतियों का खामियाजा भुगतना पड़ा और मैं पहली बार सत्ता से बाहर हो गई.अब मैं आजादी के पहले वाली कांग्रेस नहीं रह गई थी.मेरे नाम पर अनगिनत पाप किए जा रहे थे,देश को बेचा जा रहा था.१९८० में विपक्षी सरकार की गलतियों की वजह से मेरी सत्ता में वापसी हुई.लेकिन इंदिरा के रंग-ढंग में कोई खास बदलाव नहीं आया.१९८४ में अतीत में की गई गलतियों और पंजाब में भिन्दरवाले को दिए गए समर्थन के कारण इंदिरा की हत्या कर दी गई.लेकिन अब मेरे ऊपर उसके परिवार का वर्चस्व इतना ज्यादा बढ़ चुका था कि वह मेरा पर्याय बन गया था.यानी कांग्रेस मतलब गांधी-नेहरु परिवार.१९७५ में मेरे अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने कहा भी था कि इंडिया इज इंदिरा एंड इंदिरा इज इंडिया.३१ अक्तूबर,१९८४ को इंदिरा का बेटा प्रधानमंत्री बना और बाद में माँ की जगह अध्यक्ष भी.हत्या के समय इंदिरा मेरी अध्यक्ष भी थी.राजीव एक भोला-भाला इन्सान था.भारतीय राजनीति की उसे समझ ही नहीं थी.वह अपने चापलूसों के कहने पर चलने लगा और श्रीलंका में अपने ही देश से गए तमिल विद्रोहियों के खिलाफ सेना भेजने की गलती कर दी.उस पर भ्रष्टाचार सम्बन्धी भी कई आरोप लगे और १९८९ के चुनाव में मैं एक बार फ़िर सत्ता से बाहर हो गई.२ सालों तक मेरे विरोधियों ने किसी तरह शासन चलाया.१९९१ के मध्यावधि चुनाव के समय मेरी सत्ता में वापसी निश्चित लग रही थी.मैं बहुत खुश थी क्योंकि राजीव अब परिपक्व नेता की तरह व्यवहार कर रहे थे.लेकिन २१ मई,१९९१ को तमिल विद्रोहियों ने उसकी हत्या कर दी.पी.वी.नरसिंह राव मेरी जीत के बाद प्रधानमंत्री बना.वह एक अनुभवी और विद्वान नेता था लेकिन भ्रष्ट भी था.उसका ज्यादातर समय न्यायालय में भ्रष्टाचार के आरोपों का जवाब देने में गुजरता था.उसकी काली करतूतों के कारण मुझे एक बार फ़िर १९९६ में हार का सामना करना पड़ा और फ़िर से विपक्षी गठबंधन सत्ता में आ गया जिसे बाहर से मेरा ही समर्थन प्राप्त था.१९९८ में हुए मध्यावधि चुनाव करवाना पड़ा जिसमें फ़िर से मेरी हार हुई.अब भारतीय इतिहास में तीसरी बार बिना मेरे समर्थन के सरकार बनी.चुनाव के तत्काल बाद राजीव गांधी की विधवा सोनिया गांधी को मेरे तत्कालीन अध्यक्ष सीताराम केसरी को अपमानित तरीके से हटाते हुए अध्यक्ष बना दिया गया.मेरे वरिष्ठ पुत्रों का मानना था कि बिना इंदिरा परिवार के नेतृत्व के मैं सत्ता में नहीं आ सकती.कितनी गलत सोंच थी!सत्ता काम के आधार पर भी मिल सकती है,नाम कोई जरुरी नहीं होता.विपक्षी एन.डी.ए. गठबंधन ने इस दौरान (१९९८-२००४) देश को शानदार नेतृत्व और शासन दिया.लेकिन उसके शासन में आम आदमी अपने को उपेक्षित महसूस करने लगा था.किसानों द्वारा आत्महत्या की ख़बरें सामने आने लगी थीं.सोनिया ने मौके को भुनाया और आम आदमी से आम आदमी की सरकार बनाने का आह्वान किया.२००४ में मेरी फ़िर से सत्ता में वापसी हुई.लेकिन इस बार सोनिया का उद्देश्य सिर्फ सत्ता में बने रहना था,देश हित से उसका कुछ भी लेना-देना नहीं था.देश में महंगाई बढ़ने लगी,भ्रष्टाचार चरम सीमा तक पहुँचने लगा.आज ६ सालों में मैं सत्ता में हूँ.मनमोहन सिंह नाम मात्र के प्रधानमंत्री बने हुए हैं.वास्तविक सत्ता सोनिया के हाथों में है.किसान अब भी आत्महत्या कर रहे हैं.गोदामों में अनाज सड़ रहे हैं और देश में अन्न-उत्पादन गिर रहा है.चपरासी से लेकर सचिव तक और वार्ड आयुक्त से लेकर मंत्री तक भ्रष्ट है और डंके की चोट पर भ्रष्ट है.मेरी सरकार के २००९ में दोबारा सत्ता सँभालने के बाद हर महीने कोई-न-कोई घोटाला सामने आ रहा है.हद तो यह है कि कोई मंत्री इस्तीफा भी नहीं दे रहा. उच्चतम न्यायालय को टिपण्णी करनी पड़ रही है कि ऐसे मंत्री को हटाया क्यों नहीं जा रहा?साथ ही उसने यह भी कहा है कि जब सरकार भ्रष्टाचार को रोकने का प्रयास नहीं कर रही तो इसे वैधानिक मान्यता क्यों नहीं दे देती?देश के एक तिहाई हिस्से पर लोकतंत्र विरोधी नक्सलियों ने कब्ज़ा कर लिया है.मेरे पुत्र नेहरु और राजीव द्वारा की गई गलतियाँ कश्मीर में नासूर बन गई हैं.अब फ़िर से इतिहास से सबक नहीं लेते हुए कश्मीर मे मेरी सरकार गलतियाँ करने पर आमादा है.मेरे भीतर अब आतंरिक लोकतंत्र भी नहीं रहा.सोनिया ही सारे फैसले ले रही है.२०२० तक देश को विकसित भारत बनाने का वाजपेयी का सपना पृष्ठभूमि में जा चुका है.अब तो मेरे घर के लोग २० सालों तक मेरे नाम पर सिर्फ सत्ता में बने रहने के प्रयास में लगे हैं.चीन से मेरे प्यारे देश को प्रतियोगिता का तो सामना करना पड़ ही रहा है,खतरा भी उत्पन्न हो गया है.कोई स्वतंत्र नीति अपनाने के बदले मेरी सरकार अमेरिका की गोद में जा बैठी है और भारत अमेरिका का ५१वां राज्य बनकर रह गया है.देश में बढ़ रहे भ्रष्टाचार की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पुष्टि की जाने लगी है.मेरी अध्यक्ष पर भी वर्धा रैली के समय मुख्यमंत्री से पैसा लेने के आरोप लगे हैं. पार्टी फंड लबालब भरा हुआ है और पदाधिकारियों को महँगी गाड़ियाँ बांटी जा रही है.बिहार के चुनाव में जनता के बीच भी मेरे परिवार द्वारा पैसे बांटने के मामले सामने आ रहे हैं. देश रसातल की ओर जा रहा है और वह भी मेरे नेतृत्व में.मैं शर्मिंदा हूँ लेकिन मेरी कोई नहीं सुन रहा. काश आजादी के तत्काल बाद गांधी की सलाह पर अमल करते हुए मुझे मृत्यु-दान दे दिया गया

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