सऊदी अरब की धरती पर इस्लाम का जन्म हुआ, इसलिए मक्का और
मदीना जैसे पवित्र मुस्लिम तीर्थस्थल उस देश की थाती हैं। मक्का में पवित्र
काबा है, जिसकी परिक्रमा कर हर मुसलमान धन्य हो जाता है। यही वह स्थान है
जहां हज यात्रा सम्पन्न होती है। इस्लामी तारीख के अनुसार 10 जिलहज को
दुनिया के कोने-कोने से मुसलमान इस पवित्र स्थान पर पहुंचते हैं, जिसे
"ईदुल अजहा' कहा जाता है।
मक्का पहुँचने के लिए मुख्य नगर जेद्दाह है। यह नगर एक बंदरगाह भी है और अंतरराष्ट्रीय हवाई मार्ग का मुख्य केन्द्र भी। जेद्दाह से मक्का जाने वाले मार्ग पर ये निर्देश लिखे होते हैं कि यहां मुसलमानों के अतिरिक्त किसी भी और धरम का व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता। अधिकांश सूचनाएं अरबी भाषा में लिखी होती हैं, जिसे अन्य देशों के लोग बहुत कम जानते हैं।
अब तक इन सूचनाओं में यह भी लिखा जाता था कि "काफिरों' का प्रवेश प्रतिबंधित है। लेकिन इस बार "काफिर' शब्द के स्थान पर "नान मुस्लिम' यानी गैर-मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है, लिखा था। "काफिर' शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है "इनकार करना' अथवा "छिपाना'। वास्तव में "काफिर' शब्द का उपयोग नास्तिक के लिए किया जाता है। दुर्भाग्य से "काफिर' शब्द को हिन्दुओं से जोड़ दिया, जो एकदम गलत है। ईसाई, यहूदी, पारसी और बौद्ध भी उस वर्जित क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकते।
मुसलमानों के सबसे बड़े तीर्थ मक्का के बारे में कहते हैं कि वह मक्केश्वर महादेव का मंदिर था। वहां काले पत्थर का विशाल शिवलिंग था जो खंडित अवस्था में अब भी वहां है। हज के समय संगे अस्वद (संग अर्थात पत्थर, अस्वद अर्थात अश्वेत यानी काला) कहकर मुसलमान उसे ही पूजते और चूमते हैं। इसके बारे में प्रसिद्ध इतिहासकार स्व0 पी.एन.ओक ने अपनी पुस्तक ‘वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास’ में बहुत विस्तार से लिखा है।
कहा जाता हैं की वेंकतेश पण्डित ग्रन्थ 'रामावतारचरित' के युद्धकांड प्रकरण में उपलब्ध एक बहुत अद्भुत प्रसंग 'मक्केश्वर लिंग' से संबंधित हैं, जो आम तौर पर अन्य रामायणों में नहीं मिलता है। वह प्रसंग काफी दिलचस्प है। शिव रावण द्वारा याचना करने पर उसे युद्ध में विजयी होने के लिए एक लिंग (मक्केश्वर महादेव) दे देते हैं और कहते हैं कि जा, यह तेरी रक्षा करेगा, मगर ले जाते समय इसे मार्ग में कहीं पर भी धरती पर नहीं रखना।
रावण आकाशमार्ग से लंका की ओर जाता है पर रास्ते में कुछ ऐसे हालत बनते हैं की रावण को शिवलिंग धरती पर रखना पड़ता है। वह दुबारा शिवलिंग को उठाने की कोशिश करता है पर खूब प्रयत्न करने पर भी लिंग उस स्थान से हिलता नहीं। वेंकतेश पण्डित के अनुसर यह स्थान वर्तमान में सऊदी अरब के मक्का नामक स्थान पर स्थित है। सऊदी अरब के पास ही यमन नामक राज्य भी है जहाँ श्री कृष्ण ने कालयवन नामक राक्षस का विनाश किया था।
कहा जाता हैं की अरब में मुहम्मद पैगम्बर से पूर्व शिवलिंग को 'लात' कहा जाता था। मक्का के कावा में जिस काले पत्थर की उपासना की जाती रही है, भविष्य पुराण में उसका उल्लेख मक्केश्वर के रूप में हुआ है। इस्लाम के प्रसार से पहले इजराइल और अन्य यहूदियों द्वारा इसकी पूजा किए जाने के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। लेकिन ये सब कितना सच है - यह विवादित है। अभी तक तो यह सिर्फ एक अफगाह ही लगती है।
एक और धारना है बहुत प्रसिध् है की काबा से जुड़ी है “पवित्र गंगा”। जैसा कि सभी जानते हैं भारतीय संस्कृति में शिव के साथ गंगा और चन्द्रमा के रिश्ते को कभी अलग नहीं किया जा सकता। जहाँ भी शिव होंगे, पवित्र गंगा की अवधारणा निश्चित ही मौजूद होती है। काबा के पास भी एक पवित्र झरना पाया जाता है, इसका पानी भी पवित्र माना जाता है। इस्लामिक काल से पहले भी इसे पवित्र (आबे ज़म-ज़म) ही माना जाता था।
आज भी मुस्लिम श्रद्धालु हज के दौरान इस आबे ज़मज़म को अपने साथ बोतल में भरकर ले जाते हैं। ऐसा क्यों है कि कुम्भ में शामिल होने वाले हिन्दुओं द्वारा गंगाजल को पवित्र मानने और उसे बोतलों में भरकर घरों में ले जाने, तथा इसी प्रकार हज की इस परम्परा में इतनी समानता है? इसके पीछे क्या कारण है। मेरी मानें तो ये महज एक सुन्दर इत्तफ़ाक है जिसे हम तोड-मरोड रहे हैं।
सिख पंथ के प्रथम गुरु नानक देव ने जीवन भर हिन्दू और मुस्लिम धर्म की एकता का संदेश दिया और यातायात के बेहद कम साधनों वाले उस दौर में भी पूरे भारत ही नहीं आधुनिक इराक के बगदाद और सउदी अरब के मक्का मदीना तक की यात्रा की। इस सवाल का जवाब डॉ. जाकिर नाइक की ज़ुबानी आप के सामने रखने की कोशिश है. डॉ जाकिर नाइक ने इसलाम पर काफी रेसरीच करी है और कई किताबें भी लिखीं हैं। उनके हिसाब से - यह सच है कि कषनूनी तौर पर मक्का और मदीना शरीफ़ के पवित्र नगरों में ग़ैर मुस्लिमों को प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। निम्नलिखित तथ्यों द्वारा प्रतिबन्ध के पीछे कारणों और औचित्य का स्पष्टीकरण किया गया है।
जैसे सभी नागरिकों को कन्टोन्मेंट एरिया (सैनिक छावनी) में जाने की अनुमति नहीं होती वैसे ही हर देश में कुछ न कुछ ऐेसे क्षेत्र अवश्य होते हैं जहाँ सामान्य जनता को जाने की इजाज़त नहीं होती। सैनिक छावनी में केवल वही लोग जा सकते हैं जो सेना अथवा प्रतिरक्षा विभाग से जुदे हों। इसी प्रकार इस्लाम के दो नगर मक्का और मदीना किसी सैनिक छावनी के समान महत्वपूर्ण और पवित्र हैं, इन नगरों में प्रवेश करने का उन्हें ही अधिकार है जो इस्लाम में विश्वास रखते हो।
जब कोई व्यक्ति किसी अन्य देश की यात्रा करता है तो उसे सर्वप्रथम उस देश में प्रवेश करने का अनुमति पत्र प्राप्त करना पड़ता है। प्रत्येक देश के अपने कषयदे कानून होते हैं जो उनकी ज़रूरत और व्यवस्था के अनुसार होते हैं तथा उन्हीं के अनुसार वीसा जारी किया जाता है। जब तक उस देश के कानून की सभी शर्तों को पूरा न कर दिया जाए उस देश के राजनयिक कर्मचारी वीसा जारी नहीं करते। वीजा जारी करने के मामले में अमरीका अत्यंत कठोर देश है, विशेष रूप से तीसरी दुनिया के नागरिकों को वीसा देने के बारे में, अमरीकी आवर्जन कानून की कड़ी शर्तें हैं जिन्हें अमरीका जाने के इच्छुक को पूरा करना होता है।
जैसे सिंगापूर के इमैग्रेशन फ़ार्म पर लिखा होता है ‘‘नशे की वस्तुएँ स्मगल करने वाले को मृत्युदण्ड दिया जायेगा।’’ यदि मैं सिंगापुर जाना चाहूँ तो मुझे वहाँ के कानून का पालन करना होगा। मैं यह नहीं कह सकता कि उनके देश में मृत्युदण्ड का निर्दयतापूर्ण और क्रूर प्रावधान क्यों है। मुझे तो केवल उसी अवस्था में वहाँ जाने की अनुमति मिलेगी जब उस देश के कानून की सभी शर्तों के पालन का इकष्रार करूंगा। मक्का और मदीना का वीसा अथवा वहाँ प्रवेश करने की बुनियादी शर्त यह है कि मुख से ‘‘ला इलाहा इल्लल्लाहु, मुहम्मदुर्रसूलल्लाहि’’ (कोई ईश्वर नहीं, सिवाय अल्लाह के (और) मुहम्मद (सल्लॉ) अल्लाह के सच्चे सन्देष्टा हैं), कहकर मन से अल्लाह के एकमात्र होने का इकष्रार किया जाए और हज़रत मुहम्मद (सल्लॉ) को अल्लाह का सच्चा रसूल स्वीकार किया जाए।
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मक्का पहुँचने के लिए मुख्य नगर जेद्दाह है। यह नगर एक बंदरगाह भी है और अंतरराष्ट्रीय हवाई मार्ग का मुख्य केन्द्र भी। जेद्दाह से मक्का जाने वाले मार्ग पर ये निर्देश लिखे होते हैं कि यहां मुसलमानों के अतिरिक्त किसी भी और धरम का व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता। अधिकांश सूचनाएं अरबी भाषा में लिखी होती हैं, जिसे अन्य देशों के लोग बहुत कम जानते हैं।
अब तक इन सूचनाओं में यह भी लिखा जाता था कि "काफिरों' का प्रवेश प्रतिबंधित है। लेकिन इस बार "काफिर' शब्द के स्थान पर "नान मुस्लिम' यानी गैर-मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है, लिखा था। "काफिर' शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है "इनकार करना' अथवा "छिपाना'। वास्तव में "काफिर' शब्द का उपयोग नास्तिक के लिए किया जाता है। दुर्भाग्य से "काफिर' शब्द को हिन्दुओं से जोड़ दिया, जो एकदम गलत है। ईसाई, यहूदी, पारसी और बौद्ध भी उस वर्जित क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकते।
मुसलमानों के सबसे बड़े तीर्थ मक्का के बारे में कहते हैं कि वह मक्केश्वर महादेव का मंदिर था। वहां काले पत्थर का विशाल शिवलिंग था जो खंडित अवस्था में अब भी वहां है। हज के समय संगे अस्वद (संग अर्थात पत्थर, अस्वद अर्थात अश्वेत यानी काला) कहकर मुसलमान उसे ही पूजते और चूमते हैं। इसके बारे में प्रसिद्ध इतिहासकार स्व0 पी.एन.ओक ने अपनी पुस्तक ‘वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास’ में बहुत विस्तार से लिखा है।
कहा जाता हैं की वेंकतेश पण्डित ग्रन्थ 'रामावतारचरित' के युद्धकांड प्रकरण में उपलब्ध एक बहुत अद्भुत प्रसंग 'मक्केश्वर लिंग' से संबंधित हैं, जो आम तौर पर अन्य रामायणों में नहीं मिलता है। वह प्रसंग काफी दिलचस्प है। शिव रावण द्वारा याचना करने पर उसे युद्ध में विजयी होने के लिए एक लिंग (मक्केश्वर महादेव) दे देते हैं और कहते हैं कि जा, यह तेरी रक्षा करेगा, मगर ले जाते समय इसे मार्ग में कहीं पर भी धरती पर नहीं रखना।
रावण आकाशमार्ग से लंका की ओर जाता है पर रास्ते में कुछ ऐसे हालत बनते हैं की रावण को शिवलिंग धरती पर रखना पड़ता है। वह दुबारा शिवलिंग को उठाने की कोशिश करता है पर खूब प्रयत्न करने पर भी लिंग उस स्थान से हिलता नहीं। वेंकतेश पण्डित के अनुसर यह स्थान वर्तमान में सऊदी अरब के मक्का नामक स्थान पर स्थित है। सऊदी अरब के पास ही यमन नामक राज्य भी है जहाँ श्री कृष्ण ने कालयवन नामक राक्षस का विनाश किया था।
कहा जाता हैं की अरब में मुहम्मद पैगम्बर से पूर्व शिवलिंग को 'लात' कहा जाता था। मक्का के कावा में जिस काले पत्थर की उपासना की जाती रही है, भविष्य पुराण में उसका उल्लेख मक्केश्वर के रूप में हुआ है। इस्लाम के प्रसार से पहले इजराइल और अन्य यहूदियों द्वारा इसकी पूजा किए जाने के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। लेकिन ये सब कितना सच है - यह विवादित है। अभी तक तो यह सिर्फ एक अफगाह ही लगती है।
एक और धारना है बहुत प्रसिध् है की काबा से जुड़ी है “पवित्र गंगा”। जैसा कि सभी जानते हैं भारतीय संस्कृति में शिव के साथ गंगा और चन्द्रमा के रिश्ते को कभी अलग नहीं किया जा सकता। जहाँ भी शिव होंगे, पवित्र गंगा की अवधारणा निश्चित ही मौजूद होती है। काबा के पास भी एक पवित्र झरना पाया जाता है, इसका पानी भी पवित्र माना जाता है। इस्लामिक काल से पहले भी इसे पवित्र (आबे ज़म-ज़म) ही माना जाता था।
आज भी मुस्लिम श्रद्धालु हज के दौरान इस आबे ज़मज़म को अपने साथ बोतल में भरकर ले जाते हैं। ऐसा क्यों है कि कुम्भ में शामिल होने वाले हिन्दुओं द्वारा गंगाजल को पवित्र मानने और उसे बोतलों में भरकर घरों में ले जाने, तथा इसी प्रकार हज की इस परम्परा में इतनी समानता है? इसके पीछे क्या कारण है। मेरी मानें तो ये महज एक सुन्दर इत्तफ़ाक है जिसे हम तोड-मरोड रहे हैं।
सिख पंथ के प्रथम गुरु नानक देव ने जीवन भर हिन्दू और मुस्लिम धर्म की एकता का संदेश दिया और यातायात के बेहद कम साधनों वाले उस दौर में भी पूरे भारत ही नहीं आधुनिक इराक के बगदाद और सउदी अरब के मक्का मदीना तक की यात्रा की। इस सवाल का जवाब डॉ. जाकिर नाइक की ज़ुबानी आप के सामने रखने की कोशिश है. डॉ जाकिर नाइक ने इसलाम पर काफी रेसरीच करी है और कई किताबें भी लिखीं हैं। उनके हिसाब से - यह सच है कि कषनूनी तौर पर मक्का और मदीना शरीफ़ के पवित्र नगरों में ग़ैर मुस्लिमों को प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। निम्नलिखित तथ्यों द्वारा प्रतिबन्ध के पीछे कारणों और औचित्य का स्पष्टीकरण किया गया है।
जैसे सभी नागरिकों को कन्टोन्मेंट एरिया (सैनिक छावनी) में जाने की अनुमति नहीं होती वैसे ही हर देश में कुछ न कुछ ऐेसे क्षेत्र अवश्य होते हैं जहाँ सामान्य जनता को जाने की इजाज़त नहीं होती। सैनिक छावनी में केवल वही लोग जा सकते हैं जो सेना अथवा प्रतिरक्षा विभाग से जुदे हों। इसी प्रकार इस्लाम के दो नगर मक्का और मदीना किसी सैनिक छावनी के समान महत्वपूर्ण और पवित्र हैं, इन नगरों में प्रवेश करने का उन्हें ही अधिकार है जो इस्लाम में विश्वास रखते हो।
जब कोई व्यक्ति किसी अन्य देश की यात्रा करता है तो उसे सर्वप्रथम उस देश में प्रवेश करने का अनुमति पत्र प्राप्त करना पड़ता है। प्रत्येक देश के अपने कषयदे कानून होते हैं जो उनकी ज़रूरत और व्यवस्था के अनुसार होते हैं तथा उन्हीं के अनुसार वीसा जारी किया जाता है। जब तक उस देश के कानून की सभी शर्तों को पूरा न कर दिया जाए उस देश के राजनयिक कर्मचारी वीसा जारी नहीं करते। वीजा जारी करने के मामले में अमरीका अत्यंत कठोर देश है, विशेष रूप से तीसरी दुनिया के नागरिकों को वीसा देने के बारे में, अमरीकी आवर्जन कानून की कड़ी शर्तें हैं जिन्हें अमरीका जाने के इच्छुक को पूरा करना होता है।
जैसे सिंगापूर के इमैग्रेशन फ़ार्म पर लिखा होता है ‘‘नशे की वस्तुएँ स्मगल करने वाले को मृत्युदण्ड दिया जायेगा।’’ यदि मैं सिंगापुर जाना चाहूँ तो मुझे वहाँ के कानून का पालन करना होगा। मैं यह नहीं कह सकता कि उनके देश में मृत्युदण्ड का निर्दयतापूर्ण और क्रूर प्रावधान क्यों है। मुझे तो केवल उसी अवस्था में वहाँ जाने की अनुमति मिलेगी जब उस देश के कानून की सभी शर्तों के पालन का इकष्रार करूंगा। मक्का और मदीना का वीसा अथवा वहाँ प्रवेश करने की बुनियादी शर्त यह है कि मुख से ‘‘ला इलाहा इल्लल्लाहु, मुहम्मदुर्रसूलल्लाहि’’ (कोई ईश्वर नहीं, सिवाय अल्लाह के (और) मुहम्मद (सल्लॉ) अल्लाह के सच्चे सन्देष्टा हैं), कहकर मन से अल्लाह के एकमात्र होने का इकष्रार किया जाए और हज़रत मुहम्मद (सल्लॉ) को अल्लाह का सच्चा रसूल स्वीकार किया जाए।
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nice information....
ReplyDeleteजय श्रीराम
जय श्रीराम
ReplyDeleteऔर हर धर्म की किताब मे लिखा है झूठ बोलना माहपाप है फिर तुम हिन्दु अपनी तरफ से हदीसे कुरआन की आयते सब झूठ क्यो लिखते है। आयत नम्बर हदीस नम्बर सब अपनी तरफ से झूठ लिख देते हो। कयामत के दिन झूठा इल्जाम लगाने का पता चल जायेगा तुमको। हमे कहते हो काबे की सच्चाई सामने क्यो नही लाते है। यूटयूब पर हजारो विडियो पडी हुयी है देखलो कोई लिंग विंग नही है वहा। और जन्नत का एक गोल पत्थर है और हर पत्थर का मतलब लिंग नही होता। बाईचान्स मान लो वहा शिव लिंग है।तो क्या आपके शिव लिंग मे इतनी भी ताकत नही है जो वहा से आजाद हो सके। तुम्हारी गंदी नजरो से सभी मुस्लिम अच्छे नही है इसलिए सारे मुस्लिमो को शिव मार सके। आप तो कहते हो शिव ने पूरी दुनिया बनाई तो क्या एक छोटा सा काम नही कर सकते।
ReplyDeleteइसलिए तो इन लिंग विंग पत्थरो के बूतो मे कोई ताकत नही होती। बकवास है हिन्दु धर्म।
अरे वो नफीस मलिक हिन्दू धर्म को बकवास बांटने वाले अपनी औकात में रह का बात कर, ये हिंदुस्तान है मतलब हिन्दू का स्थान, और तुम हिंदुऊ के घरती पर रह रहे हों, तुम्हें तुमरी औकात और तुमरी ईट से ईट बजने में हमे ज्यादा वक़्त नही लगे गया, तो हमारे और हमारे धर्म के बारे में बोलने से पहले अपने धर्म को और देखा करो, हमारे आराध्य भगवन शिव अनन्त रूपी है इस जगत के पालन हर है, मोक्ष प्राप्ति का माध्यम है जो सिर्फ इंडिया में ही अपितु पुरे वर्ल्ड में लोग भगवन शिव को हिन्दू घर्म से ही जोड़ते है, और मुस्लमान यही इस्लाम को लोग किस नाम से जानते है, आतंकवाद, हिंसा बेवजह लोगो को मरना तुम लोग लोग जिहाद कहते हो. अगर हम हिंदूऊ में अभी ऐसी अवधारणा आ जाते जैसे तुम लोग रखते हो हम हिन्दू के खिलाफ, तो भगवन शिव की कसम एक भी मुस्लमान इस हिंदुस्तान में नई दिखे गा. और इतिहास में ऐसा अवधारणा आ जाती तो न तो आज आगरे का लाल किला होता और न ताजमहल, बाबरी मस्ज़िद का तो नाम भी नही होता। मेरा सभी मुसलमानो से यही निवेदन है की ये हिन्दू धर्म के बारे में अपशब्द बोलने से पहले सोच लिया करे. वरना हिन्दू बोलते काम है करके ज्यादा दिखाते है ये बात याद रहे... जय हिन्द।
DeleteNafees ji मारना किसी धर्म का हिस्सा नहीं होता और जिस धर्म मे मारकाट हो वह धर्म ही नहीं होता ककहा य जा रहा है कि आप सब भले अनजाने में पर उसी असीम शक्ति के भंडार शिव के ही उपासक है वही आपके खुदा और हमारे ईश्वर है इस बात मे तकलीफ की कोई बात नहीं है इसका अर्थ है कि आप सब हमारे ही भाई लोग हैं।
Deleteओए नफीस मालिक भड़क मत हम सब भाई है समझे लोगो के चोद मे मत पडो पहले इंसानियत निभाओ आलाह ऐसे ही खुश हो जाएगा सबका धर्म जिंदाबाद।
ReplyDeleteनफी ज मियां मत भूलो आल्लहा से पहले भगवान थे मुस्लिम धर्म कव आया सव जानते है लेकिन हिंदू धर्म कव आया वता सकते हो
ReplyDeletebata sakte ho jo dharti par pahla insaan aaya tha jiska naam aadam (a.w.s) tha wo kis dharm se tha??????????
DeleteHindu dharm hi iss sansar mein ek aisa dharm hai jo kisi dharm ki naqal nahi karta muslim hindu dharam ka har kaam ulat karte hai jaise hindu jalate hai musalman dafnate hai koi bhi cheez le lijiye hamse ulat hi milega chahe sart laga lo
ReplyDeleteनफीस भाई आप कहते हो शिव में शक्ति नहीं --- तो आप बताओ क्या आपके अल्लाह में इतनी भी शक्ति नहीं की वो आपको शुद्ध मुस्लिम बना कर ही पैदा कर सके पैदा तो हिन्दू बना कर ही होते हो अम्मी की कोख से हाँ धरती में आकर अपना लिंग कटवा कर मुस्लिम बनाना कहते हो अल्लाह की न कोई फोटोज न कोई डाइग्राम , न कोई वजूद क़ुरान किसने लिखा सूरज के बारे में पूरा क़ुरान में गलत लिखा हुआ है आपको अभी इस्लाम की सच्चा ही नहीं मालूम बस बचपन से आप लोगो को हाथ में क़ुरान उर्दू अरबी का ज्ञान दे कर भीड़ में अँधा भक्त अल्लाह और क़ुरान का वास्ता देकर धरम के प्रति कट्टर बना दिया जाता है सच्चाई से बहुत दूर हो आप लोग ....सनातन हिन्दू धरम का प्रमाण इसी बात से लगा लो की कही भी जहा जहा धरती की खुदाई की गई वहा वहा केवल हिन्दुओ के ही हिन्दू देवी देवता हिन्दू संस्कार चाहे वह हड़प्पा संस्कृति हो या कही की भी न वहा आपके इस्लाम का कोई वजूद आज तक मिला नमो निशान तक नहीं मिलता आपका धरम 650 ईस्वी में बना है और हिन्दू धरम आज से 6000 साल पुराना है इसके सबूत देखना हो तो जाकर राम सेतु देख लो गंगा नदी देख लो कुछ छुपा नहीं आपके इस्लाम जैसे आप लोग गोल मटोल लपेट कर इस्लाम की असलियत छुपा लेते हो ताकि इस्लाम बदनाम न हो जाये हलाकि हमें किसी धरम से कोई मतलब नहीं लेकिन जो सच्चाई है उसे झुटलाया नहीं जा सकता आपका इस्लाम बिलकुल हिन्दू धरम का उल्टा बना है जानवरो को काटना हिन्दुओ में पाप मन गया था लेकिन आप लोग का फेस्टिवल ही जानवरो को काट कर किया जाता है ...हिन्दू हाथ जोड़ कर पूजा करते है तो आप लोग हाथ फैला कर .....हिन्दू सूरज को मानते है तो आप लोग चाँद को ......हिन्दू सभी धरम की इज्जत करते है तो आप लोग सिर्फ अल्लाह के सिवा कोई नहीं मानते नफरत करते हो सभी धर्मो से हमें मत सिखाओ हम आपकी तरह धरम में बहस नहीं करते और जब करते है तो आपकी नीव इतनी कमजोर है की उसको गिराने में दस मिनट भी नहीं लगेगा
ReplyDeleteBhagvann sirf ek hi ho Sakata hai 36 koti nahi
ReplyDeleteagni hawa suraj bhagwan nah
In ko banane wala bhagwan hai
Hum aaj Tak ye nahi samajh paaye ki jab ek Hindu masjid m ja sakta h majaar pr ja sakta h to phir gair Muslim logo ko makka jaane pr pratibandh kyon.
ReplyDeletemakka ja KR darshan Karne