हिंदुत्व के खिलाफ हो रहे हैं षड्यंत्र

0

दुनिया के सबसे पुराने धर्मो में से एक है। वर्तमान का हिंदू धर्म ही सनातन धर्म है। इस धर्म का दर्शन बहुत विशाल है और इसकी मूल अवधारणा है, वसुधैव कुटुंबकम। मेरा अपना मानना है कि जो भी हीन भावना को दुत्कारकर भगा दे, वही हिंदू है। मगर, वर्तमान में हिंदुत्व में ठहराव-सा आ गया है। हिंदू समाज को विभाजित करने का कुचक्र चल रहा है। कुछ कमी हम में है, तो कुछ हमारी राजनीति में। आज हिंदू बंटा हुआ है। कुटिल राजनीतिज्ञों की राजनीतिक चालों में फंसकर हिंदू विभाजित हो गए हैं। इतिहास गवाह है कि जो भी समाज संगठित रहा है, दुनिया में उसका ही सिक्का चला है। जैसे-पूरी दुनिया में यहूदियों की संख्या सवा करोड़ से ज्यादा नहीं है, पर विश्व की 47 प्रतिशत संपत्ति पर इनका आधिपत्य है। जिन वैज्ञानिक आविष्कारों का सुख पूरी मानवता भोग रही है, उनमें से साठ फीसदी से अधिक यहूदियों ने किए।

ऐसा नहीं है कि यहूदियों में वर्ण व्यवस्था नहीं थी। प्राचीनकाल में इस समाज में तीन वर्ण होते थे, मगर सदियों तक शोषित तथा दबे-कुचले यहूदियों ने स्वयं को संगठनात्मक स्तर पर इतना मजबूत और एकात्म किया कि वर्तमान में यहूदी एक सशक्त ताकत के रूप में पूरी दुनिया से अपना लोहा मनवा रहे हैं। हिटलर ने यहूदियों पर जुल्म ढाए, मुस्लिम शासकों ने उनका वजूद मिटाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। फिर भी, यहूदी सिर उठाकर जी रहे हैं। इसका कारण सिर्फ एकता है। जब यहूदी एक हो सकते हैं, वे वर्णो और वर्गो से मुक्त हो सकते हैं, तो हिंदू क्यों नहीं? आखिर हिंदू भी तो सदियों से दबे-कुचले रहे हैं। फिर, यहूदियों के मुकाबले हिंदू आबादी भी बहुत ज्यादा है। तब कहीं तो कमी होगी? ऐसे कई संगठन हैं, जो हिंदुओं को एकजुट करने के प्रयास में लगे हुए हैं, तब यह काम हो क्यों नहीं रहा है? दरअसल, जो भी संगठन हिंदुओं को एकजुट करने का पवित्र कार्य कर रहे हैं, उनमें व्यावहारिकता की कमी स्पष्ट रूप से दिखती है। लगता है, मानो रंगमंच पर कोई नाटक चल रहा है, जिसका प्रमुख पात्र भी हिंदू है और खलनायक भी हिंदू। हिंदू तभी एकजुट हो सकेंगे, जब वर्तमान परिस्थितियों के अनुकूल उन्हें ढाला जाएगा।

भाषावाद, जातिवाद, प्रांतवाद आदि का भेद पूरी तरह समाप्त हो। सांस्कृतिक, आर्थिक व राजनीतिक भेदभाव बंद हो। वर्तमान में हिंदुओं को एकजुट करने के जितने भी प्रयास होते हैं, उनमें इन सभी बुराइयों को दूर करने के प्रयास नहीं किए जाते। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ने हिंदुत्व को जमकर नुकसान पहुंचाया है। एक सशक्त, एकात्म और संगठित हिंदू समाज के निर्माण के लिए जब तक प्रचीनकाल से चली आ रही बुराइयों को दूर नहीं किया जाएगा, हिंदू एकजुट नहीं हो सकते। आज हिंदू और हिंदुत्व की अवधारणा ही भारत को विदेशी आक्रांताओं से बचा सकती है। अपने आसपास के परिवेश में हम आसानी से देख रहे हैं कि दूसरे धर्म-संप्रदाय स्वयं की संगठनात्मक क्षमताओं में कैसे वृद्धि करते जा रहे हैं, वह भी हिंदुओं की भागीदारी से। कई हिंदू इन धर्म-संप्रदायों को ग्रहण करके इनका आधार बढ़ा रहे हैं।

फिर, यह कहने में भी गुरेज नहीं होना चाहिए कि कमी हमारी ही राजनीतिक व्यवस्था में है, तभी हिंदू इस कदर दिग्भ्रमित हैं कि उन्हें अन्य धर्म अपनाने पड़ते हैं। इस प्रकार की समस्या आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में आम है। मात्र अंशकालीन लाभ के लिए देश के पथभ्रष्ट राजनीतिज्ञ दीर्घकालीन नुकसान की अनदेखी कर रहे हैं, जिसे किसी भी नजरिए से उचित नहीं ठहराया जा सकता। यदि भारत में हिंदू ही सुरक्षित न रहा, तो कौन रहेगा? फिर देश के भीतर तो ठीक, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हिंदू व हिंदुत्व के खिलाफ कुछ ताकतों द्वारा झंडा बुलंद किया जा रहा है। हो सकता है कि इस बात से कुछ लोग सहमत न हों कि हिंदुओं के विरुद्ध कोई अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र चल रहा है। ऐसे लोगों से पूछना चाहिए कि नेपाल, जो विश्व का एकमात्र घोषित हिंदू राष्ट्र था, आज उसका क्या हुआ? क्या यह हिंदुत्व के विरुद्ध षड्यंत्र नहीं है? पूरी दुनिया में ऐसे ही षड्यंत्र चल रहे हैं और इससे बचने का उपाय यह है कि हमें हिंदू धर्म का पुनर्गठन करना होगा। जातियों और वर्णो की समाप्ती वर्तमान समय की आवश्यकता है। यह होगा कैसे, हमारे विद्वानों और विचारकों को अब इसी पर विचार करना होगा।

Post a Comment

0Comments

Peace if possible, truth at all costs.

Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !