आधुनिक युग की युवा पीढ़ी के भरोसे भारत को छोङा जा सकता है...?

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आधुनिक युग की चमक-दमक में डूबी युवा पीढ़ी

  क्या इनके भरोसे भारत को छोङा जा सकता है...?

Daughter ignoring her unhappy parents

लगता है तकनीकी विकास और तेज रफ्तार जिन्दगी ने समाज को दो भागों में बांट दिया है। एक वे हैं जो भौंचक से पचास पार की उम्र जी रहे हैं और दूसरी है हमारी नई पीढ़ी, जिसके मूल्य और आदर्श अभी भी किसी परिभाषा की प्रतीक्षा में हैं। वे धरती पर आ गए हैं और एक मुक्त उपभोक्ता की तरह मौजूद हैं। उन्हें किसी तरह की बंदिश सहन नहीं है, न घर-परिवार की, न परंपराओं की और न ही नैतिकता-वैतिकता की। चमत्कारों से भरे संसार में उन्हें जन्म मिला है तो वे किसी की परवाह किए बगैर भरपूर जी लेना चाहते हैं। बाजार उन्हें बताता है कि ‘असली जिन्दगी’ क्या करने में है। उनके पास क्या होना चाहिए, पचास हजार का स्मार्ट फोन और लाख रुपए की बाइक तो बनती है। उन्हें क्या पीना और खाना जरूरी है, नाइट क्लबों, होटलों, जुआघरों, रेव पार्टियों आदि में असली मजा मिलता है। इस सब के लिए पैसा चाहिए तो मां-बाप एटीएम की तरह मौजूद हैं। उन्हें पता है कि मां की नाक दबाने से बाप का मुंह खुलता है, या इसका उल्टा भी। शुरू में संतान-प्रेम के कारण उनकी जेबें खुलती है और बाद में अनेक दबाव यह काम करवाते हैं। बच्चे चाहते हैं कि पैसा देते वक्त मां-बाप उनसे कोई कारण न पूछें। वे मान कर चलते हैं कि जो भी कमा कर रखा गया है वह सिर्फ उनके लिए है। जैसे बैंक नहीं पूछती कि आप पैसा ले जा कर क्या करोगे वैसे ही घर के लोगों को भी नहीं पूछना चाहिए। इधर पैसा पैसा जोड़ कर जो इकट्ठा किया था वह फिजूल खर्च होता देख आखिर बुजुर्गों की हिम्मत जवाब देने लगती है। हारते हुए आखिर एक दिन वे उस डर की परवाह भी छोड़ देते कि ‘बेटा कुछ ऐसा-वैसा न कर ले’ और हाथ उंचे कर देते हैं। ऐसी स्थिति में खबरें अलग ढंग से सामने आती हैं। किसी भी बड़े अखबार में देख लीजिए, प्रतिदिन दस से बारह जाहिर सूचना के विज्ञापन मिलेंगे जिसमें माता-पिता अपने बेटे-बहु को अपनी संपत्ती से बेदखल कर रहे हैं। कारण भी साफ लिखा है कि उनका चाल चलन ठीक नहीं हैं। वे कहना नहीं सुनते हैं और उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं। यह भी कि उनसे किये गये किसी भी व्यवहार, विशेषकर आर्थिक, के लिए वे उत्तरदायी नहीं होंगे। जहां एक से अधिक पुत्र हैं वहां संपत्ती के बटवारे को ले कर खूनी संधर्ष भी हो जाते हैं। कुछ घटनाएं ऐसी हुई हैं कि बंटवारे में हुए किसी पक्षपात को लेकर पुत्रों ने पिता को पीट पीट कर बैकुण्ठ भी पहुंचाया है।

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