मुहम्मद के मिशन में आस्था न रखने वाले लोगों के विरुद्ध एक मजहबी युद्ध। कुरान और हदीसों के अनुसार यह एक आवश्यक मजहबी कर्तव्य है जिसे विशेष रूप से इस्लाम के प्रसार के लिए तथा मुसलमानों में बुराईयों को दूर करने के लिये निभाया जाता है।
जब किसी मुस्लिम शासक द्वारा कोई गैर-इस्लामी देश जीत लिया जाता है तो उसके निवासियों के सामने तीन विकल्प रखे जाते हैं-
1. इस्लाम स्वीकारना- ऐसी हाल में जीते गए देश के लोग मुस्लिम देश के नागरिक बन जाते हैं।
2. पोल टेक्स- जिज़िया देना-इससे इस्लाम में आस्था न रखने वाले को संरक्षण मिल जाता है तथा वे 'जिम्मी' हो जाते हैं बशर्तेैं वे अरेबिया के मूर्ति-पूजक न हों।
3. ''ज़जिया' की अदायगी न करने वालों की तलवार द्वारा हत्या।''
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महाभारत के बाद कुछ कौरव (कौरव के कुलगुरु शुक्राचार्य ) परिवार पश्चिम की ओर गए फिर बाद में तीन धर्म बने lसबसे पहले अब्राहस ने यहूदी ,फिर ईसा ने इसाई और मुहम्मद ने इश्लाम बनाया
इस्लाम १४०० साल पुराना है जिन्हें आप मुस्लिम समझते हैं वे सब पूर्व में आर्यावर्त से भागे हुए थे .ये सब पूर्व में शुक्राचार्य के समर्थक थे जो हमेशा सनातन हिंदू धर्म के विरोधी रहे ..वही शिक्षा उनहोंने अपने शिष्यों को भी दी .जब भारत में उनकी दाल नहीं गली तो वे अपने चेलों को लेकर रेगिस्तान की तरफ भाग गए थे ..बाद में मोहम्मद साहब ने इनको इस्लाम के संघठन में बाँध दिया, अपने देखा होगा की इनका सब काम सनातन विरोधी है ...ये सब शुक्राचार्य की देन है...
अरब देश का भारत, भृगु के पुत्र शुक्राचार्य तथा उनके पोत्र और्व से ऐतिहासिक संबंध प्रमाणित है, यहाँ तक कि “हिस्ट्री ऑफ पर्शिया” के लेखक साइक्स का मत है कि अरब का नाम और्व के ही नाम पर पड़ा, जो विकृत होकर “अरब” हो गया। भारत के उत्तर-पश्चिम में इलावर्त था, जहाँ दैत्य और दानव बसते थे, इस इलावर्त में एशियाई रूस का दक्षिणी-पश्चिमी भाग, ईरान का पूर्वी भाग तथा गिलगिट का निकटवर्ती क्षेत्र सम्मिलित था।
अरब में शुक्राचार्य का इतना मान-सम्मान हुआ कि आज जिसे ‘काबा’ कहते है, वह वस्तुतः ‘काव्य शुक्र’ (शुक्राचार्य) के सम्मान में निर्मित उनके आराध्य भगवान शिव का ही मन्दिर है। कालांतर में ‘काव्य’ नाम विकृत होकर ‘काबा’ प्रचलित हुआ। अरबी भाषा में ‘शुक्र’ का अर्थ ‘बड़ा’ अर्थात ‘जुम्मा’ इसी कारण किया गया और इसी से ‘जुम्मा’ (शुक्रवार) को मुसलमान पवित्र दिन मानते है।
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शुक्राचार्य की एक आँख फूट जाने के बाद उन्होंने अपने शिष्य असुरों को अपना मुहं दिखाना बंद कर दिया| शिव पुराण के अनुसार जब असुर उनसे मिलने आते तब वे पीठ फेर कर बैठ जाए थे| असुर उनसे मुहं दिखाने का अनुरोध करते थे फिर भी वो सामने नहीं आते थे, शुक्राचार्य ने अपनी मूर्तियां तुडवा डाली और कहा की मेरी कभी भी मूर्ती नहीं बनेंगी (हिंदू धर्म में काणे की मूर्ती नहीं बनती है)| इस छटपटाहट ने शुक्र को मूर्ती ध्वंसक बना दिया| परिणामतः जो धर्म मूर्ती ध्वंसक है वो शुक्राचार्य द्वारा स्थापित किये है (ये प्रव्रत्ति इस्लाम और ईसाईयों के इतिहास में भरी हुई हैं)|...
मुहम्मद पैगम्बर खुद जन्मजात हिंदु था और काबा एक हिन्दू मन्दिर काबा के प्रवेश-द्वार पर काँच का एक भव्य द्वीप समूह लगा है जिसके उपर भगवत गीता के श्लोक अंकित हैं.अंदर दीवार पर एक बहुत बड़ा यशोदा तथा बाल-कृष्ण का चित्र बना हुआ है, जिसे वे ईसा और उसकी माता समझते हैं. अंदर गाय के घी का एक पवित्र दीप सदा जलता रहता है. ये दोनों मुसलमान धर्म के विपरीत कार्य (चित्र और गाय के घी का दिया) यहाँ होते हैं.. एक अष्टधातु से बना दिया का चित्र में यहाँ बता रहा हूँ जो ब्रिटिश संग्रहालय में अब तक रखी हुई है..ये दीप अरब से प्राप्त हुआ है जो इस्लाम-पूर्व है. इसी तरह का दीप काबा के अंदर भी अखण्ड दीप्तमान रहता है .
ये सारे प्रमाण ये बताने के लिए हैं कि क्यों मुस्लिम इतना डरे रहते हैं इस मंदिर को लेकर..इस मस्जिद के रहस्य को जानने के लिए कुछ हिंदुओं ने प्रयास किया तो वे क्रूर मुसलमानों के हाथों मार डाले गए और जो कुछ बच कर लौट आए वे भी पर्दे के कारण ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं कर पाए.....भाषा की दृष्टि से तो अनगिणत प्रमाण हैं यह सिद्ध करने के लिए कि अरब इस्लाम से पहले वैदिक संस्कृति के प्रभाव में थे, जैसे कुछ उदाहरण-मक्का-मदीना, मक्का संस्कृत शब्द मखः से बना है जिसका अर्थ अग्नि है तथा मदीना मेदिनी से बना है जिसका अर्थ भूमि है..मक्का मदीना का तात्पर्य यज्य की भूमि है.,ईद संस्कृत शब्द ईड से बना है जिसका अर्थ पूजा होता है.नबी जो नभ से बना है..नभी अर्थात आकाशी व्यक्ति.पैगम्बर "प्र-गत-अम्बर"का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है आकाश से चल पड़ा व्यक्ति..
क्या कभी आपने सोचा है की जब मक्का की परिक्रमा की जाती है तो हिन्दुओ की तरह से वस्त्र धरण क्यू किये जाते है ..... क्यू यह लोग दाडी ओर मूछे कटा देते है ओर हिन्दुओ की तरह सिर्फ एक कपड़ा (बिना सिला ) हुआ पहनते है ..??
अत: यदि इस्लाम वास्तव में यदि अपनी पहचान कि खोंज करना चाहता है तो उसे इसी धरा ,संस्कृति व प्रागैतिहासिक ग्रंथों में स्वं को खोजना पड़ेगा……
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हमारी हिन्दु-मुस्लिम के बीच समान अधिकारों की माँग को उठाने वाले पोस्ट्स पर सवाल खड़े करने वाले मुस्लिम और "sick"-ular हिन्दु "जयचन्दों" से कुछ सवाल हैं। बिना उत्तेज़ित हुये पढ़े और विचार करें। तर्क़ों का स्वागत है, कुतर्क़ों का नहीं। सवाल निम्नवत हैं :
1. क्या आज़ादी मिलने के बाद भारत का "धर्म-आधारित" विभाजन हुआ?
जवाब है, हाँ।
2. जब महज़ धर्म के नाम पर मुसलमानों ने भारत को तोड़ दिया, फिर भारत पर उनका कैसा हक़?
जवाब है, कोई हक़ नहीं।
3. जब बँटवारे में मुसलमानों को अलग मुस्लिम राष्ट्र मिला तो क्या हिन्दुओं को अलग हिन्दु राष्ट्र लेने का हक़ नहीं था?
जवाब है, बिल्कुल था।
4. चलिये छोड़िये, हिन्दुओं को अलग हिन्दु राष्ट्र नहीं मिला, ये ना-इंसाफ़ी भी स्वीकार ! कुछ मुसलमानों ने पाक़िस्तान जाने की बजाय हिन्दुस्तान में रहना पसन्द किया, ये भी स्वीकार। भारत एक "धर्म-निरपेक्ष" राष्ट्र घोषित हुआ, स्वीकार। तो क्या इस "धर्म-निरपेक्ष" राष्ट्र में सभी धर्मों को समान अधिकार नहीं मिलना चाहिये था? महज़ "अल्पसंख्यक" के नाम पर किसी धर्म-विशेष को विशेषाधिकार देने का क्या औचित्य था?
जवाब है - हाँ, सभी धर्मों को समान अधिकार मिलने चाहिये थे। किसी धर्म-विशेष को विशेषाधिकार देने का कोई औचित्य नहीं था।
5. अगर आरक्षण देने का कोई प्रावधान था, तो क्या सभी धर्मों में आरक्षण की समान पद्धति लागू नहीं होनी चाहिये थी?
जवाब है, हाँ। अगर नीतिगत तरीक़े से सोचा जाये तो सभी धर्मों के लिये आरक्षण की समान पद्धति लागू होनी चाहिये थी।
6. चलो, इस मुद्दे को भी नज़र-अंदाज़ करते हैं। चलो, अल्पसंख्यक के नाम पर दिये जा रहे विशेषाधिकार भी स्वीकार! अब सवाल ये है कि क्या मुस्लिम सांवैधानिक ढ़ाँचे के अनुरूप आज भी "अल्पसंख्यक" हैं?
जवाब है, नहीं। आज वो कुल जन्संख्या का लगभग 20% हो चुके हैं। तो अब वो "अल्पसंख्यक" नहीं हैं। फ़िर विशेषाधिकारों का कोई औचित्य नहीं है।
7. अगर मुसलमान "अल्पसंख्यक" हैं तो फ़िर बुद्ध, जैन, सिंधी, पारसी, सिख आदि क्या हैं? क्या उन्हें "अल्पसंख्यक" के नाम पर कोई विशेषाधिकार प्राप्त हैं?
जवाब है, नहीं। वास्तविक अल्पसंख्यकों की पूर्णतया अनदेखी हो रही है, क्यों कि वो "वोट-बैंक" नहीं हैं। सरकारी उदासीनता का आलम ये है कि सिंधी, पारसी आज विलुप्त होने के कगार पर हैं।
8. जिसे आप धर्म-निरपेक्षता कहते हैं, क्या वो सिर्फ़ हिन्दुओं के लिये है, मुस्लिमों के लिये नहीं?
जवाब है, हाँ। ये "धर्म निरपेक्षता" सिर्फ़ हिन्दुओं पर थोपी जाती है। कश्मीर जैसे मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में मुस्लिम, हिन्दुओं को खदेड़-खदेड़ कर भगाते हैं, उनके लिये कोई "धर्म-निरपेक्षता" नहीं। जबकि हिन्दु-बहुल क्षेत्रों में मुस्लिम मज़े से रहते हैं, क्योंकि हिन्दु धर्म-निरपेक्ष हैं भाई!
सवाल और भी कयी हैं, ये तो महज़ शुरूआती झांकी है। आशा है कि हिन्दुओं के बीच मौज़ूद "जयचन्दों" की शायद आँखें खुलें। मुस्लिमों और हिन्दुओं में सबसे बड़ा फ़र्क़ यही है कि मुस्लिमों में गद्दार जयचन्दों की संख्या ना के बराबर है, जबकि हिन्दुओं में कदम-कदम पर जयचन्द मौजूद हैं जो उसी डाल को साम्प्रदायिक बोलकर काटने में लगे हैं, जिस पर वो खुद बैठे हैं। इस मामले में मुसलमान बधाई के पात्र हैं।मुसलमान हिन्दुओ के जन्मजात दुश्मन ही सही पर हिन्दुओं को उनसे कुछ सीखना चाहिये।
जब किसी मुस्लिम शासक द्वारा कोई गैर-इस्लामी देश जीत लिया जाता है तो उसके निवासियों के सामने तीन विकल्प रखे जाते हैं-
1. इस्लाम स्वीकारना- ऐसी हाल में जीते गए देश के लोग मुस्लिम देश के नागरिक बन जाते हैं।
2. पोल टेक्स- जिज़िया देना-इससे इस्लाम में आस्था न रखने वाले को संरक्षण मिल जाता है तथा वे 'जिम्मी' हो जाते हैं बशर्तेैं वे अरेबिया के मूर्ति-पूजक न हों।
3. ''ज़जिया' की अदायगी न करने वालों की तलवार द्वारा हत्या।''
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महाभारत के बाद कुछ कौरव (कौरव के कुलगुरु शुक्राचार्य ) परिवार पश्चिम की ओर गए फिर बाद में तीन धर्म बने lसबसे पहले अब्राहस ने यहूदी ,फिर ईसा ने इसाई और मुहम्मद ने इश्लाम बनाया
इस्लाम १४०० साल पुराना है जिन्हें आप मुस्लिम समझते हैं वे सब पूर्व में आर्यावर्त से भागे हुए थे .ये सब पूर्व में शुक्राचार्य के समर्थक थे जो हमेशा सनातन हिंदू धर्म के विरोधी रहे ..वही शिक्षा उनहोंने अपने शिष्यों को भी दी .जब भारत में उनकी दाल नहीं गली तो वे अपने चेलों को लेकर रेगिस्तान की तरफ भाग गए थे ..बाद में मोहम्मद साहब ने इनको इस्लाम के संघठन में बाँध दिया, अपने देखा होगा की इनका सब काम सनातन विरोधी है ...ये सब शुक्राचार्य की देन है...
अरब देश का भारत, भृगु के पुत्र शुक्राचार्य तथा उनके पोत्र और्व से ऐतिहासिक संबंध प्रमाणित है, यहाँ तक कि “हिस्ट्री ऑफ पर्शिया” के लेखक साइक्स का मत है कि अरब का नाम और्व के ही नाम पर पड़ा, जो विकृत होकर “अरब” हो गया। भारत के उत्तर-पश्चिम में इलावर्त था, जहाँ दैत्य और दानव बसते थे, इस इलावर्त में एशियाई रूस का दक्षिणी-पश्चिमी भाग, ईरान का पूर्वी भाग तथा गिलगिट का निकटवर्ती क्षेत्र सम्मिलित था।
अरब में शुक्राचार्य का इतना मान-सम्मान हुआ कि आज जिसे ‘काबा’ कहते है, वह वस्तुतः ‘काव्य शुक्र’ (शुक्राचार्य) के सम्मान में निर्मित उनके आराध्य भगवान शिव का ही मन्दिर है। कालांतर में ‘काव्य’ नाम विकृत होकर ‘काबा’ प्रचलित हुआ। अरबी भाषा में ‘शुक्र’ का अर्थ ‘बड़ा’ अर्थात ‘जुम्मा’ इसी कारण किया गया और इसी से ‘जुम्मा’ (शुक्रवार) को मुसलमान पवित्र दिन मानते है।
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शुक्राचार्य की एक आँख फूट जाने के बाद उन्होंने अपने शिष्य असुरों को अपना मुहं दिखाना बंद कर दिया| शिव पुराण के अनुसार जब असुर उनसे मिलने आते तब वे पीठ फेर कर बैठ जाए थे| असुर उनसे मुहं दिखाने का अनुरोध करते थे फिर भी वो सामने नहीं आते थे, शुक्राचार्य ने अपनी मूर्तियां तुडवा डाली और कहा की मेरी कभी भी मूर्ती नहीं बनेंगी (हिंदू धर्म में काणे की मूर्ती नहीं बनती है)| इस छटपटाहट ने शुक्र को मूर्ती ध्वंसक बना दिया| परिणामतः जो धर्म मूर्ती ध्वंसक है वो शुक्राचार्य द्वारा स्थापित किये है (ये प्रव्रत्ति इस्लाम और ईसाईयों के इतिहास में भरी हुई हैं)|...
मुहम्मद पैगम्बर खुद जन्मजात हिंदु था और काबा एक हिन्दू मन्दिर काबा के प्रवेश-द्वार पर काँच का एक भव्य द्वीप समूह लगा है जिसके उपर भगवत गीता के श्लोक अंकित हैं.अंदर दीवार पर एक बहुत बड़ा यशोदा तथा बाल-कृष्ण का चित्र बना हुआ है, जिसे वे ईसा और उसकी माता समझते हैं. अंदर गाय के घी का एक पवित्र दीप सदा जलता रहता है. ये दोनों मुसलमान धर्म के विपरीत कार्य (चित्र और गाय के घी का दिया) यहाँ होते हैं.. एक अष्टधातु से बना दिया का चित्र में यहाँ बता रहा हूँ जो ब्रिटिश संग्रहालय में अब तक रखी हुई है..ये दीप अरब से प्राप्त हुआ है जो इस्लाम-पूर्व है. इसी तरह का दीप काबा के अंदर भी अखण्ड दीप्तमान रहता है .
ये सारे प्रमाण ये बताने के लिए हैं कि क्यों मुस्लिम इतना डरे रहते हैं इस मंदिर को लेकर..इस मस्जिद के रहस्य को जानने के लिए कुछ हिंदुओं ने प्रयास किया तो वे क्रूर मुसलमानों के हाथों मार डाले गए और जो कुछ बच कर लौट आए वे भी पर्दे के कारण ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं कर पाए.....भाषा की दृष्टि से तो अनगिणत प्रमाण हैं यह सिद्ध करने के लिए कि अरब इस्लाम से पहले वैदिक संस्कृति के प्रभाव में थे, जैसे कुछ उदाहरण-मक्का-मदीना, मक्का संस्कृत शब्द मखः से बना है जिसका अर्थ अग्नि है तथा मदीना मेदिनी से बना है जिसका अर्थ भूमि है..मक्का मदीना का तात्पर्य यज्य की भूमि है.,ईद संस्कृत शब्द ईड से बना है जिसका अर्थ पूजा होता है.नबी जो नभ से बना है..नभी अर्थात आकाशी व्यक्ति.पैगम्बर "प्र-गत-अम्बर"का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है आकाश से चल पड़ा व्यक्ति..
क्या कभी आपने सोचा है की जब मक्का की परिक्रमा की जाती है तो हिन्दुओ की तरह से वस्त्र धरण क्यू किये जाते है ..... क्यू यह लोग दाडी ओर मूछे कटा देते है ओर हिन्दुओ की तरह सिर्फ एक कपड़ा (बिना सिला ) हुआ पहनते है ..??
अत: यदि इस्लाम वास्तव में यदि अपनी पहचान कि खोंज करना चाहता है तो उसे इसी धरा ,संस्कृति व प्रागैतिहासिक ग्रंथों में स्वं को खोजना पड़ेगा……
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हमारी हिन्दु-मुस्लिम के बीच समान अधिकारों की माँग को उठाने वाले पोस्ट्स पर सवाल खड़े करने वाले मुस्लिम और "sick"-ular हिन्दु "जयचन्दों" से कुछ सवाल हैं। बिना उत्तेज़ित हुये पढ़े और विचार करें। तर्क़ों का स्वागत है, कुतर्क़ों का नहीं। सवाल निम्नवत हैं :
1. क्या आज़ादी मिलने के बाद भारत का "धर्म-आधारित" विभाजन हुआ?
जवाब है, हाँ।
2. जब महज़ धर्म के नाम पर मुसलमानों ने भारत को तोड़ दिया, फिर भारत पर उनका कैसा हक़?
जवाब है, कोई हक़ नहीं।
3. जब बँटवारे में मुसलमानों को अलग मुस्लिम राष्ट्र मिला तो क्या हिन्दुओं को अलग हिन्दु राष्ट्र लेने का हक़ नहीं था?
जवाब है, बिल्कुल था।
4. चलिये छोड़िये, हिन्दुओं को अलग हिन्दु राष्ट्र नहीं मिला, ये ना-इंसाफ़ी भी स्वीकार ! कुछ मुसलमानों ने पाक़िस्तान जाने की बजाय हिन्दुस्तान में रहना पसन्द किया, ये भी स्वीकार। भारत एक "धर्म-निरपेक्ष" राष्ट्र घोषित हुआ, स्वीकार। तो क्या इस "धर्म-निरपेक्ष" राष्ट्र में सभी धर्मों को समान अधिकार नहीं मिलना चाहिये था? महज़ "अल्पसंख्यक" के नाम पर किसी धर्म-विशेष को विशेषाधिकार देने का क्या औचित्य था?
जवाब है - हाँ, सभी धर्मों को समान अधिकार मिलने चाहिये थे। किसी धर्म-विशेष को विशेषाधिकार देने का कोई औचित्य नहीं था।
5. अगर आरक्षण देने का कोई प्रावधान था, तो क्या सभी धर्मों में आरक्षण की समान पद्धति लागू नहीं होनी चाहिये थी?
जवाब है, हाँ। अगर नीतिगत तरीक़े से सोचा जाये तो सभी धर्मों के लिये आरक्षण की समान पद्धति लागू होनी चाहिये थी।
6. चलो, इस मुद्दे को भी नज़र-अंदाज़ करते हैं। चलो, अल्पसंख्यक के नाम पर दिये जा रहे विशेषाधिकार भी स्वीकार! अब सवाल ये है कि क्या मुस्लिम सांवैधानिक ढ़ाँचे के अनुरूप आज भी "अल्पसंख्यक" हैं?
जवाब है, नहीं। आज वो कुल जन्संख्या का लगभग 20% हो चुके हैं। तो अब वो "अल्पसंख्यक" नहीं हैं। फ़िर विशेषाधिकारों का कोई औचित्य नहीं है।
7. अगर मुसलमान "अल्पसंख्यक" हैं तो फ़िर बुद्ध, जैन, सिंधी, पारसी, सिख आदि क्या हैं? क्या उन्हें "अल्पसंख्यक" के नाम पर कोई विशेषाधिकार प्राप्त हैं?
जवाब है, नहीं। वास्तविक अल्पसंख्यकों की पूर्णतया अनदेखी हो रही है, क्यों कि वो "वोट-बैंक" नहीं हैं। सरकारी उदासीनता का आलम ये है कि सिंधी, पारसी आज विलुप्त होने के कगार पर हैं।
8. जिसे आप धर्म-निरपेक्षता कहते हैं, क्या वो सिर्फ़ हिन्दुओं के लिये है, मुस्लिमों के लिये नहीं?
जवाब है, हाँ। ये "धर्म निरपेक्षता" सिर्फ़ हिन्दुओं पर थोपी जाती है। कश्मीर जैसे मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में मुस्लिम, हिन्दुओं को खदेड़-खदेड़ कर भगाते हैं, उनके लिये कोई "धर्म-निरपेक्षता" नहीं। जबकि हिन्दु-बहुल क्षेत्रों में मुस्लिम मज़े से रहते हैं, क्योंकि हिन्दु धर्म-निरपेक्ष हैं भाई!
सवाल और भी कयी हैं, ये तो महज़ शुरूआती झांकी है। आशा है कि हिन्दुओं के बीच मौज़ूद "जयचन्दों" की शायद आँखें खुलें। मुस्लिमों और हिन्दुओं में सबसे बड़ा फ़र्क़ यही है कि मुस्लिमों में गद्दार जयचन्दों की संख्या ना के बराबर है, जबकि हिन्दुओं में कदम-कदम पर जयचन्द मौजूद हैं जो उसी डाल को साम्प्रदायिक बोलकर काटने में लगे हैं, जिस पर वो खुद बैठे हैं। इस मामले में मुसलमान बधाई के पात्र हैं।मुसलमान हिन्दुओ के जन्मजात दुश्मन ही सही पर हिन्दुओं को उनसे कुछ सीखना चाहिये।
Peace if possible, truth at all costs.