इस्लाम ओरतो के लिए नर्क..

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सऊदी अरब में कोई भी महिला अकेले घर से बाहर नहीं निकल सकती चाहे उसकी उम्र कितनी भी क्यों न हो। घर की दहलीज से बाहर कदम रखते समय हर उम्र की महिला के साथ एक महरम (ऐसा पुरूष अभिभावक जिससे इस्लाम के अनुसार सेक्स या विवाह नहीं किया जा सकता हो जैसे पिता, सगाभाई या पुत्र का होना जरूरी है। यहाँ तक की माँ के साथ भी अनुमति नहीं है। लगभग हर काम को करने से पहले उन्हें महरम की सहमति लेना जरुरी है, फिर चाहे वह विवाह करना, यात्रा करना, शिक्षा प्राप्त करना, नौकरी करना, बैंक में खाता खोलना, चिकित्सीय जांच कराना जैसा कोई भी काम हो।
ह्यूमन राइट्स वॉच नमक मानवाधिकार संगठन के अनुसार सऊदी महिलाओं का दरअसल अपना खुद का कोई अस्तित्व ही नहीं है।
इस क्रूर अन्यायपूर्ण व्यवस्था ने सऊदी अरब को संसार का सबसे बड़ा मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाला देश बना दिया है।
अगस्त २००५ में सउदी अदालत ने ३४ वर्षीय स्त्री फातिमा मंसूर का उसके पति से तलाक का आदेश दिया,जबकि दोनों अपने दो बच्चों के संग खुशी से रह रहे थे।
फातिमा का विवाह उसके पिता की मर्जी से हुआ था। लेकिन पिता की मृत्यु के पश्चात फातिमा के चचेरे भाई ने पुरुष अभिभावक बनकर इस विवाह का विरोध किया। चूँकि महरम के विरोध से कानूनी रूप से शादी टूटना तय था वहीं फातिमा को वापिस अपने घर जाने पर भाई से यौन-हिंसा का भय था, अतः उसे अपनी १ वर्षीय बेटी के साथ ४ वर्ष जेल की सलाखों के पीछे बिताने पड़े।
(२.) वर्ष २००७ में फेसबुक पर पुरुष मित्र से चेटिंग कर रही एक युवती की उसके पिता द्वारा हत्या कर दी गई। चरमपंथियों ने सरकार से फेसबुक पर प्रतिबंध लगाने की माँग की क्योंकि यह विपरीत-लिंग के व्यक्तियों के मध्य मेलजोल को बढ़ावा देता है और सेक्स को भड़काता है।
(३.) २००८ में एक पिता ने अपना कर्ज माफ कराने के लिए अपनी ८ वर्षीय बेटी का विवाह एक ४७ वर्षीय अधेड़ से कर दिया। बालिका ने अदालत में विवाह को निरस्त करने की माँग की, लेकिन सऊदी न्यायालय ने ऐसा निर्णय देने से इंकार कर दिया।
(४.) २००८ में एक ७५ वर्षीय स्त्री खमिसा मोहम्मद
सावादी को ४० कोड़ों और कैद की सजा दी गई, क्योंकि उसने एक व्यक्ति को ब्रेड देने के लिए घर के अंदर आने दिया था।
(५.) जुलाई २०१३ में अल बहाह के किंग फहद अस्पताल ने एक बेहद गंभीर रूप से घायल महिला के हाथ की सर्जरी करने से मना कर दिया क्योंकि उसके साथ कोई महरम (पुरुष अभिभावक) नहीं था क्योंकि उसके पति की उसी दुर्घटना में मौत हो गई थी।
(६.) ८ फरवरी २०१४ को रियाद स्थित विश्वविद्यालय के कैंपस में एक छात्रा अमना बावजीर को दिल का दौरा पड़ा। कैंपस में महिला डॉक्टर नहीं थी, लेकिन विश्वविद्यालय स्टाफ ने पुरुष डॉक्टर को कैंपस के भीतर जाकर छात्रा के इलाज की अनुमति नहीं दी और छात्रा की मौत हो गई।
वर्ष २००८ से पहले, सऊदी महिलाओं को महरम के बिना होटलों और अपार्टमेंटों में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। अब वे राष्ट्रीय पहचान कार्ड द्वारा होटलों, रेस्टोरेंटों, कैफे में प्रवेश कर सकतीं हैं, जहाँ फैमिली और बेचलर
दो ‘ईटिंग जोन’ होते हैं और वहाँ जाने के लिए महिलाओं के लिए अलग रास्ता होता है। महिलाएँ फैमिली जोन में बैठ सकती हैं, जहाँ पुरुष बैठना तो दूर देख भी नहीं सकते।
मैकडोनाल्ड, पिज्जा हट, स्टारबक्स और अन्य अमेरिकी कंपनियों को भी अपने रेस्टोरेंटों में शरीयत कानून को ध्यान में रखते हुए ये दोनों ‘ईटिंग जोन’ बनाने पड़े, जिसके लिए उन्हें नारीवादियों और मानवाधिकार
संगठनों की कड़ी आलोचना झेलनी पड़ी।
सऊदी अरब में रेस्टोरेंट, बैंक और दूसरे सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं को आने और जाने के लिए अलग द्वारों का प्रयोग करना पड़ता है, जहाँ से होकर पुरुष नहीं गुजर सकते।
सउदी अरब में घरों में घुसने के लिए भी महिलाओं के लिए अलग दरवाजे होते हैं।
समुद्र तट और मनोरंजन पार्क में जाने के लिए भी स्त्री-पुरुषों के लिए अलग-अलग समय तय किए गए हैं।
सऊदी अरब की अधिकतर धार्मिक संस्थाओं ने विवाह के लिए लड़कियों की ९ वर्ष और लड़कों की १५ वर्ष की न्यूनतम आयु निर्धारित की है। जिसका लाभ उठाते हुए बूढ़े शेख निर्धन घरों की अल्पव्यस्क बच्चियों से शादी कर लेते हैं।समझदार होने तक इन लड़कियों में से कुछ विधवा हो चुकी होती हैं, कुछ तलाक का शिकार हो चुकी होती हैं।
वर्ष २०१० के एक समाचार के अनुसार एक १० वर्षीय
लड़की शरीफा की उसके पिता ने एक ८० वर्षीय बूढ़े से धन लेकर शादी कर दी। लेकिन उस बूढ़े ने उस लड़की को बिना उसकी जानकारी के कुछ महीने बाद तलाक दे दिया क्योंकि कुरान के अनुसार तीन बार तलाक बोलने से ही तलाक नाज़िल हो जाता है। चाहे पत्नी सुने या ना सुने, भले ही फोन पर या गुस्से में या नशे में ही क्यों ना बोला गया हो।
८ जनवरी २०१३ की मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एक ९०
साल के बुजुर्ग ने १५ वर्षीय लड़की के माता-पिता को भारी भरकम दहेज़ देकर उससे शादी कर ली। लेकिन
भयभीत लड़की ने खुद को दो दिन तक कमरे में बंद रखा और पति को कमरे के अंदर नहीं घुसने दिया।
इन जुल्मों के अलावा, ज्यादातर क्षेत्रों में लड़कियों का पीड़ादायक खतना भी कराया जाता है, ताकि वे दर्द की वजह से कम सेक्स करें और उन्हें कम यौन सुख की आदत पड़े और वे अपने उस पति के प्रति वफादार बनी रहें, जिन्हें शरीयत कानून का पालन करते हुए एक साथ चार-चार पत्नियाँ रखने की इजाज़त है।
बलात्कार का कानून
सऊदी लड़कियों का व्यस्क होने से पूर्व ही विवाह
करा दिया जाता है और उन्हें हिजाब में रहना पड़ता है। लेकिन इसके बाद भी देश में बलात्कार की घटनाओं में भारी बढ़ोतरी हुई है, जिनमें आधे से ज्यादा मामले सामने ही नहीं आते हैं । इसका कारण है यहाँ प्रचलित शरिया कानून, जिसके अनुसार किसी महिला का बलात्कार होने पर आरोपी को सजा केवल तभी दी जा सकती है, जब-
(१.) वह आरोपी स्वयं अपना अपराध स्वीकार कर ले और
(२.) बलात्कार की घटना के ४ प्रत्यक्षदर्शी पुरूष गवाह मिलें।
सामान्यतः ये दोनों ही बातें असंभव होती हैं।
आरोपी उल्टा पीड़ित महिला पर यह आरोप लगा देता है
कि बलात्कार करने के लिए उसी ने उकसाया था।
अतः महिला को व्यभिचार का अपराधी मानकर पूरे समाज के सामने पत्थर मार-मारकर मौत के घाट उतार दिया जाता है। अन्यथा बहुत दया भी की जाए तो २०० कोड़े मारने और १० साल की जेल की सजा दी जाती है।
सऊदी अरब में महिलाओं की गवाही नही मानी जाती क्योंकि कुरान के अनुसार महिलाओं की बात पर यकीन नही किया जाता। चार महिलाओं की गवाही को एक पुरुष की गवाही के बराबर माना जाता है।
महिला के परपुरुष के साथ संबंध रखने पर पुरुष से कुछ
नहीं कहा जाता, लेकिन महिला को इसके लिए कड़ी सजा का प्रावधान है।
गैर-महरम पुरुष से बात करने पर भी महिला को अक्सर व्यभिचार या वेश्यावृत्ति का गुनाहगार मानकर सजा दे दी जाती है।
वहाँ घरों में काम करने वाली प्रवासी और विदेशी महिलाओं को सबसे अधिक शारीरिक शोषण और बलात्कार का शिकार होना पड़ता है क्योंकि उनके लिए देश में कोई कानून नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में प्रस्तुत एक मामले में दो धार्मिक पुलिसमैनों ने एक महिला के साथ बलात्कार किया, लेकिन अदालत नें उन पर लगे आरोप ख़ारिज कर दिए क्योंकि वे शरीयत के कानून में किसी भी सजा के काबिल नहीं थे।
२००९ में एक २३ वर्षीय अविवाहित युवती सामूहिक
बलात्कार के बाद गर्भवती हो गई तो उसने गर्भ को गिराने का असफल प्रयास किया। लड़की को व्यभिचार करने के अपराध में १०० कोड़े मारने और १ वर्ष की कैद की सजा दी गई।
सऊदी अरब में मीडिया पर बलात्कार की रिपोर्टिंग करने पर प्रतिबंध है। यदि कोई पीड़िता मीडिया की सुर्ख़ियों में आ जाती है तो उसकी सजा और भी अधिक बढ़ा दी जाती है।
२००७ में कातिफ (Qatif) सामूहिक बलात्कार की शिकार एक १८ वर्षीय लड़की को अदालत ने २०० कोड़े मारने और ६ महीने की कैद का आदेश सुनाया था। इसके अलावा उसे ९० कोड़े अलग से मारने की सजा भी सुनाई गई । वह कार में एक पुरुष के साथ देखी गई थी, जिसके बाद उसे दंड देने के लिए जनता ने उसका अपहरण कर उसके संग सामूहिक बलात्कार किया। युवती को इस बात के लिए भी सजा दी गई कि उसने मीडिया को साक्षात्कार दिया था।
बाद में मामला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आने के बाद संयुक्त राष्ट्र द्वारा अदालत के निर्णय की कड़ी भर्त्सना के बाद किंग अब्दुल्ला ने पीड़िता को दिसंबर २००७ में क्षमा कर दिया, लेकिन उन्होनें अदालत के निर्णय में किसी खामी से इन्कार कर दिया।
इसी तरह फरवरी २०१३ में नारीवादी कार्यकर्ता मनाल अल शरीफ की कोशिशों से अंतर्राष्ट्रीय मीडिया और संयुक्त राष्ट्र का ध्यान ५ वर्षीय मासूम बच्ची लामा अल-घामदी की ओर आकर्षित हुआ, जिसके पिता ने उसके साथ बलात्कार किया, पीटा और उसे जला डाला।
बाद में जबरदस्त अंतर्राष्ट्रीय दबाव की वजह से अदालत को दुराचारी पिता को "४ महीने की कैद" और जुर्माने की सजा देनी पड़ी।
शिक्षा में भेदभाव
सऊदी अरब में महिलाओं को उन्हें केवल इस मकसद से पढ़ाया जाता है ताकि वे घर में रहकर पारंपरिक इस्लामिक ढ़ंग से अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभा सकें।
महिला शिक्षा की गुणवत्ता पुरुष शिक्षा के मुकाबले काफी गिरी हुई है। स्कूलों में लड़कों और लड़कियों के बिल्कुल अलग-अलग बैठने की व्यवस्था होती है ताकि वो एक दूसरे से किसी भी तरह का कोई सम्पर्क नहीं कर सके। इसके अलावा पुरुष शिक्षक लड़कियों के स्कूल में नहीं पढ़ा सकते और महिला शिक्षक लड़कों को नहीं पढ़ा सकतीं। गंभीर बीमारी की दशा में भी लड़कियाँ शिक्षण संस्थान के कैंपस को तब तक नहीं छोड़ सकतीं, जब तक कि उन्हें पुरुष अभिभावक की अनुमति न मिल
जाए।
नौकरी पर पाबंदी
हालांकि सऊदी अरब के विद्यालयों में ७०% लड़कियाँ पंजीकृत हैं जिनमें ज्यादातर की शादी तो पढ़ाई पूरी होने से पहले ही हो जाती है बाकी जो किसी तरह पढ़ाई पूरी कर पाती हैं उनमें से केवल ५% लड़कियाँ ही नौकरी करने का साहस जुटा पाती हैं, जो कि विश्व में सबसे कम है।
सऊदी अरब के कानून और संस्कृति में महिलाओं के रोजगार में इतने प्रतिबंध हैं कि तंग आकर उन्होंने घर को ही अपना अन्तिम स्थान मान लिया है-
(१.) वे पुरुष अभिभावक की अनुमति के बगैर नौकरी नहीं कर सकतीं। जो कि रूढ़िवादी समाज में मिलना असम्भव सा हो जाता है।
(२.) नौकरी के लिए वे किसी परपुरुष के सामने इंटरव्यू नहीं दे सकतीं।
(३.) कार्यस्थल पर उनका परपुरुषों के साथ किसी भी प्रकार का संपर्क स्वीकार्य नहीं है।
(४.) वे पुरुष अभिभावक के बिना यात्रा नहीं कर सकतीं और खुद मोटर नहीं चला सकतीं।
जज और अन्य ऊँचे सामाजिक ओहदों पर स्त्रियों का बैठना सऊदी अरब में कल्पना से भी परे है।
२००५ में वहाँ के श्रम मंत्रालय ने अंत:वस्त्र (लिंगरी), महिला वस्त्र, परफ्यूम के स्टोरों पर पुरुषों या गैर-सऊदी महिलाओं की नियुक्ति पर कड़ी रोक लगा दी है।
कार चलाने पर पाबंदी
सऊदी अरब में कार चलाने के लिए सरकार द्वारा ड्राइविंग लाइसेंस महिलाओं को जारी ही नहीं किया जाता। इस प्रकार दुनिया में सऊदी अरब एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ महिलाओं द्वारा ड्राइविंग कानूनन जुर्म है और ऐसा करने पर उन्हें कोड़े मारने और जेल में कैद करने की सजा दी जाती है। दिलचस्प बात यह है कि सऊदी महिलाएँ गाड़ी खरीद तो सकती हैं, लेकिन
चला नहीं सकतीं।
अधिकतर सऊदी विद्वानों और धार्मिक संस्थाओं ने
महिला ड्राइविंग को ‘हराम’ माना है, क्योंकि-
१. कार चलाते समय महिलाओं का चेहरा बेनकाब हो जाता है।
२. कार चलाने की अनुमति देने से महिलाएँ प्रायः ज्यादा समय घर से बाहर रहेंगीं।
३. कार चलाने वाली महिलाएँ गैर-महरम पुरुषों के संपर्क में आएंगीं।
४. महिलाओं द्वारा कार चलाना पारंपरिक इस्लामी मूल्यों के क्षरण की दिशा में पहला कदम साबित होगा।
६ नवंबर १९९० को थोड़ी पढ़ी-लिखी २० सऊदी महिलाओं ने तंग आकर कानून के खिलाफ रियाद की सड़कों पर गाड़ियाँ चलाईं तो उन्हें सरेआम कोड़ों से बेरहमी से पीटा गया और जेल में डाल दिया गया और सऊदी समाज को बर्बाद करने वाली वेश्याएँ कहकर बदनाम किया गया।
सितंबर २००७ में सऊदी अरब में महिला ड्राइविंग अधिकार के लिए नारीवादी लेखिका वाजेहा अल-हुवैदर और फाजिया अल-उय्योनी ने एक बड़ा अभियान चलाकर पूरे देश से लगभग ११०० (जरा संख्या पर गौर कीजिए) हस्ताक्षर जुटाकर किंग अब्दुल्ला से महिला ड्राइविंग पर प्रतिबंध हटाने की माँग की, लेकिन किंग अब्दुल्ला ने इसे तुरन्त नकार दिया।
२०१० में जारी एक फतवे में महिलाओं से कहा गया कि वे ‘रादा’ (Rada) प्रथा का पालन करते हुए पहले गैर-महरम ड्राइवरों को अपना दूध पिलाकर उन्हें अपना महरम (पुरुष अभिभावक) बनाएँ और इसके बाद ही उनके साथ गाड़ी में सफर करें।
एक ३२ वर्षीय आईटी सलाहकार और नारीवादी कार्यकर्ता मनाल अल शरीफ ने मई २०११ में खोबर की सड़कों पर कार ड्राइव किया। मनाल को पुलिस ने हिरासत में ले लिया और ४० कोड़े मारकर इस शर्त पर छोड़ा कि वह आइंदा जीवन में कभी कार ड्राइव नहीं करेगी और मीडिया से बिलकुल भी बात नहीं करेगी।
जुलाई २०११ में कार चलाकर अस्पताल जा रही ३५ वर्षीय शाइमा जस्तीना को पुलिस ने जेद्दा शहर में गिरफ्तार कर लिया।
शाइमा को खुद गाड़ी इसलिए चलानी पड़ी क्योंकि उसके शरीर से निरंतर खून बह रहा था और उसे उस समय न तो कोई ड्राइवर मिला और न कोई टैक्सी। लेकिन पुलिस के लिए गृहमंत्री का आदेश एक महिला की जिंदगी से कहीं ज्यादा जरूरी था, इसलिए शाइमा को अस्पताल पहुँचाने की बजाय थाने ले जाया गया और कानून के अनुसार उसे उसी हालत में ४० कोड़े मारने की सजा दी गयी।
१९ दिसंबर २०११ को मौलवी कमाल सुबही द्वारा किंग
अब्दुल्ला को यह राय दी गई कि यदि लड़कियों को गाड़ी चलाने की अनुमति दे दी गई तो वे आजादी से घूमने लगेंगीं और शादी से पहले ही परपुरुषों से संबंध बना लेंगीं, जिसके कारण सऊदी नौजवान शुद्ध दुल्हनों से महरूम हो जाएंगे और इससे समाज में बुराइयाँ पनपने लगेंगीं।
सऊदी महिलाएँ बसों और ट्रेनों का बहुत सीमित उपयोग कर पाती हैं । वाहनों में उनके लिए अलग प्रवेश द्वार और अलग सीटें होती हैं।
रियाद और जेद्दा की बस कंपनियाँ तो बसों में महिलाओं को प्रवेश करने की अनुमति ही नहीं देतीं।
खेलों और जिम पर पाबंदी
सऊदी लड़कियों को खेल खेलने और जिम जाने की अनुमति नहीं है।
देश में महिला खिलाड़ी किसी भी स्पोर्ट्स क्लब में पंजीकरण नहीं करा सकती। ‘नेशनल ट्रायल’ में उनके लिए प्रतिबंध है।
ओलंपिक २००८ में बिना महिला खिलाड़ी दल वाले मुस्लिम देशों में सऊदी अरब भी एक था।
अंतर्राष्ट्रीय ओलिंपिक समिति के दबाव में सऊदी सरकार
को लंदन ओलंपिक २०१२ में दो महिला एथलीटों साराह अत्तार और वोजदान शहरकरनी को भेजना पड़ा, लेकिन अनेक हिदायतों और फरमानों के साथ, जैसे उन्हें सिर पर काली पट्टी बांधनी पड़ी। उनका प्रसारण सऊदी सरकार ने टीवी पर नहीं होने दिया तथा एथलीटों के ग्रुप फोटो में लड़की होने के कारण उन्हें स्थान नहीं मिला।
२०१३ में पहली बार सऊदी महिलाओं को साईकिल चलाने की अनुमति दी गई, लेकिन इन शर्तों के साथ-
(१.) वे साईकिल केवल महिला पार्कों और घरों के आसपास चला सकती हैं।
(२.) साईकिल चलाते समय उनका पूरा बदन ढ़का हुआ
होना चाहिए।
(३.) साईकिल चलाते समय एक महरम हमेशा उनके साथ रहना चाहिए।
काफी जद्दोजहद के बाद मई २०१३ में सऊदी सरकार ने पहली बार लड़कियों को प्राइवेट गर्ल्स स्कूलों में खेल खेलने की अनुमति प्रदान की, लेकिन शरिया कानून और ड्रेसकोड के साथ।
पर्दा प्रथा
सार्वजनिक स्थलों पर जाते समय सऊदी महिलाओं
को अबाया पहनने और अपने बाल छिपाकर रखने के नियम का पालन करना होता है, अन्यथा धार्मिक पुलिस उन्हें अत्यंत सख्त सजा दे सकती है।
वर्ष २००२ में मक्का के एक स्कूल में आग लग गई, लेकिन धार्मिक पुलिस ने रक्षा की गुहार लगातीं जलती छात्राओं को स्कूल की इमारत से सिर्फ इसलिए बाहर नहीं निकलने दिया क्योंकि उन्होंने पारंपरिक काला स्कार्फ नहीं पहना हुआ था।
इस वजह से चीख-पुकार लगातीं उन १५ छात्राओं ने इमारत के अंदर ही आग में झुलसकर तड़प-तड़पकर दम तोड़ दिया।
गैर-महरम पुरुषों के बीच महिलाओं को अपने बदन के सारे अंगों को अबाया के अंदर ढ़ककर रखने की हिदायत थी, लेकिन उन्हें अपनी आँखों और हाथों को खुला रखने पर कोई पाबंदी नहीं थी। किंतु नवंबर २०११ में लागू एक नए कानून के अनुसार सऊदी अरब की महिलाओं को अब सार्वजनिक स्थानों पर अपनी आँखों को भी ढ़ककर चलना पड़ेगा, क्योंकि उनकी खूबसूरत आँखें पुरुषों को कभी भी अपनी ओर आकर्षित कर सकती हैं। इस कानून का पालन न करने पर उन्हें जेल में कड़ी सजा दिए जाने का प्रावधान किया गया है। यहाँ तक की दो साल पहले एक डेनिश युवक को केवल इसलिए सउदी अरब छोड़ने का आदेश दिया गया था कि वो बहुत स्मार्ट दिख रहा था और महिलाएँ उसकी तरफ आकर्षित हो सकती थी।
घरेलू हिंसा
सऊदी अरब के न्याय मंत्रालय की २००७ की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक़ सऊदी अरब में प्रतिदिन लगभग ३५७ निकाह होते हैं, जिनमें प्रतिदिन ७८ तलाक भी हो जाता है और इसके पीछे वजह है महिलाओं पर बढ़ती घरेलू हिंसा की घटनाएँ।
महरम (पुरुष अभिभावक) की लगभग हर काम में अनिवार्य उपस्थिति की प्रथा के चलते महिलाओं को हेय दृष्टि से देखा जाता है और उनके संग पशुवत व्यवहार किया जाता है।
१८ जून २०१० की एक रिपोर्ट के अनुसार पतियों की हिंसा से तंग आकर कुछ सऊदी महिलाएँ हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बेरोज़गार लड़कों को एक समझौते के तहत तनख्वाह देकर अपना शौहर बनाने लगी हैं। शादी के इस सौदे से उनकी जलील जिन्दगी में थोड़ा सुकून आ जाता है।
तलाक की बढ़ती घटनाओं की दूसरी वजह है- सऊदी अरब में शरीयत कानून के अनुसार प्रचलित बहुविवाह प्रथा, जिसके अनुसार पुरुषों को चार विवाह करने की आजादी है ताकि एक पत्नी के गर्भवती होने पर वे दूसरी के साथ आनंद ले सकें।
अल हुर्रा टीवी नेटवर्क की पत्रकार नादीन अल-बेदैर का बहुविवाह प्रथा को चुनौती देता एक लेख ‘मैं और मेरे चार शौहर’ मिस्र के दैनिक ‘अल मसरी अल यूम’ के ११ दिसंबर २०१० के अंक में प्रकाशित हुआ, जिसके लिए उन पर इस्लाम विरोधी और वेश्या होने तक का आरोप लगा।
फोन पर पाबंदी
सऊदी अरब में लड़कियों के स्कूल में मोबाइल रखने पर
कड़ा प्रतिबंध है और इसका उल्लंघन करने पर उन्हें चोर-
लुटेरों को दी जाने वाली सजा से भी कड़ी सजा दी जाती है।
वर्ष २०१० में सऊदी अरब में एक १३ वर्षीया किशोरी को स्कूल में मोबाइल फोन ले जाने के लिए बेरहमी से ९० कोड़े लगाये गये और २ महीने की कैद की सजा दी गई। उसे कोड़े उसकी सहपाठियों के सामने मारे गए, ताकि कोई अन्य स्कूली लड़की आइंदा इस तरह की जुर्रत न कर सके।
इसके विपरीत अरब में फोन का प्रयोग पुरुषों द्वारा महिलाओं पर अपना दबदबा कायम रखने के लिए किया जाता है।
वर्ष २००३ में सऊदी अरब में मोबाइल फोन से एसएमएस द्वारा तीन तलाक देने को शरीयत कानून के मुताबिक स्वीकार कर लिया गया।
वर्ष २००४ में प्रसिद्ध टीवी एंकर रानिया अल-बज को अपने पति से बगैर पूछे रिंग हो रहे उसके फोन उठाने का खामियाजा बुरी तरह मार खाकर घायल होकर भुगतना पड़ा।
२५ नवंबर २०१२ की रिपोर्ट के अनुसार सऊदी अरब में पुरुषों द्वारा अपने परिवार की महिलाओं की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए जासूसी सेवाएँ लेने की बाढ़ सी आ गयी हैं ताकि वो किसी भी तरह घर के बाहर के लोगों से कोई बात न कर सके। और ऐसा करने पर तीन तलाक बोलकर उसे दुत्कार कर घर से भगा सके और कानूनी तौर पर उन्हें सजा दिलवा सके।
आज के इस वैज्ञानिक युग में जहाँ इंसान चाँद और मंगल पर एक नई दुनिया बसाने के स्वप्न देख रहा है, वहीं सुन्नी बहुल इस्लामी देश सऊदी अरब की महिलाओं के लिए यह धरती जहन्नुम से अधिक और कुछ नहीं। शरीयत के सख्त कानूनों की बेड़ियों में जकड़ी ये सऊदी महिलाएँ आज भी गुलामों की तरह घुट-घुटकर अपना जीवन बिताने को मजबूर हैं।
‘द वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम’ द्वारा २०१२ में जारी ‘ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट’ के अनुसार लैंगिक भेदभाव के संबंध में सऊदी अरब १३५ देशों में से १३१वें स्थान पर है।
सऊदी अरब मध्यपूर्व के बिल्कुल बीचों-बीच स्थित है और उसके पास तेल भंडार की अकूत संपदा है, जिसके कारण पश्चिमी देश विशेषकर अमेरिका भी सऊदी महिलाओं पर हो रहे जुल्मों के खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाता। उनका ध्यान तो केवल इस बात पर है
कि सऊदी अरब में तानाशाहों की सत्ता मौजूद रहे
ताकि उनकी सहमति से उनके तेल भंडार का अपने अनुकूल इस्तेमाल होता रहे।
कहा जा सकता है कि महिलाओं के लिए यदि इस धरती पर नरक या दोखज कोई जगह है तो वो सऊदी अरब है। कई मुस्लिम देश जहाँ पूरी तरह शरिया कानून लागू नहीं है वहाँ लड़ रहे आतंकवादियों और जेहादियों के मंसूबे यदि कामयाब हो गये तो दुनियाँ का एक बड़ा हिस्सा औरतों के लिए जहन्नुम बन जाएगा।

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Peace if possible, truth at all costs.

  1. इस्लाम नहीं वरन सऊदी अरब का क़ानून कहिए। और सऊदी हुकूमत ब्रिटिश की देन है।

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  2. Beta Islam ko padh lo pehle !!!! Pata hai jab Islam Nahi tha to log beti paida hone par usko zinda darn karde te the ye Islam hi hai jis na beti ko wo martaba dya ke Maa Ka kadmo me swarg jannat Dal Di... or agar tum chahte ho ke tmhari sister ko sab log tade or gandi nazar dale to bilkul unko waisi hi bhejo, but Islam Nahi Chahta Kisi beti pe Kisi ki buri nazar pade..... Tum Nahi smjh sakte.....

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    1. 1 -मुहम्मद का औरतों से नफ़रत का कारण .
      सब जानते हैं कि मुहम्मद को अरतों का बहुत शौक था .वह दुनिया की सारी औरतों को अपनी सम्पत्ती मनाता था.और चाहता था कि अरबी ,यहूदी ,रोमन ,इरानी सभी तरह की औरतें उसके पास हों .लेकिन उसके भाग्य में जादातर विधवा औरतें ही आयी थीं ..इतिहासकारों के अनुसार मुहम्मद कुरूप ,मोटा ,स्थूल और भद्दा था ,देखिये -सुंनं अबू दाऊद-किताब 40 हदीस 4731
      .फिर लड़ाई में मुहम्मद के आगे के दांत टूट जाने से वह और बदशक्ल हो गया था .मुहम्मद के दुष्ट स्वभाव और भयानक सूरत के कारण औरतें उस से दूर रहती थीं .इसीलिए मुहम्मद बलात्कार करता था .और मुहमद ने औरतों को भोग्या और दुनिया का सबसे निकृष्ट जीव बता कर औरतोंको जहन्नम के योग्य बताकर अपनी खीज निकाली है ,जो दी गयी हदीसों से प्रकट होती हैं .देखिये -

      2 -औरतें निकृष्ट जीव है .
      "इब्ने उम्र ने कहा कि रसूल ने कहा कि औरतें दुनिया की सबसे घटिया मखलूक हैं .और्हर तरह से जहन्नम में जाने के योग्य हैं "

      बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 31
      बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 6

      3 -औरतें जहन्नम के योग्य है .

      सईदुल खुदरी ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि सारी औरतें एक बार नहीं तीन तीन बार जहन्नम में भेजने के योग्य हैं ."
      सही मुस्लिम -किताब 3 हदीस 826 .और सुंनं मसाई -जिल्द 2 हदीस 1578 पेज 342

      4 -औरतें जहन्नम का ईंधन हैं .

      "इब्ने अब्बास ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि औरतें तो जहन्नम का ईंधन हैं ,जिन से जहन्नम की आग को तेज किया जाएगा ."
      बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 124 और मुस्लिम -किताब 36 हदीस 6596

      5 -99 प्रतिशत औरतें जहन्नम जायेंगी
      "इमरान बिन हुसैन ने कहाकि रसूल ने कहा कि ,जहन्नम को औरतों से भर दिया जाएगा .यहांतक कि दूसरों के लिए कोई जगह नहीं रहेगी "
      बुखारी -जिल्द 4 किताब 54 हदीस 464
      "अब्दुला इब्ने अब्बास ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,अल्लाह बिना किसी भेदभाव के सारी औरतों को जहन्नम में दाखिल कर देगा .जाहे वे कितनी ही नमाजी और परहेजदार क्यों न हों "
      बुखारी -जिल्द 1 किताब 2 हदीस 28 और बुखारी -जिल्द 2 किताब 2 हदीस 161

      6 -जहन्नम औरतों से ठसाठस भर जायेगी .

      "इब्ने अब्बास ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि मैं जहन्नम को औरतों से ठसाठस भरवा दूंगा .और देखूंगा कि कोई खाली जगह न रहे "

      बुखारी -जिल्द 7 किताब 62 हदीस 125 और बुखारी -जिल्द 6 किताब 1 हदीस 301 और मिश्कात -जिल्द 4 किताब 42 हदीस 24

      7 -अल्लाह ने यह तय कर लिया है
      "सईदुल खुदरी ने कहा कि ,रसूल ने कहा कि ,अल्लाह ने यह पाहिले से ही तय कर लिया है कि ,वह जितनी भी औरतें है उन सबको जहन्नम की आग में झोंक देगा .ओर इस में किसी भी तरह कि शंका नहीं है ."
      बुखारी - जिल्द 7 किताब 62 हदीस 124 .
      तिरमिजी -हदीस 5681 और मिश्कात -जिल्द 4 किताब 42 हदीस 24

      8 -औरतों को यह सजाये मिलेंगी
      "सैदुल्खुदारी ने कहाकि ,रसूल ने कहा कि ,जहन्नम में अधिकाँश औरतें ही होंगी .और उनको दर्दनाक सजाएं दी जायेंगी .सबसे पाहिले छोटे छोटे पत्थरों को गर्म किया जाएगा .फिर उन पत्थरों को औरतों की छातियों पर रख दिया जाएगा .जिस से उनकी छातियाँ जल जायेगी .फिर उन गर्म पत्थरों को औरतों के आगे और पीछे के छेदों (vagina और anus )में घुसा दिया जाएगा ,जिस से उनको दर्द होगा ,और यह सब मेरे सामने होगा
      बुखारी -जिल्द 1 किताब 22 हदीस 28
      9 -जहन्नम के चौकीदार भी

      "रसूल ने कहा कि जहन्नम के चौकीदार होंगे ,और अगर कोई और बाहर निकलनेकी कोशिश करेगी तो उसे वापिस जहन्नम में डाल दिया जाएगा "इब्ने माजा -किताब१हदीस 113 पेज 96

      10 -जहन्नम कैसी है

      जहन्नम में खून का पानी (मवाद )पिलाया जाएगा .सूरा इब्राहीम -14 :15 -17
      लोहे की बेड़िया होंगी ,और खाने को कांटे होंगे .सूरा मुज्जम्मिल -73 :12
      आग से बने हुए कपडे होंगे ,सर पर गर्म पानी डाला जाएगा ,लोहे कि गुर्ज (hooked rods )से धुनाई होगी .
      सूरा हज्ज -22 :19 -21
      जहन्नम में सदा के लिए रहना होगा ".सूरा अत तौबा -9 :63

      इन सभी विवरणों से साबित होता है कि ,इस्लाम में औरतों के लिए कोई जगह नहीं है .और अल्लाह के साथ रसूल भी औरतों का शत्रु है .जब अलाह ने अभी से यही तय कर लिया है कि वह हरेक औरत को जहन्नम में भेज देगा तो .मुस्लिम औरतें भी जहन्नम में जायेंगी उनका अल्लाह कि इबादत करना बेकार जाएगा .जीवित रहते तो मुस्लिम औरते अलाह के जंगली कानून शरियत के कारण जहन्नम भोग रही हैं ,और मरने पर भी उनको जहन्नम ही मिलेगी ..
      इस से बचने का एक ही रास्ता है कि,कुंवारी मुस्लिम लड़कियां फ़ौरन किसी हिन्दू या गैर मुस्लिम लडके से शादी कर लें .ताकी उनकी जन्नत या स्वर्ग में जाकर आराम से रह सकें और इस जीवन में भी अल्लाह के अत्याचारों से बच सकें .

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