तीन प्रकार के हिंदू...

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पहला प्रकार - पारंपरिक हिंदू जो यह मानता है कि उनका धर्म सत्य सनातन वैदिक धर्म है, जो ईश्वर पर और कर्मफल सिद्धांत में विश्वास रखता है, जो यह नहीं मानता कि आत्मा सिर्फ एक केमिकल रिएक्शन है जो किसी बिग बैंग से उत्पन्न हुआ। यह ऐसे लोग हैं जो धर्म की रक्षा के लिए बड़ी कुर्बानियां देते हैं। ऐसे कई पंथ है जो अपने विचारधाराओं और प्राथमिकताओं में भिन्न है, पर वह सब यह मानते हैं कि वे सनातन धर्म का हिस्सा है। आर्य समाजी, मंदिर जाने वाले हिंदू, सब इसी श्रेणी में आते हैं। सिख, जैन, एवं पारंपरिक बुद्ध धर्म मानने वाले भी इसी श्रेणी में आते हैं। ईश्वर और आत्मा को लेकर इनके अपने-अपने सिद्धांत हैं। ऊपरी तौर पर यह लग सकता है कि वे नास्तिक है, परंतु वे सब कर्मफल सिद्धांत में और गोरक्षा में विश्वास रखते हैं। ऐसे पहले प्रकार के लोगों में मानवीय कमजोरियां हो सकती हैं, परंतु वे मानते हैं कि ये पाप है, और उन्हें "मानवीय" बताकर सही ठहराने का प्रयत्न नहीं करते। दिल में जितना शुद्ध हो सके उतना होना, यही उनका लक्ष्य रहता है। जितनी उनकी उम्र बढ़ती है उतने ही वे सात्विक होते जाते हैं।

दूसरा प्रकार - इतिहास ने जो पढ़ाया, कम्युनिस्टों ने जो लिखा, और सावरकर एवं अन्य बुद्धिजीवियों ने उनके विरोध में जो लिखा, इन सब का मिश्रण पढ़ने वाला आधुनिक हिंदू। ऐसे लोग निश्चित ही नास्तिक होते हैं। यह हिंदुत्व को इसलिए सपोर्ट करते हैं क्योंकि हिंदुत्व इस्लामवादियों एवं क्रिश्चन लोगों के द्वारा पीटा जा रहा है। इनके लिए हिंदुत्व में कुछ भी पवित्र नहीं है और अगर इस पिटाई का स्रोत हटा दिया जाए, तो इन्हें आप एक साधारण लिबरल से भिन्न नहीं पहचान सकेंगे। असल में ऐसे लोग उदारवादी और कम्युनिस्ट होते हैं जिन्हें जिहादियों एवं इवैंजलिस्ट लोगों से एलर्जी है। हिंदुत्व के बारे में वह पश्चिमी दार्शनिकों को पढ़ते हैं, राजनीतिक एनालिसिस एवं मानव अधिकारों के क्षेत्र में वह अधिक समय बिताते हैं, ना की अध्यात्मिकता, संयम, एवं पवित्रता में।

तीसरा प्रकार - मिश्रण। अधिकतर दक्षिणपंथी इसी श्रेणी में आते हैं। वे पहले प्रकार और दूसरे प्रकार के हिंदू में बदलते रहते हैं। वे मंदिर जाते हैं, पूजा करते हैं एवं भगवान से डरते हैं। पर अपने हिंदुत्व को वह दूसरे प्रकार का भी बताते हैं। उनका जीवन विरोधाभासों से भरा रहता है। दबाव में वह झुक जाते हैं। अपने विरोधाभासों को सुलझा नहीं सकने के कारण कई तो किसी व्यक्ति या संस्था के अंधभक्त बन जाते हैं।

ऐतिहासिक दृष्टि में अधर्म के खिलाफ युद्ध एवं धर्म की रक्षा पहले प्रकार के लोगों के द्वारा की गई है। अति दबाव की स्थिति में आप पहले प्रकार के लोगों को अपनी जान की कुर्बानी खुशी खुशी देते हुए भी देख सकते हैं। दूसरे प्रकार के लोग कभी कभी अपनी बहादुरी दिखा देते हैं। तीसरे प्रकार के लोगों के बारे में आप कभी कुछ नहीं कह सकते। उनका हिंदुत्व स्थिति एवं दबाव के अनुसार बदलता रहता है।

चौथे प्रकार के वे पिगरल हिंदू होते हैं, जो खाने, पिने, सोने, और मज़े करने में व्यस्त रहते हैं। शास्त्र कहते हैं कि ऐसे लोग इंसान के शरीर में जानवर होते है। ऐसे लोगों को इस पोस्ट में इग्नोर किया गया है।

अगर हिंदुत्व को विजयी होना है एवं जिहाद जैसे खतरनाक असुर से लड़ना है तो हमें पहले प्रकार के लोगों की जरूरत है। दूसरे एवं तीसरे प्रकार के लोगों में विरोधाभास है, उनकी विश्वसनीयता कम है एवं वे हर जगह उपयुक्त नहीं है। हमें एक मजबूत आधार की आवश्यकता है।

अग्निवीर तीनों प्रकार के लोगों को साथ में लेकर चलेगा क्योंकि लक्ष्य है सामने खड़े मुसीबत को सुलझाना। परंतु पहले प्रकार के लोगों को मजबूत बनाना मेरा निजी ध्येय है।

- बाबूसिंह(खण्ड-मंत्री)देवनगर
विश्व हिन्दू परिषद ब्यावर राजस्थान हिन्दुस्तान
जय श्री राम


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