वेद को जानिये।।

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      *वेद को जानिये*     
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➡ *विश्व के पुस्तकालयों में सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद है।*

वैदिक परम्परा के अनुसार आज से लगभग १ अरब , ९६  करोड़ , ८  लाख, ५३ हज़ार पूर्व जब इस पृथ्वी पर मनुष्य की सर्वप्रथम उत्पत्ति हुई तब ईश्वर ने चार ऋषियों अग्नि ,वायु , आदित्य और अंगिरा को क्रमशः ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद तथा अथर्ववेद का ज्ञान प्रदान किया। इनहि ऋषियों ने अन्य मनुष्यों को इन वेदों का ज्ञान दिया और तब से आज तक गुरु परम्परा से इन वेदों का आदान-प्रदान चलता चला आ रहा है। बहुत  लम्बे काल तब वेद श्रवण द्वारा ही ग्रहण किए जाते रहे इस कारण इनका  एक नाम श्रुति भी है ;  बाद में इन्हें पुस्तक रूप में भी लिख लिया गया।

*ऋग्वेद का मुख्य विषय पदार्थ ज्ञान है।* अर्थात  इसमें मुख्य रूप से संसार में  विद्यमान पदार्थो का स्वरूप बताया गया है।

यजुर्वेद में कर्मों के अनुष्ठान को,
सामवेद में ईश्वर की ’भक्ति उपासना’ के स्वरूप को तथा अथर्ववेद में विभिन्न प्रकार के  ‘विज्ञान’ को मुख्य रूप से बताया गया है।

ऋग्वेद के मंत्रो की संख्या १०५५२ , यजुर्वेद की १९७५ , सामवेद की १८७५ तथा अथर्ववेद की ५९७७ है , चारों वेदों में कुल २०३७९ मंत्र है ।

*इन वेदों का एक-एक उपवेद भी है।*

ऋग्वेद के उपवेद का नाम *‘आयुर्वेद’* है, जिसमें स्वास्थ्य, स्वस्थ रहने के उपाय, रोग, रोगों के कारण, औषधियों तथा चिकित्सा का मुख्य रूप से वर्णन किया गया है। सर्प्रथम चिकित्सा का ज्ञान वेदों से ही मनुष्यो को प्राप्त हुआ है।

यजुर्वेद के उपवेद का नाम *‘धनुर्वेद‘* है, जिसमे सेना, हथियार, युद्ध काल के विषय का वर्णन है। संघर्ष व युद्ध काल मे शस्त्र, युद्ध कला ज्ञान भी वेदों से जन्मा है।

सामवेद के उपवेद का नाम *‘गन्धर्ववेद‘* है, जिसमें गायन,वादन, नर्तन आदि विषयों का वर्णन किया गया है। संगीत भी वेदों से जन्मा है।

अथर्ववेद के उपवेद का नाम *‘अर्थवेद‘* है जिसमे व्यापार, अर्थव्यवस्था आदि विषयों का वर्णन है। मनुष्यों को उद्योग की जानकारी भी वेदों से सर्वप्रथम प्राप्त हुई।

ऋषियों ने वेदों के भाष्य व्याख्या रूप में सर्वप्रथम जिन ग्रन्थों की रचना की उन ग्रंथो को *‘ब्राह्मण ग्रंथ‘* कहते है, जो ऋग्वेद का  "ऐतरेय," यजुर्वेद का "शतपथ," सामवेद का "ताण्ड्य" तथा अथर्ववेद का "गोपथ" नाम से प्रसिद्ध है।

जिन ग्रंथो में ऋषियों ने वेदों में वर्णित ब्रह्म विद्या से संबंधित आध्यात्मिक तत्वों यथा ब्रह्म , जीव, मन, संस्कार, जप, स्वाध्याय, तपस्या, ध्यान, समाधि आदि विषयों का आलंकारिक कथाओं के साथ सरल रूप से  वर्णन किया है। उनका नाम *‘उपनिषद‘* है। इन उपनिषदों में ईशोपनिषद् आदि १० उपनिषदें प्रमुख है।

ऋषियों ने जिन ग्रंथो में वेदों के दार्शनिक तत्वों की विस्तार से एवं शंका समाधानपूर्वक विवेचना की है, उनका नाम ‘उपांग’ या दर्शनशास्त्र है।

*ये संख्या में ६ है , जिनके नाम  मीमांसा,वेदान्त,न्याय, वैशेषिक, सांख्य और योग है।*

*जैमिनि ऋषिकृत मीमांसा-दर्शन में धर्म, कर्म यज्ञादि का वर्णन है।*

*व्यास ऋषिकृत वेदान्त-दर्शन में ब्रह्म (ईश्वर) का वर्णन है।*

*गौतम ऋषिकृत न्याय-दर्शन मे तर्क, प्रमाण, व्यवहार व मुक्ति का वर्णन है।*

*कणाद ऋषिकृत वैशेषिक-दर्शन मे ज्ञान-विज्ञान का वर्णन है।*

*कपिल ऋषिकृत सांख्य-दर्शन मे प्रकृति, पुरुष (=ईश्वर व जीव) का वर्णन है।*

*पतंजलि ऋषिकृत योग-दर्शन में योग-साधना, ध्यान, समाधि आदि का वर्णन है।*

वेद मंत्रो के गंभीर व सूक्ष्म अर्थो को स्पष्टता से समझने के लिए ऋषियों ने ६ अंगों की रचना की, जिन्हें  *‘वेदांग’* कहा जाता है।

ये हैं-- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त,छन्द तथा ज्योतिष।

शिक्षा ग्रंथ में संस्कृत भाषा के अक्षरों का वर्णन, उनकी संख्या, प्रकार, उच्चारण-स्थान –प्रयत्न आदि के उल्लेख सहित किया है ।

*कल्प ग्रंथ में व्यवहार, सुनीति,धर्माचार आदि बातों का वर्णन है।*

*व्याकरण ग्रंथ में शब्दों की रचना , धातु, प्रत्यय तथा कोन-सा –शब्द किन –किन अर्थों मे प्रयुक्त होता है, इन बातों का उल्लेख है।*

*"निरुक्त" ग्रंथ में वेद मंत्रो के शब्दों का अर्थ किस विधि से किया जाए, इन बातों का निर्देश किया गया है।*

*"छन्द" ग्रंथ में श्लोकों की रचना तथा गान कला का वर्णन किया है।*

*ज्योतिष ग्रंथ में गणित आदि  विद्याओं तथा भूगोल-खगोल की स्थिति-गति का वर्णन है।*

इनके अतिरिक्त वैदिक साहित्य के अंतर्गत ऋषियों ने *‘स्मृतिग्रंथ‘  ‘आरण्यक ग्रंथ’  ‘सूत्रग्रंथ’*  आदि भी बनाये थे। ऋषियों ने इन ग्रंथो की रचना मानव मात्र को कर्तव्य-अकर्तव्य का बोध कराने के लिए की थी। इनमें पारिवारिक, सामाजिक, धार्मिक तथा राजनैतिक नियमों का विधान है। समय-समय पर इनमें मिलावट होती रही है। वर्तमान में उपलब्ध  *‘मनुस्मृति’* में भी अनेक मिलावट है, जिसे वैदिक विद्वानों ने ढूँढकर पृथक भी किया है ।

वैदिक धर्म से संबंधित, आरण्यक, प्रातिशाख्य, सूत्र ग्रंथ, पुराण, महाभारत आदि अनेक ग्रंथ भी उपलब्ध हैं, किन्तु वे मिलावट आदि अनेक प्रकार के दोषों से युक्त होने के कारण पूर्व प्रामाणिक नहीं है।

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