मदन लाल ढींगरा जैसे शूरवीरों ने बलिदान दिया तो आज़ादी आयी, आप कहते हो "बिना खडग बिना ढाल...

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आज़ादी के ठेकेदारों से सवाल है मदनलाल ढींगरा का बलिदान और उन प्रश्न का उत्तर भी की तुमने आज़ादी के लिए क्या किया .. महान सावरकर का ये शिष्य वीरता , पौरुष और शौर्य की जो अमरगाथा लिख कर चला गया उसका अंश मांत्र भी कर पाने के लिए आज़ादी के उन सभी तथाकथित ठेकेदारों को कई जन्म लेने पड़ेगे जो एक झूठ को अपने हर प्रयास से सच साबित करने पर तुले हैं और वो झूठ है की मिली थी आज़ादी हमें बिना खड्ग बिना ढाल .

जब अंग्रेज भारत में कहर बरसा रहे थे तब उन्ही अंग्रेजों की ही धरती पर कोई उन्ही के घर में घुस कर उसी अंदाज़ में उत्तर दे , ये कल्पना से भी परे था जिसे साकार कर के दिखाया था अमर बलिदानी मदन लाल ढींगरा ने .. आज़ादी के ठेकेदारों से सवाल है की उन्होंने कितनी बार इस महावीर का नाम सार्वजनिक मंचो से श्रद्धा और सम्मान के साथ लिया ?

मदन लाल ढींगरा जन्म- 18 फ़रवरी, 1883; बलिदान - 17 अगस्त, 1909) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान् क्रान्तिकारी थे। स्वतंत्रत भारत के निर्माण के लिए भारत-माता के कितने शूरवीरों ने हंसते-हंसते अपने प्राणों का उत्सर्ग किया था, उन्हीं महान् शूरवीरों में 'अमर शहीद मदन लाल ढींगरा' का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने योग्य है। अमर शहीद मदन लाल ढींगरा महान् देशभक्त, धर्मनिष्ठ क्रांतिकारी थे। उन्होंने भारत माँ की आज़ादी के लिए जीवन-पर्यन्त अनेक प्रकार के कष्ट सहन किए, परन्तु अपने मार्ग से विचलित न हुए और स्वाधीनता प्राप्ति के लिए फांसी पर झूल गए।

आरंभिक जीवन
मदन लाल ढींगरा का जन्म सन् 1883 में पंजाब में एक संपन्न हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिता सिविल सर्जन थे और अंग्रेज़ी रंग में पूरे रंगे हुए थे; परंतु माताजी अत्यन्त धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण महिला थीं। उनका परिवार अंग्रेजों का विश्वासपात्र था। जब मदन लाल को भारतीय स्वतंत्रता सम्बन्धी क्रान्ति के आरोप में लाहौर के एक विद्यालय से निकाल दिया गया, तो परिवार ने मदन लाल से नाता तोड़ लिया। मदन लाल को एक लिपिक के रूप में, एक तांगा-चालक के रूप में और एक कारखाने में श्रमिक के रूप में काम करना पड़ा।

वहाँ उन्होंने एक यूनियन (संघ) बनाने का प्रयास किया; परंतु वहां से भी उन्हें निकाल दिया गया। कुछ दिन उन्होंने मुम्बई में भी काम किया। अपनी बड़े भाई से विचार विमर्श कर वे सन् 1906 में उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैड गये, जहां 'यूनिवर्सिटी कॉलेज' लंदन में यांत्रिक प्रौद्योगिकी में प्रवेश लिया। इसके लिए उन्हें उनके बड़े भाई एवं इंग्लैंड के कुछ राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं से आर्थिक सहायता मिली।

वीर सावरकर का सान्निध्य

लंदन में वह विनायक दामोदर सावरकर और श्याम जी कृष्ण वर्मा जैसे कट्टर देशभक्तों के संपर्क में आए। सावरकर ने उन्हें हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया। ढींगरा 'अभिनव भारत मंडल' के सदस्य होने के साथ ही 'इंडिया हाउस' नाम के संगठन से भी जुड़ गए जो भारतीय विद्यार्थियों के लिए राजनीतिक गतिविधियों का आधार था। इस दौरान सावरकर और ढींगरा के अतिरिक्त ब्रिटेन में पढ़ने वाले अन्य बहुत से भारतीय छात्र भारत में खुदीराम बोस, कनानी दत्त, सतिंदर पाल और कांशीराम जैसे देशभक्तों को फांसी दिए जाने की घटनाओं से तिलमिला उठे और उन्होंने बदला लेने की ठानी।

कर्ज़न वाइली वध

1 जुलाई 1909 को 'इंडियन नेशनल एसोसिएशन' के लंदन में आयोजित वार्षिक दिवस समारोह में बहुत से भारतीय और अंग्रेज़ शामिल हुए। ढींगरा इस समारोह में अंग्रेज़ों को सबक सिखाने के उद्देश्य से गए थे। अंग्रेज़ों के लिए भारतीयों से जासूसी कराने वाले ब्रिटिश अधिकारी कर्ज़न वाइली ने जैसे ही हाल में प्रवेश किया तो ढींगरा ने रिवाल्वर से उस पर चार गोलियां दाग़ दीं। कर्ज़न को बचाने की कोशिश करने वाला पारसी डॉक्टर कोवासी ललकाका भी ढींगरा की गोलियों से मारा गया।

बलिदान

कर्ज़न वाइली को गोली मारने के बाद मदन लाल ढींगरा ने अपने पिस्तौल से अपनी हत्या करनी चाही; परंतु उन्हें पकड लिया गया। 23 जुलाई को ढींगरा के प्रकरण की सुनवाई पुराने बेली कोर्ट, लंदन में हुई। उनको मृत्युदण्ड दिया गया और 17 अगस्त सन् 1909 को फांसी दे दी गयी। इस महान् क्रांतिकारी के रक्त से राष्ट्रभक्ति के जो बीज उत्पन्न हुए वह हमारे देश के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान है।

उस महावीर , परम बलिदानी , शौर्य पुंज म शक्ति स्वरूप आज़ादी के महायोद्धा को आज उनके बलिदान दिवस पर दैनिक भारत बारम्बार नमन , वंदन और अभिनन्दन करता है और ऐसे हर एक वीर की शौर्य गाथा को सामने ला कर दे दी हमें आज़ादी जैसे झूठ से पर्दा उठाने के लिए कृत संकल्पित भी होता है . महज 25 वर्ष की आयु में मां भारती की गोद में सदा के लिए अमर हो गए मदन लाल ढींगरा जी की जय हो ... यहाँ ध्यान रखने योग्य ये भी है की फांसी के समय इस वीर बलिदानी के हाथ में पावन ग्रंथ श्रीमद्भगवत गीता थी ...!!


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