पर्सेप्सन की लड़ाई

0


हिटलर के प्रोपोगेंडा मिनिस्टर जोसेफ गोयबल्स की ये फेमस लाइन तो सबने सुनी होगी
एक झूठ को बार बार बोलो , रोज बोलो हक़ से बोलो और धीरे धीरे लोग उसे सच मानने लगेंगे |
अस्सी के दसक के आखिरी तक टेलीविजन घर घर में पहुँचने लगा था उस समय अकबर खान का एक प्रसिद्ध धारावाहिक आया नाम था ' अकबर द ग्रेट ' , अकबर खान , संजय खान के भाई थे जिन्होंने 'स्वार्ड ऑफ़ टीपू सुलतान ' धारावाहिक बना कर टीपु को अंग्रेजों का दुश्मन और एक सेकुलर राजा के रूप में सफ़लता पूर्वक स्थापित करने का कारनामा किया था ।
इस बार बारी अकबर की थी ,
कॉफ़ी लोगों को दिल्ली का आख़िरी हिन्दू राजा कौन ये नही पता होगा ?
नही मोदी नही रे
पृथ्वीराज ? नही , वो था हेमू , राजा हेमचन्द्र विक्रमादित्य
हुमायूं की मौत  के बाद हेमू ने दिल्ली पर आक्रमण कर दिल्ली पर कब्जा कर दिया मुगलों की फ़ौज बिना लड़े ही भाग खड़ी हुई , अकबर के साथ पानीपत के मैदान हेमू की लड़ाई हुई और हमेसा की तरह हेमू अपनी सेना का नेतृत्व खुद कर रहा था अपने हाथी हवाई पर सवार होकर , और अकबर मैदान से दूरी पर था मुगल फ़ौज का नेतृत्व बैरम खां और अली कुली खान कर रहे थे , शुरूवाती घन्टो में हेमू की फ़ौज जीतती नज़र आरही थी की एक तीर हेमू की आँख में लगा , हेमू के गिरते ही फ़ौज तीतर बितर हो गयी , हेमू को बंदी बनाया गया और अकबर के सामने पेश किया गया और अकबर के हुक्म से उसी समय बैरम खान ने अपनी तलवार से हेमू की गर्दन उड़ा दी , और इस तरह  दिल्ली में साढ़े तीन सौ साल बाद हुए हिंदू राजा का अंत हुआ ,
रेवाड़ी के एक बेहद सादगी भरे परिवार से आने वाले हेमू ने अपनी काबलयित के दम पर दिल्ली के तख्त तक का सफ़र तय किया था , कुछ किस्मत कुछ होशियारी और  क्या पता मुगल सल्तनत होती न होती ।
खैर सत्तर के दसक तक तो स्कूली किताबो में पढ़ते ही आये थे अकबर महान था गंगा जमुनी तहजीब वाला था अस्सी के दशक में जब टेलिविजन आया तो अकबर , और हेमू को इस तरह दिखाया गया (चित्र में)
अब आप खूद सोचिये एक सात से बारह पन्द्रह साल के व्यक्ति पर इसे देखकर क्या प्रभाव पड़ेगा , हेमू के बारे में पहली सोंच क्या होगी , एक सकल से भयानक दिखने वाले क्रूर व्यक्ति की ...विलेन की
अकबर को देखिये सौम्य चेहरे वाला आकर्षक युवक , हीरो की तरह ,
इससे फायदा ये होता है कि जब हीरो विलेन को मार रहा हो तो आपको ख़ुशी हो , देखिये अकबर ने  पहले धोखे से हेमू को बंदी बनवाया और अपने सामने ही गर्दन कटवा दी और फिर भी लॉगो ने ताली बजायी ।
जो काम दिखने वाली छवि से पूरा नही होता उसको संवाद के द्वारा पूरा किया जाता है , इस सीरियल का वह दृश्य जब हेमू को अकबर के सामने पेश किया जाता है इस प्रकार है
अकबर ने रहमदिली दिखाते हुये हेमू से उसकि आखिरी ख्वाइस पूँछी , जिसपे हेमू ने जवाब दिया की तुम भारत के नही हो तुम देश की गद्दी पर बैठने के हक़दार नही हो ,
इसके जवाब में अकबर गुस्से में जवाब देता है अगर तुमने मेरी जान भी मांग ली होती तो हम दे देते मगर ये देश हम नही छोड़ सकते ,अपनी माँ की तरफ का हवाला देते हुये अकबर कहता है ये देश मेरा भी उतना है जितना तुम्हारा मैं भी इसी मिट्टी में पैदा हुआ ,और इसके बाद हेमू का सर कलम कर दिया जाता है ।
अकबर का जवाब असल में वो सेकुलर नैरेटिव है जो आप देश के हर लिबरल के मुंह से आज सुन सकते हैं , जैसे ये देश जितना हिंदुओ का है उतना ही मुश्लिमो का है , ये  नैरेटिव एक दिन में नही बनता , आजादी के बाद की स्कूली किताबो से लेकर अस्सी नब्बे के दसक में टिलिविजन के युग आने तक , हज़ारो क़त्ल करने वाले ,गाज़ी की उपाधि वाले ,जिसकी फ़ौज के वहसी पन के डर से हज़ारों महिलाओं ने जौहर किये हों , हेमू के पिता समेत कई साथियो के इस्लाम ना कबूलने के बाद हत्या करवाने वाला अकबर , दिवाली के दिन हज़ारो अयणग्यार मलयालियों की हत्या करने वाला टीपू एक सेकुलर गंगा जमुनी तहज़ीब के आइकॉन के रूप में स्थापित हो गया ।

home

Post a Comment

0Comments

Peace if possible, truth at all costs.

Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !