हाफ पैंट की कहानी...

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(RSS) के बारे में कौन नही जानता। लेकिन कभी इससे जुड़ने का मौका नही मिला। इसका मुख्य कारण  मेरे गाँव में इसकी किसी शाखा का न होना। जब शहर आया तो पढ़ाई-लिखाई की वजह से कभी इसमे interest लिया ही नही। इसका एक कारण इसके बारे में गलतफहमी भी थी और दूसरा गुजरात दंगा में इसकी संदिग्ध भूमिका को लेकर भी था जिससे इसके प्रति मन मे नफरत हो गई। लेकिन पूरी जानकारी न होने की वजह से कभी आलोचना भी नही की। एक बार राम मनोहर लोहिया जी से पूछा गया कि आप इतना RSS का विरोध करते हैं तो फिर शाखा में जाते ही क्यों हैं? उन्होंने कहा कि किसी चीज की आलोचना करने से पहले उसके गुण - दोष को जान लेना चाहिए। बिना जाने उसकी आलोचना नही करनी चाहिए। क्योकि प्रत्येक संगठन इंसानों से ही चलते हैं। ये बात मेरे जहन में थी।
2005 में Law School, BHU में एडमिशन लिया। भगवान दास हॉस्टल में राणा नवनीत जी के साथ रहने लगा।
उसी समय हॉस्टल में कुछ सीनियर भैया आये और RSS के बारे में समझाने लगे और वो 50 रुपये में हाफ पैंट भी दे रहे थे। पैंट खाकी colour का था और बहुत ही मजबूत एवम टिकाऊ था। पैंट के quality एवं सीनियर bhaiya की वजह से मैं भी उसको खरीद लिया।
अचानक एक दिन वो समय आया जब मैं इस खाकी हाफ पैंट को पहना। अब उस घटना के बारे में जानिए क्यों इसे पहनना पड़ा।

मार्च 7, 2006 ( बनारस सीरियल धमाके)
2004 में UPA-1 की सरकार बनी। माननीय मनमोहन सिंह जी गठबंधन के प्रधानमंत्री बने। आतंकवाद अपने चरम पर था। हर जगह डर एवं भय का माहौल था।  लगातार धमाके हो रहे थे। 2005-2006 आते -आते लोगों के दिल मे ये डर और बढ़ता चला गया। आतंकियों के नापाक हौसले और बुलन्द हो गए थे।
मार्च का महीना था।  सेमेस्टर परीक्षा की तैयारियां जोरों शोरों से चल रही थी। 7 मार्च को मंगलवार का शुभ दिन था। बनारस में सुबह मंदिरों में बजते घंटो  से शुरू होती है। पूरा वातावरण भक्तिमय होता है। हर गली में भगवान   शिव का आभास होता हैं। हो भी क्यों नही जो भगवान शिव का निवास स्थान भी माना जाता है। यह मोक्ष एवं ज्ञान की धरती भी है। इस धरती ने अनेकों  शूरमाओं को जन्म दिया है। प्रत्येक दिन की तरह उस दिन की भी शुरुवात होती है। लेकिन शाम होते- होते पूरा वातावरण करुण क्रंदन से भर उठा। दानवों ने तांडव नाच करना शुरू कर दिया।बनारस की नगरी खून से सन गयी। मानवता शर्मसार हो गयी।

शाम का समय था। हॉस्टल के बहुत सारे मित्र संकट मोचन एवं विश्वनाथ मंदिर  गए थे। मैं हॉस्टल में ही पढ़ रहा था। अचानक बहुत जोर से दिल दहला देने वाली धमाके की आवाज सुनाई दी।उस समय तो लगा कि पास में ही कुछ हुआ है।लेकिन बाद में सच्चाई मालूम चली। हॉस्टल में भी अफरा तफरी मच गई। अचानक  कुछ मित्रों ने बताया कि पूरे शहर में सीरियल ब्लास्ट हो रहे हैं। संकट मोचन में आरती के दौरान, कंटोनमेंट एरिया एवं शिवगंगा ट्रेन में ब्लास्ट हुए जिसमे कई लोग वीरगति को प्राप्त हुए।
टी वी पर देखा तो लाशों का ढेर दिखाई देने लगा। चारो तरफ अफरा तफरी का माहौल था। मीडिया दिखा रही थी कि तड़पते लोगों को उठाकर कोई हॉस्पिटल पहुचाने वाला नही है। दिल दहल उठा। संकट मोचन मेरे हॉस्टल से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर था। मैं वहाँ दौड़कर पहुचने का इरादा किया। समय हर कायर को शूरवीर बनने का एक मौका देता है।
मैं हॉस्टल से निकलकर दौड़ते हुए बिरला हॉस्टल ही पहुँचा की उधर से आते हुए मेरे एक सहपाठी ने घबड़ाये हुए पूछा " मुरारी कहाँ जा रहे हो"। मैंने कहा " मैं संकठ मोचन जा रहा हूँ। लोगों की मदद करने"। उसने बताया कि लोगों को वहाँ जाने से रोक दिया गया है। BHU हॉस्पिटल में भी ब्लास्ट होने की सम्भावना जताई जा रही है इसलिए वहां भी लोगों को जाने से रोक दिया गया है। लेकिन RSS के कार्यकर्ताओं को जाने दिया जा रहा है।  मैं पूछा मैं वहाँ कैसे जा पाऊँगा। उसने कहा कि  खाकी वाला हाफ पैंट पहन लो।
मैंने बिना समय गवाए दुबारा हॉस्टल दौड़ते हुये गया और अपनी खाकी वाली पैंट आलमारी से निकाला, पहना और पहुँच गया BHU।  उस दिन लगा कि वो केवल पैंट नही मेरी वर्दी है देशसेवा के लिए।वहाँ पर सिर्फ victims, security forces और RSS के कार्यकर्ता ही दिखाई दे रहे थे। RSS के कार्यकर्ता कदम से कदम मिलाकर सिक्योरिटी फोर्सेस एवं पीड़ितों की मदद कर रहे थे। मैं हाफ पैंट की वजह से हॉस्पिटल में घुस गया। रात होने एवं भारी मात्रा में पीड़ितों के होने की वजह से हॉस्पिटल में कर्मचारियों की भारी कमी हो गयी। मैं ICU में पहुँचकर डॉक्टरों के निर्देश पर काम करने लगा। जैसे फर्स को साफ करना क्योकि रक्त का बहाव बहुत ज्यादा था। तड़पते पीड़ितों  को दबाकर पकड़ना ताकि उनको दवा दी जा सके। कई ऐसे हनुमान भक्त थे जो जय हनुमान कहकर निर्भीक थे क्योंकि उनका कहना था कि बजरंगबली के पास जाने का मौका मिलेगा। मैं भी थोड़ा बहुत हनुमान चालीसा पढ़कर उनके मन को शांति देने का प्रयास कर रहा था। बनारीसी हर हर महादेव का नारा लगाकर मौत से भी टकरा जाते हैं लेकिन दानवों ने छुप कर वार किया था।कई पीड़ित देखते ही देखते मेरे आखों के सामने ही दम तोड़ दिए। मैं अंदर से टूटने लगा। पहली बार भक्त और भगवान के बीच रिस्ता देखने को मिला।  वो खौफनाक मंज़र आज भी दिल में सिहरन पैदा कर देती है।
कब रात के तीन बज गए ये पता ही नही चला। मैं बाहर निकला। प्रोक्टोरियल  बोर्ड वाले रास्ते में मिल गए। दूर से वो मुझे सन्दिग्ध समझ रहे थे। मैं उनको अपनी ओर आते हुए देख कर डर गया क्योकि मेरे पास कुछ भी नही था जिससे पता चलता कि मैं BHU का ही छात्र हूँ। लेकिन अचानक उनके पास  आते ही माहौल बदल गया। मेरे हाफ पैंट की वजह से बोले "क्या तुम हॉस्पिटल से आ रहे हो" । मैंने कहा, " जी सर"। उन्होंने पूछा, " कहाँ जाना हैं? ". मैंने बताया की मुझे भगवान दास हॉस्टल जाना है।   वे बड़े सम्मान की भावना से मुझे अपनी गाड़ी में बैठाकर हॉस्टल पहुचाया और कहा कि मानवता की सेवा इसी तरह करते रहना।
उस दिन मुझे उस हाफ पैंट की अहमियत पता चली। हाफ पैंट को ये क्रेडिट एक दिन में नही मिली। इसके लिए कई कार्यकर्ताओं ने अपनी जिंदगियाँ कुर्बान कर दी। कई सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनैतिक लड़ाइयाँ लड़नी पड़ी।सभी RSS कार्यकर्ताओं को दिल की गहराइयों से बहुत बहुत धन्यवाद।
Krishna Murari Yadav,
Faculty of Law,
University of Delhi, Delhi.
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