क्लास 5th मे पढ़ने वाली बच्ची ने आज पूंछा कि -"पापा Early Human Beings क्या खाते थे" ?

1
क्लास 5th मे पढ़ने वाली बच्ची ने आज पूंछा कि -"पापा Early Human Beings क्या खाते थे" ?
मेरी समझ मे नहीं आया कि क्या पूंछ रही है ये / मैंने पूंछा -"क्या मतलब" ?
उसने दो बार यही बात दोहराई / फिर मुझको बेवकूफ समझकर उसने बताया कि #आदिवासी को अङ्ग्रेज़ी मे Early Human Beings कहते हैं /
मैंने पूंछा कहाँ पढ़ा ? उसने बताया कि उसके क्लास 4 की पुस्तक मे था / मैंने कहा दिखाओ / उसने कहा अभी आप काम पर जाइए , शाम तक खोज कर दिखाऊँगी /
ये पढ़ाया जा रहा है कोमल मस्तिस्क के बच्चो को / बाद मे ये वामपंथ के शिकार बनकर class War और Caste War पढ़ेंगे /
दरअसल आदिवासी Aborigines का हिन्दी अनुवाद है , जिसका अनुवाद मिशनरियों ने किया था /
जब ये चंडूखाने की हवा मक्ष्मुल्लर ने उड़ाई कि आर्य बाहर से आए और Aborigines - द्रविड़ , शूद्र , अति शूद्र ( फुले महात्मा की खोज ) आदि को गुलाम बनाया / और एच एच रीसले ने 1901 मे जातियों की उत्पत्ति के रहस्य के खोज करते हुये ये बताया कि बाहर से आने वाले सुदृढ़ आर्य जब भारत आए तो Aborigines की स्त्रियॉं को Concubine ( इसका अर्थ रखैल होता है ?) बनाया / और उनसे जो बच्चे पैदा हुये उससे एक जाति बनी / इस तरह से उसने 2000 से ऊपर जातियों की खोज की /
अब अम्रीका और औस्ट्रालिया के Aborigines की तो हत्या कर दिया गोरे इसाइयों ने और उनकी सोने चांदी के खज़ानों पर कब्जा कर दिया / मात्र अमेरिका मे 1500- से 1800 के बीच 20 करोड़ Aborigines की हत्या इसलिए कर दिया क्योंकि वे अपनी जमीन से हटने को तैयार नहीं थे /
लेकिन भारत के Aborigines 64 कलाओं के ज्ञाता थे - जिनके बनाए हुये वस्त्रों को भारत पर कब्जा करने के पूर्व वे आयातित करते थे / इसके अलावा अन्य बहुत सी जीवन उपयोगी बहुमूल्य वस्तुवे , जिंका उत्पादन करना उन जंगलियों ने नहीं सीखा था, वो वस्तुएं भी वे भारत से आयात कर ले जाते थे / इसलिए इन बहूपयोगी Aborigines की हत्या नहीं किया बल्कि उनको बेघर बेरोजगार कर भूंख से मरने के लिए छोड़ दिया / 1850 से 1900 के बीच करीब 5 करोड़ Aborigines भूंख से तड़पकर मर गए /
1935 मे इन्हीं Aborigines को 429 जातियों की लिस्ट बनाकर एक सूची तैयार किया और उनको scheduled Caste घोसित किया / उनके प्रतिनिधियों को एकलव्य शंबूक और मनुस्मृतियों की लोरी सुनाकर बताया कि तुम्हारे दुर्दशा के असली कारण हम #गौरांग ईसाई नहीं , बल्कि ये सवर्ण है , जिनहोने तुमको बेरोजगार होने पर अपने खेतों मे काम करके पेट भरने का मौका दिया /
तो Aborigines को तो संविधान मे सुरक्शित कर दिया गया / Annihilation Of caste वाले बाबाजी ने जाति एक सामाजिक विधान था , उसको वैधानिक जामा पहना दिया / और उनके ठुल्लू अभी भी -- एकलव्य , शंबूक की लोरी बहज रहे हैं और मनुस्मृति जला रहे हैं /
अब ये नया वामपंथी खेल है -- Aborigines -- से आदिवासी (ईसाई खडयंत्र ) - और आदिवासी -- से Early Human Being ( वामपंथी - हरमीपन ) -- कोमल बच्चो के मन को विषाक्त करने की नीव डाल रहे है /
हरी ॐ
नोट - पोस्ट थोड़ा क्लिष्ट हो सकती है /
आप स्वयं अपने बच्चे को सही इतिहास और समाजशास्त्र  क्यों  नहीं पढ़ाते?
Naveen Jha जी ने आज मेरी उस पोस्ट पर कमेंट किया जिसमें मैने #मूलनिवासी #आदिवासी और Aborigine aur Aboriginals आदि का विश्लेषण किया है।
उन्होंने ने लिखा कि मैं अपनी 13 साल की बेटी से सोशल मीडिया से प्राप्त असली इतिहास् पर विमर्श करता हूँ, और अब वो इतिहास् के वामी षड्यंत्र को समझती है।
ये जितना विवेकवान और अनुपम कमेंट है उससे सुंदर ये इस  विचार का कार्यान्वन है ।
हम कब तक सरकारों का मुहँ जोहेंगे कि स्कूल में हमारे बच्चों को सही इतिहास् पढ़ाया जाएगा ?
ये तो सरकार के हांथ में है जिसकी उपलब्धि विकास और भारत के इनकम टैक्स चोर ही प्राथमिकता हैं। ( विदेशी कालाधन तीन साल से सांस भी नही ले रहा था, जो मात्र 3 साल पहले फुंफकार रहा था। )
तो हम क्यों नही सोशल मीडिया पे लोगों के कड़े मेहनत और रिसर्च से फ्री फण्ड में परोसे जा रहे इतिहास और समाजशास्त्र के ज्ञान को अपने परिवार और बच्चों से वार्तालापित हो सकते हैं ?
कम से कम जो हमारे बस में है , वो तो करना ही चाहिए।
नहीं ?
ब्रिटिश रणनीति और उसके  भारतीय अधिवक्ता भाग -4
ब्रिटिशर्स की योजना किसी समुदाय को परिभासित करने की एक खास ट्रिक थी जो एकदम साफ़ थी ।स्थापित मानको के विपरीत किसी समुदाय को परिभासित करते समय सारे तथ्यों को ख़ारिज करके अंग्रेज शासक उनके सहयोगी तथा ईसाई मिशनरियां जो रवैया वो अख्तियार करते थे वही उन्होंने अफीवासियों के लिए अपनाया।
वे "रिलिजन" को एक खास तरह स परिभासित करते थे , और फील्ड में कार्यरत अधिकारीयों के विरोध के बावजूद उन्होंने घोषणा की कि आदिवासी हिन्दू नहीं थे ; बल्कि वो जीववादी (Animist) थे , वस्तुतः वो हिन्दुइस्म को ही इसी द्रिस्टीकोण से देख रहे थे। उन्होंने जो लोग उनके धर्मपरिवतन के निशाने पर था उनको  बताया कि धर्म का अर्थ  होता है जिसमे एक भगवान हो . एक पैगम्बर हो ,एक पुस्तक और एक चर्च हो।तुम्हारे हिन्दुइस्म में इनमे से एक भी नही है इसलिए आओ हम तुम्हे एक प्रॉपर धर्म देंगे।
   डॉ आंबेडकर ने कहा कि हिंडुओ  और अछूतों में 'भागेदारी की तो कोई कॉमन  साइकिल ' नही  है ।हिंदुत्व का मूलमन्त्र ही अछूतों को बहिस्कार करना और दबाकर रखना है । हिन्दू अछूत का बहिस्कार अपनी आस्था के कारण करता है।वो उसको अपना दुश्मन समझता है ।और दोनों की ये दुश्मनी परमानेंट है।
BAWS vol xi pp. 184- 85.
क्यों कि दोनों अलग अलग रहते है इसलिए दोनों में वैचारिक तादात्म्य स्थापित नही होगा ; और न ही  सब के हितों की बात करने वाला कोई सामान्य द्रिस्टीकोण उत्पन्न होगा ।
BAWS vol IX pp. 193-94
अब यहां राजनीति को तर्कों पर कसे।
प्रत्येक व्यक्ति रिस्तेदार पडोसी , और सभी ग्रुप एक दूसरे से भिन्न होते है , अलग होते है।अब कुछ लोगो को इस भिन्नता को आधार बनाकर  राजनीति करने में सुविधा होती है।वो लोगों की इस भिन्नता को "पहचान" का नाम देकर उनकी भावनाओ उभारते हैं , वे उनको भयभीत करते हैं कि ये पहचान ही उनकी आत्मा है  जिसको बड़ा समुदाय नष्ट कर देगा । इसको आधार बनाकर वे एक खाइं पैदा करते है और उसको उसको बढ़ाने के लिए हर सम्भव प्रयास रत रहते है  उनकी भावनाओं को भड़का कर  - "वो और हम " का भय पैदा करते हैं। अंग्रेजों के हाँथ यही तुरुप का पत्ता था जो खास तौर पर और तरीके से -" बांटो और राज्य करो " के लिए प्रयोग करते थे।
अपने इस दृस्तान्त को आगे बढ़ाने में उनको आंबेडकर और जिन्ना जैसे लोग न सिर्फ इम्पीरियल पॉलिटिक्स में सहयोगी बने बल्कि वो उनके सबसे अच्छे एजेंट साबित हुए ; और एजेंट भी ऐसे कि जो अपनी खुद के महानता से इतने आत्ममुग्ध थे कि उनको ये दिखाई ही न पड़ा कि वे अंग्रेज शासको के हितों को साधने में सहायक सिद्ध हुए ।
डॉ आंबेडकर ने कहा कि दोनों समुदायों की खाई ख़त्म होने के कोई सम्भावना ही नही है । क्योंकि अछूतों को दबाकर रखना कोई सामजिक प्रश्न नही था , और न ही आस्था का विषय था ; ये राजनैतिक प्रश्न था - एक वर्ग को अपने पैरो तले दबाकर रखने की बात थी।हिन्दू अपनी इस विशेषधिकार को त्याग नही सकता । और ये बात राजनीति की भी नहीं हैं बल्कि ये मात्र अर्थशास्त्र की बात है , डॉ आंबेडकर ने बल देकर कहा ।हिन्दुओं  के लिए अस्पृश्यता एक " सोने की खदान" है। हिंदुओं की आत्मा ही नही है तो उनसे ये अपेक्षा रखना व्यर्थ है कि वो अस्पृश्यता का परित्याग करेंगे और भगवान या मानवता को अपना मुंह दिखा सकेंगे - डॉ अम्बेडकर ने घोषणा किया।
-------
डॉ त्रिभुवन सिंह की पोस्ट से संकलित
home

Post a Comment

1Comments

Peace if possible, truth at all costs.

  1. भाई साहब जी आप सनातन धर्म वाली भारत राष्ट्र के बारे में बहुत अच्छा ज्ञान रखते हो आप से आग्रह है कि कृपया आप अपना यूट्यूब चैनल बनाए । और अपने विचार रखे। अगर आप अपनी पहचान यूट्यूब पर सार्वजनिक नहीं करना चाहते हैं तो विडियो में उस विषय से जुडी हुई फोटो दिखाकर विडियो बना दिजिए । धन्यवाद

    ReplyDelete
Post a Comment

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !