फरवरी 1972 मे एक बाॅलीवुड मूवी रिलीज हुई थी । नाम था "पाकीजा " डायरेक्टर थे #कमाल_अमरोही, और मुख्य भूमिकाओ मे मीना कुमारी और राजकुमार ...... मगर बहुत कम लोगो को पता है , कि इस फिल्म का भारत पाकिस्तान युद्ध , और शिमला समझौते से भी गहरा संबंध है ।
कुछ साल पहले पाकिस्तान की लेखिका #तहमीना_दुर्रानी की प्रसिद्ध पुस्तक "माई फ्यूडल लॉर्ड " (My Feudal lord )पढने के लिए खरीदी थी . उसी समय पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की ऑटोबायॉग्राफी Daughter of the East पढने की भी उत्सुकता हुई , तो मैने उसे खरीदने का निश्चय किया...
पुस्तक के एक चैप्टर मे बेनजीर भुट्टो ने भारतीय मीडिया की #बेइज्जती खराब करते हुए ,उसके मुँह पर कालिख मलकर रख दी थी .............
भुट्टो लिखती है , कि वो उस समय #ऑक्सफोर्ड मे पढ रही थी , तथा अपने पिता के साथ पाकिस्तान के पक्ष मे समर्थन जुटाने 1971 के युद्ध के समय अमेरिका उनकी सेक्रेटरी बनकर गई थी . मगर जुल्फिकार अली भुट्टो को अमेरिका से कोई आश्वासन ना मिल सका , फलस्वरूप पाकिस्तान लडाई हार गया ................
93,000 पाकिस्तानी भारत की कैद मे थे .और बांग्लादेश नये राष्ट्र के रूप मे उदित हो चुका था . अन्तर्राष्ट्रीय दबाव के चलते #शिमला_समझौते के लिए जब #जुल्फिकार_अली_भुट्टो को भारत आना था. इसीलिए भुट्टो ने अपनी बेटी को साथ ले जाने का मन बनाया . चूँकि बेनजीर ऑक्सफोर्ड और #हार्वड यूनिवर्सिटी मे पढ रही थी .और बचपन से लेकर अब तक केवल जींस - टीशर्ट ही पहनी थी . तो उसके पास परम्परागत परिधान नही थे , जिसे पहनकर वो अपने पिता के साथ भारत जा सके .........................
बेनजीर ने अपनी छोटी बहन " सनम " की सहेली से कुछ जोडी सूट सलवार उधार लिये ताकि भारत जा सके.
बेनजीर लिखती है कि जैसे ही वो अपने पिता के साथ शिमला पहुँची तो उन्होने उस महिला को पहली बार देखा , जिसकी दृढता के चर्चे मशहूर थे , यानि इंदिरा गाँधी .जिनके बारे मे बेनजीर लिखती है कि उनकी आँखो मे वो तेज था कि मै सहम उठी .......................मैने उन्हे "अस्लाम वाले कुम " कहकर अभिवादन किया , जिसके जवाब मे उन्होने केवल "नमस्ते" कहा।
भारतीय मीडिया ने बेनजीर को हाथो - हाथ लिया , और #पापाराजी ( paparazzi) की तरह का बर्ताव करते हुए , पूरी भारतीय मीडिया केवल और केवल बेनजीर के कपडो , #फैशन , और उसकी आदतो और तौर तरीको तक सिमट कर रह गई ....
भारतीय प्रतिनिधि मंडल का नेतृत्व कर रहे थे #पी.एन. हक्सर , जो अपनी योग्यता के लिए जाने जाते थे .जबकि पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व खुद जुल्फिकार भुट्टो ने किया .कई दौर की वार्ता के बाद भी सहमति नही बन पा रही थी .और अंतत: वार्ता टूट गई ,क्योकि इंदिरा किसी ठोस आश्वासन और कश्मीर के मुद्दे के बिना ,पाकिस्तानी सैनिको ,और भारतीय सेना द्वारा जीते गये इलाके छोडने को तैयार नही थी ................
जहाँ पाकिस्तानी मीडिया ,का पूरा जोर वार्ता की मेज से छन छन कर बाहर आ रही बातो , और समझौते को पाकिस्तान के पक्ष मे मोड देने पर था .वहीं दूसरी ओर भारतीय मीडिया केवल बेनजीर के कपडो , उसकी आदतो , फैशन , और उसकी जिंदगी के साथ साथ उसकी रूचियो पर ही केंद्रित था . पाकिस्तानी पत्रकार चोरी छुपे खबरे निकाल रहे थे , और तरह तरह के कयास लगाकर शिमला समझौते को पाकिस्तान के पक्ष मे कराने की जी तोड कोशिश मे लगे थे .........................
आखिरकार बातचीत टूट गई , और पूरे पाकिस्तानी पक्ष के चेहरो पर हवाईंया उड रही थी, उन्हे डर लगने लगा कि 93,000 सैनिक अब कैद से नही छूटेंगे , और भारत जीते हुए इलाके वापिस नही देगा .तब पाकिस्तानी पत्रकारो ने भुट्टो पर दबाव बनाया कि वो डिनर के बाद , इंदिरा गाँधी से अकेले मे मिले , और इंदिरा की खुशामद करे , जब वो ऐसा कर रहा होगा ,तो पाकिस्तानी मीडिया अंदर घुस जायेगा और इंदिरा जी की तारीफो के पुलिंदे बाँधकर , उन्हे उकसायेगा कि वो बिना शर्त पाकिस्तानी इलाके वापिस कर दे , और कैद सैनिको की रिहाई की अपील करेगा ...................
भारतीय मीडिया और वार्ताकारो को पता नही क्यों , एक भारतीय फिल्म "पाकीजा" को लेकर पेट मे चिल्ल मची थी । वो बार बार जुल्फिकार भुट्टो को पाकीजा फिल्म देखाने के लिए ख्वाहिशमंद थे । जबकि फिल्म जैसी चीजो मे उन्हे कोई दिलचस्पी नही थी। भुट्टो ने कमजोरी ताड ली थी । उन्होने जानबूझकर प्लान बनाया ,और भारतीय पक्ष को शीशे मे उतारने के मकसद से , अपने सेक्रेटरी के साथ मुझे वो फिल्म देखने के लिए भेजा । ताकि भारत मे माहौल बने । और फिल्म की बेहिसाब तारीफे करने की हिदायते भी दी ।
उन्होने रात दस बजे डिनर के बाद ऐसा ही किया , और इंदिरा जी को औपचारिक धन्यवाद देने के बहाने , भुट्टो अकेले ही इंदिरा जी के साथ बात करने गये , हक्सर ने विरोध का प्रयास करते हुए , #दखलंदाजी करने की कोशिश की , मगर उसी समय पाकिस्तानी मीडिया ने इंदिरा की शान मे कसीदे पढते हुए उन्हे महारानी , और क्वीन ऐलिजाबेथ से उनकी तुलना करते हुए ,उन्हे चने के झाड पर चढाया , और वार्ता के लिए मनाने के साथ साथ जुल्फिकार भुट्टो , बगैर बदले मे भारत को कुछ दिये , अपने हारे हुए इलाके वापिस पाने मे सफल रहा , और साथ ही अपने सैनिको को छुडवाने मे सफल रहा .......
इस समय तक भी , भारतीय मीडिया , गैर-,जिम्मेदार , और गैर - पेशेवर #पत्रकारिता का नमूना बनकर , बेनजीर के कपडो , और फैशन के बारे मे ,तथा उसकी आदतो मे उलझा पडा था .भारतीयो को पता ही नही चल पाया कि मैदान मे युद्ध जीतकर वो टेबल पर हार चुके है...................
भुट्टो , बडे ही शानदार ढंग से दोनो हाथो मे लड्डू लेकर , और पाकिस्तान मे #राजमर्मज्ञ की छवि लेकर लौटे .....बेनजीर लिखती है , कि वापिस लौटते समय उनके पिता ने उन्हे बताया था , कि बेनजीर को साथ लाना उनकी सोची समझी चाल का हिस्सा था , जिससे वो भारतीय मीडिया का ध्यान बँटाकर अपना #लक्ष्य हासिल कर सके .और भारत की मीडिया की paparazzi मीडिया जैसी हरकतो का फायदा उठा सके ,और ऐसा ही उन्होने किया ................
मित्रो 1972 से अब तक कितने साल गुजर गये , मगर हमारा भाँड मीडिया ,अभी भी वहीं का वहीं है ......
जहाँ एक और भारत की अस्मिता दाँव पर लगी है , वहीं ये खुजली वाले कुत्ते , #केजरीवाल , और संजय निरूपम जैसे नमूनो को टी वी कवरेज दे रहे है ...., पहले भी इन्होने ही देशद्रोही कन्हैया को हीरो बनाने का पूरा प्रयास किया था ...................बरखा दत्त जैसी , पत्रकार आज सीमावर्ती गाँवो मे जाकर ये बता रही है , कि युद्ध हुआ तो , उनकी जान खतरे मे पड सकती है .सच मे ये #नैतिकता विहीन और #स्तरहीन मीडिया जेल मे ढूंस देने के काबिल नजर आ रही है ................
#ऋतु_चौधरी
#पाकीजा #Pakeezah #bollywood #Boycott,
Peace if possible, truth at all costs.