#डर

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अखबारों ने बताया,टीवी पर सुना है,

डरने लगे हैं आप हिंदुस्तान में,

ये कैसा डर है...

130 करोड़ के देश के प्रधानमंत्री को गालियां देते हुए,

आप दहाड़ रहे हैं टीवी पर,सभाओं में,

उसके बाद आप कहते हैं कि आप को डर लगने लगा है..


80 करोड़ लोगों की श्रद्धा गाय को

सड़को पर काटकर, शहर की हर गली में

गाय के मांस की पार्टी करते हुए कहते हैं कि

गाय खाऊंगा,किसी की हैसियत नही की रोक सके..

और आप कहते हैं कि आप डरने लगे हैं...


आप टीवी डिबेट में,

42 लाख सैनिको से सुसज्जित भारतीय सेना को,

चीख चीख कर बलात्कारी और हत्यारा कहते हैं.

फिर भी आप जिंदा है..

और आप कहते हैं कि आप डरने लगे हैं...


आप भारत के जवानों के मारे जाने पर,

जेएनयू में जश्न मनाते हैं,

भारत की बर्बादी के नारे लगाते हैं,

फिर भी आप भारत में शान से जिंदा हैं,

और सुना है आपको डर लगने लगा है। 


आप दुर्गा माता को वेश्या कहते हैं,

महिषासुर को अपना बाप बताते हैं,

एमएफ हुसैन जैसे आप के भाई,

दुर्गा,सरस्वती और लक्ष्मी माँ की,

नंगी पेंटिंग बनाते हैं,

फिर भी जनता आप को घसीट कर जिंदा नही जलाती,

और सुना है आपको डर लगने लगा है। 


डर लगता है जनाब..मुझे भी लगा था..

मगर आप नही डरे,

आप के पुरस्कार आलमारियों से,

वापस करने के लिए तब

नही निकले.. 

मैं बताता हूँ, की मैं कब कब डरा

और आप नही डरे,

पुरस्कार लेते रहे या

बेगम के होठों के रस पीते रहे...


मैं डरा था मगर आप नही डरे ,

लक्ष्मी पूजा के दिन नोआखली में,

डायरेक्ट एक्शन डे के नाम पर,

हजारो हिंदुओं को मुस्लिम लीग के गुंडों ने

गला काट के मार दिया,

उनके बेटे भाई और पति के सामने 

एक मां, एक बहन का सामूहिक बलात्कार हुआ,

मुर्दा लाशों को गिद्धों ने नोचा,

जिंदा लाशों को मुश्लिम लीग के जेहादी नोचते रहे..

पति की लाश के सामने बलात्कार के बाद,

गीता देवी को,रेशम खातून बनाया गया....

उस दिन अहिंसा का पुजारी भी मौन था,

या यूं कह ले आपके साथ खड़ा था..

मैं उस दिन बहुत डरा था मगर आप नही डरे ...


मैं डरा था मगर आप नही डरे ,

1984 में ,

जब हजारों सिक्खों के गले मे

टायर डालकर,कांग्रेसी गुंडों ने,

उन्हें जिंदा जला दिया,

महिलाओं का बलात्कार किया..

3 दिन चले इस जनसंहार के बाद

मैं डरा था मगर आप नही डरे ,

क्या आप जानते हैं,आप की बिरादरी के कुछ भांड़,

भोपाल में उसी समय पुरस्कार ले रहे थे..


मैं डरा था मगर आप नही डरे ,

1989 में ,

जब कश्मीर में हिंदुओं के घर पर,

नोटिस चिपकाई गई,अखबारों में छपा,

"हिंदुओं कश्मीर छोड़ दो,

और अपनी बहन बेटियां हमारे लिए छोड़ दो"

मैं डरा था मगर आप नही डरे, जब कश्मीर में

इस्लाम स्वीकार करो या मरो के नारे के साथ,

मेरी 3 माह की बिटिया का बलात्कार कर,

कश्मीर के चौराहे पर उसकी लाश,

बंदूक के संगीन पर टंगी मिली,

और उसकी माँ को औरंगजेब की औलादों ने

महीनों तक नोचा.

मैं डरा था,

जब अल्ला हो अकबर के नारों के साथ,

रामलाल के उस चंदन लगे ललाट पर,

अहमद ने कील ठोक ठोक कर मार डाला,

जो रामलाल, अहमद का पड़ोसी था...

उस दिन मैं डरा था मगर आप नही डरे..

साढ़े चार लाख लोग कश्मीर में अपने घरों से भगा दिए गए,

वो जीवित गवाह हैं इस डर के...

उस दिन मैं डरा,सभी डरे मगर आप नही डरे.


मैं डरा था मगर आप नही डरे ,

2 नवंबर 1990 को अयोध्या में ,

जब रामभक्तों पर अपने ही देश में,

हेलीकाप्टर से गोलियां चलवाकर,

सरयू की धारा को,

हिंदुओं के खून से लाल कर दिया गया..

मैं डरता था,जब महीनों बाद तक,

रामभक्तो की गोलियों से छलनी बोरे में भारी लाश..

सरयू नदी से मिलती रही...

मैं डरा था मगर आप नही डरे।


मैं डरा था मगर आप नही डरे ,

27 फ़रवरी 2002 गोधरा में,

जब मस्जिद से ऐलान हुआ कि,

जिंदा जला दो काफिरों को,

और ट्रेन में बन्द करके,अल्ला हो अकबर के नारों के साथ,

59 रामभक्तों को जिंदा जला कर कोयला बना डाला गया।

उन जलती हुई महिलाओं,बच्चों,बूढ़ों की चीख से,

मैं डरा था मगर आप नही डरे ....


मैं डरता रहा,

कभी संकटमोचन मंदिर में बम से हुए चीथड़ों को देखकर

कभी दीवाली पर खून से लथपथ दिल्ली की सड़कों को देखकर,

कभी जयपुर की गलियों में माँ के चिथड़े हुए लाश पर,

बच्चे को रोता देखकर,

कभी अहमदाबाद में बम से चिथड़े होता रहा..

कभी मुम्बई हमले से ,

तो कभी लोकल ट्रेन में बम ब्लास्ट से मैं डरता रहा..

आपकी इटालियन अम्मी

आतंकवादियों की लाश पर फूट फूट कर रोटी रहीं,

मैं डरता रहा,मगर आप नही डरे...

आप नही डरे,

क्योंकि आप व्यस्त थे याकूब और अफजल 

जैसे आतंकी की फांसी रुकवाने के लिए,

आधी रात को कोर्ट खुलवाने में

एक आतंकवादी की फांसी को न्यायिक हत्या बताने में,

उस दिन आप नही डरे क्योंकि आप व्यस्त थे,

जेहादियों को अपना बाप बनाने में....


आप के शब्दकोश में "माब लीचिंग" 2014 तक नही आया था,

क्योंकि हमें डराने वालों ने आपको हड्डियां बहुत खिलाया था...


अचानक 2014 में एक सन्यासी आया,

जिसने मेरा डर खत्म किया और आप डरने लगे,

आप डरे क्योंकि अब हम चिथड़े नही होते,

आप को हमारी बेटियों को नोचने की छूट नही..

आप को अब आप की भाषा में जबाब मिलने लगा.


ये डर कही  उस सन्यासी से तो नही,

सुना है आप "एक" के अलावा किसी से नही डरते,

तो क्या इस सन्यासी की इबादत का इरादा है??


आप डर इसलिए रहे हैं क्योंकि

अब मैंने डरना छोड़ दिया..

और विश्वास मानिये,

ये डर जिंदा रहना चाहिए,

मुझे आप का ये डर अच्छा लगा..


#डर,

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