कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में बहुत बारीक अंतर है।
आखिरकार, गुजरात और हिमाचल में केजरीवाल का जादू चल ही गया...
जनता केजरीवाल से इतनी प्रभावित हुई कि... सभी सीटों पर केजरीवाल के प्रत्याशियों को झाड़ू मार कर भगा रही है. 😂😂😂
कांग्रेस एक बेहद चालाक पार्टी रही जबकि आम आदमी पार्टी धूर्त।
चालाक आदमी बहुत समय बाद पकड़ में आता है जबकि धूर्त बहुत जल्दी पकड़ में आ जाता है।
केजरीवाल धूर्त है। केजरीवाल का उत्थान और पतन दोनों हम इनके पार्टी के निर्माण के बीस वर्ष के भीतर देखेंगे।
जब आपको लगता है की केजरीवाल कहीं पर धमाल मचाने वाले हैं तो भी वहाँ कहीं न कहीं अपने अपेक्षा से बहुत नीचे अटकते हैं।
केजरीवाल उस किसी भी राज्य में जल्दी अपनी पकड़ नहीं बना पाएँगे जहां पर राष्ट्रीयता का बोध प्रबल हो।
केजरीवाल केवल उन्हीं राज्यों में सफल होंगे जहां पर अहिंदु आबादी अधिक हो अथवा बाहरी आबादी ज़्यादा हो।
इस हिसाब से मुंबई में केजरीवाल जगह बनाना चाहें तो उनके लिए आसानी होगी। गोवा में ईसाई आबादी, पंजाब में प्रतिक्रियावादी सिक्ख आबादी, दिल्ली में प्रवासी आबादी केजरीवाल की सफलता के कारण हैं।
कांग्रेस के वोटर बड़ी संख्या में राष्ट्रीय विचारधारा के होते हैं लेकिन उन्हें भाजपा से भय का कारण केवल यह होता है की कहीं इसके आने से हिंदुत्व का ब्राह्मणवर्चस्ववादी चेहरा न आ जाय, जबकि भाजपा पार्टी और मातृ संगठन के सभी वैचारिक स्तंभ मूल रूप से इस वर्चस्व के ख़िलाफ़ रहे हैं।
केजरीवाल धूर्त है, जल्दबाज़ी में वह अपना राष्ट्रविरोधी चरित्र दिखाने पर आमादा है, इसीलिए कांग्रेस वॉक ओवर दे दे रही है तब भी जनता उसे जिताने पर आमादा हैं।
कांग्रेस संवैधानिक राष्ट्रवादी पार्टी है, भाजपा सांस्कृतिक राष्ट्रवादी है, जबकि आम आदमी राष्ट्र के धारणा के विरोध में है।
संवैधानिक राष्ट्रवादी को सांस्कृतिक राष्ट्रवादी से केवल इस बात का भय रहता है की कहीं सांकृतिक राष्ट्रवाद के नाम पर भेद आधारित संस्कृति पुनः स्थापित न कर दी जाय। लेकिन कांग्रेस की वास्तविकता इसके उलट है वह कभी भी सांस्कृतिक यथास्थितिवाद पर हमला नहीं करती जो की वर्चस्ववाद के लिए सकारात्मक रूप से योगदान देता है जबकि भाजपा लगातार वर्चस्व के जड़ पर वार करती दिखाई देती है, उसमें कुछ बातें सैद्धांतिक हैं और कुछ ज़मीन पर।
एक संघ और भाजपा का व्यक्ति जहां हिंदुओं के बीच सैद्धांतिक समता की लड़ाई लड़ सकता है, वहीं कांग्रेस कहेगी की यह हमारा काम नहीं है। वह इस यथास्थितिवाद को चुनौती नहीं देती, इसे बनाकर रखती है। इसका दोतरफ़ा फ़ायदा इसने उठाया, पहला वर्चस्ववादी लोग इसमें स्वयं को सुरक्षित देख इसके साथ चिपट गए, दूसरा हिंदुत्व और धर्म का नाम न लेने से इस वर्चस्व से डरने वाले भी मिल गये। बहुत समय बाद लोगों को यह घालमेल पता लगा तो इससे जुड़ा पिछड़ा वर्ग इससे छिटक कर पहले क्षेत्रीय दलों में और फिर विश्वास बनने से भाजपा में आया। धीरे धीरे दलितों को भी समझ में आ रहा है तो वह भी टूट रहे हैं।
लोकतंत्र में लोक की शक्ति बढ़ी तो जनसंख्या बल के दबाव ने सबको साथ मिलकर एडजस्ट होना और चलना भी सिखाया। ब्राह्मण समाज के भीतर से ही वीर सावरकर, श्री गुरु जी, पंडित दीन दयाल उपाध्याय जैसे लोगों ने समस्त हिंदुओं के भीतर समता और सामंजस्य का प्रयास शुरू किया। जिसका परिणाम आज तीन चार पीढ़ी बाद नरेंद्र मोदी एवं भाजपा के रूप में आज हमारे सामने है। यह कहना अतिशयोक्ति न होगा की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में ही अतिशय संख्या में ब्राह्मण समाज के लोग नेतृत्व लिए और उन्होंने ही सबसे ज़्यादा सर्व समाज का मन इसके लिए बनाया की सभी हिंदू एक हैं, एक बराबर हैं, एक साथ रह सकते हैं, खा सकते हैं, जी सकते हैं।
जिस तरह से लोगों में दूरियाँ धीरे धीरे ही सही समाप्त हो रही हैं, वैसे में कांग्रेस की समाप्ति तो तय है लेकिन कभी भी आम आदमी पार्टी, कांग्रेस का विकल्प नहीं बन सकती।
विपक्ष की राजनीति पहले हिंदुओं को आतंकी बताने, वास्तविक आतंकियों को जेल से छुड़ाने, उनके नाम पर एंबुलेंस चलाने पर से शुरू होकर धर्मनिरपेक्षता से टर्न लेकर सॉफ्ट हिंदुत्व तक पहुँच चुकी है और अब प्रमोद कृष्णन जैसे लोग इसे और अधिक हिंदुत्ववादी बनाना चाहते हैं। लेकिन कांग्रेस में हिंदुत्व को लेकर जेनेटिक समस्या है। अतः विकल्प तो नहीं बनेगी पर एक दो दशक बाद एक और हिंदुत्ववादी पार्टी संभवतः मैदान में आएगी जो धीरे धीरे भाजपा के ख़िलाफ़ खड़ी होगी।
इस लड़ाई का आधार दिखना शुरू हो गया है और यह आधार होगा पुरातनपंथी बनाम नित्यनूतन हिंदू।
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Peace if possible, truth at all costs.