बस मान लीजिए ये बैग आपकी बॉडी हैं और ये जो कंचे हैं ये आपके बॉडी में जान।
जब तक ये ध्यान आपकी बॉडी में है तब तक आप जिंदा हैं लेकिन समय के साथ साथ बॉडी में कई बार बीमारी आ जाती है और कई बार बीमारी इतनी बड़ी हो जाती है जिससे जान निकलने का खतरा बन जाता है।
ऐसे में आप ट्रीटमेंट कराते हैं, इलाज कराते हैं। उस बीमारी को खत्म करने के लिए थैरेपी कराते हैं और कई बार आप देखते हैं कि इलाज के बावजूद भी पेशेंट की जान से नहीं बल्कि इलाज के दौरान ही पेशंट की जान चली गई और ऐसे में आपको लगता है कि इलाज तो कराया था फिर भी पेशेंट को हम बचा नहीं पाए।
जबकि क्लोज इन्वेस्टिगेशन से अक्सर ये पाया जाता है कि जब इलाज की कड़ी को पकड़कर उसके थ्रेड को पकड़कर ध्यान देखा गया तो पाया गया कि इलाज के बावजूद भी पेशेंट नहीं मारा गया बल्कि इलाज ही कारण है।
पेशेंट के मरने का। मेडिकल भाषा में इसे बोलते हैं रेट्रो जेनेसिस। आज मैं एक बहुत ही गंभीर विषय पर आपसे बात करूंगा।
आप कॉलेज तो आज से डेढ़ साल पहले समय की बात है। नॉर्थ अमेरिका की बात है। उस वक्त अगर कोई एक्सिडेंट विक्टिम ब्लड लॉस पेशेंट आउटपुट में आता था।
ब्लड लॉस चाहे सर्जरी की वजह से हो या फ्रेंड की वजह से हो या पेशेंट एनीमिक हो, उस वक्त का कौन सा मिल्क ट्रांसफ्यूजन नजारा ये है कि पेशेंट लेटा हुआ है और पेशेंट की नसों में दूध के पाइप लगे हुए हैं और दूध निकली नसों में चढ़ाया जा रहा नजारा यहां तक भी था कि बेड के पास गाय बंधे हुए हैं और ना सिर्फ़ गाय का दूध निकाल रही हैं और ताजा दूध पेशेंट को चढ़ाया जा रहा है।
इस उम्मीद से कि शायद पेशेंट बच जाए। आपको मेरी बात का यकीन नहीं आएगा। इसीलिए मैं कोई रेफरेंस जरा ब्रिटिश मेडिकल जर्नल का वर्ल्ड अप्रैल यूनाईटेड नंबर है, लेकिन पहनाएंगे के बीच में आप ऊपर आया तो फील्ड देव में जाकर आप देख सकते हैं।
पार्टिकल पड़ सकते आपको समझ से ही बात कि उसमें क्या कॉमन प्रतिशतता में ट्रांसफ्यूजन? और नतीजा क्या वही नतीजा है कि किसी की मृत्यु हो जाती और डॉक्टर्स इस सोच में रहते कि हमने तो दूर आगे भी देख लिया। फिर भी पेशेंट मारा गया और कई सारे ट्रायल होते रहे।
कई सारे एक्सपेरिमेंट होते रहे और कई सारे नियम भी बनते रहे। एक नियम ये भी था कि अगर वो लड़का है विक्टिम पेशेंट तो गाय या भैंस का दूध चढ़ाया जाएगा और लड़की है या बच्चा है तो सब बकरी का दूध या एक वजह ये भी था कि अगर एक लीटर दूध चढ़ाया गया तो जल्दी मौत होती है या आधे लीटर से कम दूध चढ़ाया जाए तो ज़िन्दगी थोड़ी देर तक रहती है और फाइनली उन्होंने कंट्रोल किया कि आधे लीटर से कम दूध ही ठीक रहेगा। करते करते 50 साल निकाल दे।
डॉक्टरों ने ये समझने के लिए कि दूध चढ़ाने के बावजूद भी मृत्यु नहीं हो रही है बल्कि दूध चढ़ाने की वजह से मिट्टी वरीय और इसके साथ ही मिल्क ट्रांसफ्यूजन का जो प्रतिशत था वो हमेशा के लिए खत्म हो गया और उसकी जगह मोटे लोगों ने ब्लड ट्रांसफ्यूजन।
आजकल पिछले 100 सालों की बात करें तो दुनिया भर के हर तरह के हॉस्पिटल्स में एक कॉमन सीन है। अगर एनिमिक पेशेंट आ जाए या फिर विक्टिम
ब्लड लॉस पर आ जाए या किसी भी सर्जरी की वजह से ब्लड ब्लॉक हो जाए तो 100% ब्लड ट्रांसफ्यूजन।
ब्लड ट्रांसफ्यूजन में ये बिलीव ही नहीं करता बल्कि ये विश्वास ही रहता है कि खून चढ़ाने से इंसान के जिंदा रहने की पॉसिबिलिटी बढ़ सकती है।
रादौर। बढ़ जाती है, लेकिन पिछले 10 सालों में ही सिर्फ लास्ट में एविडेंस की बात की जा रही है कि एक्चुअली रिएलिटी में देखते हैं कि जो हम सोच रहे हैं, क्या ऐसा ही है।
पिछले 10 सालों में बहुत सारे ओवरी कलेक्ट किए गए। बहुत सारे कंट्रोल ट्रायल हुए बहुत सारे मैटर सामने आए और वो सारे ट्रायल का नतीजा सिर्फ एक मामला लीजिए। दो पेशेंट हैं दोनों की स्थिति एक जैसी गंभीर है।
दोनों का ब्लड लॉस एक जैसा है और एक को खून चढ़ाया गया और एक को खून किसी कारणवश नहीं चढ़ाया या हर बार ये पाया गया कि जिन पेशेंट्स को खून चढ़ाया गया उन पेशेंट्स के मृत्यु के चांसेस लगभग लगभग डवलप दो गुना।
आप सोच रहे होंगे कि अगर ब्लड ट्रांसफ्यूजन से मृत्युदर बढ़ जाता है। मोटर रेट बढ़ती है। मोबिलिटी बढ़ती है तो ये आज भी प्रैक्टिस में क्यों है?
इसके लिए आप गौर कीजिए। स्क्रीन में रिपोर्ट को रिपोर्ट है, बीवी का करेगी अमेरिकन असोसिएशन ऑफ ब्लड बैंक, जिन्होंने ये बीड़ा उठाया है कि वो प्रोटोकॉल बनाएंगे, गाइडलाइन बनाएंगे, रिकमंडेशन बनाएंगे उनके रिकमंडेशन देखिए चार रिकमंडेशन स्क्रीन हैं। इनमें से शून्य तो थ्री फोर की बात करते हैं।
इन तीनों रिकमंडेशन के लास्ट लाइन को देखिए। मैंने हाईलाइट किया है। लॉस्ट क्या है वीक एविडेंस। इस वीक रिकमंडेशन औन सर्टेन रिकमंडेशन लोकल एविडेंस वेरी लोकल।
डेविड बोलने का मतलब ये है उन्होंने प्रोटोकॉल तो बना दिया नियम बना दिया गैलेन बना दिया, लेकिन बोला वो चाह रहे।
इन गाइडलाइन के लिए सबूत कोई ठोस नहीं है बल्कि सबूत ही नहीं है। सिर्फ रिकमंडेशन वन के नीचे लाकर लिखा है।
स्ट्रांग रिकमंडेशन स्ट्रांग एविडेंस और रिकॉर्ड जो वन क्या है वो सिर्फ इतना है कि अगर दो तरह के पेशेंट को कंपेयर करते एक वो जिसका एजीपी आठ है दूसरा पेशन वो जिसका 10 है।
दोनों में से किसको ब्लड ट्रांसफ्यूजन करने से फिर भी कंपैटिबिलिटी के जिंदा रहने की पॉसिबिलिटी ज्यादा है।
देखिए ये कंपैरिजन कुछ वैसा ही होगा जैसा मिल्क ट्रांसफ्यूजन वाले जमाने में कंपैरिजन किया गया कि एक लीटर दूध या आधा लीटर दूध। जबकि सच्चाई तो ये है कि अगर हम कर रही हैं तो ब्लड ट्रांसफ्यूजन वर्सिस लो।
ब्लड ट्रांसफ्यूजन और इस तरह के ट्रायल्स तो पिछले 10 साल में ही हुए और हर साल का नतीजा बिल्कुल साफ है कि ब्लड ट्रांसफ्यूजन से मृत्यु होती है।
यहां एक बात आपको समझना होगा चाहे वो ब्लड ट्रांसफ्यूजन हो चाहे वो मित्रों, स्वजनों। जब भी कोई भी लिक्विड हो, लिक्विड खून हो सकता है वो लिक्विड दो हो सकता है वो लिक्विड एवं सलाइन हो सकता है।
जब भी कोई भी लिक्विड नसों के माध्यम से आपकी बॉडी के अंदर जाता है तब उस वक्त आपके बॉडी में कुछ हलचल होती है।
पहली बात जिसे कहते हैं मेडिकल भाषा में ट्रॉली वाली मतलब ट्रांसफ्यूजन रिलेटेड एक्यूट लंग्स इंजरी यानि कि लंग्स पर दबाव पड़ता है।
लंग्स काम करना बंद कर देती है। इंसान की मृत्यु हो जाती है। और दूसरी सबसे बड़ी बात जिसे कहते हैं मेडिकल भाषा में ट्रिम्स ट्रांसफ्यूजन रिलेटेड इम्युन मॉड्यूलेशन।
यानि कि जब भी कोई भी लिक्विड नसों के माध्यम से बाहर से बॉडी में जाता है तो बॉडी का इम्यून सिस्टम पूरा गड़बड़ हो जाता है।
तहस नहस हो जाता है और एक खास तरह का मॉलिक्यूल जिसका नाम है वी एरियस वस्कुलर थैलियम ग्रुप फैक्टर ये कैसा मॉलिक्यूल है जो ये डिसाइड करता है कि आप हेल्दी रहेंगे या बीमार पड़ेंगे।
आप की डेथ कैन्सर से होगी या हार्ट डिजीज से जूझेंगे। ये जो बड़ी भूल है ये पूरी तरह डिस्ट्रॉय कर देता है।
हर साल पूरे दुनिया में हजारों ब्लड डोनेशन कैम्प्स लगते हैं और कैम्प के माध्यम से पेटिंग फाइव मिलियन यूनिट से लेके हंड्रेड मिलियन यूनिट तक ब्लड कलेक्ट कर पैक किया जाता है। इसलिए इस खबर को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करें|
Peace if possible, truth at all costs.