कई पाठक वेटिकन और मिशनरी द्वारा संगठित, सुविचारित एवं धूर्त
षडयंत्र सहित किए जाने वाले ईसाई धर्मान्तरण के बारे में जानते हैं. यह
पूरा धर्मांतरण अभियान बड़े ही योजनाबद्ध तरीके से वर्षों से जारी है. समूचे
विश्व को ईसाई बनाने का उद्देश्य लेकर बने हुए“जोशुआ प्रोजेक्ट”के अंतर्गत
धर्मांतरण हेतु सर्वाधिक ध्यान दिए जाने वाले क्षेत्र के रूप में एक
काल्पनिक“10/40खिड़की”को लक्ष्य बनाया गया
है. इस जोशुआ प्रोजेक्ट के अनुसार पृथ्वी के नक़्शे पर, दस डिग्री अक्षांश
एवं चालीस डिग्री देशांश के चौकोर क्षेत्र में पड़ने वाले सभी देशों
को“10/40खिड़की”के नाम से पुकारा जाता है. इस खिड़की में उत्तरी अफ्रीका,
मध्य पूर्व एवं एशिया का एक बड़ा भूभाग आता है. वेटिकन के अनुसार
इस10/40खिड़की के देशों में सबसे कम ईसाई धर्मांतरण हुआ है. वेटिकन का
लक्ष्य हा कि इस खिड़की के बीच स्थित देशों में तेजी से, आक्रामक तरीके से,
चालबाजी से, सेवा के नाम पर या किसी भी अन्य तरीके से अधिकाधिक ईसाई
धर्मांतरण होना चाहिए. जोशुआ प्रोजेक्ट के आकलन के अनुसार इस“खिड़की”में
विश्व के तीन प्रमुख धर्म स्थित हैं, इस्लाम, हिन्दू एवं बौद्ध. यह तीनों
ही धर्म ईसाई धर्मांतरण के प्रति बहुत प्रतिरोधक हैं. पहले इस खिड़की के
अंदर दक्षिण कोरिया और फिलीपींस भी शामिल थे, परन्तु इन देशों की
जनसंख्या70%से अधिक ईसाई हो जाने के बाद उन्हें इस खिड़की से बाहर रख दिया
गया है. वेटिकन के अनुसार इस खिड़की में शामिल देशों में सबसे ‘मुलायम और
आसान”लक्ष्य भारत है, जबकि सबसे कठिन लक्ष्य इस्लामी देश मोरक्को है.
वेटिकन ने गत वर्ष ही“सॉफ्ट इस्लामी”इंडोनेशिया को भी इस खिड़की में शामिल
कर लिया है. विश्व की कुल आबादी में से चार अरब से अधिक लोग इस10/40खिड़की
के तहत आती है, इसलिए यदि ईसाई धर्म का अधिकाधिक प्रसार करना हो तो इन
देशों को टारगेट बनाना जरूरी है. क्योंकि इस“खिड़की”से बाहर स्थित देशों
जैसे यूरोपीय देश, रूस, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड में से
अधिकाँश देश पहले ही“घोषित रूप से ईसाई देश”हैं और अधिकाँश देशों
में“बाइबल”की शपथ ली जाती है. एशियाई देशों में चर्च ने सर्वाधिक सफलता
हासिल की है“नास्तिक”माने जाने वाले“वामपंथी”चीन में. आज की तारीख में चीन
में लगभग17करोड़ ईसाई (कैथोलिक व प्रोटेस्टेंट मिलाकर) हैं. चीन में वेटिकन
के प्रवक्ता डॉक्टर जॉन संग कहते हैं कि हमें विश्वास है कि सन2025तक चीन
में ईसाईयों की आबादी25करोड़ पार कर जाएगी. भारत में“घोषित रूप से”ईसाईयों
की आबादी लगभग छह करोड़ है, जबकि अघोषित रूप से छद्म नामों से रह रही ईसाई
आबादी का अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल है. आईये एक संक्षिप्त उदाहरण से समझते
हैं कि किस तरह से मिशनरी जमीनी स्तर पर संगठित स्वरूप में कार्य करते
हैं. प्रस्तुत चित्र में दिखाए गए सज्जन हैं“पास्टर जेसन नेटाल्स”. नाम से
ही ज़ाहिर है कि ये साहब ईसाई धर्म के प्रचारक हैं. पास्टर जेसन जुलाई से
नवंबर2013तक भारत में धर्म प्रचार यात्रा पर थे. इन्होंने अपने कुछ मित्रों
के साथ आंध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम जिले के कुछ अंदरूनी गाँवों में ईसाई
धर्म का प्रचार किया, और इसकी कुछ तस्वीरें ट्वीट भी कीं. जैसा कि चित्र
में देखा जा सकता है कि“पास्टर जेसन”एक मंदिर के अहाते में ही ईसाई धर्म का
प्रचार कर रहे हैं और तो और ट्वीट में इस“ईसाई धर्म से अनछुए गाँव”की
गर्वपूर्ण घोषणा भी कर रहे हैं. भोलेभाले (बल्कि मूर्ख) हिन्दू बड़ी आसानी
से इन“सफ़ेद शांतिदूतों”की मीठी-मीठी बातों तथा सेवाकार्य से प्रभावित होकर
इनके जाल में फँस जाते हैं. संक्षेप में :- तात्पर्य यह है कि“घर
वापसी”जैसे आडंबरपूर्ण और हो-हल्ले वाले कार्यक्रमों का कोई विशेष फायदा
नहीं होगा. यदि ईसाई मिशनरी का मुकाबला करना है, तो संगठित, सुविचारित,
सुव्यवस्थित एवं सतत अभियान चलाना होगा. जाति व्यवस्था एवं गरीबी को दूर
करना होगा।
Peace if possible, truth at all costs.