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नाथूराम गोडसे का अंतिमबयान
{इसे सुनकर अदालत में उपस्तित सभी लोगो की आँखेगीली हो गई थी और कई तो रोने लगे थे

 एक जज महोदय नेअपनी टिपणी में लिखा था की यदि उस समय अदालतमें उपस्तित लोगो को जूरी बनाया जाता और उनसे फेसला देने को कहा जाता तो निसंदेह वे प्रचंड बहुमत स नाथूराम के निर्दोष होने का निर्देश देते }

नाथूराम जी ने कोर्ट में कहा --सम्मान ,कर्तव्य और अपनेदेश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी हमे अहिंसा केसिधांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है.

मैं कभी यहनहीं मान सकता की किसी आक्रामक का शसस्त्र प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्याय पूर्णभी हो सकता है।

 प्रतिरोध करने और यदि संभवहो तो एअसे शत्रु को बलपूर्वक वश में करना, में एकधार्मिक और नैतिक कर्तव्य मानता हूँ।

 मुसलमानअपनी मनमानी कर रहे थे। या तो कांग्रेस उनकी इच्छा केसामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक, मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये अथवा उनकेबिना काम चलाये .

वे अकेले ही प्रत्येक वस्तु औरव्यक्ति के निर्णायक थे. महात्मा गाँधी अपने लिएजूरी और जज दोनों थे। गाँधी ने मुस्लिमो को खुश करने केलिए हिंदी भाषा के सोंदर्य और सुन्दरता के साथबलात्कार किया.

गाँधी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिन्दुओ की कीमत पर किये जाते थे जो कांग्रेसअपनी देश भक्ति और समाज वाद का दंभभरा करती थी .

उसीनेगुप्त रूप से बन्दुक की नोक परपकिस्तान को स्वीकार कर लिया और जिन्ना केसामने नीचता से आत्मसमर्पण कर दिया .मुस्लिमतुस्टीकरण की निति के कारन भारत माता के टुकड़े कर दिए गय और 15 अगस्त 1947 के बाददेशका एक तिहाईभाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गई.
नहरू तथा उनकी भीड़ की स्विकरती के साथ ही एक धर्म केआधार पर राज्य बना दिया गया .
इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई सवंत्रता कहते हैकिसका बलिदान ? जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गाँधी के सहमती से इस देश को काट डाला, जिसे हमपूजा की वस्तु मानते है तो मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध सेभर गया।

 मैं साहस पूर्वक कहता हु की गाँधी अपने कर्तव्यमें असफल हो गय उन्होंने स्वय को पकिस्तानका पिता होना सिद्ध किया .में कहता हु की मेरी गोलिया एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई थी ,जिसकी नित्तियो और कार्यो सेकरोडो हिन्दुओ को केवल बर्बादी और विनाशही मिला ऐसे कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी

 जिसकेद्वारा उस अपराधी को सजा दिलाई जा सके इस्सलियेमेने इस घातक रस्ते का अनुसरण किया..............

मैं अपनेलिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूँगा ,जो मेने किया उस पर मुझे गर्व है .
मुझे कोई संदेह नहीं है की इतिहास क ेइमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य मेंकिसी दिन इसका सही मूल्याकन करेंगे।जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के नीछे से ना बहे तबतक मेरी अस्थियो का विसर्जित मत करना।..............................

जितना काल का घरी बकरीबाज गांधी के बारे में पढता जा रहा हूँ...

उतनी ही हुतात्मा पंडित शिरोमणि श्री नाथूराम गोडसे जी के प्रति श्रृद्धा बढती जा रही।








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Peace if possible, truth at all costs.

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