युगों-युगों से गौमाता, हमें आश ्रय देते हुए
हमारा लालन-पालन, करती आ रही है
हमारी जन्मदात्री माँ तो, हमें कुछ ही बरस तक
हमारा लालन-पालन, करती आ रही है
हमारी जन्मदात्री माँ तो, हमें
दूध पिला सकी, परन्तु यह पयस्वि नी तो
जन्म से अब तक हमें पय-पान कराती रही
हमारी इस नश्वर काया की पुष्टता के पीछे है
उसके चारों थन जिस बलवान शरीर
पर हमें होता अभिमान वह विकसित होता
इस गोमाता के समर्पण से
क्योंकि उसने अपने बछ्ड़े का मो ह त्यागकर
ममता से हमें केवल दूध ही नहीं पिलाया
बल्कि हमें अपनाया भी वह गोमाता जिसके हर अंग में
बिराजते हैं देवता तैतीस करोड़ जो दिखाती हमें स्वर्ग की राह
जिसकी पूंछ पकड़कर पार होते हम भवसागर
वह स्वयं में भी है ममता का अथा ह सागर
बदले में हम उसे क्या दे पाए वह ी सूखा भूसा
वही सीमित चूनी हरे चारे के नाम पर सूखी घास
वह तो यह भी सह लेती यदि हम दे पाते उसे
थोड़ी सी पुचकार थोड़ा प्यार थो ड़ी सी छाँव के साथ
अपना सामीप्य और स्नेह
उसने तो हमें अपना लिया अपने बछ ्ड़े तक उसने किये समर्पित
हमारा बोझ उठाने को परन्तु क्या हम उसे अपना पाए
जब तक मिला ढूध उसे तभी तक पाला
और जब सूखा दूध उसे कौडियों में बेच डाला
और ढूंढने लगे दुधारी गाय
आखिर हमें दुधारी गाय ही क्यों भाती है
क्या गोबर वरदान नहीं क्या गोमू त्र अमृत नहीं
वह तो देवी ठहरी पर हममें से कु छ एक
मानव हैं या दानव जो मात्र आहार के निमित्त
गाय का वध तक कर देते और दुहाई देते कुरीतियों की
व्यर्थ तर्क-वितर्क करते
अभी समय है सुधर जाएँ सम्मान दे गौ-माता को
प्रोत्साहन दें गोपालकों को यदि हम नहीं चेते समय रहते
तो शायद इतिहास में हम ही ना रहे
जन्म से अब तक हमें पय-पान कराती रही
हमारी इस नश्वर काया की पुष्टता
उसके चारों थन जिस बलवान शरीर
पर हमें होता अभिमान वह विकसित
इस गोमाता के समर्पण से
क्योंकि उसने अपने बछ्ड़े का मो
ममता से हमें केवल दूध ही नहीं
बल्कि हमें अपनाया भी वह गोमाता
बिराजते हैं देवता तैतीस करोड़
जिसकी पूंछ पकड़कर पार होते हम
वह स्वयं में भी है ममता का अथा
बदले में हम उसे क्या दे पाए वह
वही सीमित चूनी हरे चारे के नाम
वह तो यह भी सह लेती यदि हम दे
थोड़ी सी पुचकार थोड़ा प्यार थो
अपना सामीप्य और स्नेह
उसने तो हमें अपना लिया अपने बछ
हमारा बोझ उठाने को परन्तु क्या
जब तक मिला ढूध उसे तभी तक पाला
और जब सूखा दूध उसे कौडियों में
और ढूंढने लगे दुधारी गाय
आखिर हमें दुधारी गाय ही क्यों
क्या गोबर वरदान नहीं क्या गोमू
वह तो देवी ठहरी पर हममें से कु
मानव हैं या दानव जो मात्र आहार
गाय का वध तक कर देते और दुहाई
व्यर्थ तर्क-वितर्क करते
अभी समय है सुधर जाएँ सम्मान दे
प्रोत्साहन दें गोपालकों को यदि
तो शायद इतिहास में हम ही ना रहे
Peace if possible, truth at all costs.