राष्ट्रवादी हिन्दू समाज पर एकाएक बौद्धिक आतंकवाद के रूप में चारों और
से मीडिया के माध्यम से आक्रमण हो रहे हैं जिनका मूलभूत उद्देश्य हिन्दू
युवाओं को भ्रमित कर नास्तिक एवं हिन्दू विरोधी बनाना है। इस षड्यंत्र का
प्रभाव इस उदहारण के रूप में देखिये महाराष्ट्र सरकार ने गौमांस पर
प्रतिबन्ध लगाया तो उसके सबसे अधिक विरोध अपने आपको विचारशील और तर्कशील
कहने वाला वह समूह सबसे अधिक कर रहा है जिनकी पृष्ठभूमि हिन्दू रही है। यह इस विषैले प्रचार का दुष्परिणाम हैं।
कुछ उदहारण के माध्यम से हम मीडिया के देश और धर्म विरोधी कुछ कार्यों की समीक्षा करेंगे।
1. दिल्ली में कुछ ईसाई गिरिजाघरों में हुई छूटपुट चोरी की घटनाओं को अल्पसंख्यक ईसाई समाज पर हमला और उसके विरुद्ध दिल्ली, बैंगलोर से लेकर कोलकाता तक ईसाईयों द्वारा प्रदर्शन को मीडिया द्वारा बढ़ा चढ़ा कर प्रदर्शित किया गया जबकि मीडिया ने इस तथ्य को छुपाया की इसी काल में दिल्ली के मंदिरों में 206 और गुरुद्वारों में 30 चोरी की घटनाएँ हुई। कहने की आवश्यकता ही नहीं हैं की मीडिया अपने बौद्धिक आतंकवाद द्वारा बहुसंख्यक हिन्दुओं को अल्पसंख्यक ईसाईयों पर अत्याचार करने वाला सिद्ध करके उनके लिए न केवल व्यर्थ की सहानुभूति बटोर रहा है अपितु उनमें असुरक्षा की भावना भी दे रहा हैं।यह कदम राष्ट्रीय एकता को खतरा हैं क्यों यह विभिन्न धर्मों में अविश्वास की भावना को पैदा करता है।
2 . संघ सरचालक मोहन भागवत जी द्वारा जब मदर टेरेसा को सेवा की आड़ में धर्मान्तरण करने के लिए कटघरे में खड़ा किया गया तो मीडिया द्वारा मधुमक्खी के छत्ते को छेड़ने के समान संघ और उनका समर्थन करने वाली संस्थाओं पर आक्रमण किया गया। मदर टेरेसा एवं अन्य ईसाई संस्थाओं द्वारा किये जा रहे धर्मान्तरण को लेकर मीडिया छाती ठोककर उनका समर्थन करता हैं एवं उसे जायज ठहराता हैं जबकि यही मीडिया आगरा में हुई घर वापसी की घटना को लेकर हिंदूवादी संगठनों के विरुद्ध मोर्चा खोल कर उन्हें अत्याचारी, लोभ प्रलोभन देकर हिन्दू बनाने का षड़यंत्र करने वाला सिद्ध करने में लगा रहता है। खेद हैं की भारत विश्व का एकमात्र देश हैं जिसमें बहुसंख्यक हिन्दुओं के अधिकारों का सदा दमन किया जाता हैं एवं अल्पसंख्यकों को सर पर चढ़ाया जाता है।
3. कुछ गोरी चमड़ी वाले विदेशी लेखकों जैसे वेंडी डोनिजर (Wendy Doniger) आदि द्वारा लिखी गई किताबों में सत्य विरुद्ध एवं तथ्यों के विरुद्ध बातों पर जब हिन्दू समाज प्रतिक्रिया करता हैं तो मीडिया उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताता हैं और जब इतिहास में कम्युनिस्ट विचारधारा को पाठ्यकर्म के माध्यम से पढ़ाने की साजिश को बेनकाब कर उसे ठीक करने पर सरकार विचार करती हैं तो मीडिया अपना दोहरा चेहरा दिखाते हुए उसे शिक्षा का भगवाकरण सिद्ध करने का प्रयास के रूप में आलोचना करता है।
4. हिंदुत्व वादी संगठन जब फिल्मों में दिखाई जाने वाली अश्लीलता को दूर करने के लिए आग्रह करते हैं तो मीडिया द्वारा उन्हें पुरानी सोच वाला, पिछड़ा, दकियानूसी सोच वाला कहा जाता है और जब देश में खुलेआम छोटी छोटी बच्चियों से लेकर वृद्ध महिलाओं के साथ बलात्कार होता हैं जिसका प्रमुख कारण इस नंगेपन के कारण उपजी विकृत मानसिकता हैं। उसे दोषी ठहराने के स्थान पर महिला अधिकारों को लेकर चर्चा की जाती हैं एवं पुरुषों को जन्मसिद्ध बलात्कारी सिद्ध किया जाता है।
5. जब कोई हिन्दू लड़की किसी मुस्लिम लड़के के साथ धर्म परिवर्तन कर निकाह कर लेती हैं तो उसे सेकुलरता की निशानी के रूप में मीडिया पेश करता हैं और हिन्दुओं द्वारा उनका विरोध करने पर प्रेम की अभिव्यक्ति पर हमला, जवान दिलों पर अत्याचार के रूप में प्रचारित किया जाता हैं और जब किसी हिन्दू लड़के को मुसलमानों द्वारा इसलिए मार दिया जाता है क्यूंकि उसने मुस्लिम लड़की से विवाह किया होता हैं तो मीडिया चिरपरिचित मौन धारण कर लेता हैं।
यह कुछ उदहारण हैं अगले लेख में मीडिया के दोहरे चेहरे को बेनकाब करते हुए उसके द्वारा फैलाये जा रहे बौद्धिक आतंकवाद पर आगे चर्चा करेंगे।
कुछ उदहारण के माध्यम से हम मीडिया के देश और धर्म विरोधी कुछ कार्यों की समीक्षा करेंगे।
1. दिल्ली में कुछ ईसाई गिरिजाघरों में हुई छूटपुट चोरी की घटनाओं को अल्पसंख्यक ईसाई समाज पर हमला और उसके विरुद्ध दिल्ली, बैंगलोर से लेकर कोलकाता तक ईसाईयों द्वारा प्रदर्शन को मीडिया द्वारा बढ़ा चढ़ा कर प्रदर्शित किया गया जबकि मीडिया ने इस तथ्य को छुपाया की इसी काल में दिल्ली के मंदिरों में 206 और गुरुद्वारों में 30 चोरी की घटनाएँ हुई। कहने की आवश्यकता ही नहीं हैं की मीडिया अपने बौद्धिक आतंकवाद द्वारा बहुसंख्यक हिन्दुओं को अल्पसंख्यक ईसाईयों पर अत्याचार करने वाला सिद्ध करके उनके लिए न केवल व्यर्थ की सहानुभूति बटोर रहा है अपितु उनमें असुरक्षा की भावना भी दे रहा हैं।यह कदम राष्ट्रीय एकता को खतरा हैं क्यों यह विभिन्न धर्मों में अविश्वास की भावना को पैदा करता है।
2 . संघ सरचालक मोहन भागवत जी द्वारा जब मदर टेरेसा को सेवा की आड़ में धर्मान्तरण करने के लिए कटघरे में खड़ा किया गया तो मीडिया द्वारा मधुमक्खी के छत्ते को छेड़ने के समान संघ और उनका समर्थन करने वाली संस्थाओं पर आक्रमण किया गया। मदर टेरेसा एवं अन्य ईसाई संस्थाओं द्वारा किये जा रहे धर्मान्तरण को लेकर मीडिया छाती ठोककर उनका समर्थन करता हैं एवं उसे जायज ठहराता हैं जबकि यही मीडिया आगरा में हुई घर वापसी की घटना को लेकर हिंदूवादी संगठनों के विरुद्ध मोर्चा खोल कर उन्हें अत्याचारी, लोभ प्रलोभन देकर हिन्दू बनाने का षड़यंत्र करने वाला सिद्ध करने में लगा रहता है। खेद हैं की भारत विश्व का एकमात्र देश हैं जिसमें बहुसंख्यक हिन्दुओं के अधिकारों का सदा दमन किया जाता हैं एवं अल्पसंख्यकों को सर पर चढ़ाया जाता है।
3. कुछ गोरी चमड़ी वाले विदेशी लेखकों जैसे वेंडी डोनिजर (Wendy Doniger) आदि द्वारा लिखी गई किताबों में सत्य विरुद्ध एवं तथ्यों के विरुद्ध बातों पर जब हिन्दू समाज प्रतिक्रिया करता हैं तो मीडिया उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताता हैं और जब इतिहास में कम्युनिस्ट विचारधारा को पाठ्यकर्म के माध्यम से पढ़ाने की साजिश को बेनकाब कर उसे ठीक करने पर सरकार विचार करती हैं तो मीडिया अपना दोहरा चेहरा दिखाते हुए उसे शिक्षा का भगवाकरण सिद्ध करने का प्रयास के रूप में आलोचना करता है।
4. हिंदुत्व वादी संगठन जब फिल्मों में दिखाई जाने वाली अश्लीलता को दूर करने के लिए आग्रह करते हैं तो मीडिया द्वारा उन्हें पुरानी सोच वाला, पिछड़ा, दकियानूसी सोच वाला कहा जाता है और जब देश में खुलेआम छोटी छोटी बच्चियों से लेकर वृद्ध महिलाओं के साथ बलात्कार होता हैं जिसका प्रमुख कारण इस नंगेपन के कारण उपजी विकृत मानसिकता हैं। उसे दोषी ठहराने के स्थान पर महिला अधिकारों को लेकर चर्चा की जाती हैं एवं पुरुषों को जन्मसिद्ध बलात्कारी सिद्ध किया जाता है।
5. जब कोई हिन्दू लड़की किसी मुस्लिम लड़के के साथ धर्म परिवर्तन कर निकाह कर लेती हैं तो उसे सेकुलरता की निशानी के रूप में मीडिया पेश करता हैं और हिन्दुओं द्वारा उनका विरोध करने पर प्रेम की अभिव्यक्ति पर हमला, जवान दिलों पर अत्याचार के रूप में प्रचारित किया जाता हैं और जब किसी हिन्दू लड़के को मुसलमानों द्वारा इसलिए मार दिया जाता है क्यूंकि उसने मुस्लिम लड़की से विवाह किया होता हैं तो मीडिया चिरपरिचित मौन धारण कर लेता हैं।
यह कुछ उदहारण हैं अगले लेख में मीडिया के दोहरे चेहरे को बेनकाब करते हुए उसके द्वारा फैलाये जा रहे बौद्धिक आतंकवाद पर आगे चर्चा करेंगे।
Peace if possible, truth at all costs.