1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919)
से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे
कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर
अभियोग चलाया जाए। गान्धी ने भारतवासियों केइस
आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।
2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के
निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी की ओर देख
रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से
बचाएं, किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित
ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर
दिया।
3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने
सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष
अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम
नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में
गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने
की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला में
मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें
लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक
को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस
हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर
बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।
5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए
शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द
जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने
कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वर ूप गान्धी ने अब्दुल
रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित
ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-
विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए
अहितकारी घोषित किया।
6.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी,
महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट
देशभक्त कहा।
7.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु
राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन
छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श
दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन
का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
8. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद
अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।
9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए
बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित
भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के
कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष
चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन
लिया गया किन्तु
गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहा था,
अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के
कारण पदत्याग कर दिया।
11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से
चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह
पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित
अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत
विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु
गान्धी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह
भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश
का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के
समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण
अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने
अस्वीकार कर दिया।
14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डलने
सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण
का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु
गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने
सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव
को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण
अनशन के माध्यम से सरकार पर
दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण
कराने के लिए दबाव डाला।
15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने
दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण
ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमेंवृद्ध,
स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर
ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।
16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर
आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत
सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए
की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय
मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशिदेने
को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय
यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया-
फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के
विपरीत दे दी गयी।
उपरोक्त परिस्थितियों में नथूराम गोडसे नामक एक
देशभक्त सच्चे भारतीय युवक ने गान्धी का वध कर
दिया।
न्य़यालय में चले अभियोग के परिणामस्वरूप गोडसे
को मृत्युदण्ड मिला किन्तु गोडसे ने न्यायालय में अपने
कृत्य का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर
उस अभियोग के न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने
अपनी एक पुस्तक में लिखा-
“नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक
दृश्य था। खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ
कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में आती थींऔर
उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते
थे। न्यायालय में उपस्थित उन
प्रेक्षकों को यदि न्यायदान का कार्य
सौंपा जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने
अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित
किया होता कि नथूराम निर्दोष है।”
तो भी नथूराम ने भारतीय न्यायव्यवस्था के अनुसार
एक व्यक्ति की हत्या के अपराध का दण्ड मृत्युदण्ड
के रूप में सहज ही स्वीकार किया। परन्तु भारतमाता के
विरुद्ध जो अपराध गान्धी ने किए, उनका दण्ड
भारतमाता व उसकी सन्तानों को भुगतना पड़ रहा है। यह
स्थिति कब बदलेगी?
कुछ और प्रश्न
1- अपने इस बाप के बचपन के चित्र नदारद हैं क्यों?
केवल एक १० वर्ष के लगभग की आयु का चित्र है।
2- इस बापू के अफ़्रीका जाने के पूर्व के चित्र कहाँ है?
कहीं प्रदर्शनी में भी नहीं दीखते!
3- यह न कह देना कि बापू निर्धन परिवार से था चित्र
कहाँ से बनवाता? स्मरण रहे ये विदेश गया था पढ़ने
को।
4- क्या मोहनदास का बेटा इसलिए मुसलमान
नहीं हो गया था कि उसे पता चल गया था कि वह एक
मुसलमान जमालुद्दीन शैख का बेटा है……?
से समस्त देशवासी आक्रोश में थे तथा चाहते थे
कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर
अभियोग चलाया जाए। गान्धी ने भारतवासियों केइस
आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।
2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के
निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व गान्धी की ओर देख
रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से
बचाएं, किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित
ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग को अस्वीकार कर
दिया।
3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने
सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम लीग की हिंसा के समक्ष
अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।
4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम
नेताओं के विरोध को अनदेखा करते हुए 1921 में
गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने
की घोषणा की। तो भी केरल के मोपला में
मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें
लगभग 1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक
को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस
हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर
बन्दों की बहादुरी के रूप में वर्णन किया।
5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए
शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी श्रद्धानन्द
जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने
कर दी, इसकी प्रतिक्रियास्वर ूप गान्धी ने अब्दुल
रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को उचित
ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-
विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम एकता के लिए
अहितकारी घोषित किया।
6.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी,
महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द सिंह जी को पथभ्रष्ट
देशभक्त कहा।
7.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु
राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम बहुल होने से शासन
छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श
दिया, वहीं दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन
का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।
8. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद
अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।
9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए
बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा अंकित
भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के
कारण उसे तिरंगा कर दिया गया।
10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष
चन्द्र बोस को बहुमत से कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन
लिया गया किन्तु
गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर रहा था,
अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के
कारण पदत्याग कर दिया।
11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से
चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु गान्धी की जिद के कारण यह
पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।
12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित
अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक में भारत
विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु
गान्धी ने वहाँ पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह
भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था कि देश
का विभाजन उनकी लाश पर होगा।
13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के
समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की सम्पूर्ण
अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने
अस्वीकार कर दिया।
14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डलने
सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय पर पुनर्निर्माण
का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु
गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के सदस्य भी नहीं थे ने
सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव
को निरस्त करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण
अनशन के माध्यम से सरकार पर
दिल्ली की मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण
कराने के लिए दबाव डाला।
15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने
दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण
ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमेंवृद्ध,
स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर
ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।
16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर
आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व माउँटबैटन ने भारत
सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए
की राशि देने का परामर्श दिया था। केन्द्रीय
मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशिदेने
को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय
यह राशि तुरन्त दिलवाने के लिए आमरण अनशन किया-
फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के
विपरीत दे दी गयी।
उपरोक्त परिस्थितियों में नथूराम गोडसे नामक एक
देशभक्त सच्चे भारतीय युवक ने गान्धी का वध कर
दिया।
न्य़यालय में चले अभियोग के परिणामस्वरूप गोडसे
को मृत्युदण्ड मिला किन्तु गोडसे ने न्यायालय में अपने
कृत्य का जो स्पष्टीकरण दिया उससे प्रभावित होकर
उस अभियोग के न्यायधीश श्री जे. डी. खोसला ने
अपनी एक पुस्तक में लिखा-
“नथूराम का अभिभाषण दर्शकों के लिए एक आकर्षक
दृश्य था। खचाखच भरा न्यायालय इतना भावाकुल हुआ
कि लोगों की आहें और सिसकियाँ सुनने में आती थींऔर
उनके गीले नेत्र और गिरने वाले आँसू दृष्टिगोचर होते
थे। न्यायालय में उपस्थित उन
प्रेक्षकों को यदि न्यायदान का कार्य
सौंपा जाता तो मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि उन्होंने
अधिकाधिक सँख्या में यह घोषित
किया होता कि नथूराम निर्दोष है।”
तो भी नथूराम ने भारतीय न्यायव्यवस्था के अनुसार
एक व्यक्ति की हत्या के अपराध का दण्ड मृत्युदण्ड
के रूप में सहज ही स्वीकार किया। परन्तु भारतमाता के
विरुद्ध जो अपराध गान्धी ने किए, उनका दण्ड
भारतमाता व उसकी सन्तानों को भुगतना पड़ रहा है। यह
स्थिति कब बदलेगी?
कुछ और प्रश्न
1- अपने इस बाप के बचपन के चित्र नदारद हैं क्यों?
केवल एक १० वर्ष के लगभग की आयु का चित्र है।
2- इस बापू के अफ़्रीका जाने के पूर्व के चित्र कहाँ है?
कहीं प्रदर्शनी में भी नहीं दीखते!
3- यह न कह देना कि बापू निर्धन परिवार से था चित्र
कहाँ से बनवाता? स्मरण रहे ये विदेश गया था पढ़ने
को।
4- क्या मोहनदास का बेटा इसलिए मुसलमान
नहीं हो गया था कि उसे पता चल गया था कि वह एक
मुसलमान जमालुद्दीन शैख का बेटा है……?
Peace if possible, truth at all costs.