गाँधी और क्रांतिकारी

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दृश्य - 1

गाँधी खुले-आम अपने सभाओं में क्रांतिकारियों को आतंकवादियों का दर्जा दिया करते थे !!  उनका कहना था कि जो भी क्रांतिकारी है उसका मार्ग अहिंसा का है, वह उग्रवादी है, वह आतंकवादी है !! सारे क्रांतिकारी इससे बहुत ज़्यादा आहत थे !! सभी क्रांतिकारियों ने चंद्रशेखर आज़ाद के माध्यम से गाँधी को अपनी भावना बताने का निर्णय किया !!

चंद्रशेखर आज़ाद 1926 में अँग्रेज़ों की नज़र से बच कर व्यक्तिगत रूप से गाँधी से मिले और उन्हें सिर्फ़ इतना कहा - बापू हमारे दिल में आपके लिए बड़ा सम्मान है !! सारा राष्ट्र आपका सम्मान करता है !! आप किर्पया हम पर एक उपकार कर दें !! अपने व्यक्तिगत संबोधनों में हमें 'आतंकवादी' न कहा करें, इससे हमें दुख होता है !!

गाँधी ने जवाब दिया - तुम्हारा मार्ग हिंसा का है और हिंसा का अवलंबन लेने वाला हर व्यक्ति मेरी नज़र में आतंकवादी है !!

चंद्रशेखर वापस आ गये !! भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव सब बापू की नज़र में आतंकवादी थे !!

दृश्य - 2

 गोल-मेज नामक इस समझौते के दौरान गाँधी और लार्ड ईविर्न के बीच बात-चित पर एक नज़र -

इस समझौते के दौरान अहिंसकों ने शर्त रखी - पहले गाँधी और नेहरू को रिहा किया जाए और हम जिसे भी रिहा करने को कहे, उन्हें भी किया जाए !! इससे जनवरी 1931 में नेहरू और गाँधी अपने अन्य अहिंसक साथियों के साथ जेल से बाहर आ गये !!

लार्ड ईविर्न ने गाँधी से पूछा - क्या आप भगत सिंह और उनके साथियों को भी छुड़ाना चाहते हैं !! हम उसकी इजाज़त ले लेंगे !!

गाँधी ने कहा - "मैं भगत सिंह की कद्र करता तो करता हूँ लेकिन हिंसा के किसी भी पूजक को छोड़ने की पैरवी मैं नहीं कर सकता, इससे हमारे शांतिपूर्ण आंदोलन में दरार पड़ जाएगी !! लोगों का इससे विश्वाश उठ जाएगा !!"

दूसरे दिन जेल से भगत सिंह ने कहा - "जीवन की भीख माँगने से अच्छा है मैं यही प्राण दे दूं !! अच्छा किया गाँधी ने हमारी वकालत नहीं की" !!

गाँधी ने इस समझौते के अंतर्गत ये लिखित रूप से दे दिया कि वो तथा कोई भी गाँधीवादी विदेशी बहिष्कार नहीं करेंगे जिसके फलस्वरूप सारे तथाकथित अहिनसवादी जेल से बाहर आ गये !!

4 मार्च 1930 को ये समझौता हुआ और 23, मार्च, 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी हुई !! आप खुद सोचे क्या यह समझौता सम्मानपूर्ण था या क्रांतिकारियों से छल-कपट था ?

भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव फाँसी के तख्ते पर अवश्य झूल गये, पर भारत की उबलती जवानी को फाँसी पर चढ़ने से पहले ये संदेश अवश्य दे गये -

मर कर भी ना जायगी, दिल से वफ़ा की उलफत !
मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आएगी !!

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