दोस्तों ये कहानी एक सच्चे और
महान सेकुलर(धर्मनिरपेक्ष) राजनेता की है !! कृप्या इनके जीवनी को
ध्यानपूर्वक पढ़ें और इनके या इनके जैसे अन्य महान सेकुलरों के बारे में
अपने विचार व्यक्त करें !!
एक राजनेता थे, बहुत बड़े धर्मनिरपेक्ष !! उनका जन्म तो हिंदू धर्म में हुआ था लेकिन जैसे-जैसे बड़े होते गये हिंदू धर्म के साथ-साथ सभी धर्म को मानने लगे !! उनके-माता पिता ने तो उनका नाम "निर्मोहनंद सिंह" रखा था मगर जैसे-जैसे उनमे धर्मनिरपेक्षता के भाव आने लगे उन्होने अपने नाम के साथ भी धर्मनिरपेक्षता का प्रयोग करना शुरू कर दिया और अंततः उन्होने अनेक शोध करने के बाद अपना नाम रखा "मोहम्मद निर्मोहनंद माइकल सिंह" !!
अपने ड्रॉयिंग रूम में भी उन्होने हर धर्म-महजब के आराध्यों की बड़ी-बड़ी फोटो टांग रखी थी !! जो भी आता उसे बड़े प्यार से वहाँ बैठाते !! अभी वो हतप्रभ हो कर फोटो ही देख रहा होता कि वो शुरू हो जाते – “भैया, हम तो जन्म से और स्वभाव से धर्मनिरपेक्ष हैं !! सभी का आदर करते हैं और सभी को शीश नवाते हैं !!”
उनकी दो रॉलिंग मीलें भी थी, जहाँ 'रॉ मेटीरियल' वह बिजली और फोन की तारे अपने गुर्गों से उतरवाकर रातों रात गलाकर काम चलाते थे !! जब पैसा बढ़ा तो यश भी बढ़ा और साथ-साथ शराब का बिज़्नेस भी शुरू कर लिया !! इसके साथ ही धर्मनिरपेक्षता भी बढ़ गयी !! सुबह उठते ही चुपचाप मस्जिद के द्वार पर अल्लाह-अल्लाह चिल्लाते रहते !! दोपहर को शिवजी के मंदिर जा विराजते और कीर्तन का आनंद लेते !! शाम से पूर्व गुरुद्वारे के अंदर नज़र आते और रात को तो चर्च जाना कभी नही भूलते !! उनकी बड़ी शोहरत हो गयी !! मुस्लिम उन्हे कट्टर मुसलमान बताते !! हिंदू उन्हें सच्चा शिवभक्त बताते !! सिख उन्हें 'भापाजी' कहने लगे !! ईसाई उनकी बड़ी कद्र करते !!
अंततः सारे धर्मों का प्रयोग करने के बाद "धर्मनिरपेक्ष साहब" एक दिन दुनिया से चल बसे !! उनके मृत्यु पर सारे धर्म के लोग गहन शोक में चले गये !! हर धर्म के लोगों ने अपने-अपने रीति-रिवाज के अनुसार पाठ किया, लेकिन अंतिम संस्कार के समय मुसीबत खड़ी हो गयी !! हिंदू उन्हें अपने रीति-रिवाज के अनुसार जलाना चाहते थे तो मुस्लिम उन्हें दफ़नाना चाहते थे जबकि ईसाई उन्हें ताबूत में पॅक करना चाहते थे !! अब बेचारे ढोंगी "धर्मनिरपेक्ष साहब" कोई संत कबीर तो थे नहीं कि पुष्पमाला में बदल जाते और हर धर्म के लोगों मे वितरित हो जाते !! शोर मचा और लोग मरने-मारने के लिए तैयार हो गये !! मार-काट की नौबत आ गयी !! प्रशासन ने लाश को अपने कब्ज़े में ले लिया और शहर में धारा 144 लगाने के बाद कर्फ़्यू लगा दी गयी !!
सब लोग उस "धर्मनिरपेक्ष साहब" को सम्मान देना चाहते थे !! परिवार वालों को तो कोई पूछने वाला न था !! एहतियात के लिए केंद्रीय रिजर्व पुलिस बुला ली गयी !! मुख्य सचिव ने डी. एम. महोदय से संपर्क साधा और पूछा - मृतक का शरीर कहाँ है ? डी. एम. साहब ने कहा - "सर, कॉर्पोरेशन की कूड़ा गाड़ी में उसे छिपाकर ऊपर से कूड़े से ढक दिया गया है, कोई शक भी नहीं करेगा !!" मुख्य सचिव ने संगीन माहौल को देखते हुए कहा - "शाबास !! बिल्कुल सही किया !! वैसे मृतक तो जन्म से हिंदू था, अतः शमशान में रात के दो बजे उसका अंतिम संस्कार कर दो !!" रात के मौन में कूड़ा-गाड़ी शमशान के द्वार पर रुकी !! शव उतारा गया !! जल्दबाज़ी में पुलिस, हवलदार और कॉर्पोरेशन के कर्मचारी ने शमशान के अघौड़ बाबा और उनके एक कुत्ते की मौजूदगी में शरीर को आग में समर्पित कर दिया !!
उसी समय शमशान में स्थित एक पीपल के वृक्ष पर बैठा एक प्रेत दंपत्ति यह दृश्य देख रहा था !! प्रेतनी ने कहा - सदियों से हम यहाँ बैठे हैं !! यह पहला केस है कि किसी व्यक्ति को जलाने के लिए उसके घर वाले भी ना आएँ !! एक पुलिस का हवलदार, दो कॉर्पोरेशन के कर्मचारी और एक कुत्ता ? कौन हैं ये ? और किसी ने "राम नाम सत्य है" भी नहीं बोला?
प्रेत ने कहा - ज़रा धीरे बोल, मैं तुम्हें समझाता हूँ !! यह "धर्मनिरपेक्ष" आदमी है !! सारा जीवन यह व्यक्ति निर्णय नहीं कर सका कि वह किस धर्म का प्राणी है !! बड़ा असमंजस में रहा !! अब हमारी तरह इन पीपल के पेड़ों पर प्रेत बन कर लटकेगा और अपने ही परिवार का एक अंग हो जाएगा !! हमें उसका स्वागत करना चाहिए !!
प्रेत और प्रेतनी ने श्रद्धा से उसे शीश नवा दिया और दो मिनट का मौन रख कर उस "धर्मनिरपेक्ष" मृतक के प्रति अपनी श्रद्धांजलि भी दे डाली !!
एक राजनेता थे, बहुत बड़े धर्मनिरपेक्ष !! उनका जन्म तो हिंदू धर्म में हुआ था लेकिन जैसे-जैसे बड़े होते गये हिंदू धर्म के साथ-साथ सभी धर्म को मानने लगे !! उनके-माता पिता ने तो उनका नाम "निर्मोहनंद सिंह" रखा था मगर जैसे-जैसे उनमे धर्मनिरपेक्षता के भाव आने लगे उन्होने अपने नाम के साथ भी धर्मनिरपेक्षता का प्रयोग करना शुरू कर दिया और अंततः उन्होने अनेक शोध करने के बाद अपना नाम रखा "मोहम्मद निर्मोहनंद माइकल सिंह" !!
अपने ड्रॉयिंग रूम में भी उन्होने हर धर्म-महजब के आराध्यों की बड़ी-बड़ी फोटो टांग रखी थी !! जो भी आता उसे बड़े प्यार से वहाँ बैठाते !! अभी वो हतप्रभ हो कर फोटो ही देख रहा होता कि वो शुरू हो जाते – “भैया, हम तो जन्म से और स्वभाव से धर्मनिरपेक्ष हैं !! सभी का आदर करते हैं और सभी को शीश नवाते हैं !!”
उनकी दो रॉलिंग मीलें भी थी, जहाँ 'रॉ मेटीरियल' वह बिजली और फोन की तारे अपने गुर्गों से उतरवाकर रातों रात गलाकर काम चलाते थे !! जब पैसा बढ़ा तो यश भी बढ़ा और साथ-साथ शराब का बिज़्नेस भी शुरू कर लिया !! इसके साथ ही धर्मनिरपेक्षता भी बढ़ गयी !! सुबह उठते ही चुपचाप मस्जिद के द्वार पर अल्लाह-अल्लाह चिल्लाते रहते !! दोपहर को शिवजी के मंदिर जा विराजते और कीर्तन का आनंद लेते !! शाम से पूर्व गुरुद्वारे के अंदर नज़र आते और रात को तो चर्च जाना कभी नही भूलते !! उनकी बड़ी शोहरत हो गयी !! मुस्लिम उन्हे कट्टर मुसलमान बताते !! हिंदू उन्हें सच्चा शिवभक्त बताते !! सिख उन्हें 'भापाजी' कहने लगे !! ईसाई उनकी बड़ी कद्र करते !!
अंततः सारे धर्मों का प्रयोग करने के बाद "धर्मनिरपेक्ष साहब" एक दिन दुनिया से चल बसे !! उनके मृत्यु पर सारे धर्म के लोग गहन शोक में चले गये !! हर धर्म के लोगों ने अपने-अपने रीति-रिवाज के अनुसार पाठ किया, लेकिन अंतिम संस्कार के समय मुसीबत खड़ी हो गयी !! हिंदू उन्हें अपने रीति-रिवाज के अनुसार जलाना चाहते थे तो मुस्लिम उन्हें दफ़नाना चाहते थे जबकि ईसाई उन्हें ताबूत में पॅक करना चाहते थे !! अब बेचारे ढोंगी "धर्मनिरपेक्ष साहब" कोई संत कबीर तो थे नहीं कि पुष्पमाला में बदल जाते और हर धर्म के लोगों मे वितरित हो जाते !! शोर मचा और लोग मरने-मारने के लिए तैयार हो गये !! मार-काट की नौबत आ गयी !! प्रशासन ने लाश को अपने कब्ज़े में ले लिया और शहर में धारा 144 लगाने के बाद कर्फ़्यू लगा दी गयी !!
सब लोग उस "धर्मनिरपेक्ष साहब" को सम्मान देना चाहते थे !! परिवार वालों को तो कोई पूछने वाला न था !! एहतियात के लिए केंद्रीय रिजर्व पुलिस बुला ली गयी !! मुख्य सचिव ने डी. एम. महोदय से संपर्क साधा और पूछा - मृतक का शरीर कहाँ है ? डी. एम. साहब ने कहा - "सर, कॉर्पोरेशन की कूड़ा गाड़ी में उसे छिपाकर ऊपर से कूड़े से ढक दिया गया है, कोई शक भी नहीं करेगा !!" मुख्य सचिव ने संगीन माहौल को देखते हुए कहा - "शाबास !! बिल्कुल सही किया !! वैसे मृतक तो जन्म से हिंदू था, अतः शमशान में रात के दो बजे उसका अंतिम संस्कार कर दो !!" रात के मौन में कूड़ा-गाड़ी शमशान के द्वार पर रुकी !! शव उतारा गया !! जल्दबाज़ी में पुलिस, हवलदार और कॉर्पोरेशन के कर्मचारी ने शमशान के अघौड़ बाबा और उनके एक कुत्ते की मौजूदगी में शरीर को आग में समर्पित कर दिया !!
उसी समय शमशान में स्थित एक पीपल के वृक्ष पर बैठा एक प्रेत दंपत्ति यह दृश्य देख रहा था !! प्रेतनी ने कहा - सदियों से हम यहाँ बैठे हैं !! यह पहला केस है कि किसी व्यक्ति को जलाने के लिए उसके घर वाले भी ना आएँ !! एक पुलिस का हवलदार, दो कॉर्पोरेशन के कर्मचारी और एक कुत्ता ? कौन हैं ये ? और किसी ने "राम नाम सत्य है" भी नहीं बोला?
प्रेत ने कहा - ज़रा धीरे बोल, मैं तुम्हें समझाता हूँ !! यह "धर्मनिरपेक्ष" आदमी है !! सारा जीवन यह व्यक्ति निर्णय नहीं कर सका कि वह किस धर्म का प्राणी है !! बड़ा असमंजस में रहा !! अब हमारी तरह इन पीपल के पेड़ों पर प्रेत बन कर लटकेगा और अपने ही परिवार का एक अंग हो जाएगा !! हमें उसका स्वागत करना चाहिए !!
प्रेत और प्रेतनी ने श्रद्धा से उसे शीश नवा दिया और दो मिनट का मौन रख कर उस "धर्मनिरपेक्ष" मृतक के प्रति अपनी श्रद्धांजलि भी दे डाली !!
Peace if possible, truth at all costs.