1. भारतभूमि पर जब-जब धर्म की हानि हुई है और अधर्म मेँ वृध्दि हुई है, तब-तब परमेश्वर साकाररूप मेँ अवतार ग्रहण करते हैँ और तब तक धरती नहीँ छोड़ते, जबतक सम्पूर्ण पृथ्वी अधर्महीन नहीँ हो जाती। लेकिन साईँ के जीवनकाल मेँ पूरा भारत गुलामी की बेड़ियोँ मे जकड़ा हुआ था, मात्र अंग्रेजोँ के अत्याचारोँ से मुक्ति न दिला सका तो साईँ अवतार कैसे?
न ही स्वयं अंग्रेजोँ के अत्याचारोँ के विरुद्ध आवाज़ उठाई और न ही अपने भक्तों को प्रेरित किया । इसके अतिरिक्त हजारों तरह की समस्या भी थी :- गौ हत्या, भ्रस्ताचार, भूखमरी तथा समाज में फैली अन्य कुरुतियाँ ! इसके विरुद्ध भी एक शब्द नही बोला !! जबकि अपनी पूरी आयु (80 वर्ष) जिया !!
2. साईं सच्चरित्र में बताया गया है की बाबा की जन्म तिथि सन 1838 के आसपास थी । हम 1838 ही मान कर चलते है । इसी किताब में बताया गया है की बाबा 16 वर्ष की आयु में सर्वप्रथम दिखाई पड़े (अध्याय 4)
अर्थात 1854 में सर्वप्रथम दिखाई पड़े , तभी लेखक ने 1838 में जन्म कहा है । झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई ने 1857 की क्रांति में महत्व पूर्ण योगदान दिया तथा लड़ते लड़ते विरांगना हुई । 1857 में बाबा की आयु 19 वर्ष के आस पास रही होगी ।
एक अवतार के धरती पर मोजूद होते हुए स्त्रियों को युद्ध क्षेत्र में जाना पड़े ???
19 वर्ष की आयु क्या युद्ध लड़ने के लिए पर्याप्त नही ? शिवाजी 19 वर्ष की आयु में निकल पड़े थे !!
मात्र 18 वर्ष की आयु में खुदीराम बोस सन 1908 में स्वतंत्रता संग्राम में शहीद हुये !
तो लक्ष्मी बाई, शिवाजी, खुदीराम बोस आदि अवतार नही और साईं अवतार कैसे ???
और फिर क्या श्री कृष्ण ने युवक अवस्था में पापियों को नही पछाड़ा था ?
भगवान श्री राम जी ने तड़का तथा अन्य देत्यों को मात्र 16 वर्ष की आयु में मारा और वहां के लोगो को सुखी व भय मुक्त किया !
यहाँ देखें :--
Scientific Dating of Ramayana by Dr. P.V. Vartak
3. राष्ट्रधर्म कहता है कि राष्ट्रोत्थान व आपातकाल मेँ प्रत्येक व्यक्ति का ये कर्तव्य होना चाहिए कि वे राष्ट्र को पूर्णतया आतंकमुक्त करने के लिए सदैव प्रयासरत रहेँ, परन्तु गुलामी के समय साईँ किसी परतन्त्रता विरोधक आन्दोलन तो दूर, न जाने कहाँ छिप कर बैठा था,जबकि उसके अनुयायियोँ की संख्या की भी कमी नहीँ थी, तो क्या ये देश से गद्दारी के लक्षण नहीँ है?
4. यदि साँईँ चमत्कारी था तो देश की गुलामी के समय कहाँ छुपकर बैठा था? इस किताब में लाखों बार साईं को अवतार, अंतर्यामी आदि आदि बताया गया है । तो क्या अंतर्यामी को यह ज्ञात नही हुआ की जलियावाला बाग़ (1919) में हजारों निर्दोष लोग मरने वाले है । मैं अवतार हु, कुछ तो करूँ !!
5. श्री कृष्ण ने तो अर्जुन को अन्याय, पाप, अधर्म के विरुद्ध लड़ने को प्ररित किया । ताकि पाप के अंत के पश्चात धरती पर शांति स्थापित हो सके । तो फिर साईं ने अपने हजारों भक्तों को अंग्रेजोँ के अत्याचारोँ के खिलाफ खड़ा कर उनका मार्गदर्शन क्यू नही किया ?
6 . एक और राहता (दक्षिण में) तथा दूसरी और नीमगाँव (उत्तर में) थे । बिच में था शिर्डी । बाबा अपने जीवन काल में इन सीमाओं से बहार नही गये (अध्याय 8)
एक और पूरा देश अंग्रेजों से त्रस्त था पुरे देश से सभी जन समय समय अंग्रेजों के विरुद्ध होते रहे, पिटते रहे , मरते रहे । और बाबा है की इस सीमाओं से पार भी नही गये । जबकि श्री राम ने जंगलों में घूम घूम कर देत्यों का नाश किया । श्री राम तथा कृष्ण ने सदेव कर्मठ बनने का मार्ग दिखाया । इसके विपरीत आचरण करने वाला साईं, श्री कृष्ण आदि का अवतार कैसे ????
7 . उस समय श्री कृष्ण की प्रिय गऊ माताएं कटती थी क्या कभी ये उसके विरुद्ध बोला ?
8. भारत का सबसे बड़ा अकाल साईं बाबा के जीवन के दौरान पड़ा
>(अ ) 1866 में ओड़िसा के अकाल में लगभग ढाई लाख भूंख से मर गए
>(ब) 1873 -74 में बिहार के अकाल में लगभग एक लाख लोग प्रभावित हुए ….भूख के कारण लोगो में इंसानियत ख़त्म हो गयी थी|
>(स ) 1875 -1902 में भारत का सबसे बड़ा अकाल पड़ा जिसमें लगभग 6 लाख लोग मरे गएँ|
साईं बाबा ने इन लाखो लोगो को अकाल से क्यूँ पीड़ित होने दिया यदि वो भगवान या चमत्कारी थे? क्यूँ इन लाखो लोगो को भूंख से तड़प -तड़प कर मरने दिया?
9 . साईं बाबा के जीवन काल के दौरान बड़े भूकंप आये जिनमें हजारो लोग मरे गए
(अ ) १८९७ जून शिलांग में
(ब) १९०५ अप्रैल काँगड़ा में
(स) १९१८ जुलाई श्री मंगल असाम में
साईं बाबा भगवान होते हुए भी इन भूकम्पों को क्यूँ नहीं रोक पाए?…क्यूँ हजारो को असमय मारने दिया ?
10. एक कथा के अनुसार संत तिरुवल्लुवर एक बार एक गाँव में गये "वहां उन्होंने अपना अपमान करने वालों को आबाद रहो तथा सम्मान करने वालों को उजड़ जाओ " का आशीर्वाद दिया । जब उन्हें इस आशीर्वाद का रहस्य पूछा गया तो उन्होंने कहा जो सत्पुरुष है वे यदि उजड़ जायेंगे तो वे अपने ज्ञान का प्रकाश जहाँ जहाँ जायेंगे वहां वहां फेलायेंगे । किन्तु साईं तो एक ही जगह चिपक कर बैठे रहे । ज्ञान का प्रकाश एक छोटे से गाँव तक ही सिमित रहा !!
जबकि स्वामी दयानंद 18-19 वर्ष की आयु में ही वेदों के महान ज्ञाता हो गये थे और गृह का त्याग कर पुरे भारत वर्ष मे भ्रमण किया वेद रूपी सत्य विद्या का प्रचार किया , ढोंगियों को पछाड़ा , कितनो का ही जीवन सुधारा ।
दयानंद जी ने सर्वप्रथम स्वराज्य, स्वदेशी, स्वभाषा, स्वभेष और स्वधर्म की प्रेरणा देशवासियों को दी। गोरक्षा आंदोलन में उनकी विशेष भूमिका रही। स्वामी जी ने अप्रैल 1875 में आर्यसमाज की स्थापना की, जिसके सदस्यों की स्वतंत्रता संग्राम में विशेष भूमिका रही।
तो स्वामी दयानंद अवतार नही और साईं अवतार कैसे ??
स्वामी विवेकानंद आदि ने भारतीय संस्कृति, योग, वेद आदि को विदेशों तक पहुँचाया ! जब उन्होंने शिकागो में (1893 ) प्रथम भाषण दिया, निकोल टेस्ला, श्रोडेंगर, आइंस्टीन, नील्स बोहर जैसे जानेमाने वैज्ञानिक और अन्य हजारों लोग उनके भक्त बन गये । उस समय स्वामी जी मात्र 33 वर्ष के थे और बाबा 55 वर्ष के !
महापुरुष का जीवन भटकाऊ होता है वो एक जगह सुस्त पड़ा नही रहता !
Peace if possible, truth at all costs.