गंगा-जमुनी तहजीब के नाम
कहा जाता है की सदियों से हिन्दू मुसलमान इस देश में साथ रहते आये है
गंगा जमुनी तहजीब है
प्यार मोहब्बत इंसानियत का रिश्ता है......
for example
.
ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती..... हर आम हिंदुस्तानी के दिल में बसते है
.
और अजीमुस्शान शहंशाह अकबर... जिन्होंने हिन्दुस्तान की आवाम को "काट काट कर" एक क्षत्र के नीचे खड़ा कर दिया
जिन्होंने धर्म के बंधन तोड़ सेकड़ो राजपूत कन्याओं को अपने हरम में डाल सभी वर्गों को अपने समीप आने का अवसर प्रदान किया
.
और टीपू सुलतान? जो देश के लिए अंग्रेजो से लड़ता हुआ शहीद हो गया..?
.
पर इस बीच कुछ सिरफिरे भी निकल आते है जो सवाल उठाते है की...
मुहम्मद गोरी नामक विदेशी को पृथ्वीराज पे हमले के लिए उकसाने वाला और मदद करने वाला मुइनुद्दीन चिश्ती तो एक गद्दार घुसपेठिया मात्र था?
या फिर
चित्तोड़ विजय के बाद 30000 निर्दोषो का कत्लेआम आम कर सिरों की मीनार बनाने वाला.. अपने हरम में हजारो हिंदुस्तानी लडकियो को धकेलने वाला अकबर हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक कैसे हुआ?
.
और हजारो हिन्दुओ को इस्लाम ना कबूल करने पे गारत करने वाला टीपू सुलतान जो मात्र अपनी रियासत के लिए अंग्रेजो से लड़ रहां था उसे देश भक्त काहे माना जाए?
.
सदियों से साथ रहने के सवाल पे जब ये सिरफिरे पूछते हैं की...
जब एक समय एक देश की सीमाए पश्चिम में ईरान और पूर्व में बर्मा तक छूती थी तो ऐसा क्या हुआ की हमारे साथ रहने वाले कथित भाइयो ने उसे अनेक टुकडो (पाकिस्तान, अफगानिस्तान, कश्मीर, बांग्लादेश आदि) में तोड़ डाला? जिसमे आज किसी में भी हिन्दू नाम मात्र को नहीं है?
.
तो इतना सुनते ही बुद्धिजीवियों की भुकुटि तन जाती है
नेत्र तमतमा जाते है
भुजाये फड़कने लगती है
.
सही बात है
इन सिरफिरो सालो को कतई अक्ल नहीं....
क्या हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए कुछ हिन्दू सिर्फ अपने सर, जमीन, इज्जत और बीवियों की कुर्बानी नहीं दे सकते???
.
क्या हिन्दुओ का कर्त्तव्य नहीं की दुनिया भर में परोपकार और जनकल्याण की भावना से ओत प्रोत घुम रहे मुगलों तुर्को बगदादियो आदि को अपने धन, धर्म और बहन बेटिया अर्पण कर उनके परोपकार का मूल्य चुकाए?
.
जो मुगलों की औलाद हजार सालो से अपना मुल्क छोड़ इस पराये मुल्क भारत को एकता के सूत्र में पिरोने के पुनीत उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्य कर रहे है उन्हें इतना हक़ तो है ही की...
इस देश का माल अपने बाप का माल समझ के हड़प ले
दुसरो की बहन बेटियों जायदाद को पारितोषिक समझ लूट खसोट तथा बलात्कार का आनंद ले
और
इस सबसे बढ़ कर... "एकता का प्रतीक" होने का सम्मान प्राप्त कर सके...
.
सिरफिरे भोकते हैं
सुनता कौन है
.
अपनी इज्जत, स्वाभिमान और देश को गंगा जमुनी तहजीब के नाम पे बेच देने वाले सभी "ह-रामजादो" को शत शत नमन....
कहा जाता है की सदियों से हिन्दू मुसलमान इस देश में साथ रहते आये है
गंगा जमुनी तहजीब है
प्यार मोहब्बत इंसानियत का रिश्ता है......
for example
.
ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती..... हर आम हिंदुस्तानी के दिल में बसते है
.
और अजीमुस्शान शहंशाह अकबर... जिन्होंने हिन्दुस्तान की आवाम को "काट काट कर" एक क्षत्र के नीचे खड़ा कर दिया
जिन्होंने धर्म के बंधन तोड़ सेकड़ो राजपूत कन्याओं को अपने हरम में डाल सभी वर्गों को अपने समीप आने का अवसर प्रदान किया
.
और टीपू सुलतान? जो देश के लिए अंग्रेजो से लड़ता हुआ शहीद हो गया..?
.
पर इस बीच कुछ सिरफिरे भी निकल आते है जो सवाल उठाते है की...
मुहम्मद गोरी नामक विदेशी को पृथ्वीराज पे हमले के लिए उकसाने वाला और मदद करने वाला मुइनुद्दीन चिश्ती तो एक गद्दार घुसपेठिया मात्र था?
या फिर
चित्तोड़ विजय के बाद 30000 निर्दोषो का कत्लेआम आम कर सिरों की मीनार बनाने वाला.. अपने हरम में हजारो हिंदुस्तानी लडकियो को धकेलने वाला अकबर हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक कैसे हुआ?
.
और हजारो हिन्दुओ को इस्लाम ना कबूल करने पे गारत करने वाला टीपू सुलतान जो मात्र अपनी रियासत के लिए अंग्रेजो से लड़ रहां था उसे देश भक्त काहे माना जाए?
.
सदियों से साथ रहने के सवाल पे जब ये सिरफिरे पूछते हैं की...
जब एक समय एक देश की सीमाए पश्चिम में ईरान और पूर्व में बर्मा तक छूती थी तो ऐसा क्या हुआ की हमारे साथ रहने वाले कथित भाइयो ने उसे अनेक टुकडो (पाकिस्तान, अफगानिस्तान, कश्मीर, बांग्लादेश आदि) में तोड़ डाला? जिसमे आज किसी में भी हिन्दू नाम मात्र को नहीं है?
.
तो इतना सुनते ही बुद्धिजीवियों की भुकुटि तन जाती है
नेत्र तमतमा जाते है
भुजाये फड़कने लगती है
.
सही बात है
इन सिरफिरो सालो को कतई अक्ल नहीं....
क्या हिन्दू मुस्लिम एकता के लिए कुछ हिन्दू सिर्फ अपने सर, जमीन, इज्जत और बीवियों की कुर्बानी नहीं दे सकते???
.
क्या हिन्दुओ का कर्त्तव्य नहीं की दुनिया भर में परोपकार और जनकल्याण की भावना से ओत प्रोत घुम रहे मुगलों तुर्को बगदादियो आदि को अपने धन, धर्म और बहन बेटिया अर्पण कर उनके परोपकार का मूल्य चुकाए?
.
जो मुगलों की औलाद हजार सालो से अपना मुल्क छोड़ इस पराये मुल्क भारत को एकता के सूत्र में पिरोने के पुनीत उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्य कर रहे है उन्हें इतना हक़ तो है ही की...
इस देश का माल अपने बाप का माल समझ के हड़प ले
दुसरो की बहन बेटियों जायदाद को पारितोषिक समझ लूट खसोट तथा बलात्कार का आनंद ले
और
इस सबसे बढ़ कर... "एकता का प्रतीक" होने का सम्मान प्राप्त कर सके...
.
सिरफिरे भोकते हैं
सुनता कौन है
.
अपनी इज्जत, स्वाभिमान और देश को गंगा जमुनी तहजीब के नाम पे बेच देने वाले सभी "ह-रामजादो" को शत शत नमन....
Peace if possible, truth at all costs.