जानए साई को साई सचित्र से साईं के महा दुष्ट होने के प्रमाण :-
ch-1(चैप्टर-1) पहली लाइन, मैं बाबा के दर्शन करने मस्जिद गया,
ch-2(चैप्टर 2) 2nd... लास्ट पेज, बाबा हमेशा मस्जिद में रहते थे ,
Ch-23( चैप्टर 23), बाबा के मुह पर सदैव अल्लाह मालिक रहता था ,
ch-22 बाबा खाने से पहले अल फातिहा जरुर पढ़ते थे ,
ch-22, बाबा रोज कुरान पढ़ते थे ,
ch-23 बाबा ने न खुद कभी उपवास किया न किसी को करने दिया ,
Ch-38 बाबा प्रसाद में मीठ(मांस) मिला कर देते थे ,
ch-38, मीठ राइस उनका सबसे प्रिय भोजन था
Ch-23, बाबा ने कहा मैं तो यावनी (मुसलमान) हूँ
Ch- 28,शिरडी पहुँचने पर जब वह मस्जिद मेँ घुसा तो बाबा अत्यन्त क्रोधित हो गये और उसे उन्होने मस्जिद मेँ आने की मनाही कर दी। वे गर्जन कर कहने लगे कि इसे बाहर निकाल दो। फिर मेधा की ओर देखकर कहने लगे कि तुम तो एक उच्च कुलीन ब्राह्मण हो और मैँ निम्न जाति का यवन (मुसलमान)। तुम्हारी जाति भ्रष्ट हो जायेगी। गंगाजल का अपमान :-
Ch-32 मुझे इस झंझट से दूर ही रहने दो। मैँ तो एक फकीर(मुस्लिम, हिन्दू साधू कहे जाते हैँ फकीर नहीँ) हूँ।मुझे गंगाजल से क्या प्रायोजन? मांसाहारी साँई बाबा :-
CH- 23 मस्जिद मेँ एक बकरा बलि देने के लिए लाया गया। वह अत्यन्त दुर्बल और मरने वाला था। बाबा ने उनसे चाकू लाकर बकरा काटने को कहा।
CH- 23तब बाबा ने काकासाहेब से कहा कि मैँ स्वयं ही बलि चढ़ाने का कार्य करूँगा। CH-5 & 7 फकीरोँ के साथ वो आमिष(मांस) और मछली का सेवन करते थे।
CH-38 कभी वे मीठे चावल बनाते और कभी मांसमिश्रित चावल अर्थात् नमकीन पुलाव। CH32 एक एकादशी के दिन उन्होँने दादा कलेकर को कुछ रूपये माँस खरीद लाने को दिये। दादा पूरे कर्मकाण्डी थे और प्रायः सभी नियमोँ का जीवन मेँ पालन किया करते थे। CH-38 ऐसे ही एक अवसर पर उन्होने दादा से कहा कि देखो तो नमकीन पुलाव कैसा पका है? दादा ने योँ ही मुँहदेखी कह दिया किअच्छा है। तब बाबा कहने लगे कि तुमने न अपनी आँखोँ से ही देखा है और न ही जिह्वा से स्वाद लिया, फिर तुमने यह कैसे कह दिया कि उत्तम बना है? थोड़ा ढक्कन हटाकर तो देखो। बाबा ने दादा की बाँह पकड़ी और बलपूर्वक बर्तन मेँ डालकर बोले -”अपना कट्टरपन छोड़ो और थोड़ा चखकर देखो”
जिन भाइयो को भरोषा नही है साई सचरित के इस लिंक पर जा कर सत्यापन करे
ch-1(चैप्टर-1) पहली लाइन, मैं बाबा के दर्शन करने मस्जिद गया,
ch-2(चैप्टर 2) 2nd... लास्ट पेज, बाबा हमेशा मस्जिद में रहते थे ,
Ch-23( चैप्टर 23), बाबा के मुह पर सदैव अल्लाह मालिक रहता था ,
ch-22 बाबा खाने से पहले अल फातिहा जरुर पढ़ते थे ,
ch-22, बाबा रोज कुरान पढ़ते थे ,
ch-23 बाबा ने न खुद कभी उपवास किया न किसी को करने दिया ,
Ch-38 बाबा प्रसाद में मीठ(मांस) मिला कर देते थे ,
ch-38, मीठ राइस उनका सबसे प्रिय भोजन था
Ch-23, बाबा ने कहा मैं तो यावनी (मुसलमान) हूँ
Ch- 28,शिरडी पहुँचने पर जब वह मस्जिद मेँ घुसा तो बाबा अत्यन्त क्रोधित हो गये और उसे उन्होने मस्जिद मेँ आने की मनाही कर दी। वे गर्जन कर कहने लगे कि इसे बाहर निकाल दो। फिर मेधा की ओर देखकर कहने लगे कि तुम तो एक उच्च कुलीन ब्राह्मण हो और मैँ निम्न जाति का यवन (मुसलमान)। तुम्हारी जाति भ्रष्ट हो जायेगी। गंगाजल का अपमान :-
Ch-32 मुझे इस झंझट से दूर ही रहने दो। मैँ तो एक फकीर(मुस्लिम, हिन्दू साधू कहे जाते हैँ फकीर नहीँ) हूँ।मुझे गंगाजल से क्या प्रायोजन? मांसाहारी साँई बाबा :-
CH- 23 मस्जिद मेँ एक बकरा बलि देने के लिए लाया गया। वह अत्यन्त दुर्बल और मरने वाला था। बाबा ने उनसे चाकू लाकर बकरा काटने को कहा।
CH- 23तब बाबा ने काकासाहेब से कहा कि मैँ स्वयं ही बलि चढ़ाने का कार्य करूँगा। CH-5 & 7 फकीरोँ के साथ वो आमिष(मांस) और मछली का सेवन करते थे।
CH-38 कभी वे मीठे चावल बनाते और कभी मांसमिश्रित चावल अर्थात् नमकीन पुलाव। CH32 एक एकादशी के दिन उन्होँने दादा कलेकर को कुछ रूपये माँस खरीद लाने को दिये। दादा पूरे कर्मकाण्डी थे और प्रायः सभी नियमोँ का जीवन मेँ पालन किया करते थे। CH-38 ऐसे ही एक अवसर पर उन्होने दादा से कहा कि देखो तो नमकीन पुलाव कैसा पका है? दादा ने योँ ही मुँहदेखी कह दिया किअच्छा है। तब बाबा कहने लगे कि तुमने न अपनी आँखोँ से ही देखा है और न ही जिह्वा से स्वाद लिया, फिर तुमने यह कैसे कह दिया कि उत्तम बना है? थोड़ा ढक्कन हटाकर तो देखो। बाबा ने दादा की बाँह पकड़ी और बलपूर्वक बर्तन मेँ डालकर बोले -”अपना कट्टरपन छोड़ो और थोड़ा चखकर देखो”
जिन भाइयो को भरोषा नही है साई सचरित के इस लिंक पर जा कर सत्यापन करे
http://www.shrisaibabasansthan.org/…/Hindi%20Sai…/hindi.html
साईं सचित्र से सिद्ध होता है की साईं बाबा एक मुसिलम थे और मांसहारी भी थे फिर साई कि पूजा क्यों अगर पूजा ही करनी है तो सनातन देवी देवताओ कि करो जब भगवान कृष्ण ने गीता में खुद कहा है
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥२- ४७॥
तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू कर्मों के फल हेतु मत हो तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो
और गौस्वामी तुलसी दास जी भी लिखते है कर्म प्रधान विस्व करी रखा जो जस करई सो तस फल चाखा जब कर्म ही प्रधान है तो फिर सांसारिक वासनाओ के लिए साई कि पूजा क्यों क्या कोई बुध्धिजीवी मुझे जबाब दे सकता है .....?
http://www.shrisaibabasansthan.org/…/Hindi%20Sai…/hindi.html
साईं सचित्र से सिद्ध होता है की साईं बाबा एक मुसिलम थे और मांसहारी भी थे फिर साई कि पूजा क्यों अगर पूजा ही करनी है तो सनातन देवी देवताओ कि करो जब भगवान कृष्ण ने गीता में खुद कहा है
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥२- ४७॥
तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए तू कर्मों के फल हेतु मत हो तथा तेरी कर्म न करने में भी आसक्ति न हो
और गौस्वामी तुलसी दास जी भी लिखते है कर्म प्रधान विस्व करी रखा जो जस करई सो तस फल चाखा जब कर्म ही प्रधान है तो फिर सांसारिक वासनाओ के लिए साई कि पूजा क्यों क्या कोई बुध्धिजीवी मुझे जबाब दे सकता है .....?
http://www.shrisaibabasansthan.org/…/Hindi%20Sai…/hindi.html
Peace if possible, truth at all costs.