जीटी रोड के इतिहास के बारे मे हम सभी जनते हैँ के अविभक्त भारत के ढाका
के सोनार गांव से पेशावर तक जाने वली इतिहास प्रसिद्ध सडक के शिल्पकार
निर्माता एक मात्र शेर शाह था। किंतु क्या कभी एक बार भी हमारे मन मे विचार
आया कि आज से लग्भग 475 वर्श पूर्व अपने मात्र 6 वर्ष के अल्पकालिक शासन
काल मे इस 3000 मील या 4800 किलोमीटर की विशालकाय परियोजना का निर्माण कैसे सम्भव हो सका। जो आज के अत्याधुनिक उपकरणॉ के युग मे भी एकबार के लिए दिवास्वप्न सा लगता है।
इस पर सांतनु पात्र के विचार कुछ इस प्रकार है--पश्चिम बंगाल की सेकुलर पार्टियोँ के बीच एक कहावत प्रसिद्ध है “ यदि सपनोँ के ही पुलाव खिलाने है तो घी कम क़्य़ॉ डालेँ”। बस इसी कहावत को मस्तिष्क मे राख कर इस देश के इतिहासकारोँ ने मुसलमान् शासकोँ की चाटुकारिता मे इतना घी डाल दिया है कि अब उबकाई सी आने लगी है। उदाहरण के लिये 17 मई 1540 को हुमायुँ को पराजित कर शेर शाह दिल्लि के सिंहासन पर बैठा था। इसी साल पंजाब के गुज्जर जाति के भयंकर विद्रोह के कारण उसका बादशाह बने रहने का सपना टूट सा गया था। सन् 1541 बंगाल मे विद्रोह, 42 मे माल्वा मे विद्रोह, 1543 मेँ राजा पूरणमल से युद्ध कर रायसीन दुर्ग जीता। 1544 मे राठोड राजा मालदेव के विरुद्ध अभियान, और 1545 मेँ कलिंग युद्ध मे भयंकर रूप से घायेल होने के बाद अल्लाह की इच्छा से इंतिकाल हो गया। उसने अपने पाँच वर्ष के शासंकाल मे केवल युद्ध , दमन, हिन्दु राजाओँ के खिलाफ जिहाद और मुस्लिम बादशाहोँ से लडाई मेँ ही गुजार दिये। तो फिर अखण्ड भारत के ढाका से पेशावर तक के 4800 कि.मी. की इस ऐतिहासिक सडक के निर्माण के लिये जेसीपी, बुल्डोजर, रोडरोलर जैसे उपकरण और दिनरात भुखे प्यासे रहकर मेहनत करने का समय कहाँ से मिला।
इतना ही नही उसने तीन और सडकेँ बनाई बाताते हैँ -
1) 600 किमी की आगरा से बुरहानपुर तक की सडक
2) आगरा से चित्तौड्गढ होटल हुये जोधपुर तक की 324 किमी सडक
3) लाहौर से मुल्तान तक162 किमी रास्ताकुल – 4800+600+324+162 = 5866 किमी सडॅक का निर्माण केवल सडक निर्माण ही नही रास्ते मे पडनेवाली नदियोँ के ऊपर पुल का निर्माण भी अल्लाः की इच्छा से हो गया।राहगीरोँ को धूप गर्मी से बचाने के लिये छायादार पेड भी उस प्रजा वत्सल शासक ने इसी दौरान् लगाये। काफिर हिन्दूऑ और ब्रह्मणोँ के आराम और थकान मिटाने के लिये सराय बनवाई जिनमे शुद्ध शाकाहारी खाना पकाने के लिये अलग से रसोई घर बनवाये।उस महान सेकुलर और प्रजापालक ने जहाँ इतने सारे काम काफिर हिन्दुओँ के लिये किये वहीँ हिदू राजाओँ का काम इन इतिहासकारोँ के अनुसर शायद एक ही रहा होगा – खाना और पाखाना ?भारत के बामपंथी इतिहासकारो ने शेर शाह को मानविक गुणोँ के सागर मे डुबो कर मार डाला। 1971 मे जिस प्रकार बांग्लादेश मे पठान सेनाओँ ने हिन्दुओँ की नृषंश हत्यायेँ की, हिन्दू महिलाओँ का अमानवीय उत्पीडन और बलत्कार किया, हिन्दू पुरुषोँ को नग्न कर गुप्तांग काटने जैसे कुकृत्य किये उनका पुर्वज ही तो थी शेर शाह। जिसके वंशज आज तालीबान बनकर मानव जाति को त्रस्त और् आतंकित कर सुख्याति अर्जित कर रहे हैं वो उसी श्र शाह के प्रतिरूप ही तो है।
इस पर सांतनु पात्र के विचार कुछ इस प्रकार है--पश्चिम बंगाल की सेकुलर पार्टियोँ के बीच एक कहावत प्रसिद्ध है “ यदि सपनोँ के ही पुलाव खिलाने है तो घी कम क़्य़ॉ डालेँ”। बस इसी कहावत को मस्तिष्क मे राख कर इस देश के इतिहासकारोँ ने मुसलमान् शासकोँ की चाटुकारिता मे इतना घी डाल दिया है कि अब उबकाई सी आने लगी है। उदाहरण के लिये 17 मई 1540 को हुमायुँ को पराजित कर शेर शाह दिल्लि के सिंहासन पर बैठा था। इसी साल पंजाब के गुज्जर जाति के भयंकर विद्रोह के कारण उसका बादशाह बने रहने का सपना टूट सा गया था। सन् 1541 बंगाल मे विद्रोह, 42 मे माल्वा मे विद्रोह, 1543 मेँ राजा पूरणमल से युद्ध कर रायसीन दुर्ग जीता। 1544 मे राठोड राजा मालदेव के विरुद्ध अभियान, और 1545 मेँ कलिंग युद्ध मे भयंकर रूप से घायेल होने के बाद अल्लाह की इच्छा से इंतिकाल हो गया। उसने अपने पाँच वर्ष के शासंकाल मे केवल युद्ध , दमन, हिन्दु राजाओँ के खिलाफ जिहाद और मुस्लिम बादशाहोँ से लडाई मेँ ही गुजार दिये। तो फिर अखण्ड भारत के ढाका से पेशावर तक के 4800 कि.मी. की इस ऐतिहासिक सडक के निर्माण के लिये जेसीपी, बुल्डोजर, रोडरोलर जैसे उपकरण और दिनरात भुखे प्यासे रहकर मेहनत करने का समय कहाँ से मिला।
इतना ही नही उसने तीन और सडकेँ बनाई बाताते हैँ -
1) 600 किमी की आगरा से बुरहानपुर तक की सडक
2) आगरा से चित्तौड्गढ होटल हुये जोधपुर तक की 324 किमी सडक
3) लाहौर से मुल्तान तक162 किमी रास्ताकुल – 4800+600+324+162 = 5866 किमी सडॅक का निर्माण केवल सडक निर्माण ही नही रास्ते मे पडनेवाली नदियोँ के ऊपर पुल का निर्माण भी अल्लाः की इच्छा से हो गया।राहगीरोँ को धूप गर्मी से बचाने के लिये छायादार पेड भी उस प्रजा वत्सल शासक ने इसी दौरान् लगाये। काफिर हिन्दूऑ और ब्रह्मणोँ के आराम और थकान मिटाने के लिये सराय बनवाई जिनमे शुद्ध शाकाहारी खाना पकाने के लिये अलग से रसोई घर बनवाये।उस महान सेकुलर और प्रजापालक ने जहाँ इतने सारे काम काफिर हिन्दुओँ के लिये किये वहीँ हिदू राजाओँ का काम इन इतिहासकारोँ के अनुसर शायद एक ही रहा होगा – खाना और पाखाना ?भारत के बामपंथी इतिहासकारो ने शेर शाह को मानविक गुणोँ के सागर मे डुबो कर मार डाला। 1971 मे जिस प्रकार बांग्लादेश मे पठान सेनाओँ ने हिन्दुओँ की नृषंश हत्यायेँ की, हिन्दू महिलाओँ का अमानवीय उत्पीडन और बलत्कार किया, हिन्दू पुरुषोँ को नग्न कर गुप्तांग काटने जैसे कुकृत्य किये उनका पुर्वज ही तो थी शेर शाह। जिसके वंशज आज तालीबान बनकर मानव जाति को त्रस्त और् आतंकित कर सुख्याति अर्जित कर रहे हैं वो उसी श्र शाह के प्रतिरूप ही तो है।
Peace if possible, truth at all costs.