शहीद ए आजम भगत सिंह का कत्ल होने के बाद उनके समाधि की दुर्दशा देखकर आप
चौक जायेंगें जबकि धूर्त गाँधी की समाधि पर दुनिया भर के सारे धूर्त नेता
मोदी केजरीवाल ओबामा गाँधी परिवार फूल चढाते हैं
मेरे जज्बातों से इस कदर वाकिफ है मेरी कलम कि, मैं ‘इश्क’ भी लिखना चाहूं तो ‘इंकलाब’ लिखा जाता है...
इन अमर अल्फाजों के जन्मदाता शहीदे आजम भगत सिंह का मरने के बाद क्या हुआ? इसके तमाम सुबूत पाक बॉर्डर पर मिलेंगे। भारत-पाक बॉर्डर पर बने समाधि स्थल पर लगे बोर्ड पर ये सारी जानकारी अंकित है। इसमें बताया गया है कि फांसी के बाद भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के शवों के साथ अंग्रेज किस बेरहमी से पेश आए।
फिरोजपुर शहर से 10 किलोमीटर दूरी पर बने हुसैनीवाला बार्डर पर ये वही जगह है जो कुछ साल पहले पाकिस्तान के कब्जे में थी। यहां पर शहीद भगत सिंह के अलावा सुखदेव, राजगुरु और बटुकेश्वर दत्त जैसे आजादी के दीवानों की समाधि है। यहां पर वह पुरानी जेल भी है, जहां भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव लाहौर जेल में शिफ्ट करने से पहले रखा गया था।
स्मारक स्थल पर लगे बोर्ड के मुताबिक अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांड्रस की हत्या के दोष में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई तो इसके विरोध में पूरा लाहौर बगावत के लिए उठ खड़ा हुआ।
डरी हुई ब्रिटिश सरकार ने निश्चित तारीख से एक दिन पहले 23 मार्च 1931 को शाम 7 बजे तीनों को फांसी दे दी। उसके बाद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शवों के टुकड़े-टुकड़े कर अंग्रेज उन्हें लाहौर जेल की पिछली दीवार तोड़कर सतलुज दरिया के किनारे लाए और रात के अंधेरे में यहां बिना रीति रिवाज के जला दिया।
बटुकेशवर दत्त का निधन 19 जुलाई 1965 को दिल्ली में हुआ। उनकी अंतिम इच्छा अनुसार उनका अंतिम संस्कार भी इसी स्थान पर किया गया। इस स्मारक पर चारों के समाधि स्थल बने हुए हैं।
बहुत कम लोग जानते होंगे कि हुसैनीवाला स्थित समाधि स्थल 1960 से पहले पाकिस्तान के कब्जे में था। जन भावनाओं को देखते हुए 1950 में तीनों शहीदों की समाधि स्थल पाक से लेने की कवायद शुरू हुई। करीब 10 साल बाद फाजिल्का के 12 गांव व सुलेमान की हेड वर्क्स पाकिस्तान को देने के बाद शहीद त्रिमूर्ति से जुड़ा समाधि स्थल भारत को मिल गया।
यहां भारतीय रेल खत्म, केवल एक दिन
हुसैनीवाला से होकर एक समय में रेल लाइन लाहौर तक जाती थी। पर पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के दौरान यह रेल मार्ग बंद कर दियागया। कभी यहां सतलुज दरिया पर बने रेल पुल को भी तोड़ दिया गया। अब फिरोजपुर से हुसैनीवाला में ही आकर रेल लाइन खत्म हो जाती है।
रेलवे ट्रैक को ब्लॉक कर यहां लिखा गया है- द एंड ऑफ नार्दर्न रेलवे। पूरे साल में एक दिन यानी 23 मार्च को फिरोजपुर से एक स्पेशल ट्रेन बार्डर के लिए चलती है। यहां हर साल मार्च में शहीदी दिवस के मौके पर बड़ा मेला लगता है।
सतलुज दरिया के करीब बने इस समाधि स्थल को अब पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जा रहा है। समाधि स्थल के आसपास ग्रीनरी क्षेत्र विकसित किया जा रहा है। यहां पार्क और झूले-फव्वारे लगाए गए हैं। शुक्रवार और रविवार को खास तौर पर सैलानियों की भीड़ होती है।
मेरे जज्बातों से इस कदर वाकिफ है मेरी कलम कि, मैं ‘इश्क’ भी लिखना चाहूं तो ‘इंकलाब’ लिखा जाता है...
इन अमर अल्फाजों के जन्मदाता शहीदे आजम भगत सिंह का मरने के बाद क्या हुआ? इसके तमाम सुबूत पाक बॉर्डर पर मिलेंगे। भारत-पाक बॉर्डर पर बने समाधि स्थल पर लगे बोर्ड पर ये सारी जानकारी अंकित है। इसमें बताया गया है कि फांसी के बाद भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु के शवों के साथ अंग्रेज किस बेरहमी से पेश आए।
फिरोजपुर शहर से 10 किलोमीटर दूरी पर बने हुसैनीवाला बार्डर पर ये वही जगह है जो कुछ साल पहले पाकिस्तान के कब्जे में थी। यहां पर शहीद भगत सिंह के अलावा सुखदेव, राजगुरु और बटुकेश्वर दत्त जैसे आजादी के दीवानों की समाधि है। यहां पर वह पुरानी जेल भी है, जहां भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव लाहौर जेल में शिफ्ट करने से पहले रखा गया था।
स्मारक स्थल पर लगे बोर्ड के मुताबिक अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांड्रस की हत्या के दोष में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा सुनाई गई तो इसके विरोध में पूरा लाहौर बगावत के लिए उठ खड़ा हुआ।
डरी हुई ब्रिटिश सरकार ने निश्चित तारीख से एक दिन पहले 23 मार्च 1931 को शाम 7 बजे तीनों को फांसी दे दी। उसके बाद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शवों के टुकड़े-टुकड़े कर अंग्रेज उन्हें लाहौर जेल की पिछली दीवार तोड़कर सतलुज दरिया के किनारे लाए और रात के अंधेरे में यहां बिना रीति रिवाज के जला दिया।
बटुकेशवर दत्त का निधन 19 जुलाई 1965 को दिल्ली में हुआ। उनकी अंतिम इच्छा अनुसार उनका अंतिम संस्कार भी इसी स्थान पर किया गया। इस स्मारक पर चारों के समाधि स्थल बने हुए हैं।
बहुत कम लोग जानते होंगे कि हुसैनीवाला स्थित समाधि स्थल 1960 से पहले पाकिस्तान के कब्जे में था। जन भावनाओं को देखते हुए 1950 में तीनों शहीदों की समाधि स्थल पाक से लेने की कवायद शुरू हुई। करीब 10 साल बाद फाजिल्का के 12 गांव व सुलेमान की हेड वर्क्स पाकिस्तान को देने के बाद शहीद त्रिमूर्ति से जुड़ा समाधि स्थल भारत को मिल गया।
यहां भारतीय रेल खत्म, केवल एक दिन
हुसैनीवाला से होकर एक समय में रेल लाइन लाहौर तक जाती थी। पर पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध के दौरान यह रेल मार्ग बंद कर दियागया। कभी यहां सतलुज दरिया पर बने रेल पुल को भी तोड़ दिया गया। अब फिरोजपुर से हुसैनीवाला में ही आकर रेल लाइन खत्म हो जाती है।
रेलवे ट्रैक को ब्लॉक कर यहां लिखा गया है- द एंड ऑफ नार्दर्न रेलवे। पूरे साल में एक दिन यानी 23 मार्च को फिरोजपुर से एक स्पेशल ट्रेन बार्डर के लिए चलती है। यहां हर साल मार्च में शहीदी दिवस के मौके पर बड़ा मेला लगता है।
सतलुज दरिया के करीब बने इस समाधि स्थल को अब पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किया जा रहा है। समाधि स्थल के आसपास ग्रीनरी क्षेत्र विकसित किया जा रहा है। यहां पार्क और झूले-फव्वारे लगाए गए हैं। शुक्रवार और रविवार को खास तौर पर सैलानियों की भीड़ होती है।
Peace if possible, truth at all costs.