200 सालों तक तो इसी बात पर यूरोप में युद्ध
चलता रहा कि नया वर्ष 25 दिसंबर को मानें या 1
जनवरी को, अर्थात काल के नियमों से ऊपर थी व्यक्तिगत
प्रतिष्ठा| इस पद्धति में समय का केन्द्र बिंदु है इंग्लैंड में स्थित
ग्रीनविच, जो उत्तरी गोलार्ध में है जबकि ऐसे
किसी भी स्थान को समय का केन्द्र बिंदु
नहीं माना जा सकता जो भूमध्य रेखा पर न हो|
उसका कारण यह है कि भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें
सीधी पड़ती हैं इसीलिए इसी स्थान से सौर मंडल के सापेक्ष
समय का सही सही पता लगाया जा सकता है| अनुसन्धान
हेतु इस रेखा पर पड़ने वाले हर स्थान का Latitude 0
डिग्री होता है जो कि ग्रीनविच के सन्दर्भ में नहीं है|
क्योंकि वह इंग्लैंड में है इसीलिए वही केन्द्र बिंदु
होना चाहिए हालांकि इसके केन्द्र बिंदु होने से कोई
अनुसंधानात्मक लाभ विश्व को आज तक नहीं हुआ|
भारतीय काल गणना इतनी वैज्ञानिक व्यवस्था है
कि सदियों-सदियों तक एक पल का भी अन्तर
नहीं पड़ा जबकि पश्चिमी काल गणना में वर्ष के 365.2422
दिन को 30 और 31 के हिसाब से 12 महीनों में विभक्त करते
है। इस प्रकार प्रतयेक चार वर्ष में फरवरी महीनें को लीपइयर
घोषित कर देते है फिर भी। नौ मिनट 11 सेकण्ड का समय बच
जाता है तो प्रत्येक चार सौ वर्षो में भी एक दिन
बढ़ाना पड़ता है तब भी पूर्णाकन नहीं हो पाता है। अभी 10
साल पहले ही पेरिस के अन्तरराष्ट्रीय परमाणु घड़ी को एक
सेकण्ड स्लो कर दिया गया फिर भी 22 सेकण्ड का समय
अधिक चल रहा है।यह पेरिस की वही प्रयोगशाला है
जहां की सी जी एस सिस्टम से संसार भर के सारे मानक तय
किये जाते हैं।
रोमन कैलेण्डर में तो पहले 10 ही महीने होते थे।
किंगनुमापाजुलियस ने 355 दिनों का ही वर्ष माना था।
जिसे में जुलियस सीजर ने 365 दिन घोषित कर दिया और
उसी के नाम पर एक महीना जुलाई बनाया गया उसके 1 )
सौ साल बाद किंग अगस्ट्स के नाम पर एक और महीना अगस्ट
भी बढ़ाया गया चूंकि ये दोनो राजा थे इसलिए इनके नाम
वाले महीनों के दिन 31 ही रखे गये।
आज के इस वैज्ञानिक युग में भी यह कितनी हास्यास्पद
बात है कि लगातार दो महीने के दिन समान है जबकि अन्य
महीनों में ऐसा नहीं है। यदि नहीं जिसे हम अंग्रेजी कैलेण्डर
का नौवा महीना सितम्बर कहते है, दसवा महीना अक्टूबर
कहते है, इग्यारहवा महीना नवम्बर और
बारहवा महीना दिसम्बर कहते है। इनके शब्दों के अर्थ
भी लैटिन भाषा में 7,8,9 और 10 होते है।
भाषा विज्ञानियों के अनुसार भारतीय काल गणना पूरे
विश्व में व्याप्त थी और सचमूच सितम्बर का अर्थ सप्ताम्बर
था, आकाश का सातवा भाग, उसी प्रकार अक्टूबर
अष्टाम्बर, नवम्बर तो नवमअम्बर और दिसम्बर दशाम्बर है।
संस्कृत के होरा शब्द से ही, अंग्रेजी का आवर (Hour) शब्द
बना है। इस प्रकार यह सिद्ध हो रहा है कि वर्ष
प्रतिपदा ही नव वर्ष का प्रथम दिन है। एक जनवरी को नव
वर्ष मनाने वाले दोहरी भूल के शिकार होते है क्योंकि भारत
में जब 31 दिसम्बर की रात को 12 बजता है तो ब्रीटेन में
सायं काल होता है, जो कि नव वर्ष की पहली सुबह
हो ही नहीं सकती।
सन १७५२ में ब्रिटेन नें ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपना लिया।
इसका नतीजा यह हुआ कि ३ सितम्बर १४ सितम्बर में बदल
गया। इसीलिए कहा जाता है कि ब्रिटेन के इतिहास में ३
सितंबर १७५२ से १३ सितंबर १७५२ तक कुछ भी घटित
नही हुआ। इससे कुछ लोगों को भ्रम हुआ कि इससे
उनका जीवनकाल ११ दिन कम हो गया और वे अपने जीवन के
११ दिन वापिस देने की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए।
चलता रहा कि नया वर्ष 25 दिसंबर को मानें या 1
जनवरी को, अर्थात काल के नियमों से ऊपर थी व्यक्तिगत
प्रतिष्ठा| इस पद्धति में समय का केन्द्र बिंदु है इंग्लैंड में स्थित
ग्रीनविच, जो उत्तरी गोलार्ध में है जबकि ऐसे
किसी भी स्थान को समय का केन्द्र बिंदु
नहीं माना जा सकता जो भूमध्य रेखा पर न हो|
उसका कारण यह है कि भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें
सीधी पड़ती हैं इसीलिए इसी स्थान से सौर मंडल के सापेक्ष
समय का सही सही पता लगाया जा सकता है| अनुसन्धान
हेतु इस रेखा पर पड़ने वाले हर स्थान का Latitude 0
डिग्री होता है जो कि ग्रीनविच के सन्दर्भ में नहीं है|
क्योंकि वह इंग्लैंड में है इसीलिए वही केन्द्र बिंदु
होना चाहिए हालांकि इसके केन्द्र बिंदु होने से कोई
अनुसंधानात्मक लाभ विश्व को आज तक नहीं हुआ|
भारतीय काल गणना इतनी वैज्ञानिक व्यवस्था है
कि सदियों-सदियों तक एक पल का भी अन्तर
नहीं पड़ा जबकि पश्चिमी काल गणना में वर्ष के 365.2422
दिन को 30 और 31 के हिसाब से 12 महीनों में विभक्त करते
है। इस प्रकार प्रतयेक चार वर्ष में फरवरी महीनें को लीपइयर
घोषित कर देते है फिर भी। नौ मिनट 11 सेकण्ड का समय बच
जाता है तो प्रत्येक चार सौ वर्षो में भी एक दिन
बढ़ाना पड़ता है तब भी पूर्णाकन नहीं हो पाता है। अभी 10
साल पहले ही पेरिस के अन्तरराष्ट्रीय परमाणु घड़ी को एक
सेकण्ड स्लो कर दिया गया फिर भी 22 सेकण्ड का समय
अधिक चल रहा है।यह पेरिस की वही प्रयोगशाला है
जहां की सी जी एस सिस्टम से संसार भर के सारे मानक तय
किये जाते हैं।
रोमन कैलेण्डर में तो पहले 10 ही महीने होते थे।
किंगनुमापाजुलियस ने 355 दिनों का ही वर्ष माना था।
जिसे में जुलियस सीजर ने 365 दिन घोषित कर दिया और
उसी के नाम पर एक महीना जुलाई बनाया गया उसके 1 )
सौ साल बाद किंग अगस्ट्स के नाम पर एक और महीना अगस्ट
भी बढ़ाया गया चूंकि ये दोनो राजा थे इसलिए इनके नाम
वाले महीनों के दिन 31 ही रखे गये।
आज के इस वैज्ञानिक युग में भी यह कितनी हास्यास्पद
बात है कि लगातार दो महीने के दिन समान है जबकि अन्य
महीनों में ऐसा नहीं है। यदि नहीं जिसे हम अंग्रेजी कैलेण्डर
का नौवा महीना सितम्बर कहते है, दसवा महीना अक्टूबर
कहते है, इग्यारहवा महीना नवम्बर और
बारहवा महीना दिसम्बर कहते है। इनके शब्दों के अर्थ
भी लैटिन भाषा में 7,8,9 और 10 होते है।
भाषा विज्ञानियों के अनुसार भारतीय काल गणना पूरे
विश्व में व्याप्त थी और सचमूच सितम्बर का अर्थ सप्ताम्बर
था, आकाश का सातवा भाग, उसी प्रकार अक्टूबर
अष्टाम्बर, नवम्बर तो नवमअम्बर और दिसम्बर दशाम्बर है।
संस्कृत के होरा शब्द से ही, अंग्रेजी का आवर (Hour) शब्द
बना है। इस प्रकार यह सिद्ध हो रहा है कि वर्ष
प्रतिपदा ही नव वर्ष का प्रथम दिन है। एक जनवरी को नव
वर्ष मनाने वाले दोहरी भूल के शिकार होते है क्योंकि भारत
में जब 31 दिसम्बर की रात को 12 बजता है तो ब्रीटेन में
सायं काल होता है, जो कि नव वर्ष की पहली सुबह
हो ही नहीं सकती।
सन १७५२ में ब्रिटेन नें ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपना लिया।
इसका नतीजा यह हुआ कि ३ सितम्बर १४ सितम्बर में बदल
गया। इसीलिए कहा जाता है कि ब्रिटेन के इतिहास में ३
सितंबर १७५२ से १३ सितंबर १७५२ तक कुछ भी घटित
नही हुआ। इससे कुछ लोगों को भ्रम हुआ कि इससे
उनका जीवनकाल ११ दिन कम हो गया और वे अपने जीवन के
११ दिन वापिस देने की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए।
Peace if possible, truth at all costs.