#TheTrueIndianHistory
कल रविंद्र नाथ टैगोर की जयंती थी। देश का इतिहास कांग्रेसियों और वामपंथियों ने लिखा और उन्होंने टैगोर से जुड़े दो तथ्यों को इतिहास की पुस्तकों से न केवल हटाया, बल्कि इसकी पूरी व्यवस्था की कि भविष्य की पीढ़ी इसके बारे में कभी जान ही न पाए. वामपंथियों-कांग्रेसियों की सोच में रविंद्रनाथ टैगोर एक प्रगतिशील कवि थे, ऐसे में इनके उन सोच को हर तरह से हटाने का प्रयास किया गया, जो तत्कालीन समाज की सच्चाई तो दर्शाती थी, लेकिन जो वामपंथियों के लिहाज से प्रगतिशील नहीं थी.....
पहली बात, रविंद्र नाथ टैगोर द्वारा लिखा गया देश का राष्ट्रगान 'जन-गण-मन' वास्तव में ब्रिटिश राजा की स्तुति के लिए लिखा गया गान था। हम राष्ट्रगान तो गाते हैं, लेकिन इसके पीछे की अर्थ, उसकी सच्चाई इतिहास की पुस्तकों से नदारत है। भेड़ की तरह बस गाए चले जा रहे हैं। रविंद्रनाथ टैगोर खुद ही कभी नहीं चाहते थे कि यह गान देश का राष्ट्रगान बने, लेकिन कांग्रेसियों ने मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए 'वंदेमातरम' को पीछे ढकेलने के लिए खुद टैगोर की बातों को ही मानने से इनकार कर दिया। इसमें नेहरू की सबसे बड़ी भूमिका थी और उनका तर्क था कि 'जन-गण-मन' बैंड पर बहुत अच्छा लगेगा। भला यह किसी देश के राष्ट्रगान को तय करने का पैमाना हो सकता है??.....
दूसरी बात, रविंद्रनाथ टैगोर मुस्लिम तुष्टिकरण के खिलाफ थे। उनका मानना था कि मुसलमानों में राष्ट्रवाद नहीं होता है। मुस्लिम एक राष्ट्र की जगह अखिल इस्लाम विचार के प्रति प्रतिबद्ध होेते हैं। साजिश कर रविंद्र नाथ टैगोर के इस विचार को भी एनसीईआरटी, इतिहास की अन्य पाठय पुस्तकों एवं किताबों से निकाल दिया गया.....
1924 में टैगोर ने हिंदू-मुस्लिम समस्या पर एक बंगाली समाचारपत्र को साक्षात्कार दिया, जिसे 18 अप्रैल 1924 को टाइम्स ऑफ इंडिया ने ' थ्रो इंडियन आइज' नाम से प्रकाशित किया था। रविंद्र नाथ टैगोर ने अपने उस साक्षात्कार में कहा था, '' हिंदू-मुस्लिम एकता न हो सकने का एक बड़ा कारण यह है कि कोई मुसलमान अपनी देशभक्ति केवल एक देश के प्रति सीमित नहीं कर सकता है। मैंने कई मुसलमानों से स्पष्ट शब्दों में पूछा कि यदि कोई मुस्लिम शक्ति भारत पर आक्रमण करे तो क्या आप हिंदू पड़ोसियों के साथ अपने देश को बचाने के लिए खड़े होंगे। इसका कोई संतोषजनक उत्तर उनसे नहीं मिल पाया। मैं विश्वस्त रूप से कह सकता हूं कि मिस्टर मोहम्मद अली जिन्ना सरीखे पुरुष ने भी ऐलान कर दिया है कि किसी मुसलमान के लिए, चाहे वह किसी देश का हो, यह संभव नहीं है कि वह दूसरे मुसलमानों के विरुद्ध खड़ा हो सके।''.....
सवाल है कि ऐसे कितने सच को हमारी पाठ्यपुस्तकों में छिपाया गया है?? ताकि समाज में झूठ का कारोबार फैलाया जा सके? कवि रविंद्र जैसे लोग भी जब यह महसूस करते थे कि मुसलमान एक राष्ट्र के कभी नहीं हो सकते हों तो इसे नकली हिंदू-मुस्लिम एकता स्थापित करने के लिए छिपाने की क्या जरूरत है? यदि यह एकता होती तो यह देश नहीं बंटता, गोधरा से मुजफफरनगर तक आज भी यह आग नहीं भड़कता रहता.....
हिंदुओं के लिए जहां राष्ट्रवाद केवल भारत भक्ति में निहित है, वहीं अधिसंख्य मुस्लिम अरब की ओर मुंह किए हुए हैं। इस सच से जब तक आंख चुराया जाता रहेगा, तब तक हिंदू-मुस्लिम एकता इस देश में स्थापित नहीं हो पाएगी। चाहे जितना मुस्लिम तुष्टिकरण कर लीजिए, इसके लिए झूठ पर झूठ बोल लीजिए. लेकिन क्या इस समुदाय को अखिल इस्लाम की विचारधारा से राष्ट्रवाद की ओर नहीं लौटा पाएंगे??......
पाकिस्तान का निर्माण इस सोच की एक बड़ी सच्चाई है और कश्मीर व अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पाकिस्तान के पक्ष में लगते नारे आज भी वास्तविकता है......
Peace if possible, truth at all costs.