‬भाारत आज क्‍यों पीछे है??

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हमने ज्ञान को ठुकराया, भारत का स्‍वर्णयुग खो गया, चलिए आपको एक सच्‍ची कहानी सुनाता हूं ‪#‎TheTrueIndianHistory‬
हम, मतलब भाारत आज क्‍यों पीछे है।इसे समझाने के लिए मैं एक ऐतिहासिक कहानी आपको बताता हूं। हवेनसांग जब भारत आया तो वह नालंदा विश्‍विद्यालय में पुस्‍तकों को देखकर चकित हो गया। उसने कहा,जिस समाज में ज्ञान का ऐसा भंडार हो, वह सदियों तक पूरी मानवता को रोशनी दे सकता है। वह वहां वर्षों रहा। उसने असंख्‍य पुस्‍तकों की हस्‍तलिखित प्रति तैयार की, आचार्यों से ज्ञान हासिल किया और अपने देश लौटने लगा। उस समय बारिश का मौसम था। नदियां उफान पर थीं। हवेनसांग ने अपने साथ ढेर सारी पुस्‍तक अपने देश ले जाने के लिए लाद लिया।
विवि के आचार्य ने हवेनसांग के साथ एक छात्र को लगाया और कहा कि यह हमारे अतिथि हैं। हमारे लिए देवता समान हैं। इन्‍हें सुरक्षित नदी पार करा देना और हां देखना इनकी एक भी पुस्‍तक नष्‍ट न होने पाए। पुस्‍तक हमारी सांस्‍कृतिक धरोहर हैं।
हवेनसांग के साथ वह छात्र चला। नाव पर सवार हुआ। नाव मझधार में पहुंची। नदी उफन रही थी और हवा भी तेज थी। अचानक नाव डगमगाने लगा। नाविक ने कहा, नाव से कुछ भार कम कीजिए, अन्‍यथा नाव डूब जाएगी। पुस्‍तकें पानी में फेंक दीजिए, वर्ना हम सब मारे जाएंगे।
हवेनसांग एक पुस्‍तक पलटता और उसमें ज्ञान का खजाना पाकर उसे रख देता। वह फिर दूसरी पुस्‍तक उठाता और उसमें भी उसे ज्ञान का भंडार मिलता और वह उसे भी रख देता। नाविक चिल्‍लाया, जल्‍दी कीजिए वर्ना नाव डूब जाएगी। छात्र उठा और उसने कहा आप चिंतित न हों। मैं एक भी पुस्‍तक नष्‍ट नहीं होने दूंगा। मेरे गुरू ने कहा था ये हमारी सांस्‍कृतिक विरासत हैं। चिंता मत कीजिए, नाव से भार भी कम हो जाएगा और हमारी सांस्‍कृतिक विरासत भी बच जाएगी। वह छात्र छप से उफनती नदी में कूद गया। नदी उसे लील गई, लेकिन हवेनसांग के लिए ज्ञान का खजाना वह बचा गया।
यह भारत था, जहां ज्ञान के लिए, अपनी सांस्‍कृतिक विरासत के लिए मरने की चाह थी। आज हम पुस्‍तक पढने से कतराते हैं, अपने गौरवपूर्ण इतिहास में हमारी रुचि नहीं होती है, ज्ञान हासिल करने की जगह अधकचरी जानकारी वाला लिंक मांगते फिरते हैं, वामपंथियों ने हमारे इतिहास को नष्‍ट किया, लेकिन हमारी अंदर पीडा उत्‍पन्‍न नहीं होती।
जब ऑक्‍सफोर्ड विवि शुरू भी नहीं हुआ था, उस वक्‍त बख्तियार खिलजी नामक एक दुष्‍ट हमारे नालंदा विव को मिटा चुका था। हमने दुनिया को सबसे पहले ज्ञान दिया। लेकिन जिस तरह से पहले मुस्लिम आक्रांताओं ने हमारे तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला विवि को नष्‍ट किया और बाद में अंग्रेजों ने हमारी पुस्‍तकों को चुरा चुरा कर अपने यहां पुनर्जागरण का गीत गाया-- वह सब हमारे देश के नागरिकों की ज्ञान के प्रति उदासीनता के कारण ही हुआ।
भारत के जिस गुप्‍त काल को स्‍वर्ण काल कहा जाता है, उसी समय कालिदास, वराहमिहिर, आर्यभटट, वात्‍स्‍यायन जैसे ज्ञानी हुए। हम केवल स्‍वर्ण इतिइास की रट लगाते हैं, लेकिन उसे स्‍थापित करने के लिए पुस्‍तकों से दोस्‍ती नहीं करते...। हमने अपने पूर्वजों को लज्जित किया है और हम सीना तान कर खुद को भारतीय कहते हैं। वास्‍तव में हम कब के मुर्दा कौम बन चुके हैं। नालंदा के उस ब्रहमचारी की आत्‍मा यदि कहीं होगी तो हमें देखकर रो रही होगी।

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