श्यामा प्रसाद मुकर्जी को कश्मीर जाने से रोकते हुए सुचेता कृपलानी ने कहा था, वहां न जाएं, पंडित नेहरू आपकी हत्या करवा देंगे। क्या सचमुच सुचेता सहीं थी?
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#तिवारी। 6 जुलाई 1901 को श्यामाप्रसाद मुकर्जी का जन्म हुआ और 23 जून 1953 को संदिग्ध परिस्थति में उनकी कश्मीर में मौत! श्यामा प्रसाद मुकर्जी जब कश्मीर में जा रहे थे तो कभी कांग्रेस अध्यक्ष रहे आचार्य जे.बी.कृपलानी की पत्नी व स्वतंत्रता सेनानी सुचेता कृपलानी ने उनसे कहा था, '' पंडित नेहरू कश्मीर से उन्हें जीवित नहीं लौटने देंगे, इसलिए बेहतर होगा कि वे वहां न जाएं।'' इस पर मुकर्जी ने कहा था कि मेरी पंडित नेहरू से कोई व्यक्तिगत शत्रुता तो है नहीं, केवल नीतियों का मतभेद है। इस पर सुचेता ने कहा, आप शायद पंडित नेहरू की मानसिकता को नहीं जानते। वह आपको अपना सबसे प्रबल प्रतिद्वंद्वी और जनता की नजरों में उभरता हुआ विकल्प मानते हैं, इसलिए वे आपको खत्म करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
कश्मीर में हुई मुकर्जी की संदिग्ध मौत ने सुचेता कृपलानी के अंदेशे को सही साबित कर दिया। तो क्या श्यामा प्रसाद मुकर्जी की मौत के पीछे पंडित जवाहरलाल नेहरू थे? मत भूलिए कि उस वक्त कश्मीर में नेहरू के मुंहलगे शेख अब्दुल्ला की सरकार थी, जिन्हें खुश करने के लिए नेहरू ने कश्मीर में धारा- 370 लगाकर उन्हें लगभग संप्रभु कश्मीर का शासक बनाया था!
सुचेता और मुकर्जी के इस बातचीत की चर्चा श्याम प्रसाद मुकर्जी के अनन्य सहयोगी और उनके साथ मिलकर जनसंघ का निर्माण करने वाले बलराज मधोक ने अपनी जीवनी में किया है।
दरअसल उन दिनों कश्मीर में जाने के लिए रक्षा मंत्रालय से परमिट लेना पड़ता था। मुकर्जी का कहना था कि एक राष्ट्र में दो विधान नहीं चलेंगे। वह इस कानून को तोड़कर कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग साबित करने पर तुले थे। माधेपुर में रावी नदी पर बने पुल को ज्यों ही मुकर्जी ने पार कर कश्मीर में पैर रखा, शेख अब्दुल्ला की सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उस वक्त जम्मू-कश्मीर राज्य देश के सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से भी बाहर था, इसलिए उनकी गिरफ्तारी को सर्वोच्च न्यालय में चुनौती नहीं दी जा सकती थी। अचानक 24 जून को अखबार में यह खबर आयी कि 23 की रात को मुकर्जी की मौत हो गयी है। मुकर्जी को जेल से निकाल कर अस्पताल ले जाया गया था, जहां उनकी मौत हुई।
बलराम मधोक के अनुसार, ''अस्पताल में मुकर्जी का उपचार करने वाली नर्स ने बताया था कि रात को 9 बजे डॉक्टर अलीजान ने मुकर्जी को इंजेक्शन दिया था। उस नर्स के अनुसार डॉ. मुकर्जी ने इसका विरोध किया और कहा कि उनकी तबियत पूरी तरह से ठीक है, उन्हें किसी दवा या इंजेक्शन की जरूरत नहीं है। उस इंजेक्शन के लगने के एक घंटे के भीतर मुकर्जी की मौत हो गयी।''
मुकर्जी की मौत के बाद उनकी मां ने इसकी जांच की मांग करते हुए पंडित नेहरू को पत्र लिखा। यही नहीं, सभी सांसदों ने इस मौत की जांच की संयुक्त मांग की थी, लेकिन नेहरू मुकर्जी की मौत की आखिरी तक जांच कराने के लिए तैयार नहीं हुए और उन्होंने जांच नहीं ही कराया। तो क्या सुचेता कृपलानी सही थीं? कम से कम मुकर्जी की मौत की जांच न करवा कर पंडित नेहरू ने सुचेता कृपलानी के संदेह को पुख्ता आधार तो प्रदान की ही दिया था!
आज मुकर्जी के उस बलिदान के कारण ही -
कश्मीर में आप बिना परमिट जा रहे हैं।
देश का सर्वोच्च न्यालय वहां के कानून में हस्तक्षेप कर सकता है,
वहां भारतीय झंडा फहराया जा सकता है,
प्रधानमंत्री को अब मुख्यमंत्री कहा जाता है।
लेकिन मुकर्जी के बलिदान को राष्ट्र का पूरा सम्मान तभी मिलेगा, जब कश्मीर से धारा- 370 को पूरी तरह से हटा कर कश्मीर का भारतीय संघ में पूर्ण विलय किया जाएगा।
एक बात और धारा- 370 थोपने के वक्त पंडित नेहरू ने यह व्यवस्था कर ली थी कि वह संविधान सभा में मौजूद न रहें ताकि सदस्यों के विरोध से वह बच जाएं।
वह अमेरिका चले गए थे। गोपालस्वामी अय्यर ने जब इसे पेश किया तो समूची कांग्रेस पार्टी ने तब इसका विरोध किया था। उनके विरोध को शांत करने की जिम्मेवारी उपप्रधानमंत्री होने के नाते सरदार पटेल पर आ गयी थी। पटेल इस धर्मसंकट में फंस गए कि यदि इस प्रस्ताव को वह पलट देते हैं तो अमेरिका में बैठे भारतीय प्रधानमंत्री के पद की गरिमा की बड़ी हानि होगी। मन मारकर सरदार को इसके लिए कांग्रेस के सभी सदस्यों को सहमत करना पड़ा।
ताज्जुब होता है कि उस समय सभी कांग्रेसियों ने इसे एक अलगाववादी धारा मानते हुए इसका विरेाध किया था और आज उसी कांग्रेस पार्टी के सभी सदस्य इसके हटाए जाने की मांग को सांप्रदायिक करार देते है! इतनी जल्दी तो परिवर्तन जानवरो के डीएनए में भी नहीं आता, जितनी जल्दी कांग्रेसियों के डीएनए में परिवर्तन हुआ है
Peace if possible, truth at all costs.