भारतीय शासक पोरस के हाँथों हुई थी “सिकंदर” की करारी हार

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अलेक्जेंडर(सिकंदर) को विश्वविजेता कहने में हम भारतीय यूनानियों और यूरोपियंस से भी आगे हैं।भारतीय इतिहासकारों की वैचारिक परतंत्रता और आलस्य ने बिना सोचे-समझे उसी यूनानी इतिहास को छाप लिया जिसमें सिकंदर काल्पनिक रूप से पुरु को हराता है। जबकि सत्य यह था की सम्राट पोरस ने सिकंदर को युद्ध में बुरी तरह हराया था,बहुत से यूनानी ग्रंथों में इसके साक्ष्य और प्रमाण मौजूद हैं।इस झूँठ के व्यापक प्रभाव ही है की “जो जीता वही सिकंदर” मुहावरे का उपयोग हम विजेता के लिए करते हैं। क्या ये हमारे लिए शर्म की बात है की हमने एक महान नीतिज्ञ,दूरदर्शी,शक्तिशाली वीर विजयी राजा पोरस को निर्बल और पराजित राजा बना दिया?
जाने कितने दिनों से हम अपने बच्चों को इतिहास की पुस्तकों में ये झूँठ पढ़ाते आ रहे हैं कि “सिकन्दर ने पौरस को बंदी बना लिया था। उसके बाद जब सिकन्दर ने उससे पूछा कि उसके साथ कैसा व्यवहार किया जाय तो पौरस ने कहा कि उसके साथ वही किया जाय जो एक राजा के साथ किया जाता है अर्थात मृत्यु-दण्ड। सिकन्दर इस बात से इतना अधिक प्रभावित हो गया कि उसने वो कार्य कर दिया जो अपने जीवन भर में उसने कभी नहीं किए थे। उसने अपने जीवन के एक मात्र ध्येय,अपना सबसे बड़ा सपना विश्व-विजेता बनने का सपना तोड़ दिया और पौरस को पुरस्कार-स्वरुप अपने जीते हुए कुछ राज्य तथा धन-सम्पत्ति प्रदान किए.तथा वापस लौटने का निश्चय किया और लौटने के क्रम में ही उसकी मृत्यु हो गई। “

साल 2004 में रिलीज हुई ग्रीस फिल्मकार ओलिवर स्टोन की फिल्म “अलेक्जेंडर” में  सिकन्दर की भारत में हार को स्वीकारा गया है। फिल्म में दिखाया गया है कि एक तीर सिकन्दर की  भेद देती है और इससे पहले कि वो शत्रु के हत्थे चढ़ता उससे पहले उसके सहयोगी उसे ले भागते हैं। इस फिल्म में साफ़-साफ़ कहा गया है की ये सिकंदर के जीवन की सबसे भयानक त्रासदी थी,और अंततः भारतीयों ने उसे तथा उसकी सेना को पीछे लौटने के लिए मजबूर कर दिया।
Why did Alexander retreat even after breaking India's fence? People say that - When Alexander struggled to defeat a small Indian king, he decided not to campaign against the mighty ruler of Magadha - Dhana Nandha who was abot 100 times powerful than Porus. This may be true. But, there is also a possibility that he didn't defeat Porus at all and retreated back.
Why did Alexander retreat even after breaking India’s fence?
People say that – When Alexander struggled to defeat a small Indian king, he decided not to campaign against the mighty ruler of Magadha – Dhana Nandha who was abot 100 times powerful than Porus.
This may be true. But, there is also a possibility that he didn’t defeat Porus at all and retreated back.

आश्चर्य है की हमारे इतिहासकारों ने कैसे पश्चिम के ‘इतिहासकारों’ के पक्षपातपूर्ण लेखन को स्वीकार लिया। क्या ये हमारे मुंह पर तमाचा नहीं है की ग्रीक फिल्मकार और इतिहासकार ‘सिकंदर’ की हार को स्वीकार रहे हैं और हम उसे ‘महान’ विश्वविजेता कहते हैं? महत्त्वपूर्ण बात ये है कि सिकन्दर को सिर्फ विश्वविजेता ही नहीं बल्कि महान की उपाधि भी प्रदान की गई है और ये बताया जाता है कि सिकन्दर बहुत बड़ा हृदय वाला दयालु राजा था ताकि उसे महान घोषित किया जा सके क्योंकि सिर्फ लड़ कर लाखों लोगों का खून बहाकर एक विश्व-विजेता को “महान” की उपाधि नहीं दी सकती। उसके अंदर मानवता के गुण भी होने चाहिए। इसलिए ये भी घोषित कर दिया गया कि सिकन्दर विशाल हृदय वाला एक महान व्यक्ति था। पर उसे महान घोषित करने के पीछे एक बहुत बड़ा उद्देश्य छुपा हुआ है और वो उद्देश्य है सिकन्दर की पौरस पर विजय को सिद्ध करना। क्योंकि यहाँ पर सिकन्दर की पौरस पर विजय को तभी सिद्ध किया जा सकता है जब यह सिद्ध हो जाय कि सिकन्दर विशाल हृदय वाला महान शासक था। 
झेलम तट पर हारा था सिकंदर –
जब सिकन्दर ने सिन्धु नदी पार किया तो भारत में उत्तरी क्षेत्र में तीन राज्य थे-झेलम नदी के चारों ओर राजा अम्भि का शासन था। पौरस का राज्य चेनाब नदी से लगे हुए क्षेत्रों पर था। तीसरा राज्य अभिसार था जो कश्मीरी क्षेत्र में था। अम्भि का पौरस से पुराना बैर था इसलिए सिकन्दर के आगमण से अम्भि खुश हो गया और अपनी शत्रुता निकालने का उपयुक्त अवसर समझा। अभिसार की सेना ने उदासीन रवैया अपना लिया और इस तरह पौरस ने अकेले ही सिकन्दर तथा अम्भि की मिली-जुली सेना का सामना किया। “प्लूटार्च” के अनुसार सिकन्दर की बीस हजार पैदल सैनिक तथा पन्द्रह हजार अश्व सैनिक पौरस की युद्ध क्षेत्र में एकत्र की गई सेना से कई गुना अधिक थी। सिकन्दर की सहायता ईरानी सैनिकों ने भी की। इस युद्ध के शुरु होते ही पौरस ने अपने सैनिकों को ‘भयंकर रक्त-पात’ का आदेश दे दिया । उसके बाद पौरस के सैनिकों तथा हाथियों ने रणक्षेत्र में ऐसा तांडव मचाया कि सिकन्दर तथा उसके सैनिकों के सर पर चढ़े विश्वविजेता का भूत उतर गया।
“यूनानी हिस्टोरियन कर्टियस के शब्दों में “पोरस के हाँथियों की तुर्यवादक ध्वनि से होने वाली भीषण चीत्कार न केवल सिकंदर के घोड़ों को भयातुर कर देती थी जिससे वे बिगड़कर भाग उठते थे। इन पशुओं ने ऐसी भगदड़ मचायी कि ‘विश्वविजयी’ कहलाने वाले अलेक्जेंडर के योद्धा शरण के लिए जगह ढूँढने लग गए थे। उन पशुओं ने कईयों को अपने पैरों तले रौंद डाला और सबसे हृदयविदारक दृश्य वो होता था जब ये स्थूल-चर्म पशु अपनी सूँड़ से यूनानी सैनिक को पकड़ कर चारों और बुरी तरह घुमा-घुमाकर अपने आरोही के हाथों सौंप देता था। जो तुरन्त उसका सर धड़ से अलग कर देता था। “
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इसी तरह का वर्णन “डियोडरस” ने भी किया है “पोरस के विशाल हाथियों में अपार बल था और वे युद्ध में अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए। उन्होंने अपने पैरों तले बहुत सारे यूनानी सैनिकों की हड्डी-पसली चूर-चूर कर दी। हाँथी इन सैनिकों को अपनी सूँड़ों से पकड़ लेते थे और जमीन पर जोर से पटक देते थे। और अपने विकराल गज-दन्तों से सिकंदर के सैनिकों को गोद-गोद कर मार डालते थे। “
"अब विचार करिए कि डियोडरस का ये कहना कि उन हाथियों में अपार बल था और वे अत्यन्त लाभकारी सिद्ध हुए. क्या सिद्ध करता है? फिर “कर्टियस” द्वारा कहना कि इन पशुओं ने आतंक मचा दिया था क्या सिद्ध करता है? अफसोस की ही बात है कि इस तरह के वर्णन होते हुए भी लोग यह दावा करते हैं कि पौरस को पकड़ लिया गया और उसके सेना को शस्त्र त्याग करने पड़े। और पुष्टि के लिए इस युद्ध के सन्दर्भ में एक और पश्चिमी इतिहासकार का वर्णन पढ़िए"
“झेलम के युद्ध में सिकन्दर की अश्व-सेना का अधिकांश भाग मारा गया था। सिकन्दर ने अनुभव कर लिया कि यदि अब लड़ाई जारी रखूँगा तो पूर्ण रुप से अपना नाश कर लूँगा। अतः सिकन्दर ने पोरस से शांति की प्रार्थना की “श्रीमान पोरस मैंने आपकी वीरता और सामर्थ्य स्वीकार कर ली है,मैं नहीं चाहता कि मेरे सारे सैनिक अकाल ही काल के गाल में समा जाय। मैं इनका अपराधी हूँ,और भारतीय परम्परा के अनुसार ही पोरस ने शरणागत शत्रु का वध नहीं किया। ” – ई.ए. डब्ल्यू. बैज(इतिहासकार)
ये बातें किसी भारतीय द्वारा नहीं बल्कि एक विदेशी द्वारा कही गई है। सिकन्दर अपना राज्य उसे क्या देगा वो तो पोरस को भारत के जीते हुए प्रदेश उसे लौटाने के लिए विवश था जो छोटे-मोटे प्रदेश उसने पोरस से युद्ध से पहले जीते थे (जीते भी थे या ये भी यूनानियों द्वारा गढ़ी कहानियाँ हैं)। इसके बाद पोरस ने सिकंदर को उत्तर मार्ग से जाने की अनुमति नहीं दी। विवश होकर सिकन्दर को उस खूँखार जन-जाति के कबीले वाले रास्ते से जाना पड़ा जिससे होकर जाते-जाते सिकन्दर इतना घायल हो गया कि अंत में उसे प्राण ही त्यागने पड़े। इसका कुछ स्पष्टीकरण यूनानी इतिहासकार ही करते हैं।
“मलावी नामक भारतीय जनजाति बहुत खूँखार थी। इनके हाथों सिकन्दर के टुकड़े-टुकड़े होने वाले थे लेकिन तब तक प्यूसेस्तस और लिम्नेयस आगे आ गए। इसमें से एक तो मार ही डाला गया और दूसरा गम्भीर रुप से घायल हो गया। तब तक सिकन्दर के अंगरक्षक उसे सुरक्षित स्थान पर लेते गए।” – प्लूटार्च (यूनानी इतिहासकार)
स्पष्ट है कि पोरस के साथ युद्ध में तो इनलोगों का मनोबल टूट चुका था फिर रही-सही कसर इन जनजातियों ने पूरी कर दी थी। अब सिकंदर के सैनिकों के भीतर इतना मनोबल भी नहीं ही बचा था की वे समुद्र मार्ग से भाग सकें। स्थल मार्ग के खतरे को देखते हुए सिकन्दर ने समुद्र मार्ग से जाने का सोचा और उसके अनुसंधान कार्य के लिए एक सैनिक टुकड़ी भेज भी दी पर उनलोगों में इतना भी उत्साह शेष ना रह गया था। अंततः वे बलुचिस्तान के रास्ते ही वापस लौट पाए।
इस तरह ‘विश्वविजेता’ का घमंड चूर-चूर हो गया। आज भी झेलम के तट की लहरों से आवाज आती है :-“यूनान का सिकंदर झेलम तट पे हारा”

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