पृथ्वीराज चौहान एक पराजित विजेता

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 मोहम्मद गौरी की
चित्ररेखा नामक एक दरबारी गायिका
रूपवान एवं सुन्दर स्त्री
थी। वह संगीत एवं
गान विद्या में निपुण, वीणा वादक,
मधुर भाषिणी और
बत्तीस गुण लक्षण बहुत
सुन्दर नारी थी।
शाहबुदीन गौरी का एक
कुटुम्बी भाई था ‘‘मीर
हुसैन’’ वह शब्दभेदी बाण चलाने
वाला, वचनों का पक्का और संगीत
का प्रेमी तथा तलवार का
धनी था। चित्ररेखा गौरी
को बहुत प्रिय थी, किन्तु वह
मीर हुसैन को अपना दिल दे
चुकी थी और हुसैन
भी उस पर मंत्र-मुग्ध था। इस
कारण गौरी और हुसैन में अनबन
हो गई। गौरी ने हुसैन को
कहलवाया कि ‘‘चित्ररेखा तेरे लिये कालस्वरूप
है, यदि तुम इससे अलग नहीं रहे
तो इसके परिणाम भुगतने होंगें।’’ इसका हुसैन
पर कोई प्रभाव नहीं हुआ और
वह अनवरत चित्ररेखा से मिलता रहा। इस पर
गौरी क्रोधित हुआ और हुसैन को
कहलवाया कि वह अपनी
जीवन चाहता है तो यह देश छोड़
कर चला जाए, अन्यथा उसे मार दिया जाएगा। इस
बात पर हुसैन ने अपी
स्त्री, पुत्र आदि एवं चित्ररेखा के
साथ अफगानिस्तान को त्यागकर
पृथ्वीराज की शरण
ली, उस समय
पृथ्वीराज नागौर में थे। शरणागत का
हाथ पकड़कर सहारा और सुरक्षा देकर
पृथ्वी पर धर्म-ध्वजा फहराना
हर क्षत्रिय का धर्म होता है।
इधर मोहम्मद गौरी ने अपने
शिपह-सालार आरिफ खां को मीर
हुसैन को मनाकर वापस स्वदेश लाने के लिए
भेजा, किन्तु हुसैन ने आरिफ को स्वदेश लौटने
से मना कर दिया। इस प्रकार
पृथ्वीराज द्वारा मीर
हुसैन को शरण दिये जाने के कारण मोहम्मद
गौरी और पृथ्वीराज के
बीच दुश्मनी हो गई।
पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद
गौरी के बीच 18 बार
युद्ध हुआ, जिसमें पृथ्वीराज ने
मोहम्मद गौरी को 17 बार परास्त
किया। जब-जब भी मोहम्मद
गौरी परास्त होता, उससे
पृथ्वीराज द्वारा दण्ड-स्वरूप
हाथी, घोड़े लेकर छोड़ दिया जाता ।
मोहम्मद गौरी द्वारा
15वीं बार किये गए हमले में
पृथ्वीराज की ओर से
पजवनराय कछवाहा लड़े थे तथा
उनकी विजय हुई। गौरी
ने दण्ड स्वरूप 1000 घोड़ और 15
हाथी देकर अपनी जान
बचाई। कैदखाने में पृथ्वीराज ने
गौरी को कहा कि ‘‘आप बादशाह
कहलाते हैं और बार-बार प्रोढ़ा की
भांति मान-मर्दन करवाकर घर लौटते हो। आपने
कुरान शरीफ और
करीम के कर्म को भी
छोड़ दिया है, किन्तु हम अपने क्षात्र धर्म के
अनुसार प्रतिज्ञा का पालन करने को प्रतिबद्ध
हैं। आपने कछवाहों के सामने रणक्षेत्र में
मुंह मोड़कर नीचा देखा है।’’ इस
प्रकार पृथ्वीराज चौहान ने
उदारवादी विचारधारा का परिचय देते
हुए गौरी को 17 बार क्षमादान दिया।
चंद्रवरदाई कवि पृथ्वीराज के यश
का बखान करते हुए कहते हैं कि ‘‘हिन्दु धर्म
और उसकी परम्परा
कितनी उदार है।’’
18वीं बार मोहम्मद
गौरी ने और अधिक सैन्य बल के
साथ पृथ्वीराज चौहान के राज्य पर
हमला किया, तब पृथ्वीराज ने
संयोगिता से विवाह किया ही था,
इसलिए अधिकतर समय वे संयोगिता के साथ
महलों में ही गुजारते थे। उस
समय पृथ्वीराज को
गौरी की अधिक
सशक्त सैन्य शक्ति का अंदाज
नहीं था, उन्होंने सोचा पहले कितने
ही युद्धों में गौरी को
मुंह की खानी
पड़ी है, इसलिए इस बार
भी उनकी सेना
गौरी से मुकाबला कर
विजयश्री हासिल कर
लेगी। परन्तु गौरी
की अपार सैन्य शक्ति एवं
पृथ्वीराज की
अदूरदर्शिता के कारण गौरी
की सेना ने पृथ्वीराज
के अधिकतर सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया
और कई सैनिकों को जख्मी कर
दिल्ली महल पर अपना कब्जा
जमा कर पृथ्वीराज को
बंदी बना दिया। गौरी
द्वारा पृथ्वीराज को बंदी
बनाकर अफगानिस्तान ले जाया गया और उनके
साथ घोर अभद्रतापूर्ण व्यवहार किया गया।
गौरी ने यातनास्वरूप
पृथ्वीराज की आँखे
निकलवा ली और ढ़ाई मन
वजनी लोहे की बेड़ियों
में जकड़कर एक घायल शेर की
भांति कैद में डलवा दिया। इसके परिणाम स्वरूप
दिल्ली में मुस्लिम शासन
की स्थापना हुई और हजारों
क्षत्राणियों ने पृथ्वीराज
की रानियों के साथ
अपनी मान-मर्यादा की
रक्षा हेतु चितारोहण कर अपने प्राण त्याग
दिये।
इधर पृथ्वीराज का राजकवि
चन्दबरदाई पृथ्वीराज से मिलने के
लिए काबुल पहुंचा। वहां पर कैद खाने में
पृथ्वीराज की
दयनीय हालत देखकर चंद्रवरदाई
के हृदय को गहरा आघात लगा और उसने
गौरी से बदला लेने की
योजना बनाई। चंद्रवरदाई ने गौरी को
बताया कि हमारे राजा एक प्रतापी
सम्राट हैं और इन्हें शब्दभेदी
बाण (आवाज की दिशा में लक्ष्य
को भेदनाद्ध चलाने में पारंगत हैं, यदि आप चाहें
तो इनके शब्दभेदी बाण से लोहे के
सात तवे बेधने का प्रदर्शन आप स्वयं
भी देख सकते हैं। इस पर
गौरी तैयार हो गया और उसके राज्य
में सभी प्रमुख ओहदेदारों को इस
कार्यक्रम को देखने हेतु आमंत्रित किया।
पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने
पहले ही इस पूरे कार्यक्रम
की गुप्त मंत्रणा कर
ली थी कि उन्हें क्या
करना है। निश्चित तिथि को दरबार लगा और
गौरी एक ऊंचे स्थान पर अपने
मंत्रियों के साथ बैठ गया। चंद्रवरदाई के
निर्देशानुसार लोहे के सात बड़े-बड़े तवे निश्चित
दिशा और दूरी पर लगवाए गए।
चूँकि पृथ्वीराज की
आँखे निकाल दी गई थी
और वे अंधे थे, अतः उनको कैद एवं बेड़ियों से
आजाद कर बैठने के निश्चित स्थान पर लाया
गया और उनके हाथों में धनुष बाण थमाया गया।
इसके बाद चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज
के वीर गाथाओं का गुणगान करते
हुए बिरूदावली गाई तथा
गौरी के बैठने के स्थान को इस
प्रकार चिन्हित कर पृथ्वीराज को
अवगत करवाया:-
‘‘चार बांस, चैबीस गज, अंगुल
अष्ठ प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, चूके मत चौहान।।’’
अर्थात् चार बांस, चैबीस गज और
आठ अंगुल जितनी
दूरी के ऊपर सुल्तान बैठा है,
इसलिए चौहान चूकना नहीं, अपने
लक्ष्य को हासिल करो।
इस संदेश से पृथ्वीराज को
गौरी की वास्तविक
स्थिति का आंकलन हो गया। तब चंद्रवरदाई ने
गौरी से कहा कि
पृथ्वीराज आपके बंदी
हैं, इसलिए आप इन्हें आदेश दें, तब
ही यह आपकी
आज्ञा प्राप्त कर अपने शब्द
भेदी बाण का प्रदर्शन करेंगे। इस
पर ज्यों ही गौरी ने
पृथ्वीराज को प्रदर्शन
की आज्ञा का आदेश दिया,
पृथ्वीराज को गौरी
की दिशा मालूम हो गई और उन्होंने
तुरन्त बिना एक पल की
भी देरी किये अपने एक
ही बाण से गौरी को मार
गिराया। गौरी उपर्युक्त कथित ऊंचाई
से नीचे गिरा और उसके प्राण
पंखेरू उड़ गए। चारों और भगदड़ और हा-
हाकार मच गया, इस बीच
पृथ्वीराज और चंद्रवरदाई ने पूर्व
निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार एक-दूसरे को
कटार मार कर अपने प्राण त्याग दिये। आज
भी पृथ्वीराज चौहान
और चंद्रवरदाई की अस्थियां एक
समाधी के रूप में काबुल में विद्यमान
हैं। इस प्रकार भारत के अन्तिम हिन्दू
प्रतापी सम्राट का 1192 में अन्त
हो गया और हिन्दुस्तान में मुस्लिम साम्राज्य
की नींव
पड़ी। चंद्रवरदाई और
पृथ्वीराज के जीवन के
साथ ऐसा मिला हुआ था कि अलग
नहीं किया जा सकता। इस प्रकार
चंद बरदाई की सहायता से से
पृथ्वीराज के द्वारा गोरी
का वध कर दिया गया। अपने महान राजा
पृथ्वीराज चौहान के सम्मान में
रचित पृथ्वीराज रासो
हिंदी भाषा का पहला प्रामाणिक
काव्य माना जाता है। अंततोगत्वा
पृथ्वीराज चौहान एक पराजित
विजेता कहा जाना अतिशयोक्ति न होगा।

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