1. 16 साल खेलकूद में निकल गए.
2. 17 से 25 पढाई, जवानी के प्यार में, फ़ोकट की दादागिरी में, फेसबूक पर फालतू बातों में.
3. 25 से 35 में बच्चों का बोझ, परिवार की उम्मीद, महंगाई के दौर में खुद को सही स्थिति में लाने की जंग.
4. 35 से 50 में अब जाके जिंदगी एक ट्रैक पर रुकी है तो पता लगा की बच्चे बड़े होने लगे हैं , इंजीनियरिंग में
प्रवेश कराना है या डॉक्टर बनाना है, इतना अनुदान देना है कॉलेज में , शहर से बाहर रहने का इतना खर्चा है, फिर से लग गए जुगाड़ में.
5. 50 से 60 , अब उम्र आई है सत्संग की , मंदिर जाने की , लोगो को उपदेश देने की , ज़माने के अंतर को बताने की, अपनी बात को बड़ी साबित करने की , ये बताने की क़ि ये देशसेवा , राष्ट्रभक्ति ये सब ठाली बेठे लोगो के काम हैं , पढो लिखो करियर बनाओ और पैसा कमाओ , ये सब तो यु ही चलता रहता है.
हो सकता है क़ि लिखने में कुछ कमी रह गयी हो या कुछ बिंदु गलत लिखे हों , पर जितना मैने आसपास देखा वो बताया , इसमें कुछ स्थिति ऐसी है क़ि युवा अपने ऐश आराम और रोमांस से बाहर देख ही नहीं पा रहे हैं , गरीब युवा को राष्ट्र के लिए देखने का विकल्प ही नहीं बचता क्योकि उसे अपनी एक दिन क़ि रोटी का जुगाड़ करना है , उसकी एक अनुपस्थिति से उसकी ज़िन्दगी , भूख प्यास को आंच आ सकती है, अमीर युवा को भटकने का काम अच्छे ढंग से चल रहा है जैसे फसबूक, ऑरकुट, MTV, हवास को प्यार का नाम देकर उस पर टिपण्णी देकर प्रसिद्धि लूटना, लडकियों में अलग दिखने के लिए android मोबाइल, ब्रांडेड चश्मे, लेविस क़ि जींस, रीबोक क़ि टी शर्ट , bikes का ट्रेंड , आज कोनसी फिल्म रिलीज़ हो रही है. इन्हें कोई देश और समाज क़ि बात करता हुआ दिखाई देता है तो उसे बाबाजी, या उपदेशक या ओर्थोडोक्स सोच वाले का नाम दिया जाता है , ऐसा इसलिए होता है क्युकी जिस तरह कंप्यूटर में एक अच्छा hardware ही अच्छे software को सपोर्ट कर सकता है, उसी तरह एक अच्छा दिमाग ही इस तरह के विचारो को सपोर्ट कर सकता है , और हमारे विचारो और दिमाग में वाइरस लग चूका है जो हमें नग्नता , अश्लीलता, रोमांस, विलासिता से बहार आकर नहीं सोचने देता है, इस वाइरस लगने के बहुत से कारन हैं जैसे बचपन से लेकर अब तक बॉलीवुड क़ि रोमांस परस्त फिल्मे देखना और attraction को प्यार समझना, हर विज्ञापन में लड़का लड़की साथ देखना और हर तरह क़ि मीडिया से इस तरह का संदेश आता है क़ि ज़िन्दगी में रोमांस और ऐश के सिवा कुछ है ही नहीं , यही सब देखते देखते इंसान बड़ा होता है और यही सब कारण हैं जो उसका दिमाग रुपी hardware में नग्नता और अश्लीलता के वाइरस घुस जाते हैं
फिर भी इन दोनों स्थिति से कोई बाहर निकल कर देश के लिए कुछ करने क़ि सोचता है तो उसे सबसे पहले अपने समाज, परिवार, दोस्तों से ही बेवकूफ का दर्जा मिल जाता है, घरवाले चिंता करते हैं क़ि ये किस और जा रहा है............??
आपकी प्रतिक्रियाओं के लिए प्रतीक्षारत............... ......हर हर महादेव जय महाकाल
दोस्तों share करना ना भूले...!!
http://www.youtube.com/ watch?v=Nm8fafTWd3o
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2. 17 से 25 पढाई, जवानी के प्यार में, फ़ोकट की दादागिरी में, फेसबूक पर फालतू बातों में.
3. 25 से 35 में बच्चों का बोझ, परिवार की उम्मीद, महंगाई के दौर में खुद को सही स्थिति में लाने की जंग.
4. 35 से 50 में अब जाके जिंदगी एक ट्रैक पर रुकी है तो पता लगा की बच्चे बड़े होने लगे हैं , इंजीनियरिंग में
प्रवेश कराना है या डॉक्टर बनाना है, इतना अनुदान देना है कॉलेज में , शहर से बाहर रहने का इतना खर्चा है, फिर से लग गए जुगाड़ में.
5. 50 से 60 , अब उम्र आई है सत्संग की , मंदिर जाने की , लोगो को उपदेश देने की , ज़माने के अंतर को बताने की, अपनी बात को बड़ी साबित करने की , ये बताने की क़ि ये देशसेवा , राष्ट्रभक्ति ये सब ठाली बेठे लोगो के काम हैं , पढो लिखो करियर बनाओ और पैसा कमाओ , ये सब तो यु ही चलता रहता है.
हो सकता है क़ि लिखने में कुछ कमी रह गयी हो या कुछ बिंदु गलत लिखे हों , पर जितना मैने आसपास देखा वो बताया , इसमें कुछ स्थिति ऐसी है क़ि युवा अपने ऐश आराम और रोमांस से बाहर देख ही नहीं पा रहे हैं , गरीब युवा को राष्ट्र के लिए देखने का विकल्प ही नहीं बचता क्योकि उसे अपनी एक दिन क़ि रोटी का जुगाड़ करना है , उसकी एक अनुपस्थिति से उसकी ज़िन्दगी , भूख प्यास को आंच आ सकती है, अमीर युवा को भटकने का काम अच्छे ढंग से चल रहा है जैसे फसबूक, ऑरकुट, MTV, हवास को प्यार का नाम देकर उस पर टिपण्णी देकर प्रसिद्धि लूटना, लडकियों में अलग दिखने के लिए android मोबाइल, ब्रांडेड चश्मे, लेविस क़ि जींस, रीबोक क़ि टी शर्ट , bikes का ट्रेंड , आज कोनसी फिल्म रिलीज़ हो रही है. इन्हें कोई देश और समाज क़ि बात करता हुआ दिखाई देता है तो उसे बाबाजी, या उपदेशक या ओर्थोडोक्स सोच वाले का नाम दिया जाता है , ऐसा इसलिए होता है क्युकी जिस तरह कंप्यूटर में एक अच्छा hardware ही अच्छे software को सपोर्ट कर सकता है, उसी तरह एक अच्छा दिमाग ही इस तरह के विचारो को सपोर्ट कर सकता है , और हमारे विचारो और दिमाग में वाइरस लग चूका है जो हमें नग्नता , अश्लीलता, रोमांस, विलासिता से बहार आकर नहीं सोचने देता है, इस वाइरस लगने के बहुत से कारन हैं जैसे बचपन से लेकर अब तक बॉलीवुड क़ि रोमांस परस्त फिल्मे देखना और attraction को प्यार समझना, हर विज्ञापन में लड़का लड़की साथ देखना और हर तरह क़ि मीडिया से इस तरह का संदेश आता है क़ि ज़िन्दगी में रोमांस और ऐश के सिवा कुछ है ही नहीं , यही सब देखते देखते इंसान बड़ा होता है और यही सब कारण हैं जो उसका दिमाग रुपी hardware में नग्नता और अश्लीलता के वाइरस घुस जाते हैं
फिर भी इन दोनों स्थिति से कोई बाहर निकल कर देश के लिए कुछ करने क़ि सोचता है तो उसे सबसे पहले अपने समाज, परिवार, दोस्तों से ही बेवकूफ का दर्जा मिल जाता है, घरवाले चिंता करते हैं क़ि ये किस और जा रहा है............??
आपकी प्रतिक्रियाओं के लिए प्रतीक्षारत...............
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Peace if possible, truth at all costs.