मोहम्मद अली जिन्ना ने १९४६ ईस्वी में लेबर पार्टी के सांसद वुडरो वाट से कहा की ‘चूँकि अंग्रेज भारत में मुस्लिम शासन के उत्तराधिकारी थे, इसलिए उसे भारत मुसलमानों को वापस दे देना चाहिए’ हालाँकि ऐसा हुआ नहीं, परन्तु यह स्वप्न आज भी जीवित है और पाकिस्तान यह स्वप्न की भारत मुसलमानों का था अपने हर बच्चों के दिमाग में ठूंस ठूंस कर भर रहा है. इस बात की पुष्टि वहाँ बच्चों को पढाये जाने वाले इतिहास की किताबों से भी होता है. पाकिस्तान अपने बच्चों को यह विश्वास दिलाता है की पाकिस्तान की नीब आठवी सदी में मोहम्मद बिन कासिम के समय में ही पड़ गयी थी जिसे मोहम्मद गजनबी ने आगे बढ़ाया और मोहम्मद गोरी ने राजनीतक स्थायित्व प्रदान किया तथा सल्तनत काल और मुग़ल काल में पुरे भारत पर पाकिस्तान का कब्जा हो गया था. पाकिस्तान बेशर्मी से इस बात को भूल जाता है की वह जिस पाकिस्तान की बात करता है वह भारत और आज के पाकिस्तानी मुसलमानों के हिंदू पूर्वजों का अभिन्न अंग रहा है और ७७६ ईस्वी में मोहम्मद कासिम के आक्रमण से लेकर पाकिस्तान बनने तक उनके हिंदु पूर्वजों के मुसलमान बनने की इस्लामी अत्याचार, बर्बरता, हिंसा, नृशंसता और बलात्कार का एक अंतहीन दर्दनाक इतिहास रहा है जो पाकिस्तानी हिंदुओं और सिक्खों पर अमानवीय अत्याचार और जबरन धर्मान्तरण के रूप में आज भी जारी है. और यही कारण है पाकिस्तान की घोषणा और भारत विभाजन के समय “हंसकर लिया है पाकिस्तान लड़कर लेंगे हिन्दुस्तान” का नारा बदले स्वरूप में अब भी “आज श्री नगर कल दिल्ली” के रूप में जारी है. पाकिस्तान के हिंदुओं और हिन्दुस्तान के विरुद्ध वैचारिक जेहाद को समझने के बाद आइये देखते हैं की वह इसे अमली जामा पहनाने के लिए क्या क्या और कहाँ तैयारियां कर रहा है.
आतंकवादी संगठन लश्कर ए तोइबा (पवित्र लोगों की सेना) पाकिस्तान का अधिकृत जेहादी संगठन है जिसकी नीब पाकिस्तान के सैन्य शासक जेनरल जिया उल हक ने रक्खा था. लश्कर-ए-तोइबा लाहौर से तीस किलोमीटर दूर मुरिन्डके में दो सौ एकड़ में फैले मुख्यालय से अपनी गतिविधियां संचालित करता है. यहाँ इस्लामी धर्मशास्त्र की पढाई तथा जेहाद के उपदेश दिए जाते हैं तथा एक वर्ष में लगभग एक लाख मुजाहिदीनों को जेहादी (आतंकवादी) कार्य के लिए प्रशिक्षित करते हैं. एक अनुमान के अनुसार तिन सौ से अधिक मदरसे उसके नियंत्रण में हैं जहाँ जेहाद की शिक्षा दी जाती है. जेहादी (आतंकवादी) कार्यों के लिए इसे पैसा मुख्यतः सउदी अरब, खाड़ी देशों तथा विश्व के मुसलमानों और प्रवासियों से नियमित दान में मिलता है.
पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों को जेहादी मदरसों से प्राप्त होता है. वास्तव में पाकिस्तान के ग्रामीण इलाकों में आधुनिक शिक्षा प्राप्त करने के साधन ही उपलब्ध नहीं है और उन्हें शिक्षा के लिए मदरसों में ही जाना पड़ता है. भुट्टो को फांसी देने के बाद जिया उल हक ने समर्थन के लिए धार्मिक दलों का सहारा लिया और मदरसों को प्रायोजित किया. मदरसों को सरकारी अनुदान के आलावा जकात कोष से पैसा प्राप्त होता है जो व्यक्तिगत खाताधारकों से अनिवार्य रूप से कुछ रकम काटकर बनता है. मजहबी मदरसों को अरब के अमीरों और खाड़ी के देशों से पर्याप्त धन मुहैया कराया जाता है . मस्जिदें भी मदरसों के लिए धन एकत्रित करती है. इस्लामी विधिशास्त्र के विद्वान उत्पन्न करने की बजाय ये मदरसे जेहाद के लिए कट्टरपंथी पैदा करते हैं. (द फ्रायडे टाईम्स, दिसम्बर १४-२०, २००१, लेखक सलमान हुसैन)
मदरसों में पढ़नेवाले बच्चों में जेहाद का जोश प्रेरित करने के लिए प्राथमिक पाठ्य पुस्तकों में कुछ नया जोड़ा गया. अब जीम का अर्थ है जेहाद, टे का अर्थ है तोप, काफ का अर्थ है क्लाशिनकोव और खे का अर्थ है खून. (ऑन द अबिस, लेखक तारिक अली)
पचास हजार से अधिक मदरसों में से अधिसंख्य जेहाद के नाम पर नफरत तथा हिंसा का पाठ पढाते हैं. ऐसे उपदेश पाकिस्तान में सांप्रदायिक हिंसा तथा विदेश में जेहाद को प्रेरित करते हैं. मदरसों को पंजीकृत करने तथा उनकी पाठ्य सामग्री में आधुनिक विषयों को शामिल करने का निर्णय आधे मन से किया गया परन्तु प्रतिकूल प्रतिक्रिया के भय से इसे लागू नहीं किया गया. इन मदरसों का एकमात्र विषय कुरान के उपदेश हैं. अधिकतर मदरसे विज्ञान या गणित नहीं पढाते हैं. पाकिस्तानी अधिकारीयों ने जेसिका स्टर्न से कहा की देश के १० से १५ प्रतिशत मदरसे केवल कट्टरवादी विचारधाराओं का उपदेश देते हैं उसे प्रोत्साहित करते हैं. किसी भी समय ढाई लाख हथियारबंद जेहादी पाकिस्तान में चारों ओर फैले रहते हैं. (बुलेटिन ऑफ द इकोनोमिक सयंटिस्ट, जनवरी-फरवरी, २००१)
जेसिका स्टर्न ने लाहौर स्थित एक महत्वपूर्ण मदरसे के प्रिंसिपल का अल्बर्ट आईन्स्टाईन के बारे में जानने के लिए साक्षात्कार किया. प्रिंसिपल ने आईन्स्टाईन के बारे में अनभिज्ञता जताई और कहा उसे विज्ञान पढाने या सीखने की कोई आवश्यकता महसूस नहीं होती है साथ ही उसने जेहाद द्वारा उपलब्धि की सलाह दी. सिपह-ए-सहबा के एक नेता मुजीब-उर-रहमान इंकलाबी का यह मत था की “मदरसे जेहाद के लिए आधार हैं. मदरसे जेहाद की आपूर्ति के माध्यम हैं”.
जिन माँओं ने अपने पुत्रों को जेहाद के लिए समर्पित कर दिया था, वे यह सोचकर खुश थी की उनके मृत पुत्र वास्तविक जीवन में उन्हें मुक्ति देंगे. मृत जेहादियों के परिवार अपने बच्चों के मृत्यु के बाद प्रसिद्द हो जाते हैं और उन्हें सम्मान की नजर से देखा जाता है. शहीद जेहादियों की मौत अन्य लोगों को जेहाद में शामिल होने को प्रोत्साहित करता है.
जेसिका स्टर्न ने देखा की कई उच्च कट्टरपंथी नेताओं के लिए जेहाद एक बड़ा व्यवसाय है जिसके लिए श्रम मदरसे के विद्यार्थी प्रदान करते हैं और पूंजी मजहबी तथा गैर-मजहबी कार्यकर्ताओं से प्राप्त की जाती हैं. ये कट्टरपंथी नेता बड़े बड़े भवनों में नौकर-चाकर के साथ विलासिता पूर्वक रहते हैं, इनके बच्चे विदेशों में अच्छी शिक्षा प्राप्त करते हैं जबकि जेहाद के लिए मुख्य रूप से कार्य करने वाले लोग निम्न और मध्यम वर्ग से प्राप्त होते हैं.
९ जनवरी, २००१ को उलूम हकाकिया नामक स्थान में सभी इसलामी तथा गुरिल्ला गुटों का प्रतिनिधित्व करते हुए तिन सौ प्रमुख मुस्लिम धर्म-प्रचारकों ने घोषणा की की एक महान मुस्लिम योद्धा ओसमा बिन लादेन की सुरक्षा करना दुनिया भर के मुसलमानों का धार्मिक कर्तव्य है.
पाकिस्तान के सभी बड़े बाजारों में हर तीसरी या चौथी दुकान में जेहादी गुटों के लिए दान पात्र रखे हैं, क्योंकि आतंकवादियों की मदद करना अल्लाह की नजर में अच्छा कार्य है. इसलामी स्कूल या मदरसों तथा प्रत्येक मस्जिद के एक हिस्से को जेहाद के केंद्र के रूप में बदल दिया गया है. वे कट्टर इस्लामी योद्धाओं के लिए उत्पत्ति के आधार हैं. जेहाद में अपने बच्चों को खो चुके परिवारों को आतंकवादी गुटों द्वारा वित्तीय मदद दी जाती है.
पाकिस्तान के फैसलाबाद की जामिया मस्जिद से पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री वाले आतंकवादी अबू जिंदल जो सन १९९५ में भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा कश्मीर में पकड़ा गया था उसने जेहाद का धार्मिक सिद्धांत बताया, “एक सच्चा मुसलमान सिर्फ अल्लाह के लिए लड़ता है. वह सिर्फ और सिर्फ अल्लाह है, जो यह फैसला करता है की एक मुसलमान को कैसे मरना चाहिए. ऐसे सभी क्षेत्र, जो मुसलमानों के हैं और उनपर दूसरों का कब्जा है, उन्हें स्वतंत्र होना चाहिए और वह स्वतंत्र होंगे. मैं यहाँ इसलिए आया हूँ क्योंकि यह एक मुस्लिम क्षेत्र है, जिस पर गैर-मुसलमानों का शासन है,. हम यहाँ धर्म के लिए आये हैं. आर्थिक और भौतिक कारक मेरे लिए कोई अर्थ नहीं रखते.”
ज्ञातव्य है की पाकिस्तान की मीडिया में भी इस बात पर बहस चलता रहता है की मदरसों को आतंकवाद की फैक्ट्री बनने से कैसे रोका जाय परन्तु वास्तविक धरातल पर अभीतक कुछ भी सम्भव नहीं हुआ है. राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए हजारों मदरसों पर प्रतिबंध लगाया था परन्तु उसकी कीमत मुशर्रफ को चुकानी पड़ी और अब उनके सुर बदल चुके हैं. इसी तरह मिश्र ने आतंकवाद पर नियंत्रण के लिए २७००० मदरसों पर प्रतिबंध लगा दिया है और अभी ट्युनिसिया ने आतंकवादी हमले के बाद संदिग्ध ८० मस्जिदों पर ताले जड़ दिए या ढहा दिए.
एक पूर्व आतंकवादी के अनुसार, अल्लाह के आशीर्वाद तथा मदद का वादा स्वर्ग का स्वप्न तथा उसके उपहार (७२ हूर) युवा जेहादियों के लिए प्रमुख प्रेरक बल होते हैं. भारत थका हुआ है और लड़ाई से मुक्ति चाहता है; लेकिन हम भारतीय सेना को तबतक आराम नहीं करने देंगे जबतक कश्मीर उससे अलग न हो जाए. लश्कर तोइबा के एक आतंकवादी ने साक्षात्कार में कहा, “मेरी इच्छा है की मैं शहीद कहलाऊं. मेरा पूरा परिवार जेहाद के प्रति समर्पित है. लश्कर तोइबा प्रमुख हाफिज सईद का कहना है, “हम सभ्यताओं के टकराव में विश्वास रखते हैं. जेहाद का आखिरी लक्ष्य अन्य सभ्यताओं पर इस्लाम का प्रभुत्व कायम करना है.
इंजिनियर पिता का एकमात्र पुत्र डॉ मोअजिम शेख लशकर-ए-तोइबा में शामिल होने के लिए प्रेरित हुआ. उसे एक आत्मघाती मिशन के लिए चुना गया. उसकी माँ ने इस्लाम के हित के लिए शहादत की प्रार्थना की. वह ७ अप्रैल, २००१ को जम्मू सेक्टर के डोडा में एक मुठभेड़ में मारा गया. फिदायीन सदस्यों में जेहादी जोश उत्पन्न करने के लिए उन्हें इतिहास के इसलामी योद्धाओं का नाम दिया जाता है.(द जेहाद फैक्ट्रीज, फ़्रोंट लाइन, लेखक-मसंद अंसारी)
जेहादियों ने पामेला को बताया, “बदला लेना हमारा धार्मिक कर्तव्य है. हम अल्लाह की मदद से लड़ते हैं और एक बार जब हम जेहाद शुरू कर देते हैं तो कोई भी शक्ति हमारा सामना नहीं कर सकती. हमारी हार्दिक इच्छा भारतीयों के खिलाफ जेहाद में मरना है, ताकि हम जन्नत में अपना स्थान बना सकें”.
जो लोग यह कहते हैं की केवल कश्मीर भारत-पाकिस्तान की समस्या की वजह है वे भ्रम के शिकार हैं. इस समस्या की गम्भीरता खुद मुशर्रफ के शब्दों में व्यक्त होता है जो हम भारतवासियों की आँखें खोलने वाली है. अप्रैल १९९९ में परवेज मुशर्रफ ने कराची में भाषण देते हुए कहा था, “कश्मीर मुद्दे के समाधान के बाद भी भारत-पाक तनाव जारी रहेगा.”
कश्मीर मुद्दे के निपटारे के बाद तनाव क्यों जारी रहेगा इसे स्पष्ट करते हुए ब्रिगेडियर ए आर. सिद्दीकी ने प्रकाश डाला की, “कश्मीर का लम्बा और कड़वा अध्याय समाप्त होने के बाद भी हिंदुओं की अधिक संख्यावाले भारतीय समाज में मुसलमानों की स्थिति भारत-पाक सम्बन्धों को खराब बनानेवाली एक और वजह होगी” (द नेशन-२९ अप्रैल, १९९९) और इसका स्पष्टीकरण पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों के भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर होता हैं.
जरा सोचिये, इन पाकिस्तानियों के हिंदुओं और हिन्दुस्तान के विनाश के लिए सतत प्रयत्न के विरुद्ध हम अपनी, अपने परिवार, अपनी संतति और अपने देश की सुरक्षा के लिए क्या कर रहे हैं? किसी भी देश की सेना दूसरे देश की सेना से लड़ सकती है, किसी देश के पुरी जनता से नहीं. अब तो कई अन्य आतंकवादी संगठन भी इस्लाम और जेहाद के नाम पर भारत के विरुद्ध पाकिस्तान से आ मिला है जिनमे प्रमुख है अलकायदा, तालिबान और अब सुचना आ रही है की इस्लाम का सबसे घिनौना चेहरा आईएसआईएस भी. ऐसी परिस्थिति में जहाँ हर घर से कम से कम एक व्यक्ति को सेना और सुरक्षा के लिए आगे आने की आवश्यकता है वहाँ हम सिर्फ अपने बुढ़ापे की लाठी पैदा करने के सिद्धांत पर आगे बढ़ रहे हैं और अपने ही देश में गर्व से अल्पसंख्यक (१९४७ में हिंदू ८७% से घटकर २०११ में ७४%) बनने को अग्रसर हैं. सवाल है राष्ट्र की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा? उसके लिए क्या आकाश से लोग पैदा होंगे? जब पाकिस्तान का बच्चा बच्चा हिन्दुस्तान की बर्बादी की तैयारी में है तो क्या राष्ट्र की सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी नहीं है? अरे राष्ट्र को छोड़ो, क्या हम अपने परिवार और बच्चे की सुरक्षा की तैयारी कर रहे हैं? क्या जबतक इन जेहादियों के नापाक हाथ हमारे बहन बेटियों तक नहीं पहुँच जायेंगे, उनकी तलवारे हमारे गर्दन नापने के लिए नहीं उठेंगे तबतक हमने ना सुधरने की कसमें खा ली है? वे अपना तन-मन-धन सब हमारे विनाश के लिए झोंक रहे हैं और हम खाने, सोने, अधिक से अधिक पैसा कमाने और कम से कम बच्चे पैदा करने के आलावा और क्या कर रहे हैं? सभी मानते हैं की देश में आजाद और भगत सिंह की आवश्यकता है, परन्तु वो पड़ोस के घर में पैदा हो ताकि हमारे सुख-शांति में कोई खलल न आये. परन्तु याद रखना. यदि आज तुम अपनी तंद्रा से नहीं जागे, तो निकट भविष्य में ही तुम्हे चैन से सोना नसीब नहीं होगा.
Peace if possible, truth at all costs.