भारत ने असत्य कहकर कुछ भी हल नही किया । और इसीलिए तो भारत पर दुश्मन आये
, भारत पराजित हुवा , गुलाम बना और भारत के साधू , संन्यासी कहते रहे यह
सब माया है । यह सब संसार है । यह सब चलता रहता है । भारत दुश्मनो के सामने
हारा उस हार में भारत की कमजोरी नही थी । भारत की फिलोसॉफी थी । भारत का
दरसन था । जब सभी असत्य है , तो हार भी असत्य है । जित भी असत्य है । कौन
जीतता है , कौन हारता है , कोई फर्क नही है । कौन दिल्ली के सिंहासन पे
बैठता है कोई फर्क नही । कौन राज्य करता है , कौन पराजित होता है , कौन
सोशक है , कौन शोषित है कोई फर्क नही ।
भारत में जो जीवन दर्शन विकसित किया है , जगत को माया बताने वाला , उस जगत को माया बताने वाले भारत की दृष्टी ने ही भारत जो हज़ारो साल तक गुलाम रखा । वह दृष्टी अब भी मजूद है । उस दृष्टि के कारन हम जिंदगी की सभी समस्याओ को अस्वीकार कर देने में समर्थ हो गए । जो भी हुवा हमने अस्वीकार कर दिया की सब असत्य है ।
हमें एक तरकीब हाथ लग गयी , एक ऐसी तरकीब हाथ लग गयी , जिसे हम हर चीज को इंकार कर सकते है । और इंकार कर देना हमेशा आसान है , क्योंकि स्वीकार करने में श्रम करना पड़ता है , इंकार करने में कुछ भी नही करना पड़ता । स्वीकार करने पर श्रम करना पड़ेगा । बदलने के चेष्टा करनी पड़ेगी । बदलने के उपाय खोजने पड़ेंगे । कौन उठाये यह झंझट , भारत की प्रतिभा ने झंझट उठाने सेें इंकार कर दिया । इसलिए भारत का प्रतिभाशाली आदमी जंगल भाग जाता है , वह कहता है कौन उठाये यह झंझट ।
दुनिया के प्रतिभाशाली लोग झंझट को बदलने की कोशिश करते है , भारत का प्रतिभाशाली जंगल भाग जाता है , वह कहता है कौन उठाये झंझट । भारत की प्रथम कोटि की जो प्रतिभा है वह जंगल चली जाती है , द्वितीय और तृतीय कोटि की प्रतिभा संसार को चलाती है । दुनिया के दूसरे मुल्को की प्रथम कोटि की प्रतिभा जीवन को चलाती है , इसलिए हम दुनिया के किसी भी मुल्क का मुकाबला नही कर सकते । हमेशा पिछड़कर चले जायेंगे । उनका फर्स्ट रेट माइंड दुनिया को चलाता है । हमारा सेकंड रेट और थर्ड रेट माइंड दुनिया को चलता है । हम उसके सामने खड़े नही हो सकते । हमारा प्रथम कोटि का विचारक तो भागता है । प्रथम कोटि के विचारक अगर दो - चार भाग जाये तो सब कुछ गड़बड़ हो जाता है ।
शायद आपको पता न होगा , हो सकता था एक आदमी आइन्सटीन जर्मनी से न भगाया गया होता तो शायद दुनिया इतिहास दूसरा होता । एक आदमी आइन्सटीन को जर्मनी से भगा देने का परिणाम यह हुवा जो एटम बम्ब जर्मनी में बन सकता था वो अमरीका मे बना । सारे दुनिया का इतिहास अब और ही होगा अगर हिटलर जीतता और जापान और जर्मनी जीततेतो दुनिया इतिहास बिलकुल दूसरा होता । हम कल्पना भी नही कर सकते की दुनिया का नक्सा कैसा होता आज । लेकिन एक विचारक , एक प्रथम कोटि की प्रतिभा का जर्मनी से भागना , सारे इतिहास को बदलने का कारण हो गया । वह आदमी अमरीका पोहच गया , वह जो एटम की शोध जर्मनी मे चलती थी वह अमरीका मे जाकर पूरी हुई । और उसी एटम ने घुटने टिकवा दिए जापान के और जर्मनी के । वह एटम जर्मनी मे भी बन सकता था । सिर्फ एक आदमी के भाग जाने के कारन अब दुनिया इतिहास बिलकुल दूसरा होगा ।
हिंदुस्तान से कितने प्रथम कोटि के लोग भाग गए है , उसका हमें पता है ? हम एक भी आइन्सटीन पैदा नही कर सके , एक भी न्युटन पैदा नही कर सके , हमारे पास प्रतिभाओकी कमी नही थी । कोई बुद्ध , महावीर , शंकर , नागार्जुन के पास प्रतिभा की कमी नही थी । लेकिन प्रतिभा की दिशा भागने की है । प्रतिभा की दिशा जीवन से जूझने की नही है । जीवन को बदलने की और संघर्ष करने की नही है । आँख बंद कर लेने की , खो जाने की है ।
शायद हम दुनिया के सबसे जादा वैज्ञानिक समाज पैदा कर सकते थे लेकिन यह नही हो सका । क्यों की विज्ञान वहा पैदा होता है जहा जिंदगी को यथार्थ मानते है । जो जिंदगी को अ'यथार्थ , अनरियल मानते है वहा विज्ञान पैदा नही होता । साइंस का मतलब यह है की जिंदगी सत्य है । और उस सत्य के हमे भीतर प्रवेश करना है । जिंदगी की सत्य में प्रवेश करने की कला का नाम साइंस है लेकिन जिंदगी असत्य है तो प्रवेश करने का सवाल नही है । इसलिए भारत में साइंस पैदा नही हो सकी ।
भारत में आज भी साइंस पैदा नही हो रही । आप कहेंगे यह मै क्या बात कह रहा हु , हमारे न मालूम कितने बच्चे विज्ञान पढ़ रहे है , विज्ञान के ग्रेजुएट हो रहे है , एम.एस.सी. हो रहे है , डी.एस.सी. हो रहे है , हिंदुस्तान में न मालूम कितने लोग विज्ञान का अध्यन कर रहे है । कितने वैज्ञानिक पैदा हो रहे है और मै कह रहा हु की हिंदुस्तान में अभी भी विज्ञान पैदा नही हो रहा । और मै कुछ कारन से कहता हु , बोहोत सोच के कहता हु । हिंदुस्तान में विज्ञान तब तक पैदा नही होगा जब तक हिंदुस्तान का फिलसाफ़ा , हिंदुस्तान की जीवन की फिलोसॉफी नही बदलती ।
हिंदुस्तान में वैज्ञानिक शिक्षा हो रहा है , ट्रेनिंग हो रही है , हिंदुस्तान में टेक्नोलॉजी समजायी जा रही है , बच्चे साइंस पढ़ रहे है लेकिन फिर भी उनका माइंड साइंटिफिक नही है । बी.एस.सी. पढ़ रहा है एक लड़का और परीक्षा के वक़्त हनुमान जी के मंदिर के सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो जाता है । उसका बी.एस.सी. पढ़ना , उसका साइंस का पढ़ना और हनुमान जी के मंदिर के सामने हाथ जोड़ना उसको कोई कॉन्ट्राडिक्शन देखाई नही पड़ेगा , कोई विरोध नही दिखाई पड़ेगा ।
~ ओशो ~
【 नए भारत की खोज 】
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‘‘कितने झूठ तुमने बना रखे हैं! लड़का बड़ा होगा, शादी होगी, बच्चे होंगे, धन कमाएगा, यश पाएगा, और तुम मर रहे हो! और तुम्हारे बाप भी ऐसे ही मरे, कि तुम बड़े होओगे, कि शादी होगी, कि धन कमाओगे। और तुम्हारा लड़का भी ऐसे ही मरेगा। जिंदगी बड़ी भरी-पूरी जा रही है!
बाप बेटे के लिए मर जाता है। बेटा अपने बेटे के लिए मर जाता है। ऐसा एक-दूसरे पर मरते चले जाते हैं। कोई जीता नहीं। मरना इतना आसान, जीना इतना कठिन!
लोग सोचते हैं, मौत बड़ी दुस्तर है। गलत सोचते हैं। मौत में क्या दुस्तरता है? क्षण में मर जाते हो। जिंदगी दुस्तर है। सत्तर साल जीना होता है। और बिना झूठ के तुम जीना नहीं जानते हो, तो तुम हजार तरह के झूठ खड़े कर लेते हो--यश, पद, प्रतिष्ठा, सफलता, धन। जब इनसे चुक जाते हो तो धर्म, मोक्ष, स्वर्ग, परमात्मा, आत्मा, ध्यान, समाधि। पर तुम कुछ न कुछ...ताकि अपने को भरे रखो। और ध्यान रखना, बुद्ध का सारा जोर झूठ से खाली हो जाने पर है। सत्य से भरना थोड़े ही पड़ता है। झूठ से खाली हुए तो जो शेष रह जाता है, वही सत्य है। गयी बीमारी, जो बचा वही स्वास्थ्य है।’’
भारत में जो जीवन दर्शन विकसित किया है , जगत को माया बताने वाला , उस जगत को माया बताने वाले भारत की दृष्टी ने ही भारत जो हज़ारो साल तक गुलाम रखा । वह दृष्टी अब भी मजूद है । उस दृष्टि के कारन हम जिंदगी की सभी समस्याओ को अस्वीकार कर देने में समर्थ हो गए । जो भी हुवा हमने अस्वीकार कर दिया की सब असत्य है ।
हमें एक तरकीब हाथ लग गयी , एक ऐसी तरकीब हाथ लग गयी , जिसे हम हर चीज को इंकार कर सकते है । और इंकार कर देना हमेशा आसान है , क्योंकि स्वीकार करने में श्रम करना पड़ता है , इंकार करने में कुछ भी नही करना पड़ता । स्वीकार करने पर श्रम करना पड़ेगा । बदलने के चेष्टा करनी पड़ेगी । बदलने के उपाय खोजने पड़ेंगे । कौन उठाये यह झंझट , भारत की प्रतिभा ने झंझट उठाने सेें इंकार कर दिया । इसलिए भारत का प्रतिभाशाली आदमी जंगल भाग जाता है , वह कहता है कौन उठाये यह झंझट ।
दुनिया के प्रतिभाशाली लोग झंझट को बदलने की कोशिश करते है , भारत का प्रतिभाशाली जंगल भाग जाता है , वह कहता है कौन उठाये झंझट । भारत की प्रथम कोटि की जो प्रतिभा है वह जंगल चली जाती है , द्वितीय और तृतीय कोटि की प्रतिभा संसार को चलाती है । दुनिया के दूसरे मुल्को की प्रथम कोटि की प्रतिभा जीवन को चलाती है , इसलिए हम दुनिया के किसी भी मुल्क का मुकाबला नही कर सकते । हमेशा पिछड़कर चले जायेंगे । उनका फर्स्ट रेट माइंड दुनिया को चलाता है । हमारा सेकंड रेट और थर्ड रेट माइंड दुनिया को चलता है । हम उसके सामने खड़े नही हो सकते । हमारा प्रथम कोटि का विचारक तो भागता है । प्रथम कोटि के विचारक अगर दो - चार भाग जाये तो सब कुछ गड़बड़ हो जाता है ।
शायद आपको पता न होगा , हो सकता था एक आदमी आइन्सटीन जर्मनी से न भगाया गया होता तो शायद दुनिया इतिहास दूसरा होता । एक आदमी आइन्सटीन को जर्मनी से भगा देने का परिणाम यह हुवा जो एटम बम्ब जर्मनी में बन सकता था वो अमरीका मे बना । सारे दुनिया का इतिहास अब और ही होगा अगर हिटलर जीतता और जापान और जर्मनी जीततेतो दुनिया इतिहास बिलकुल दूसरा होता । हम कल्पना भी नही कर सकते की दुनिया का नक्सा कैसा होता आज । लेकिन एक विचारक , एक प्रथम कोटि की प्रतिभा का जर्मनी से भागना , सारे इतिहास को बदलने का कारण हो गया । वह आदमी अमरीका पोहच गया , वह जो एटम की शोध जर्मनी मे चलती थी वह अमरीका मे जाकर पूरी हुई । और उसी एटम ने घुटने टिकवा दिए जापान के और जर्मनी के । वह एटम जर्मनी मे भी बन सकता था । सिर्फ एक आदमी के भाग जाने के कारन अब दुनिया इतिहास बिलकुल दूसरा होगा ।
हिंदुस्तान से कितने प्रथम कोटि के लोग भाग गए है , उसका हमें पता है ? हम एक भी आइन्सटीन पैदा नही कर सके , एक भी न्युटन पैदा नही कर सके , हमारे पास प्रतिभाओकी कमी नही थी । कोई बुद्ध , महावीर , शंकर , नागार्जुन के पास प्रतिभा की कमी नही थी । लेकिन प्रतिभा की दिशा भागने की है । प्रतिभा की दिशा जीवन से जूझने की नही है । जीवन को बदलने की और संघर्ष करने की नही है । आँख बंद कर लेने की , खो जाने की है ।
शायद हम दुनिया के सबसे जादा वैज्ञानिक समाज पैदा कर सकते थे लेकिन यह नही हो सका । क्यों की विज्ञान वहा पैदा होता है जहा जिंदगी को यथार्थ मानते है । जो जिंदगी को अ'यथार्थ , अनरियल मानते है वहा विज्ञान पैदा नही होता । साइंस का मतलब यह है की जिंदगी सत्य है । और उस सत्य के हमे भीतर प्रवेश करना है । जिंदगी की सत्य में प्रवेश करने की कला का नाम साइंस है लेकिन जिंदगी असत्य है तो प्रवेश करने का सवाल नही है । इसलिए भारत में साइंस पैदा नही हो सकी ।
भारत में आज भी साइंस पैदा नही हो रही । आप कहेंगे यह मै क्या बात कह रहा हु , हमारे न मालूम कितने बच्चे विज्ञान पढ़ रहे है , विज्ञान के ग्रेजुएट हो रहे है , एम.एस.सी. हो रहे है , डी.एस.सी. हो रहे है , हिंदुस्तान में न मालूम कितने लोग विज्ञान का अध्यन कर रहे है । कितने वैज्ञानिक पैदा हो रहे है और मै कह रहा हु की हिंदुस्तान में अभी भी विज्ञान पैदा नही हो रहा । और मै कुछ कारन से कहता हु , बोहोत सोच के कहता हु । हिंदुस्तान में विज्ञान तब तक पैदा नही होगा जब तक हिंदुस्तान का फिलसाफ़ा , हिंदुस्तान की जीवन की फिलोसॉफी नही बदलती ।
हिंदुस्तान में वैज्ञानिक शिक्षा हो रहा है , ट्रेनिंग हो रही है , हिंदुस्तान में टेक्नोलॉजी समजायी जा रही है , बच्चे साइंस पढ़ रहे है लेकिन फिर भी उनका माइंड साइंटिफिक नही है । बी.एस.सी. पढ़ रहा है एक लड़का और परीक्षा के वक़्त हनुमान जी के मंदिर के सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो जाता है । उसका बी.एस.सी. पढ़ना , उसका साइंस का पढ़ना और हनुमान जी के मंदिर के सामने हाथ जोड़ना उसको कोई कॉन्ट्राडिक्शन देखाई नही पड़ेगा , कोई विरोध नही दिखाई पड़ेगा ।
~ ओशो ~
【 नए भारत की खोज 】
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‘‘कितने झूठ तुमने बना रखे हैं! लड़का बड़ा होगा, शादी होगी, बच्चे होंगे, धन कमाएगा, यश पाएगा, और तुम मर रहे हो! और तुम्हारे बाप भी ऐसे ही मरे, कि तुम बड़े होओगे, कि शादी होगी, कि धन कमाओगे। और तुम्हारा लड़का भी ऐसे ही मरेगा। जिंदगी बड़ी भरी-पूरी जा रही है!
बाप बेटे के लिए मर जाता है। बेटा अपने बेटे के लिए मर जाता है। ऐसा एक-दूसरे पर मरते चले जाते हैं। कोई जीता नहीं। मरना इतना आसान, जीना इतना कठिन!
लोग सोचते हैं, मौत बड़ी दुस्तर है। गलत सोचते हैं। मौत में क्या दुस्तरता है? क्षण में मर जाते हो। जिंदगी दुस्तर है। सत्तर साल जीना होता है। और बिना झूठ के तुम जीना नहीं जानते हो, तो तुम हजार तरह के झूठ खड़े कर लेते हो--यश, पद, प्रतिष्ठा, सफलता, धन। जब इनसे चुक जाते हो तो धर्म, मोक्ष, स्वर्ग, परमात्मा, आत्मा, ध्यान, समाधि। पर तुम कुछ न कुछ...ताकि अपने को भरे रखो। और ध्यान रखना, बुद्ध का सारा जोर झूठ से खाली हो जाने पर है। सत्य से भरना थोड़े ही पड़ता है। झूठ से खाली हुए तो जो शेष रह जाता है, वही सत्य है। गयी बीमारी, जो बचा वही स्वास्थ्य है।’’
Peace if possible, truth at all costs.