अकबर-जिसने 30000 निहत्तो की निर्मम हत्या की या महाराणा प्रताप - जिन्होंने देश की रक्षा के लिए घांस की रोटिया भी खाई
हल्दी घाटी का युद्ध
भारत रत्न तथा मेवाड़ के गौरव महाराणा प्रताप ये जानते थे की यह युद्ध उनके मेवाड़ ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारत देश के लिए कितना महत्वपूर्ण है। वे जानते थे की उनकी सेना आकार में मुग़लों के मुकाबले बहुत छोटी थी परन्तु उनको अपनी सेना के हर एक सैनिक पर विश्वास था। उन्हें विश्वास था की मेवाड़ की मिट्टी में जन्म लेने वाला हर एक राजपूत अपनी आखरी सांस तक इन मुग़लों का वीरता से सामना करेगा तथा अपनी माँ के आँचल में अपने दुश्मन का नरसंहार करके ही छिपेगा। हल्दीघाटी के इस युद्ध में अनेक वीरों को अपने प्राण त्यागने थे चाहे वो एक सच्चा राजपूत हो या फिर साहसी मुग़ल लेकिन यहाँ पर बात थी अपनी मातृभूमि की रक्षा की। मुग़ल चाहते थे की वे सम्पूर्ण भारत में अपना परचम फैलाये। वे इसके लिए किसी भी हद तक जा सकते थे। अकबर के द्वारा किये हुए ३०,००० नागरिकों का क़त्ल, अनेक राजपूतानिओं का जोहर, लोगों का धर्मपरिवर्तन इन सभी बातों का पक्का सबूत थे। महाराणा प्रताप अपने लोगों को इस महाकोप से बचाना चाहते थे , वे नहीं चाहते थे की कोई गैर मुल्की नागरिक राजपुताना या फिर भारत पर अपना ज़ुल्म दहाये। वे प्रत्येक भारतवासी में एकता देखना चाहते थे। वे नहीं चाहते थे कि कोई भी व्यक्ति उनके तथा उनके लोगों के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाए। यही मूल कारण था दोनों के बीच के युद्ध का।
इस युद्ध की एक और खासियत यह भी थी कि महाराणा प्रताप के सेनापति हकीम खान सूर ( मुग़ल) थे तथा जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर के सेनापति राजा मान सिंह ( हिन्दू ) थे जो कि जयपुर राज्य के राजा थे।
18 जून 1576 का वह दिन इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया है। इस दिन मुग़ल साम्राज्य की विशाल सेना का युद्ध महाराणा प्रताप की छोटी सी सेना के साथ हुआ था। दोनों सेना जोश से भरी हुई थी। अकबर ने अपने सेनापति मान सिंह को जो कि जयपुर के राजा भी थे को अपने बेटे की उपाधि दी थी। उसने मान सिंह को मेवाड़ पर आक्रमण कर प्रताप को उसके सामने प्रस्तुत करने को कहा। मान सिंह 1 महीने के अंदर-अंदर अपनी विशाल सेना के साथ अजमेर आ गया। वहां पर अजमेर की सेना मान सिंह की सेना के साथ मिल गयी। अब मान सिंह बनास नदी के किनारे-किनारे अपनी सेना लेकर चलने लगा। महाराणा प्रताप को इसकी भनक लग चुकी थी। उन्होंने अपनी सेना लेकर मान सिंह को खमनोर के मैदान के पास रोकने का फैसला किया। प्रताप के पास केवल 50-60 हाथी , 2000-2500 घोड़े,800 वीर तंवर सिपाही मिलकर करीब 20,000 सिपाही थे जबकि मान सिंह के पास करीब 84000 से ज़्यादा सैनिक थे। महाराणा प्रताप तथा मान सिंह की सेना के बीच करीब-करीब 1:4 का अनुपात था।
मान सिंह ने अपनी सेना को तीन भागों में बाटा। पहली टुकड़ी में सबसे आगे चूज़-ए-हिमाकत ( पैदल- सैनिक) थे और उसके बाद हाथी पर सवार स्वयं मान सिंह था। अपने भाई को अचानक युद्ध से बचाने के लिए मान सिंह का भाई माधो सिंह अपनी टुकड़ी के साथ आगे की ओर आया। उस ओर प्रताप ने पहाड़ी से घिरे मैदान में लड़ने की रणनीती बनाई परन्तु ग्वालियर के राजा रामशाह तंवर ने पहाड़ी में छुपकर आक्रमण करना ठीक समझा। रामशाह तंवर प्रताप से उम्र में अधिक बड़े थे तथा उन्हें युद्ध लड़ने का प्रताप से अधिक अनुभव भी था इसलिए प्रताप भी रामशाह जी की इस बात से सहमत हो गए। भारत के प्रमुख इतिहिसकार मुल्ला बदायूनी के अनुसार प्रताप की सेना में बाएं ओर महाराणा प्रताप के मामा मान सिंह सोनवत,झाला मान सिंह,चुण्डावत सरदार रावत जी और हाकिम खान सूर प्रमुख थे। बीच में महाराणा अपने दो भाइयों के साथ थे। दाएं ओर थोड़ा आगे ग्वालियर के राजा राम शाह तंवर अपने दो पुत्र , एक पौत्र तथा तंवर सैनिकों के साथ युद्ध करने को तैयार थे। अरावली की पहाड़ियों पर करीब हज़ार भील सैनिक अपने सरदार राणा पुंजा के साथ मुग़ल सैनिकों के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे।
उस ओर मान सिंह की दूसरी टुकड़ी में राजा टोडर मल ,हिन्दू जगन्नाथ कछावा और बैरम खान अपनी टुकड़ी के साथ बनास नदी को पार कर रहे थे। तीसरी टुकड़ी में शहबाज़ खान और मशहूर इतिहासकार मुल्ला बदायूनी खमनोर के गाँव में थे। खमनोर के मैदान में पहुँचते ही मुल्ला बदायुनी ने सबसे पहले हाकिम खान सूर तथा उनकी सेना को देखा। हाकिम खान को देखते ही मुग़ल सेना इधर-उधर भागने लगी। उधर रामशाह जी ने भी मुग़लों को आता हुआ देख लिया था तथा अपनी रणनीती को बिगड़ता देख उन्होंने अपनी सेना के साथ पूरे बल से चूज़-ए-हिमाकत (पैदल सैनिकों) पर आक्रमण कर दिया। रामशाह जी का आक्रमण इतना प्रबल और आकस्मिक था कि मुग़ल सेना उनसे बचने के लिए बनास नदी से पांच-दस कोस दूर भाग गयी। किसी भी व्यक्ति को यह नहीं पता चला की कब तंवर जी ने मुग़लों पर आक्रमण किया और कब पैदल सैनिकों को उनके प्रबल से मृत्यु को गले लगाना पड़ा।
अपनी सेना को इस क़द्र डरा हुआ देख बैरम खान ने ये अफवाह फैलाई की शहंशाह-ए-हिन्द बादशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर प्रताप से लड़ने के लिए अपनी सुसज्जित सेना के साथ युद्ध के मैदान में स्वयं जल्वाफ़रोज़ हो रहे हैं तो यह सुनकर मुग़ल सैनिक जिन्हे चारों ओर से मौत दिखाई दे रही थी, रुक गए। बैरम खान की इस बात को सुनकर मुग़ल सैनिकों में एक नयी जान आ गयी।अब हौसलों से परिपूर्ण दोनों सेनाओं के बीच बराबरी का युद्ध हो चला था। दोनों सेनाएं ऐसे लड़ रही थी मानो उनका आखरी युद्ध हो। भील जो हमेशा छिप कर आक्रमण करते हैं, के पास अब कोई कार्य नहीं बचा था और उन्होंने राणा पुंजा निर्देशानुसार मुग़लों के डेरे पर आक्रमण कर दिया तथा वहां का सारा सामान और अनाज लूट लिया।
युद्ध को चले हुए तक़रीबन 2 घंटे हो गए थे। महाराणा प्रताप को लगा कि जब तक वे मान सिंह को मार नहीं देते तब तक वे युद्ध में विजय श्री नहीं हो पाएंगे। इसी कारण से उन्होंने मान सिंह पर हमला करने के लिए चेतक पर एक नकली सूंड लगा दी ताकि सब को यह प्रतीत हो जाए कि चेतक हाथी का छोटा बच्चा है। अब महाराणा अपने रास्ते में आते हुए सभी मुग़ल सैनिकों को अपनी तलवार से चीरते हुए अपने प्रिय घोड़े को मान सिंह के हाथी के पास ले गए। चेतक ने पास पहुँचते ही अपने आगे के दोनों पैर मान सिंह के हाथी पर रख दिए और उसी समय महाराणा ने अपना 26 किलो का भाला तेज़ प्रहार से उस पर फेंक दिया। मान सिंह तेज़ी से झुक गया तथा उसकी जान बच गयी परन्तु उसके झुकने से भाला महावत को लग गया और वह कुछ ही पलों में मारा गया। अपने महावत को मरा देख हाथी पागल हो गया और जो तलवार उसके सूंड में थी वो जाकर चेतक के दायें पैर में धंस गयी। हाथी के तुरंत घूमने से प्रताप को लगा कि मान सिंह मर गया और अब वे तेज़ी से अपनी सेना को इकठ्ठा करने के लिए जाने लगे लेकिन चेतक के घाव के कारण उसकी गति धीरे हो गयी और वे मुग़ल सैनिकों से घिर गए।
महाराणा प्रताप अपनी सेना के पास जा ही रहे थे कि तभी एक लंबा-चौड़ा मुग़ल सैनिक उनकी ओर ” अल्लाह ” कहकर लपका परन्तु सतर्क प्रताप ने तिरछे पैरों पर बैठकर उसे कद्दू के दो फांक की तरह मार कर फेंक दिया। मुग़ल सैनिक के साथ साथ उसका घोड़ा , दोनों को ही प्रताप ने अपने बल से दो भाग में काट दिया। प्रताप के इस भीम सामान बल को देखकर मुल्ला बदायूनी खान की कलम लिखने को तत्पर हुई मगर वो शून्य की तरह प्रताप को निहारता रह गया। सभी लोग अपने दातों तले उँगलियाँ दबाने को मज़बूर हो गए। एक पल तो ऐसा लगा मानो पूरा युद्ध उस मुग़ल सैनिक के मरने से ख़त्म हो गया। लेकिन हरकत में आने के बाद सभी सैनिक एक बार फिर से एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए। युद्ध फिर से एक नए चरम पर पहुँच गया था।
दाएं ओर एक भी तंवर सैनिक नहीं बचा। राजा रामशाह तंवर तथा उनके वीर सैनिकों ने मेवाड़ का नमक अदा कर दिया था। प्रताप के बाएं ओर सेनापति हाकिम खान सूर तथा महाराणा के मामा मान सिंह सोनवत और चुण्डावत सरदार रावत जी ने मृत्यु को अपने गले से लगा लिया। खमनोर के मैदान में रक्त बनास नदी में मिल गया जिसके कारण आस पास की भूमि का रंग बिलकुल हल्दी के रंग में तब्दील हो गया और इसी वजह से इसका नाम रक्त तलाई / हल्दी घाटी पड़ गया।
महाराणा प्रताप को मुग़लों से अकेले सामना करते हुए देख झाला मान सिंह जी तुरंत उनके पास गए तथा उन्होंने प्रताप को अपना कवच उतारने को कहा। वे चाहते थे की मुग़ल उन्हें प्रताप समझे तथा उनसे युद्ध करे ताकि महाराणा प्रताप इसका फायदा ले घने जंगलों में चले जाए और अंत तक मेवाड़ को पूर्ण स्वतंत्रता दिला सके। महाराणा ने पहले तो झाला सिंह जी को मना कर दिया लेकिन अंत में उन्हें अपने प्रिय स्वाभिमानी मित्र की बात को मानना पड़ा। महाराणा प्रताप यही समझ रहे थे कि मान सिंह मर गया। इसलिए यह युद्ध उन्होंने जीत लिया लेकिन इस एक युद्ध के लिए उन्हें अपने कितने ही साथियों को खोना पड़ा। कितने ही देशभक्तों ने उनके एक कहने पर ख़ुशी-ख़ुशी अपने प्राणों को उनके तथा मेवाड़ के लिए समर्पित कर दिया। कितनी ही पत्नियां उनके लिए विधवा हो गयी थी। कितनी मांओं ने अपने जवान बच्चे खो दिए थे। कितनी ही बहनों की रक्षा करने वाला भाई अब इस दुनिया से चला गया था। कितने ही बच्चों के सर से उनके पिता की छत्रछाया हट गयी थी और चेतक…? उसने सिर्फ अपने स्वामी के लिए अपना पैर कटवा लिया। महाराणा के मस्तिष्क में प्रश्न ही प्रश्न घूम रहे थे। और प्रत्येक प्रश्न का उत्तर भी मानो चीख-चीख कर बोल रहा हो कि यह सब तुम्हारी वजह से हुआ है प्रताप !! तुम्हारी वजह से हज़ारों लोगों ने अपने प्राण दे दिए। तुम्हे इसका पश्चाताप करना होगा। जो हुआ सो हुआ। यह सब कुछ नियति द्वारा रचित है। तुम्हे अपने सैनिकों की एक-एक रक्त की बूँद का बदला उस मुग़ल से लेना होगा। तुम्हे उस मुग़ल को दिखाना होगा की राजपूत के मान-सम्मान को ठेस पहुँचाने का क्या नतीजा होता है।
यही सब सोचते सोचते प्रताप एक १० फ़ीट नाले के पास पहुंचे। चेतक के घाव से प्रताप चिंतित हो गए और उन्हें लगा की अब वे यह नाला नहीं पार कर पाएंगे। लेकिन चेतक को अपने स्वामी को बचाना था और इसके लिए उसने तेज़ रफ़्तार से उस नाले को पार करने के लिए एक छलांग लगा दी। ……। अद्भुत!!! घायल चेतक ने एक ही बार में उस10 फुट नाले को पार कर लिया था। महाराणा प्रताप चेतक के इस अत्यंत साहसपूर्वक कार्य को देख गदगद हो उठे तथा उनकी आँखों से पानी आ गया। । चेतक ने जिस प्रकार इस घायल अवस्था में भी अपने स्वामी के प्रति वफ़ादारी निभा उन्हें युद्ध भूमि से सही सलामत बाहर निकाला , वह अत्यंत ही सराहनीय था । महाराणा प्रताप तथा चेतक के बीच की मित्रता आज भी लोगों के बीच मिसाल है। अपने पीछे घुड़सवारों को आता देख वे चेतक की पीठ पर बैठ पास के ही शिव मंदिर में गए। वहां से वे उसकी पीठ से उतर वे अत्यंत ही सजग हो गए। चेतक का घाव अब बहुत गहरा हो गया था तथा किसी भी तरह से ठीक नहीं हो सकता था। उसने अपना सर प्रताप की गोद में रखा तथा कुछ ही पलों बाद इस स्वामिभक्त नीली आँखों वाले घोड़े ने हमेशा-हमेशा के लिए अपने प्राण अपनी मातृभूमि तथा अपने स्वामी के लिए त्याग दिए थे। प्रताप की शूरवीरता,साहस,स्वाभिमान ,शालीनता ,जैसे डगमगा गयी थी। उनके क्रोध तथा करुणा के बीच द्वंद्व चल रहा था। कितने ही वीरों को उन्होंने इस युद्ध में खोया था। कौन अपना , कौन पराया ,कितने ही देशभक्तों ने मेवाड़ की रक्षा करने की लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था। उनकी करुणा उनके धर्म पर हावी हो गयी थी। हाकिम खान सूर ,रामशाह तंवर , रावत जी , झाला मान सिंह ,मामा मान सिंह सोनवत , चेतक और कितने ही लोग इस युद्ध में मारे गए थे। प्रताप को हर ओर निराशा हाथ लग रही थी। उन्हें लग रहा था की उनको अकबर की बात मान उसके साथ संधि कर लेनी चाहिए। आखिरकार वे किसी भी साथी को युद्ध में नहीं खोएंगे , आधे भारत के राजा बन जाएंगे , चित्तौड़ के राजमहल में सुख तथा शांति के साथ अपने परिवार सहित जीवन व्यतीत करेंगे। लेकिन इस सबके उपरांत उन्हें अकबर के अधीन काम करना होगा , अपनी पवित्र भूमि को एक गैर मुल्की के हाथ सौंपना होगा और साथ ही साथ उन्हें अपने पूर्वजों जिन्होंने कितने ही साहस तथा वीरता के साथ अपनी भूमि को दुश्मनो से बचा उसकी मान तथा सम्मान की रक्षा की थी, के सामने लज्जित होना पड़ेगा। क्या उनका स्वाभिमान उन्हें यह करने देगा…? क्या वह अपने मित्रों की मौत का बदला उस दुष्ट मुग़ल से नहीं लेंगे?…
GREAT MAHARANA ;;;GREAT WORRIOR;;;REAL HERO OF THAT TIME ;ALL BHARATIYA KING BECAME SLAVE OF CRUEL AKBAR WITH FEAR ;
ReplyDeleteONLY MAHARANA PRATAP ,NOT ACCEPTED MUGHAL SOVEREINITY
ReplyDelete