Sushma Swaraj पर खूब हमला कीजिए, लेकिन जरा अपने इतिहास में भी झांक लीजिए...

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सुषमा स्‍वराज मामले में मेरे कई वरिष्‍ठ पत्रकार साथी मुझ पर हमला कर रहे हैं कि तुम कुछ लिख क्‍यों नहीं रहे? 
आज तुम्‍हारा की-बोर्ड क्‍यों खामोश है? 
मैं जानता हूं आप के इस व्‍यंग्‍य का मतलब! मानवीय आधार पर उन्‍होंने मदद दी होगी और पिछले एक साल के शासन में उन्‍होंने इसे कई बार साबित किया है। यमन में एक प्रेग्‍नेंट महिला ने उन्‍हें टूवीट किया था और उन्‍होंने उसे ढूंढवा कर वापस मंगवाया। इराक में भी वहां फंसे लोगों ने उनसे टवीट कर मदद मांगी और उन्‍होंने उसे दी।
मैं उनके इस व्‍यवहार की कद्र करता हूं कि वह न केवल एक विशेष व्‍यक्ति, बल्कि आम जनता के टवीट का जवाब भी देती हैं और उसे सहायता पहुंचाने की कोशिश भी करती हैं।
मैं आज इसी बहाने आपको इतिहास की सैर कराता हूं तो आप जानेंगे कि कन्‍फलिक्‍ट ऑफ इंट्रेस्‍ट में ब्रिटेन को राजी करने का यह खेल हमारे देश को बांटने के लिए भी खेला गया था और आजाद भारत के पहले मंत्रीमंडल से लेकर आजतक कन्‍फलिक्‍ट ऑफ इंट्रेस्‍ट का खेल कितना खेला जाता रहा है। बस यूं ही जानकारी के लिए, इतिहास जानना भी तो जरूरी है न।
अतीत की सच्‍चाई: भारत का विभाजन कर जल्‍द से जल्‍द सत्‍ता हासिल करने के लिए जवाहरलाल नेहरू ने ब्रिटेन में अपना दूत भेजकर माउंटबेटन को वायसराय बनवाया था। ब्रिटेन के तत्‍कालीन प्रधानमंत्री क्लिमेंट एटली के सहयोगी व चांसलर ऑफ द एक्‍सचेकर सर स्‍टैफर्ड क्रिप्‍स के पास नेहरू ने कृष्‍ण मेनन को गुप्‍त वार्ता के लिए भेजा था। कृष्‍ण मेनन वामपंथी थे और नेहरू के बेहद करीब थे। उस वक्‍त के वायसराज बेवल, कांग्रेस के मन के अनुसार कार्य नहीं कर रहे थे, इसलिए नेहरू का सुझाव था कि एटली बेवल को बदल कर माउंटबेटन को भेजें, क्‍योंकि बेवल के रहते कांग्रेस भारत में प्रगति की आशा नहीं कर सकती थी। माउंटबेटन ने आते ही भारत विभाजन की रूपरेखा रखी थी।(स्रोत: फ्रीडम एट मिड नाइट)
आखिर नेहरू व पटेल भारत विभजन की इतनी हड़बड़ी में क्‍यों थे। राममनोहर लोहिया ने अपनी पुस्‍तक 'भारत विभाजन के अपराधी' में लिखा है, '' तत्‍कालीन कांग्रेस नेतृत्‍व की उम्र ढल रही थी और उन्‍हें किसी न किसी रूप में सत्‍ता चाहिए थी। पद के आराम के बिना वह ज्‍यादा समय तक जिंदा नहीं रहते। अपने संघर्ष के दिनों को देखकर उन्‍हें बडी निराशा होने लगी थी। वह अपने बुढापे से उकता गए थे।'' इन सभी को सत्‍ता व विभाजन की इतनी जल्‍दी थी कि राम मनोहर लोहिया के मुताबिक, '' जब हमारे इस महान देश का विभाजन हो रहा था तब एक भी आदमी उसका प्रतिकार करते हुए मरा नहीं, जेल नहीं गया।''
ब्रिटेन पहले भारत विभाजन के पक्ष में नहीं था। उसने ऐसे संविधान का प्रस्‍ताव दिया था कि राज्‍यों को अधिकतम स्‍वायत्‍त शासन मिलता और केंद्र सरकार के पास केवल रक्षा, विदेश नीति व यातायात का भार रहता। कांग्रेस की बैठक में इस पर सहमति भी बन गई थी, लेकिन बैठक से निकल कर मुंबई में नेहरू ने प्रेस वार्ता कर इससे अपनी असहमति जताई, जिससे जिन्‍ना भड़क गए और भारत विभाजन पर अड़ गए। लोहिया यह भी लिखते हैं कि महात्‍मा गांधी ने एक सुझाव दिया था कि जिन्‍ना व मुस्लिम लीग भारत सरकार को खुद चलाएं। लेकिन कांग्रेस नेतृत्‍व इसके लिए तैयार नहीं था। लोहिया के मुताबिक, '' कांग्रेस नेतृत्‍व ने गांधी जी की बात नहीं मानी, क्‍योंकि वे खुद शासन करने के लिए बहुत लालायित थे। असल में वे बेहयाई की हद तक लालायित थे।''
इतिहास गवाह है कि कुछ समय बाद ही जिन्‍ना की मौत टीबी से हो गई और जिन्‍ना के मरते ही नेहरू प्रधानमंत्री हो जाते, क्‍योंकि मुस्लिम लीग के पास जिन्‍ना जैसा कोई दूसरा नेता भी नहीं था। पूरे इतिहास में केवल एक महात्‍मा गांधी थे, जिन्‍होंने अंत तक भारत विभाजन का विरोध किया। नेहरू-पटेल बाद में उनकी उपेक्षा करने लगे थे। 'फ्रीडम एट मिड नाइट' के मुताबिक, 'गांधी ने कहा, ये लोग मेरे मुंह पर मुझे महात्‍मा कहते हैं, लेकिन वास्‍तव में मेरी इज्‍जत भंगी जितनी भी नहीं करते।'
भारत को बांटकर सत्‍ता प्राप्ति का यह खेल ब्रिटेन से संपर्क कर अपने मन के मुताबिक वायसराय बनवा कर नेहरू ने खेला था। सुषमा का किसी के लिए ब्रिटेन से संपर्क करना कोई पहला मामला नहीं है और ललित मोदी का गुनाह भारत को बांटने के खेल से बड़ा गुनाह नहीं है।
अतीत की सच्‍चाई: भारत के पहले मंत्रीमंडल में एक भाभा नामक व्‍यक्ति को केंद्रीय मंत्री बनाया गया था, जिसे उससे पहले कोई नहीं जानता था। लोहिया के अनुसार, '' भाभा सरदार पटेल के लड़के के व्‍यापारिक साझीदार थे।'' कंफलिक्‍ट ऑफ इंट्रेस्‍ट का इससे बेहतर उदाहरण क्‍या हो सकता है कि देश के पहले मंत्रीमंडल में देश के गृहमंत्री के बेटे का व्‍यापारिक साझीदार केंद्रीय मंत्री बना था। अंबानी-अडाणी-ललित मोदी की राग गाने वालों को देश के अब तक के मंत्रीमंडल पर नजर डालनी चाहिए, जहां सीधे सीधे उद्योगपतियो को मंत्री बनाया गया था। कम से कम अंबानी-अडाणी-ललित इस मोदी सरकार में मंत्री तो नहीं ही हैं!

आज की सच्‍चाई: यह सरकार उद्योगपतियों की सरकार है। इसीलिए ललित मोदी को फायदा पहुंचाया।
अतीत की सच्‍चाई: महात्‍मा गांधी की पूरी फंडिंग घनश्‍यामदास बिड़ला करते थे। आजादी की लड़ाई में कांग्रेस के इस गुट की पूरी फंडिंग भी बिड़ला ही करते थे। गांधी दिल्‍ली के बिड़ला भवन में ही ठहरते थे और वहीं उनकी मौत भी हुई थी। चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह को आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए ट्रेन लूटना पड़ा था, सुभाषचंद्र बोस को देश की महिलाओं ने अपने जेवर उतार-उतार कर दिए थे। लेकिन गांधी-नेहरू-पटेल की पूरी फंडिंग उद्योगपति करते थे आखिर किस लिए?
ब्रिटिश राज में जब यह उद्योगपति अरबों-खरबों का व्‍यापार कर रहे थे, तो सोचिए इन सभी के बीच किस तरह का आपसी समझौता रहा होगा? किसानों व गरीब जनता को लूटने वाला ब्रिटिश, भारतीय उद्योगपतियों का साझीदार था और वही उद्योगपति आपके आजादी दिलाने वाले गांधीवादी नेतृत्‍व को फंडिंग करते थे? आजादी के ये तथाकथित नायक उद्योगपतियों के एजेंटों की तरह काम कर रहे थे तो आप आज उद्योगपति के विरोध में दिखने की कोशिश किस हक से कर रहे हैं? यह साफ तौर पर आपके दोगलेपन को दर्शाता है!
आज की सच्‍चाई: सुषमा ने ललित मोदी के लिए वीजा का इंतजाम किया।
अतीत की सच्‍चाई: भोपाल गैस कांड के मुख्‍य आरोपी एंडरसन को वीजा तो छोडि़ए, राजीव गांधी की सरकार ने विशेष विमान मुहैया कराया था, देश से भागने के लिए। सोनिया की मनमोहनी सरकार ने अदालत द्वारा बैन इटली के व्‍यावसायी अटावियो क्‍वात्रोक्कि के बैंक एकाउंट को खुलवा दिया था ताकि वह अपना सारा पैसा निकाल सके। आप केवल वीजा की बात करते हैं, थोड़ा शर्म कीजिए!
‪#‎TheTrueIndianHistory‬

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Peace if possible, truth at all costs.

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