चंद्रशेखर आज़ाद की मौत का रहस्य है फाइलों में आज भी कैद।

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चंद्रशेखर आजाद की मौत की कहानी भी उतनी ही रहस्यमयी है जितनी की नेताजी सुभाष चंद्र बोस की। आजाद की मौत से जुडी एक गोपनीय फाइल आज भी लखनऊ के सीआइडी ऑफिस में रखी है।
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इस फाइल में उनकी मौत से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें दर्ज हैं। फाइल का सच सामने लाने के लिए कई बार प्रयास भी हुए पर हर बार इसे सार्वजनिक करने से मना कर दिया गया। इतना ही नहीं भारत सरकार ने एक बार इसे नष्ट करने के आदेश भी तत्कालीन मुख्यमंत्री को दिए थे।
लेकिन, उन्होंने इस फाइल को नष्ट नहीं कराया। आजाद की मौत से जुड़ी इस फाइल में इलाहाबाद के तत्कालीन अंग्रेज पुलिस अफसर नॉट वावर के बयान दर्ज है। उसमें कहा गया है कि नॉट वावर की ही टुकड़ी ने इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क मे बैठे आजाद को घेर लिया था और एक भीषण गोलीबारी के बाद आजाद ने खुद को गोली मार ली थी। नॉट वावर ने अपने बयान मे कहा है कि वह उस समय खाना खा रहे थे।
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तभी उन्हें भारत के एक बड़े नेता का मैसेज आया। नॉट वावर को बताया गया कि आप जिसकी तलाश कर रहे हैं वह इस समय अल्फ्रेड पार्क मे है और वह वहां तीन बजे तक रहेगा। फिर नॉट वावर ने बिना देरी किए पुलिस बल लेकर अल्फ्रेड पार्क को चारों ओर से घेर लिया और आजाद को आत्मसमर्पण करने को कहा। आजाद ने अपना माउजर निकालकर एक इंस्पेक्टर को गोली मार दी।
इसके बाद नॉट वावर ने पुलिस को गोली चलाने का आदेश दिया। उन्होंने अपने बयान में बताया है कि पांच गोली से आजाद ने हमारे पांच लोगो को मारा फिर छठी गोली अपने कनपटी पर मार ली। आजाद आजीवन ब्रह्मचारी रहे। आजाद का जन्मस्थान भाबरा अब ‘आजादनगर’ के रूप में जाना जाता है।
जब क्रांतिकारी आंदोलन उग्र हुआ, तब आजाद उस तरफ खिंचे और ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट आर्मी’ से जुड़े। रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी षड्यंत्र (1925) एवं साण्डर्स गोलीकांड (1928) में सक्रिय भूमिका निभाई। अलफ्रेड पार्क, इलाहाबाद में 1931 में उन्होंने रूस की बोल्शेविक क्रांति की तर्ज पर समाजवादी क्रांति का आह्वान किया। आजाद ने भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों के साथ देश की आजादी के लिए संगठित हो प्रयास शुरू किए।
काकोरी कांड के बाद जब आजाद 27 फरवरी को प्रयाग के अल्फ्रेड पार्क में बैठे थे तभी उन्हें घेर लिया गया। एक घंटे तक दोनों तरफ से गोलियां चलती रही। एक ओर पूरी फौज और दूसरी तरफ अकेले आजाद। जब गोलियां खत्म होने लगीं तो आखिरी गोली अपनी कनपटी पर मारकर आजाद ने अपना नाम आजाद सार्थक करते हुए शहीद हो गए।
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