कमजोर दिल वाले और सेक्युलर इस पोस्ट को न पढ़े.....
यह कहानी हैं भारत पाक विभाजन से पहले मुसलमानो के द्वारा किये गए कत्ले आम की .... भारत विभाजन में हिन्दुओं और सिखों के नरसंहार की...
1946-47 के भारत विभाजन में पश्चिमी पंजाब में सिख और हिन्दू महिलाएं इस्लामी सामूहिक बलात्कार की शिकार हुई जिसमे उनकी छाती पर "अल्लाह-हू-अकबर" लिख कर उनके स्तन, नाक और कान काट डाले गए और बेरहमी से उनकी योनि में लोहे और बांस की नुकीली छड़ को लात मार के घुसा दिया गया। छोटे बच्चों को सूलियों के ऊपर फेंक दिया गया, गर्भवती महिलाओं के पेट काट कर अजन्मे काफिरों की बहार निकल कर काट डाला गया। दस लाख सिखों और हिंदुओं की भारत के विभाजन के दौरान मुसलमानों के हाथों बर्बरता पूर्वक हत्या कर दी गई।
भारत के विभाजन के दौरान हुई हिंसा शुरुआत कहाँ से हुई? अगस्त 1946 में, रमजान के 18वें दिन (मुसलमानो का वह पवित्र दिन जिस दिन खुद मुहम्मद ने बद्र की लड़ाई में अरब के काफिरों का कत्लेआम किया था) मुसलमानों ने जिन्ना के उस निर्देश का पालन करना शुरू किया जिसमे बद्र की लड़ाई में अपने नबी की तरह हिंदुओं और सिखों का वध करने के लिए कहा गया था। विभाजन की प्रमुख घटनाओं के ऐतिहासिक क्रम में यह साफ़ ज़ाहिर है कि पहिले मुसलमानों ने सिख और हिंदू काफिरों को मारना शुरू किया ताकि उन्हें आतंकित करके पाकिस्तान को स्वीकार करने कि लिए मज़बूर किया जा सके।
अंग्रेज़ों के भारत छोड़ने के समय मुसलमानों को अचानक याद आया की काफिरों के साथ रहना इस्लामी मानकों के अनुसार तो 'हराम' है और मुसलमानों को हिंदू और सिख लोगों के साथ रहना पड़े तो यह तो मुसलमानों पर अत्याचार है। पाकिस्तान को अपना दार-उल-इस्लाम पाने के लिए लड़ना चाहिए है और इसलिए पाकिस्तान स्वीकार को मजबूर करने के लिए काफ़िर हिंदू और सिख लोगों की हत्या इस्लाम में नैतिक रूप से उचित है। और वैसे भी कुरान में काफिरों के कत्लेआम करने वाली आयतों से भरी पड़ी है तो यह तो 'गाय पूजने वालों' और अल्लाह के अलावा किसी और को मानने वालों को मारना तो मुसलमानों का एक इस्लामी कर्तव्य है। काफिरों का कत्लेआम करते हुए मुस्लिमानों के नारे हुआ करते थे -
"मार-के-लेंगे पाकिस्तान, मर-के-लेंगे पाकिस्तान, लेके रहेंगे पाकिस्तान"!
नारा-ए-तकबीर - अल्ला-हू-अक़बर! "
पाकिस्तान के दार-उल-इस्लाम के अपने सपने को सच करने के लिए, मुसलमानों ने अगस्त 1946 में शुक्रवार की मुस्लिम छुट्टी के दिन अकारण ही सभी सिखों और हिंदुओं को मारने के लिए आवाहन किया। मुसलमानों के उकसाये गए शुरआती दंगों में मुस्लिम बहुल बंगाल में हिंदुओं की और पंजाब में सिखों की बेरहमी से हत्या कर दी गयी। सिखों और हिंदुओं पर मुसलमानों के अकारण अत्याचारों के एक साल बाद, सिखों और हिंदुओं ने उसी बर्बरता के साथ 1947 में मुसलमानों पर जवाबी कार्रवाई की मुसलमान भी विभाजन की हिंसा के शिकार बने लेकिन यह भी उतना ही सच है की इन सिलसिलेवार चलने वाले दंगों और हत्या की शुरआत मुसलमानों ने की।
पाकिस्तान का नाम का अर्थ है "शुद्ध पाक लोगों की भूमि" जिसमे ना-पाक लोग नाजिस (गंदा) और काफिरों अर्थात् सिखों और हिंदुओं के लिए कोई जगह नहीं है। भारत में मुसलमानों की जनसँख्या बहुत तेजी से बढ़ी है जबकि पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों के लगातार कत्लेआम, अपहरण और जबरन धर्मान्तरण के बाद पाकिस्तान 100% मुस्लिम बहुल देश होने के बेहद करीब है।
दिखाई गयी तस्वीर में मृत महिला का स्तन कटा हुआ है, यह महिलाओं के साथ किये जाने वाले सुलूक की एक आजमाई हुई ऐतिहासिक तरकीब है, चाहे बौद्धों का नरसंहार हो या तुर्की में अर्मेनियाई ईसाइयों का, भारत के विभाजन में सिख और हिंदू महिलाओं पर अत्याचार हो या आजकल सीरिया और ईराक में यज़ीदी महिलाओं का बलात्कार, सब जगह सबसे ज़यादा इस्लामी कोप का भजन महिलाएं ही बनी हैं। ऐसा लगता है कि स्तन, नाक और कान काट डालना, शरीर पर एसिड दाल देना, जननांगों को विकृति कर देना जैसी वीभत्स तरकीबों का काफिर महिलाओं पर मुसलमानों के द्वारा इस्तेमाल किये जाने के लिए कोई इस्लामी कॉपीराइट है जिसके क़ुरान इज़ाज़त देता है।
10 वीं सदी के बाद से आज के दक्षिण एशियाई मुसलमानों के पूर्वज तलवारों से खतना करवाये जाने के लिए लाइन में खड़े कर दिए जाते थे। खतने के बाद जहाँ अभी भी उनके लिंगों से खून बह रहा होता था, वहीं उनकी मुह से "भगवान कोई नहीं है सिवाए अल्लाह के, और मुहम्मद अल्लाह का दूत है।" का नारा लगवा कर गाय का मांस उनके मुंह में ठूंस दिया जाता था। शुरू में वे अपने घरों में अपने प्राचीन हिंदू या बौद्ध मान्यताओं का पालन करते रहे लेकिन सदियों के बीतने के साथ कट्टरपंथी मुस्लमान बन गए हैं और आज हालत ये है कि अपने भारतीय पूर्वजों को ही अपने दुश्मनों के रूप में देखने लगे हैं।
भारत में इस्लाम के आगमन के बाद से, 8 करोड़ से अधिक भारतीयों (हिंदू, बौद्ध और सिख) का मुसलमानों के हाथों कत्लेआम किया गया है।
एक सबसे बड़ा सवाल ज़हन में आता है कि आखिर इस तरह की बर्बरता क्यों? जवाब है खुद मुहम्मद ने 'आतंक के साथ जिहाद की जीत' का उदाहरण मुसलमानों कि सामने स्थापित किया। मुहम्मद खुद कबीलों को जीत कर सुंदर लड़कियों और गुलाम बनने कि उपयुक्त आयु के व्यक्तियों को छोड़कर सभी का वध कर दिया करते थे। मुहम्मद ने अपने जीवन के आख़री 10 वर्षों में कोई कम से कम 80 गज़वा (wars) का नेतृत्व किया था। वह खुद गिरोह नेता की तरह चोरी और युद्ध से बरामद लूट और महिलाओं का पांचवा हिस्सा अपने पास रख कर बाकी लूट का धन और औरते अपने मुस्लिम गुंडों के बीच वितरित कर दिया करते थे।
बानु क़ुरैज़ा नाम की जनजाति का किस्सा मसहूर है जहाँ का मुहम्मद ने साफिया नाम की एक खूबसूरत लड़की पर कब्जा कर लिया। साफिया के माता-पिता, भाई और पति के सिर धड़ से अलग कर देने के बाद उसी दिन उसके साथ सोया। आज ISIS और बोको हराम के मुस्लमान इराक और सीरिया में सिर्फ अपने पैगंबर मुहम्मद का अनुसरण कर रहे हैं।
साठ प्रतिशत कुरान जिहाद की आयतों से भरी है, और खुद मुहम्मद ने ऐसी अनगिनत आयतों के बारे में बताया है जिनमे मुसलमानों के हाथों काफिरों का क़त्ल, अगर वे इस्लाम स्वीकार न करें तो सही ठहराया गया है या उन्हें मारा ना जा सकता हो तो वह जज़िया का भुगतान करें। जब तक मुस्लमान मुहम्मद को अल्लाह की सबसे नायाब रचना मानते रहेंगे तब तक ऐसे ही जिहाद होते रहेंगे और महिलाओं और बच्चियों के बलात्कार और कत्लेआम को जायज़ ठहराया जाता रहेगा।
यह कहानी हैं भारत पाक विभाजन से पहले मुसलमानो के द्वारा किये गए कत्ले आम की .... भारत विभाजन में हिन्दुओं और सिखों के नरसंहार की...
1946-47 के भारत विभाजन में पश्चिमी पंजाब में सिख और हिन्दू महिलाएं इस्लामी सामूहिक बलात्कार की शिकार हुई जिसमे उनकी छाती पर "अल्लाह-हू-अकबर" लिख कर उनके स्तन, नाक और कान काट डाले गए और बेरहमी से उनकी योनि में लोहे और बांस की नुकीली छड़ को लात मार के घुसा दिया गया। छोटे बच्चों को सूलियों के ऊपर फेंक दिया गया, गर्भवती महिलाओं के पेट काट कर अजन्मे काफिरों की बहार निकल कर काट डाला गया। दस लाख सिखों और हिंदुओं की भारत के विभाजन के दौरान मुसलमानों के हाथों बर्बरता पूर्वक हत्या कर दी गई।
भारत के विभाजन के दौरान हुई हिंसा शुरुआत कहाँ से हुई? अगस्त 1946 में, रमजान के 18वें दिन (मुसलमानो का वह पवित्र दिन जिस दिन खुद मुहम्मद ने बद्र की लड़ाई में अरब के काफिरों का कत्लेआम किया था) मुसलमानों ने जिन्ना के उस निर्देश का पालन करना शुरू किया जिसमे बद्र की लड़ाई में अपने नबी की तरह हिंदुओं और सिखों का वध करने के लिए कहा गया था। विभाजन की प्रमुख घटनाओं के ऐतिहासिक क्रम में यह साफ़ ज़ाहिर है कि पहिले मुसलमानों ने सिख और हिंदू काफिरों को मारना शुरू किया ताकि उन्हें आतंकित करके पाकिस्तान को स्वीकार करने कि लिए मज़बूर किया जा सके।
अंग्रेज़ों के भारत छोड़ने के समय मुसलमानों को अचानक याद आया की काफिरों के साथ रहना इस्लामी मानकों के अनुसार तो 'हराम' है और मुसलमानों को हिंदू और सिख लोगों के साथ रहना पड़े तो यह तो मुसलमानों पर अत्याचार है। पाकिस्तान को अपना दार-उल-इस्लाम पाने के लिए लड़ना चाहिए है और इसलिए पाकिस्तान स्वीकार को मजबूर करने के लिए काफ़िर हिंदू और सिख लोगों की हत्या इस्लाम में नैतिक रूप से उचित है। और वैसे भी कुरान में काफिरों के कत्लेआम करने वाली आयतों से भरी पड़ी है तो यह तो 'गाय पूजने वालों' और अल्लाह के अलावा किसी और को मानने वालों को मारना तो मुसलमानों का एक इस्लामी कर्तव्य है। काफिरों का कत्लेआम करते हुए मुस्लिमानों के नारे हुआ करते थे -
"मार-के-लेंगे पाकिस्तान, मर-के-लेंगे पाकिस्तान, लेके रहेंगे पाकिस्तान"!
नारा-ए-तकबीर - अल्ला-हू-अक़बर! "
पाकिस्तान के दार-उल-इस्लाम के अपने सपने को सच करने के लिए, मुसलमानों ने अगस्त 1946 में शुक्रवार की मुस्लिम छुट्टी के दिन अकारण ही सभी सिखों और हिंदुओं को मारने के लिए आवाहन किया। मुसलमानों के उकसाये गए शुरआती दंगों में मुस्लिम बहुल बंगाल में हिंदुओं की और पंजाब में सिखों की बेरहमी से हत्या कर दी गयी। सिखों और हिंदुओं पर मुसलमानों के अकारण अत्याचारों के एक साल बाद, सिखों और हिंदुओं ने उसी बर्बरता के साथ 1947 में मुसलमानों पर जवाबी कार्रवाई की मुसलमान भी विभाजन की हिंसा के शिकार बने लेकिन यह भी उतना ही सच है की इन सिलसिलेवार चलने वाले दंगों और हत्या की शुरआत मुसलमानों ने की।
पाकिस्तान का नाम का अर्थ है "शुद्ध पाक लोगों की भूमि" जिसमे ना-पाक लोग नाजिस (गंदा) और काफिरों अर्थात् सिखों और हिंदुओं के लिए कोई जगह नहीं है। भारत में मुसलमानों की जनसँख्या बहुत तेजी से बढ़ी है जबकि पाकिस्तान में हिंदुओं और सिखों के लगातार कत्लेआम, अपहरण और जबरन धर्मान्तरण के बाद पाकिस्तान 100% मुस्लिम बहुल देश होने के बेहद करीब है।
दिखाई गयी तस्वीर में मृत महिला का स्तन कटा हुआ है, यह महिलाओं के साथ किये जाने वाले सुलूक की एक आजमाई हुई ऐतिहासिक तरकीब है, चाहे बौद्धों का नरसंहार हो या तुर्की में अर्मेनियाई ईसाइयों का, भारत के विभाजन में सिख और हिंदू महिलाओं पर अत्याचार हो या आजकल सीरिया और ईराक में यज़ीदी महिलाओं का बलात्कार, सब जगह सबसे ज़यादा इस्लामी कोप का भजन महिलाएं ही बनी हैं। ऐसा लगता है कि स्तन, नाक और कान काट डालना, शरीर पर एसिड दाल देना, जननांगों को विकृति कर देना जैसी वीभत्स तरकीबों का काफिर महिलाओं पर मुसलमानों के द्वारा इस्तेमाल किये जाने के लिए कोई इस्लामी कॉपीराइट है जिसके क़ुरान इज़ाज़त देता है।
10 वीं सदी के बाद से आज के दक्षिण एशियाई मुसलमानों के पूर्वज तलवारों से खतना करवाये जाने के लिए लाइन में खड़े कर दिए जाते थे। खतने के बाद जहाँ अभी भी उनके लिंगों से खून बह रहा होता था, वहीं उनकी मुह से "भगवान कोई नहीं है सिवाए अल्लाह के, और मुहम्मद अल्लाह का दूत है।" का नारा लगवा कर गाय का मांस उनके मुंह में ठूंस दिया जाता था। शुरू में वे अपने घरों में अपने प्राचीन हिंदू या बौद्ध मान्यताओं का पालन करते रहे लेकिन सदियों के बीतने के साथ कट्टरपंथी मुस्लमान बन गए हैं और आज हालत ये है कि अपने भारतीय पूर्वजों को ही अपने दुश्मनों के रूप में देखने लगे हैं।
भारत में इस्लाम के आगमन के बाद से, 8 करोड़ से अधिक भारतीयों (हिंदू, बौद्ध और सिख) का मुसलमानों के हाथों कत्लेआम किया गया है।
एक सबसे बड़ा सवाल ज़हन में आता है कि आखिर इस तरह की बर्बरता क्यों? जवाब है खुद मुहम्मद ने 'आतंक के साथ जिहाद की जीत' का उदाहरण मुसलमानों कि सामने स्थापित किया। मुहम्मद खुद कबीलों को जीत कर सुंदर लड़कियों और गुलाम बनने कि उपयुक्त आयु के व्यक्तियों को छोड़कर सभी का वध कर दिया करते थे। मुहम्मद ने अपने जीवन के आख़री 10 वर्षों में कोई कम से कम 80 गज़वा (wars) का नेतृत्व किया था। वह खुद गिरोह नेता की तरह चोरी और युद्ध से बरामद लूट और महिलाओं का पांचवा हिस्सा अपने पास रख कर बाकी लूट का धन और औरते अपने मुस्लिम गुंडों के बीच वितरित कर दिया करते थे।
बानु क़ुरैज़ा नाम की जनजाति का किस्सा मसहूर है जहाँ का मुहम्मद ने साफिया नाम की एक खूबसूरत लड़की पर कब्जा कर लिया। साफिया के माता-पिता, भाई और पति के सिर धड़ से अलग कर देने के बाद उसी दिन उसके साथ सोया। आज ISIS और बोको हराम के मुस्लमान इराक और सीरिया में सिर्फ अपने पैगंबर मुहम्मद का अनुसरण कर रहे हैं।
साठ प्रतिशत कुरान जिहाद की आयतों से भरी है, और खुद मुहम्मद ने ऐसी अनगिनत आयतों के बारे में बताया है जिनमे मुसलमानों के हाथों काफिरों का क़त्ल, अगर वे इस्लाम स्वीकार न करें तो सही ठहराया गया है या उन्हें मारा ना जा सकता हो तो वह जज़िया का भुगतान करें। जब तक मुस्लमान मुहम्मद को अल्लाह की सबसे नायाब रचना मानते रहेंगे तब तक ऐसे ही जिहाद होते रहेंगे और महिलाओं और बच्चियों के बलात्कार और कत्लेआम को जायज़ ठहराया जाता रहेगा।
Peace if possible, truth at all costs.