द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म हो चुका था हिटलर के आत्महत्या के साथ ही नेताजी
सुभाषचन्द्र बोस भूमिगत हो गये थे । अमेरिका के हेरोशिमा नागासाकी पर परमाणु हमले के बाद 15 अगस्त 1945 को जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया था । अमेरिका और ब्रिटेन की दादागीरी कायम हो चुकी थी । लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध की बिभीषकता को झेलते-झेलते ब्रिटेन पूरी तरह आर्थिक रूप से तबाह" हो चुका था । पैसे के दम पर भारतीय को भारतीयों के खिलाफ इस्तेमाल करने का सार्मथ्य अब ब्रिटेन के पास नहीं था ।
सुभाषचन्द्र बोस भूमिगत हो गये थे । अमेरिका के हेरोशिमा नागासाकी पर परमाणु हमले के बाद 15 अगस्त 1945 को जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया था । अमेरिका और ब्रिटेन की दादागीरी कायम हो चुकी थी । लेकिन द्वितीय विश्वयुद्ध की बिभीषकता को झेलते-झेलते ब्रिटेन पूरी तरह आर्थिक रूप से तबाह" हो चुका था । पैसे के दम पर भारतीय को भारतीयों के खिलाफ इस्तेमाल करने का सार्मथ्य अब ब्रिटेन के पास नहीं था ।
इधर 1946 फरवरी में भारतीय नौसेना ने विद्रोह कर दिया था, अप्रैल 1946 मेँ भारतीय ब्रिटिश पुलिस हड़ताल पर चली गयी थी, जुलाई 1946 में डाक विभाग भी हड़ताल कर चुका था और अगस्त 1946 में भारतीय रेल ने हड़ताल का नोटिस दे दिया था ।
भारत जैसे विराट देश में छल और छदम से सत्ता ' हथियाने वाले ब्रिटिश अब ,
नये हथकण्डे की तलाश में थे । इसी उददेश्य से 24 मार्च 1946 को "'
ब्रिटिश, कैबिनेट मिशन भारत आया भारत केअन्दर ब्रिटिश कम्पनियों द्वारा लगाई गयी अपार पूंजी का जायजा लिया और भविष्य में इन कम्पनियों
द्धारा किया जाने वाला दोहन न रूके साथ ही ब्रिटिश पर कोई आर्थिक जिम्मेदारी भी न आये इसी परिस्थिती पर विचार करते हुए भारत को ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल के दायरे में उपनिवेशिक दर्जें की स्वशासन प्रणाली (जिसे हम आजादी समझते हैं ) देने का प्रस्ताव तैयार किया गया ।
नये हथकण्डे की तलाश में थे । इसी उददेश्य से 24 मार्च 1946 को "'
ब्रिटिश, कैबिनेट मिशन भारत आया भारत केअन्दर ब्रिटिश कम्पनियों द्वारा लगाई गयी अपार पूंजी का जायजा लिया और भविष्य में इन कम्पनियों
द्धारा किया जाने वाला दोहन न रूके साथ ही ब्रिटिश पर कोई आर्थिक जिम्मेदारी भी न आये इसी परिस्थिती पर विचार करते हुए भारत को ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल के दायरे में उपनिवेशिक दर्जें की स्वशासन प्रणाली (जिसे हम आजादी समझते हैं ) देने का प्रस्ताव तैयार किया गया ।
उक्त प्रस्ताव को मनवाने के लिये उन्होंने विभिन्न राजनेताओं से चर्चा की किन्तु कहीं
सफलता न मिलते देख हताश व निराश भाव से वायसराय आवास परं बैठे दल
को अचानक वायसराय के सचिव के.पी. मेनन द्वारा यह सूचना मिली कि नेहरू
एक कमजोर व्यक्तित्व का ब्रिटिश मानसिकता का व्यक्ति है कांग्रेस में उसकी
अच्छी छवि है, विधुर है उसे यदि किसी महिला द्वारा यह बात समझाई जायेँ तो बात बन सकती है ।
सफलता न मिलते देख हताश व निराश भाव से वायसराय आवास परं बैठे दल
को अचानक वायसराय के सचिव के.पी. मेनन द्वारा यह सूचना मिली कि नेहरू
एक कमजोर व्यक्तित्व का ब्रिटिश मानसिकता का व्यक्ति है कांग्रेस में उसकी
अच्छी छवि है, विधुर है उसे यदि किसी महिला द्वारा यह बात समझाई जायेँ तो बात बन सकती है ।
विकल्पों के अभाव में आनन-फानन में कैंबनेट मिशन ने यह सुझाव आगे
बढाया और तत्कालीन गवर्नर जनरल वायसराय बावेल के स्थान पर ब्रिटिश
सरकार ने माउन्वेटन जो उस समय द्वितीय विश्वयुद्ध में पूर्वी राष्ट्रों के विरूद्ध
सुप्रीम कमाण्डर आफ साउथ इस्ट एशिया के पद पर ब्रिटेन की तरफ से जंग लड़
रहे थे उन्हें 24 मार्च 1947 को भारत में वायसराय के पद पर तैनात कर दिया
गया और उनकी पत्नी एडवीना को नेहरू से मित्रता करने और भारत को
औपनिवेशिक स्वशासन प्रणाली को स्वीकार करवाने का प्रोजेक्ट दिया गया ।
बढाया और तत्कालीन गवर्नर जनरल वायसराय बावेल के स्थान पर ब्रिटिश
सरकार ने माउन्वेटन जो उस समय द्वितीय विश्वयुद्ध में पूर्वी राष्ट्रों के विरूद्ध
सुप्रीम कमाण्डर आफ साउथ इस्ट एशिया के पद पर ब्रिटेन की तरफ से जंग लड़
रहे थे उन्हें 24 मार्च 1947 को भारत में वायसराय के पद पर तैनात कर दिया
गया और उनकी पत्नी एडवीना को नेहरू से मित्रता करने और भारत को
औपनिवेशिक स्वशासन प्रणाली को स्वीकार करवाने का प्रोजेक्ट दिया गया ।
इस प्रोजैक्ट पर पूर्ण स्वराज्य की बात करने वाले नेहरू बहुत ही कम समय में तैयार हो गये और 3 जून 1947 को भारत के विभाजन की शर्त पर
उपनिवेशिक दर्ज के स्वशासन प्रणाली की घोषणा कर दी गई जिसे 18 जुलाई
1947 को ब्रिटिश संसद ने भारत स्वतन्त्रता अधिनियम 1947 के रूप में विधिक मान्यता प्रदान कर दिया ।
उपनिवेशिक दर्ज के स्वशासन प्रणाली की घोषणा कर दी गई जिसे 18 जुलाई
1947 को ब्रिटिश संसद ने भारत स्वतन्त्रता अधिनियम 1947 के रूप में विधिक मान्यता प्रदान कर दिया ।
स्वतन्त्रता की तिथि की घोषणा के लिये 15 अगस्त 1947 का दिन निर्धारित किया गया क्योंकि इसी दिन जापान ने माउन्टब्रेटन के समक्ष दो वर्ष के पूर्व आत्मसमर्पण किया था और आज भारत करने जा रहा था ।
सत्ता के लालची नेताओं ने न तो राष्ट्रनायक महांत्मा गांधी की बात सुनी और ।
न ही उन्हें इस सत्ता हस्तान्तरण के अवसर पर आमंत्रित करना उचित समझा ।' भारत पर शासन करने के लिये भारतीय मूल के प्रथम ब्रिटिश प्रधानमंत्री को 15 अगस्त 1947 को भारत के " तथाकथित संसद भवन में ब्रिटेन के वायसराय माउण्टबेटन ने शपथ दिलवाईं उस समय भी गांधी जी भले ही न रहे हो पर एडवीना कार्यक्रम स्थल पर मौजूद थी । … -
न ही उन्हें इस सत्ता हस्तान्तरण के अवसर पर आमंत्रित करना उचित समझा ।' भारत पर शासन करने के लिये भारतीय मूल के प्रथम ब्रिटिश प्रधानमंत्री को 15 अगस्त 1947 को भारत के " तथाकथित संसद भवन में ब्रिटेन के वायसराय माउण्टबेटन ने शपथ दिलवाईं उस समय भी गांधी जी भले ही न रहे हो पर एडवीना कार्यक्रम स्थल पर मौजूद थी । … -
वायसराय ने ब्रिटिश सम्राट की और से एक संदेश भी पढ़कर सुनाया “इस ऐतिहासिक दिन, जबकि भारत ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल में एक स्वतंत्र और स्वाधीन उपनिवेश के रूप में स्थान ग्रहण कर रहा है, मैं आप सबको हार्दिक शुभकामना
भेज रही हूं और भारत की जनता के भ्रमित कर यह बतलाया गया कि देश आजाद को गया ।
भेज रही हूं और भारत की जनता के भ्रमित कर यह बतलाया गया कि देश आजाद को गया ।
भारत का प्रधानमंत्री जरूर भारतीय भूल का था । किन्तु ब्रिटेन संसद द्वारा लागू भारत के शोषण के लिये बनाये पाये 34,735 कानून अभी भी ब्रिटिश वायसराय के नेत्त्व में भारत पर लागू थे और माउण्टबेटन उसी के आधार पर 22 जून 1948 तक भारत में शासन चलाता रहा ।
इस बीच माउण्टबेटन और नेहरू की नीतियों का धुर विरोध करने वाले गांधी
की हत्या भी 30 जनवरी 1948 को हो गई । लोगों को डर था कि गांधी अगर अड़े रहे तो राष्ट्रघाती नीतियां सफल नहीं हो पायेगी ।
की हत्या भी 30 जनवरी 1948 को हो गई । लोगों को डर था कि गांधी अगर अड़े रहे तो राष्ट्रघाती नीतियां सफल नहीं हो पायेगी ।
21 जून 1948 को माउण्टबेटन ने अपना कार्यभार राजगोपालाचारी को सौपा "
और भारत को राष्ट्रमण्डल के दायरे में एक स्वतंत्र स्वाधीन उपनिवेशिक दर्ज के
राज्य का स्तर देकर वापस ब्रिटेन चले गये जिसे आज तक भारत का संविधान राष्ट्र का दर्जा नहीं दे पाया है।
और भारत को राष्ट्रमण्डल के दायरे में एक स्वतंत्र स्वाधीन उपनिवेशिक दर्ज के
राज्य का स्तर देकर वापस ब्रिटेन चले गये जिसे आज तक भारत का संविधान राष्ट्र का दर्जा नहीं दे पाया है।
जब 21 जून 1948 तक तीनों सैनाओँ का सर्वोच्च प्रमुख होने के साथ –साथ
सभी 'राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक निर्णय' ब्रिटिश वायसराय लेता रहा है तो हम 15 अगस्त 1947 के स्वतंत्र हो गये यह पूर्व सदी का सबसे बडा झूठ नहीँ है तो क्या है? -
सभी 'राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक निर्णय' ब्रिटिश वायसराय लेता रहा है तो हम 15 अगस्त 1947 के स्वतंत्र हो गये यह पूर्व सदी का सबसे बडा झूठ नहीँ है तो क्या है? -
Peace if possible, truth at all costs.