सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ तीन तलाक पर 6 महीने के लिए प्रतिबन्ध लगाया है।

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अगर 6 महीने में इसपर कानून भी बन गया तो क्या होगा ???? *इससे कुरान पढ़ने वाले मुसलमानों की मानसिकता तो बदलने से रही। सिर्फ तीन तलाक ही तो नहीं कहेंगे , --बाकि ??????*
आइये12 उदाहरण देखें कुरान में औरतों / काफिर औरतों का क्या दर्ज है --
12) सूरा 2 आयत 223 ---- *औरतें तुम्हारे खेत हैं इनमे चाहें जहाँ मर्जी से घुसो।*
11 ) सूरा 2 आयत 228 ---- मर्दों का औरतों के मुकाबले दर्जा बढ़ा हुआ है।
10 )सूरा 4 आयत 11 -12 ---- लड़के का जायदाद में हिस्सा लड़की से दुगना होगा , और माँ और बीवी का 1/3 , 1/4 ,1/6वाँ हिस्सा ( अलग अलग परिस्थितियों में)
9 ) सूरा 2 आयत 282 ---- *दो औरतों की गवाही एक मर्द के बराबर*
8 ) सूरा 2 आयत 230 ---- एक तलाकशुदा औरत को अपने *पहले पति से निकाह करने से पहले किसी दूसरे मर्द से निकाह करके शरीरिक सम्बन्ध बनाने होंगे।* जब दूसरा मर्द तलाक दे देगा तभी पहले पति से निकाह कर सकती है।
7) सूरा 4 आयत 3 , 23:5-6 , 33:50 ,70 :30 ----बांदियों / गुलाम औरतों के साथ सेक्स की इज़ाज़त।
6 ) सूरा 4 आयत 3 --- अगर तुम्हे अंदेशा हो कि यतीम लड़कियों के साथ इन्साफ नहीं कर सकोगे तो *दो तीन चार निकाह कर सकते हो* पर अगर अंदेशा हो कि सबके साथ बराबर का व्यवहार नहीं कर सकते तो सिर्फ एक ही निकाह करो।
5 )सूरा 4 आयत 129 ---- ये आयत 4:3 की बिलकुल विरोधाभासी है --तुमसे ये कभी न हो सकेगा कि सब बीबियों में बराबरी बनाये रखो। इसी के आगे आयत 130 में आयत 129 के सन्दर्भ में कहती है कि ऐसे हालात में मियां बीवी जुदा हो जाएँ।
4) सूरा 4 आयत 34 --- मर्द हाकिम है औरतों पर। अगर औरत से बददिमागी का अंदेशा हो तो पहले उसे जुबानी नसीहत दो, और उसके बाद उसे मारो।
3 ) सूरा 65 आयत 4 ---- जिन औरतों को उम्र की वजह से माहवारी आनी बंद हो गयी है या जिनको काम उम्र की वजह से माहवारी शुरू नहीं हुई है , उनके लिए तलाक़ के बाद इद्दत का का समय 90 दिन है। #गौर_करें ----#इसी_आयत_से_मतलब_निकला_गया_है_कि_9_साल_की_बच्ची_से_भी_निकाह_किया_जा_सकता_है।
2) सूरा 33 आयत 37 -- ससुर अपनी बहु ( गोद लिए हुए बेटे की बीवी ) से निकाह कर सकता है। *( ये आयत तब नाज़िल हुई जब पैगम्बर का दिल अपने गोद लिए हुए बेटे ज़ैद की बीवी जैनब पर आ गया था। )*
और मेरे हिसाब से पहले पायदान पर आती है निम्न आयत,जो कि सिर्फ पैगम्बर पर अप्लाई होती है और ईमान वालों के लिए प्रतिबंधित है ---
1) सूरा 33 आयत 50 --- ऐ नबी ! हमने आपके लिए आपकी ये बीवियां जिनको आप मेहर दे चुके है, हलाल की हैं और वे औरतें भी तो तुम्हारी मम्लूक (गुलाम) हैं,जो अल्लाह तआला की गनीमत से आपको दिलवा दीं हैं और आपके चचा की बेटियां ,और आपके फूफियों की बेटियां और आपके मामूं की बेटियां और आपकी ख़ालाओं की बेटियां भी जिन्होंने आपके साथ हिज़रत की हो और उस मुसलमान औरत को भी जो बिना बदले के अपने को पैगम्बर को दे दे बशर्ते कि पैगम्बर उनको निकाह में लाना चाहें। ये सब आपके लिए मख़सूस किये गए हैं न कि और मोमिनों के लिए।
*वैसे शरीयत में ब्लात्कारी को बचाने का पूरा प्रावधान किया गया है ।* अगर कोई महिला किसी पुरुष पर बलात्कार करने का आरोप लगाती है और वो आदमी अगर अपना गुनाह कबूल नहीं करता तो 4 गवाह ला कर आरोप सिद्ध ने की ज़िम्मेदारी औरत की है । अगर वो सिद्ध नहीं कर पाती तो उसे 80 कोड़ों की सज़ा है ।
खैर इतना पढ़ने के बाद आपके लिए यह समझना बहुत ज़रूरी है कि #निकाह एक अरबी शब्द है जिसका हिंदी में मतलब होता है कानूनी अनुबंध ---और अंग्रेजी में LEGAL CONTRACT
और मुझे शरीयत से नफरत के बहुत से कारण हैं , जिसमें तीन अहम् कारन हैं -----
3) शरीयत मुसलामानों को इज़ाज़त देती है कि वे काफिरों पर हमला करके उन्हें या तो जबरदस्ती इस्लाम कबूल करवाएं या इस्लाम न कबूल करने की स्थिति में धीम्मी बना कर उनसे जज़िया वसूलें और दोनों स्थितियां संभव न होने पर काफिरों के पोर पोर काट कर उन्हें मार दें।
2 ) काफिरों के खिलाफ जिहाद कआरके उनकी औरतों को गुलाम बना सकते हैं और उनके साथ बलात्कार को जायज़ ठहराती है।
1) शरीयत के हिसाब से यहूदी और ईसाई की जान की कीमत मुसलमान के मुकाबले में आधी है और बौद्ध,जैन, हिन्दू और यज़ीदियों की जान की कीमत 1/16 है।
*#तो_अब_कौन_कहता_है_कि_ये_समानता_का_मज़हब_है।*

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