रावण की शिक्षा...

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*🔥ओ३म्🔥*

*🌷रावण की शिक्षा🌷*

श्री विश्वश्रवा जी और माता केकसी रावणादि सभी पुत्रों का पालन पोषण करते हुए उन्हें सन्ध्या, यज्ञ व धर्म शिक्षा भी दिया करते थे, दोनों ने रावण को स्वाध्याय, तप-ध्यान आदि में प्रवीण कर दिया था, फिर महाराज शुक्राचार्यजी को बुलाकर गणित, ज्योतिष और खगोल विद्यायें सिखाई। यथा―धर्मचक्र, भीरुचक्र, वीरचक्र, शक्तिचक्र, दिशाचक्र, इन्द्रचक्र, उग्रचक्र, मोहनीचक्र, हस्तगदा, वज्रासन, शिवशूलास्त्र, ब्रह्मास्त्र, वायु-अस्त्र, अग्नि अस्त्र, भीष्म अस्त्र, कालवाश, गगन उड़ी, शतघ्नी, त्रिशूली, मुसल, कपाल, मोरनी, मोहनास्त्र, पैशाच अस्त्र, महास्त्र इत्यादि अनेक विद्यायें युद्ध विद्या विशारद आचार्य विद्वन्माली से सीखी। इसके अतिरिक्त मयटापुर (मैडागास्कर) निवासी मयदानव जो महादेव जी के मित्र थे, उनके पास जाकर अग्नि वर्षाना, वायु तथा आसु गैस आदि का प्रयोग विधि का ज्ञान प्राप्त किया।

इतनी विद्यायें सीखने पर भी रावण की माता केकसी उसे सबसे बड़ा विद्वान् और महान् योद्धा बनाने की इच्छा से रावण से कहती थी, कि यदि देवलोक (भारत) में और भी कोई वेद ज्ञाता हो तो उससे भी विद्या प्राप्त करो। तत्पश्चात् रावण ने शिवजी को गुरु बनाकर सम्पूर्ण योग विद्या सीखी। शिवजी से प्राणायाम की ऐसी विधि सीखी जिससे रावण अपनी भूख प्यास रोककर, प्राणों को शरीर में हर स्थान पर रोक लेता था। तभी तो युद्ध भूमि में विभीषण ने राम से कहा कि रावण अपनी नाभि में प्राणशक्ति रोक लेता है।

*अब प्रश्न यह है कि जब रावण इतना सब कुछ था, तो राक्षस क्यों कहलाया?*

राक्षस कहलाने का कारण यह है कि उस समय आर्यावर्त चार राष्ट्रों में विभाजित था। एक देवराष्ट्र, दूसरा आर्यराष्ट्र, तीसरा वानर राष्ट्र, चौथा राक्षस राष्ट्र। इस प्रकार यहां के निवासी क्रमश: देव, आर्य, वानर और राक्षस कहलाये। चूंकि रावण राक्षस राष्ट्र का स्वामी था। इसलिये वह राक्षस कहलाया। यथा―वर्तमान में भी रुसी, अमेरिकन आदि बोले जाते हैं।

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