मांस खाने वाला क्षत्रिय नहीं,बल्कि कायर/डरपोक व असंयमी होता ह

0

।।ओ३म्।।
मांस खाने वाला क्षत्रिय नहीं,बल्कि कायर/डरपोक व असंयमी होता है,शाकाहारी ही होता है क्षत्रिय/वीर/योद्धा-

माँस खाने वाला व्यक्ति क्षत्रिय नहीं,कायर होता है,इसका प्रमाण यह है कि वो अपने से कमजोर व कम बुद्धि वाले जीव का मांस खाता है।मांस खाने वाला कोई मनुष्य साहसी या वीर या क्षत्रिय तब कहलायेगा जब वो अपने से बलशाली व बुद्धिमान मनुष्य का मांस खाकर दिखाये।शर्त यह है कि दोनों अकेले हो।
क्षत्रिय कहलाना तो दूर की बात मांस खाने वाला,तो मनुष्य भी नहीं कहलाता।मांस खाने वाला व्यक्ति मांसाहारी पशु के समान पशुवत् व्यवहार करने के कारण पशु है।

मांस से अधिक दुर्गंध भरी वस्तु अगर कोई विश्व में दूसरी हो,तो को बताये? उसका उदाहरण दें।इतनी दुर्गंध भरी वस्तु कोई तभी खायेगा,जब उसपे रहा न जाये,या तो उसे उसकी आदत डाली गई हो या माँस खाने की आदत/स्वभाव उसके संस्कारों में हो।

जिस मनुष्य पे जिस किसी वस्तु के बिना रहा न जाये,वो उसकी कमजोरी ही है,इस कमजोरी को ही असंयम कहते हैं।यह कमजोरी उसके पूर्व जन्म के संस्कार से या इसी जन्म में पूर्व कार्यों के कारण प्राप्त स्वभाव के कारण है,इस असंयम का का कारण उसका परिवेश/परिस्थिति भी जिम्मेदार हो सकती है।कोई व्यक्ति शराब,बीड़ी आदि के बिना रह सकता है,यह उसका संयम है,यही उसका साहस है,इसी कारण वह क्षत्रिय है,वीर है।कोई मनुष्य गलत कार्य का विरोध करता है यह उसका उस कार्य के प्रति असंयम है,इस कारण वह क्षत्रिय है।
भला मांस खाने,नशा करने वाला व्यक्ति क्षत्रिय कैसे हो सकता है।अगर असुरों,दुष्टों का उदाहरण दे कि वो क्षत्रिय होते हैं,तो उनके क्षत्रिय न होने का प्रमाण यह है कि अकेला असुर/दुष्ट कभी "अकेले वीर" से नहीं लड़ता।असुर व दुष्ट हमेशा झुंड बनाकर हमला करते हैं।
अगर कोई कहे कि क्षत्रियों/वीरों में एकता क्यों नहीं है,यह एकता असुरों में ही क्यों है,तो इसका कारण ज्ञान की कमी का होना है,वेद ज्ञान के प्रचार की कमी का होना है।इस कारण आज जो मांसाहार करने के कारण अपने आपको क्षत्रिय समझते हैं,व अपने आपको असुरों का विरोधी होने का दंभ भरते हैं,वो क्षत्रिय नहीं,बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से असुर/दुष्ट संगठन के साथ हैं।क्योंकि उसका एक अवगुण मांसाहार तो प्रत्यक्षत: असुरों से मेल खा ही रहा है,बाकि स्वार्थ,कपट,झूठ आदि अवगुण भी मांसाहार के दोष के कारण असुरों के अवगुणों से मेल खाते जरूर मिलेंगे,क्योंकि मांसाहारी में ये अवगुण भी पैदा हो जाते हैं।
इसलिए अगर अन्याय को मिटाना है,तो सबसे पहले अपने अन्दर न्याय स्थापित करना होगा,मांसाहार व इससे उत्पन्न अवगुणों/
बुराइयों को त्यागना होगा,तभी हम असुरों/दुष्टों को मारने के कारण क्षत्रिय कहलाने के अधिकारी हैं।
अगर कोई मांसाहारी जो अपने को क्षत्रिय कहता हो,वो यह कहे कि मांसाहारी ही असुरों/दुष्टों को संगठित होकर मार सकते हैं,तो वो याद रखें चोर-चोर मौसेरे भाई होते हैं,इसलिये मांसाहारी भी आपस में भाई-भाई हुए।अत: असुरों/दुष्टों को वही मार सकता है,जो अन्याय के खिलाफ लड़ने का साहस रखता हो।मांसाहारी तो खुद ही अपने अपने से कमजोर जीवों को अत्याचार से मारे जाने के कारण खाने वाला है।
अन्याय के खिलाफ लड़ने का साहस तब आता है,जब सभी जीवों पर दया का भाव पैदा हो जाता है,अगर यह भाव पैदा करना है,तो जिन जिन जीवों का कोई मांसाहारी व्यक्ति मांस खाता है,वो मांस खाना छोडकर उन जीवों को उनकी पसंद का खाना खिलायें।गाय को प्रतिदिन रोटी खिलाये,कुत्ते को टुकड़ा डाले,सुअर को खाना दे,चिडियों को दाने डाले,उनके लिये पानी रखे,मछलियों के लिये तालाब में गीले आटे की छोटी-छोटी गोलियां बनाकर डालें।ऐसा करने से जीवों के प्रति अत्याचार करने वाले के विरोध में आवाज उठनी शुरू होगी,फिर धीरे-धीरे उनसे लडने व बाद में उन्हें मारने का स्वाभिमान भी पैदा होगा।मनुष्यों के कर्तव्यों पर चलकर ही मनुष्यता को बचाया जा सकता है।मनुष्यों के सभी कर्तव्य वेद ज्ञान निर्धारित करता है,अगर वेद ज्ञान के रास्ते पर चलेंगे,तो सब बुराइयों का नाश होगा,ज्ञान का प्रकाश होने से व उनसे लडने का स्वाभिमान पैदा होने से आसुरी शक्तियों का नाश होगा।क्योंकि लोग ज्ञान,अर्थात् वेद के विरोधी होने से ही दुष्ट कहलाते हैं।
इतिहास उठाकर देख लें,मांसाहारी शाकाहारी से हर क्षेत्र में पीछे ही रहा है।शाकाहारियों में ज्ञान,नैतिकता,मानवता,बुराई से घृणा आदि गुण मांसाहारियों से ज्यादा ही मिलेंगे।मांसाहारी असंयमी,कमजोरों पर अत्याचार करने वाले,गंदे,बीमार,बेचैन,मानसिक रोगी आदि आदि बुराइयों से घिरे रहते हैं।
कह सकते हैं कि अगर एकता हो,ज्ञान का प्रकाश हो,अपने अंदर बुराइयों से लडने का स्वाभिमान हो,तो असुरों/दुष्टों को मारना/खत्म करना बहुत आसान है।
हम क्षत्रिय तभी हैं,जब हम अपने से कमजोर को सताने/मारने वालों असुरों को मारें।

असुरों/दुष्टों को मिटाने के सिर्फ दो ही रास्ते हैं-
या तो ज्ञान का प्रचार,
ज्ञान से न समझें,तो फिर तलवार।

धर्म की जय हो,
अधर्म का नाश हो,
पूरे विश्व को अच्छा(=आर्य=Good) बनाओ,
सत्य,नित्य,सनातन सिद्धांतों की जय हो।।
अधिक जानकारी के लिए 2 दिन गुरूकल आर्य निर्मात्री सभा का जरूर करे 

#मास #मासाहारी #आर्य #भारतीय_संस्कृति #भारतीय_इतिहास #विकृतिकरण #भारत #भारतीय,

Post a Comment

0Comments

Peace if possible, truth at all costs.

Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !